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जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ी गर्मी, मरने वालों की आंकड़ों में हुई वृद्धि - बुजुर्ग लोगों की मृत्यु दर

यूसीएल शोधकर्ताओं द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले दो दशकों में जलवायु परिवर्तन के बिगड़ने से बढ़ी गर्मी के कारण बुजुर्ग लोगों की मृत्यु दर में 54 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

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Published : Dec 7, 2020, 6:15 AM IST

हैदराबाद : पिछले दो दशकों में जलवायु परिवर्तन से बढ़ी गर्मी के कारण बुजुर्ग लोगों की मृत्यु दर में 54 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है. इस बात का खुलासा यूसीएल शोधकर्ताओं के नेतृत्व में तैयार की गई एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट से हुआ है.

द लैंसेट 2020 में प्रकाशित स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन रिपोर्ट में कहा गया है कि 65 मिलियन से अधिक हीटवेट एक्सपोजर को प्रभावित हुए है. जो , 2019 के मुराबले में लगभग दोगुना है.

लेखकों का कहना है कि कोई भी देश , चाहे अमीर हो या गरीब , बिगड़ता जलवायु उस समय तक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालेगा, जब तक कि उससे निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई नहीं की जाती. उन्होंने कहा कि इससे वैश्विक स्वास्थ्य को खतरा होगा. यह जीवन और आजीविका को बाधित करेगा के साथ साथ स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को भी प्रभावित करेगा.

यूसीएल के वैश्विक स्वास्थ्य, ऊर्जा संस्थान, सतत संसाधनों के लिए संस्थान के शोधकर्ताओं, पर्यावरण डिजाइन और इंजीनियरिंग संस्थान, भूगोल विभाग और मानव स्वास्थ्य और प्रदर्शन संस्थान सभी ने रिपोर्ट में योगदान दिया है.

इसके लिए यूसीएल विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और विश्व मौसम संगठन सहित 35 से अधिक संस्थानों के विशेषज्ञों को एक साथ एक मंच पर लाया.

120 विश्व-अग्रणी स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन शिक्षाविदों और चिकित्सकों ने कहा कि कोविड-19 महामारी से रिकवरी करना का कार्य वैश्विक तापमान को सीमित करने का मौका दे रही है. इससे वैश्विक तापमान 2C से भी नीचे हो ले जाया जा सकता है और जलवायु और महामारी को संरेखित करते हुए दुनिया निकट-अवधि और दीर्घकालिक स्वास्थ्य लाभ प्रदान कर सकती है.

उनका कहना है कि ऐसा करने से भविष्य की महामारियों के जोखिम को भी कम किया जा सकता है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के जूनोटिक (संक्रामक रोगों के कारण महामारी का खतरा जो गैर-मानव जानवरों से मनुष्यों तक पहुंचते हैं) महामारी का जोखिम भी पैदा कर सकता है.

पिछले पांच वर्षों से स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन पर लैंसेट काउंटडाउन ने 40 से अधिक वैश्विक संकेतकों की निगरानी की और उनकी रिपोर्ट की है, जो स्वास्थ्य पर हमारे बदलते जलवायु के प्रभाव को मापते हैं.

रिपोर्ट बताती है कि जैसे कि कोविड-19 के लिए वृद्ध लोगों के लिए घातक होता है क्योंकि वो कमजोर होते हैं,अस्थमा और मधुमेह सहित पहले से मौजूद बीमारियों के कारण जोखिम का सामना कर रहे हैं.

महामारी ने मौजूदा स्वास्थ्य सिस्टम के बीमारी से निपटने की क्षमता को उजागर किया है, जो भविष्य में जलवायु परिवर्तन द्वारा उत्पन्न हो सकती है.

आग की लपटें, बाढ़ और अकाल राष्ट्रीय सीमाओं या बैंक खातों का सम्मान नहीं करते हैं. एक देश की धन दौलत 1.2C वैश्विक औसत तापमान वृद्धि के कारण पैदा होनी वाले स्वास्थ्य प्रभावों से निपटने के लिए कोई सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकता.

पढ़ें - सौर ऊर्जा पर भारत के नेतृत्व से मिलता है भरोसा : संयुक्त राष्ट्र

2020 की रिपोर्ट पेरिस समझौते की पांचवीं वर्षगांठ पर प्रकाशित की गई थी, जब दुनिया ने ग्लोबल वार्मिंग को 2C से कम करने का वादा किया था.

यह रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि अत्यधिक गर्मी के प्रभावों की आशंका और अनुकूलन के सफल तरीके खोजने में कठिनाइयों के कारण भविष्य में जलवायु संबंधी स्वास्थ्य संबंधी परेशानिया उत्पन्न कर सकती है.

इसम रिपोर्ट में दुनिया के सभी हिस्सों में मौजूद कमजोर लोगों के बीच गर्मी से संबंधित मृत्यु दर के बढ़ते स्तर शामिल हैं रिपोर्ट में दावा किया गया है 2018 में 296,000 वृद्ध लोगों को गर्मी के कारण अपनी जीन गंवानी पड़ी.

रिपोर्ट के मुताबिक महत्वपूर्ण आर्थिक प्रभाव के कारण विकासशील क्षेत्रों में बाहर काम करने वाले लोगों की आजीविका जोखिम क्योंकि उनकी क्षमता तेजी से प्रभावित हो रही है.

रिपोर्ट में पाया गया है कि इस सदी के अंत तक अनुमानित समुद्र के स्तर में वृद्धि से 565 मिलियन लोगों के विस्थापन का खतरा हो सकता है, जो उन्हें कई स्वास्थ्य हानि पहुंच सकती हैं.

हैदराबाद : पिछले दो दशकों में जलवायु परिवर्तन से बढ़ी गर्मी के कारण बुजुर्ग लोगों की मृत्यु दर में 54 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है. इस बात का खुलासा यूसीएल शोधकर्ताओं के नेतृत्व में तैयार की गई एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट से हुआ है.

द लैंसेट 2020 में प्रकाशित स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन रिपोर्ट में कहा गया है कि 65 मिलियन से अधिक हीटवेट एक्सपोजर को प्रभावित हुए है. जो , 2019 के मुराबले में लगभग दोगुना है.

लेखकों का कहना है कि कोई भी देश , चाहे अमीर हो या गरीब , बिगड़ता जलवायु उस समय तक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालेगा, जब तक कि उससे निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई नहीं की जाती. उन्होंने कहा कि इससे वैश्विक स्वास्थ्य को खतरा होगा. यह जीवन और आजीविका को बाधित करेगा के साथ साथ स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को भी प्रभावित करेगा.

यूसीएल के वैश्विक स्वास्थ्य, ऊर्जा संस्थान, सतत संसाधनों के लिए संस्थान के शोधकर्ताओं, पर्यावरण डिजाइन और इंजीनियरिंग संस्थान, भूगोल विभाग और मानव स्वास्थ्य और प्रदर्शन संस्थान सभी ने रिपोर्ट में योगदान दिया है.

इसके लिए यूसीएल विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और विश्व मौसम संगठन सहित 35 से अधिक संस्थानों के विशेषज्ञों को एक साथ एक मंच पर लाया.

120 विश्व-अग्रणी स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन शिक्षाविदों और चिकित्सकों ने कहा कि कोविड-19 महामारी से रिकवरी करना का कार्य वैश्विक तापमान को सीमित करने का मौका दे रही है. इससे वैश्विक तापमान 2C से भी नीचे हो ले जाया जा सकता है और जलवायु और महामारी को संरेखित करते हुए दुनिया निकट-अवधि और दीर्घकालिक स्वास्थ्य लाभ प्रदान कर सकती है.

उनका कहना है कि ऐसा करने से भविष्य की महामारियों के जोखिम को भी कम किया जा सकता है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के जूनोटिक (संक्रामक रोगों के कारण महामारी का खतरा जो गैर-मानव जानवरों से मनुष्यों तक पहुंचते हैं) महामारी का जोखिम भी पैदा कर सकता है.

पिछले पांच वर्षों से स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन पर लैंसेट काउंटडाउन ने 40 से अधिक वैश्विक संकेतकों की निगरानी की और उनकी रिपोर्ट की है, जो स्वास्थ्य पर हमारे बदलते जलवायु के प्रभाव को मापते हैं.

रिपोर्ट बताती है कि जैसे कि कोविड-19 के लिए वृद्ध लोगों के लिए घातक होता है क्योंकि वो कमजोर होते हैं,अस्थमा और मधुमेह सहित पहले से मौजूद बीमारियों के कारण जोखिम का सामना कर रहे हैं.

महामारी ने मौजूदा स्वास्थ्य सिस्टम के बीमारी से निपटने की क्षमता को उजागर किया है, जो भविष्य में जलवायु परिवर्तन द्वारा उत्पन्न हो सकती है.

आग की लपटें, बाढ़ और अकाल राष्ट्रीय सीमाओं या बैंक खातों का सम्मान नहीं करते हैं. एक देश की धन दौलत 1.2C वैश्विक औसत तापमान वृद्धि के कारण पैदा होनी वाले स्वास्थ्य प्रभावों से निपटने के लिए कोई सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकता.

पढ़ें - सौर ऊर्जा पर भारत के नेतृत्व से मिलता है भरोसा : संयुक्त राष्ट्र

2020 की रिपोर्ट पेरिस समझौते की पांचवीं वर्षगांठ पर प्रकाशित की गई थी, जब दुनिया ने ग्लोबल वार्मिंग को 2C से कम करने का वादा किया था.

यह रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि अत्यधिक गर्मी के प्रभावों की आशंका और अनुकूलन के सफल तरीके खोजने में कठिनाइयों के कारण भविष्य में जलवायु संबंधी स्वास्थ्य संबंधी परेशानिया उत्पन्न कर सकती है.

इसम रिपोर्ट में दुनिया के सभी हिस्सों में मौजूद कमजोर लोगों के बीच गर्मी से संबंधित मृत्यु दर के बढ़ते स्तर शामिल हैं रिपोर्ट में दावा किया गया है 2018 में 296,000 वृद्ध लोगों को गर्मी के कारण अपनी जीन गंवानी पड़ी.

रिपोर्ट के मुताबिक महत्वपूर्ण आर्थिक प्रभाव के कारण विकासशील क्षेत्रों में बाहर काम करने वाले लोगों की आजीविका जोखिम क्योंकि उनकी क्षमता तेजी से प्रभावित हो रही है.

रिपोर्ट में पाया गया है कि इस सदी के अंत तक अनुमानित समुद्र के स्तर में वृद्धि से 565 मिलियन लोगों के विस्थापन का खतरा हो सकता है, जो उन्हें कई स्वास्थ्य हानि पहुंच सकती हैं.

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