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सेवानिवृत्त कश्मीरी प्रवासी कर्मचारी सरकारी आवास तीन साल से अधिक नहीं रख सकतें: न्यायालय

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Published : Oct 13, 2021, 4:43 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि विस्थापित कश्मीरी सरकारी कर्मचारी रिटायरमेंट के बाद तीन साल से अधिक समय तक सरकारी आवास अपने पास नहीं रख सकते. सामाजिक या आर्थिक मानदंडों के आधार पर उन्हें अनिश्चित काल तक सरकारी आवास में रहने की अनुमति देने का कोई औचित्य नहीं हो सकता.

सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि विस्थापित कश्मीरी सरकारी कर्मचारी रिटायरमेंट के बाद तीन साल से अधिक समय तक सरकारी आवास अपने पास नहीं रख सकते. सामाजिक या आर्थिक मानदंडों के आधार पर उन्हें अनिश्चित काल तक सरकारी आवास में रहने की अनुमति देने का कोई औचित्य नहीं हो सकता.

न्यायालय ने कहा कि तीन साल की अवधि उन अधिकारियों पर भी लागू होगी जो सक्रिय खुफिया कार्य में थे ताकि वे सामान्य जीवन में लौट सकें, लेकिन खुफिया एजेंसी के लिए काम करने का बहाना अनिश्चितकाल की अवधि के लिए सरकारी आवास रखने का आधार नहीं हो सकता.

शीर्ष न्यायालय ने केंद्र की इस दलील का जिक्र किया कि संविधान के अनुच्छेद 370 को रद्द करने से कश्मीरी प्रवासियों ने कश्मीर घाटी लौटना शुरू कर दिया है और उनमें से 2000 के इस साल लौटने की संभावना है.

न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ ने सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों की तीन याचिकाओं को रद्द करते हुए इस बात का जिक्र किया कि दिल्ली में 80 कश्मीरी प्रवासी, जो कि सेवानिवृत्त हैं, सरकारी आवास रखे हुए हैं. तीन ऐसे सेवानिवृत कर्मचारी हरियाणा के फरीदाबाद में आवास रखे हुए हैं.

बता दें कि घाटी में जम्मू-कश्मीर सरकार में कार्यरत 6,000 कश्मीरी प्रवासियों को आवास प्रदान करने के लिए, कश्मीर घाटी के विभिन्न जिलों में 920 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से कश्मीरी प्रवासी कर्मचारियों के लिए 6000 ट्रांजिट आवास इकाई का निर्माण किया जा रहा है. अब तक, 1025 आवासीय इकाइयों का निर्माण किया जा चुका है, जिसमें बडगाम, कुलगाम, कुपवाड़ा, अनंतनाग और पुलवामा जिले में 721 आवासीय इकाइयां शामिल हैं. अन्य 1488 इकाइयां निर्माणाधीन हैं और लगभग 2444 इकाइयों के लिए भूमि की पहचान की गई है.

सरकार के सबमिशन कोर्ट पर ध्यान देते हुए कहा गया कि कश्मीरी प्रवासियों को सरकारी आवास की अनुमति देना अनुच्छेद 14 के टचस्टोन को पूरा नहीं कर सकता है. सरकारी घर या फ्लैट सरकारी कर्मचारियों की सेवा के लिए हैं. सेवानिवृत्ति के बाद कश्मीरी प्रवासियों सहित सरकारी कर्मचारियों को मासिक पेंशन सहित पेंशन संबंधी लाभ दिए जाते हैं. कश्मीरी प्रवासियों को अनिश्चित काल तक सरकारी आवास में रहने की अनुमति देने के लिए सामाजिक या आर्थिक मानदंडों के आधार पर कोई औचित्य नहीं हो सकता है.

कर्मचारियों की सरकार के पक्ष में किया गया वर्गीकरण जो कश्मीरी प्रवासी हैं, अन्य सरकारी कर्मचारियों या सार्वजनिक व्यक्ति के समान ही हैं. कश्मीरी प्रवासियों को अनिश्चित काल तक सरकारी आवास में रहने की अनुमति देने के लिए सामाजिक या आर्थिक मानदंडों के आधार पर कोई औचित्य नहीं हो सकता है.

पढ़ें - हिंदू विवाह अधिनियम के तहत पति और पत्नी के बीच मुकदमे में तीसरा पक्ष राहत का दावा नहीं कर सकता: SC

अदालत ने कहा कि यह कहना कि स्थिति में सुधार होने पर वे घाटी में लौट आएंगे, एक खुला बयान है जिसकी अलग-अलग तरीकों से व्याख्या की जा सकती है.

कोर्ट ने कहा कि यह उचित होगा कि उन्हें तीन साल के लिए सरकारी आवास की अनुमति दी जाए और इस अवधि के भीतर वैकल्पिक स्थान की व्यवस्था की जाए. सेवानिवृत्त प्रवासी देश के किसी भी हिस्से में तीन साल से अधिक समय तक सरकारी आवास के हकदार नहीं होंगे.

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि विस्थापित कश्मीरी सरकारी कर्मचारी रिटायरमेंट के बाद तीन साल से अधिक समय तक सरकारी आवास अपने पास नहीं रख सकते. सामाजिक या आर्थिक मानदंडों के आधार पर उन्हें अनिश्चित काल तक सरकारी आवास में रहने की अनुमति देने का कोई औचित्य नहीं हो सकता.

न्यायालय ने कहा कि तीन साल की अवधि उन अधिकारियों पर भी लागू होगी जो सक्रिय खुफिया कार्य में थे ताकि वे सामान्य जीवन में लौट सकें, लेकिन खुफिया एजेंसी के लिए काम करने का बहाना अनिश्चितकाल की अवधि के लिए सरकारी आवास रखने का आधार नहीं हो सकता.

शीर्ष न्यायालय ने केंद्र की इस दलील का जिक्र किया कि संविधान के अनुच्छेद 370 को रद्द करने से कश्मीरी प्रवासियों ने कश्मीर घाटी लौटना शुरू कर दिया है और उनमें से 2000 के इस साल लौटने की संभावना है.

न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ ने सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों की तीन याचिकाओं को रद्द करते हुए इस बात का जिक्र किया कि दिल्ली में 80 कश्मीरी प्रवासी, जो कि सेवानिवृत्त हैं, सरकारी आवास रखे हुए हैं. तीन ऐसे सेवानिवृत कर्मचारी हरियाणा के फरीदाबाद में आवास रखे हुए हैं.

बता दें कि घाटी में जम्मू-कश्मीर सरकार में कार्यरत 6,000 कश्मीरी प्रवासियों को आवास प्रदान करने के लिए, कश्मीर घाटी के विभिन्न जिलों में 920 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से कश्मीरी प्रवासी कर्मचारियों के लिए 6000 ट्रांजिट आवास इकाई का निर्माण किया जा रहा है. अब तक, 1025 आवासीय इकाइयों का निर्माण किया जा चुका है, जिसमें बडगाम, कुलगाम, कुपवाड़ा, अनंतनाग और पुलवामा जिले में 721 आवासीय इकाइयां शामिल हैं. अन्य 1488 इकाइयां निर्माणाधीन हैं और लगभग 2444 इकाइयों के लिए भूमि की पहचान की गई है.

सरकार के सबमिशन कोर्ट पर ध्यान देते हुए कहा गया कि कश्मीरी प्रवासियों को सरकारी आवास की अनुमति देना अनुच्छेद 14 के टचस्टोन को पूरा नहीं कर सकता है. सरकारी घर या फ्लैट सरकारी कर्मचारियों की सेवा के लिए हैं. सेवानिवृत्ति के बाद कश्मीरी प्रवासियों सहित सरकारी कर्मचारियों को मासिक पेंशन सहित पेंशन संबंधी लाभ दिए जाते हैं. कश्मीरी प्रवासियों को अनिश्चित काल तक सरकारी आवास में रहने की अनुमति देने के लिए सामाजिक या आर्थिक मानदंडों के आधार पर कोई औचित्य नहीं हो सकता है.

कर्मचारियों की सरकार के पक्ष में किया गया वर्गीकरण जो कश्मीरी प्रवासी हैं, अन्य सरकारी कर्मचारियों या सार्वजनिक व्यक्ति के समान ही हैं. कश्मीरी प्रवासियों को अनिश्चित काल तक सरकारी आवास में रहने की अनुमति देने के लिए सामाजिक या आर्थिक मानदंडों के आधार पर कोई औचित्य नहीं हो सकता है.

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अदालत ने कहा कि यह कहना कि स्थिति में सुधार होने पर वे घाटी में लौट आएंगे, एक खुला बयान है जिसकी अलग-अलग तरीकों से व्याख्या की जा सकती है.

कोर्ट ने कहा कि यह उचित होगा कि उन्हें तीन साल के लिए सरकारी आवास की अनुमति दी जाए और इस अवधि के भीतर वैकल्पिक स्थान की व्यवस्था की जाए. सेवानिवृत्त प्रवासी देश के किसी भी हिस्से में तीन साल से अधिक समय तक सरकारी आवास के हकदार नहीं होंगे.

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