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हिमालयी इलाकों में ग्लेशियर पिघलने से बाढ़ की आशंका वाले क्षेत्रों में निर्माण को प्रतिबंधित करें : संसदीय पैनल

कभी-कभार होने वाली हिमनद झील फटने (ग्लेशियल लेक आउटब्रस्ट फ्लड ) (glacial lake outburst floods) (GOLF) से अवगत होने के कारण, गृह मामलों की एक संसदीय समिति ने संवेदनशिल क्षेत्रों में निर्माण और विकास गतिविधियों को प्रतिबंधित करने का सुझाव दिया है. समिति ने केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमबीए) को इस मुद्दे पर संबंधित मंत्रालयों और विभागों के साथ-साथ हिमालयी राज्यों के साथ भी बातचीत करने की सलाह दी है.

glacial lake outburst floods
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Published : Mar 23, 2022, 8:16 PM IST

नई दिल्ली: कभी-कभार होने वाली हिमनद झील फटने (ग्लेशियल लेक आउटब्रस्ट फ्लड ) (glacial lake outburst floods) (GOLF) से अवगत होने के कारण, गृह मामलों की एक संसदीय समिति ने केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमबीए) (Parliamentary Panel to MHA) को GOLF के प्रति संवेदनशिल क्षेत्रों में निर्माण और विकास गतिविधियों को प्रतिबंधित करने का सुझाव दिया है. समिति ने केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमबीए) को इस मुद्दे पर संबंधित मंत्रालयों और विभागों के साथ-साथ हिमालयी राज्यों के साथ भी बातचीत करने की सलाह दी है. राज्यसभा सांसद आनंद शर्मा की अध्यक्षता वाली समिति ने अपनी 238 रिपोर्ट में कहा है कि जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पीछे हट रहे हैं, जो हिमनद झील फटने से आने वाली बाढ़ के प्रमुख कारण है.
समिति ने हाल ही में संसद में प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में हाल के दिनों में देश के अनुभव का भी अवलोकन किया है जो इंगित करता है कि प्राकृतिक वनों के बढ़ते विनाश, GOLF के प्रति संवेदनशिल क्षेत्रों में बस्तियों के विकास के नाम पर निर्माण कार्य ने वहां रहने वाली आबादी के लिए जोखिम पैदा किया है. समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि एनडीआरएफ को हिमालयी क्षेत्र में स्थानीय समुदायों के साथ प्रशिक्षण अभ्यास करना चाहिए. ताकि वे GOLF की स्थिति में आपातकालीन आश्रयों की स्थापना और राहत पैकेज वितरित करने आदि को लेकर तैयारी कर सकें. समिति GOlF से निपटने के लिए उत्तराखंड में उठाए गए कदमों को नोट करते हुए कहा कि उपग्रह आधारित माउंटेन हैजर्ड असेसमेंट एंड मॉनिटरिंग (एमएचएएम) का कार्यान्वयन, ग्लेशियरों और हिमनद झीलों की मैपिंग और निगरानी, ​​प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (ईडब्ल्यूएस) स्थापित करने के लिए केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) के साथ समन्वय जैसे काम हुए हैं.

पढ़ें: ग्लोबल वार्मिंग के चलते हिमालय हिमनद के पिघलने की चेतावनी

एनडीएमए के साथ एमएचए जल्द से जल्द हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर और लद्दाख में भी इसी तरह के उपाय शुरू कर सकता है ताकि GOLF से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए निगरानी, ​​प्रारंभिक चेतावनी, और शमन क्षमता निर्माण हो सके. समिति आगे सिफारिश करती है कि आसमानी बिजली गिरने को राष्ट्रीय स्तर पर एक प्राकृतिक आपदा के रूप में अधिसूचित किया जा सकता है. इसके लिए राज्यों को समय पर राहत और मुआवजे के विस्तार के लिए दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए. ताकि बिजली गिरने से पीड़ितों के परिजनों के खातों में मुआवजे की रकम सीधे हस्तांतरित हो जाए.

अपनी कार्रवाई रिपोर्ट में, एमएचए ने समिति को सूचित किया है कि हिमालयी क्षेत्र में पड़ने वाले केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, लद्दाख और राज्यों में उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में किसी भी आपदा जैसी स्थिति के मद्देनजर तत्काल प्रतिक्रिया के लिए, एनडीआरएफ की चार अतिरिक्त बटालियन बनाने की मंजूरी दी है. यहां यह उल्लेख किया जा सकता है कि उत्तराखंड, जो कभी-कभार हिमनदों के विस्फोट का सामना करता है, ने ग्लेशियरों, ग्लेशियर से पोषित झीलों, संभावित मलबे के प्रवाह, हिमस्खलन और भूस्खलन की निगरानी के लिए भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान (Indian Institute of Remote Sensing (IIRS)) (IIRS) के साथ एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं. भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान (Institute of Remote Sensing) (IIRS) खतरे की संभावना के संदर्भ में आसपास के पर्यावरण पर उनके प्रभाव का आकलन करता है.

पढ़ें: ग्लेशियरों पर दिख रहा ग्लोबल वार्मिंग का असर, ग्लेशियर झीलों के बारे में वैज्ञानिकों की है ये राय

तद्नुसार, उपग्रह आधारित प्रणाली के माध्यम से सृजित सूचना, जान-माल के नुकसान को कम करने के लिए उचित उपाय करने के लिए हितधारकों को प्रसारित की जाएगी. इस परियोजना के तहत, आईआईआरएस तीन सबसे कमजोर क्षेत्रों को कवर करेगा, जिसमें मंदाकिनी घाटी (केदारनाथ से गुप्तकाशी सहित वासुकी गंगा घाटी), गंगोत्री और आसपास के क्षेत्रों में भागीरथी घाटी (गौमुख से हर्सिल) और ऋषिगंगा और आसपास के क्षेत्रों में अलकनंदा घाटी के क्षेत्र आसपास के क्षेत्रों में शामिल हैं. पिछले महीने हुई एक बैठक में, एमएचए के प्रतिनिधियों ने समिति को सूचित किया कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) उत्तरी सिक्किम के ल्होनक और शाको-चो-झीलों में "ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड रिस्क को कम करने" पर एक पायलट प्रोजेक्ट तैयार कर रहा है. एनडीएमए परियोजना जोखिम मूल्यांकन, पूर्व चेतावनी, जागरूकता, क्षमता निर्माण, शमन आदि पर ध्यान केंद्रित करेगी.

संसदीय समिति की सिफारिशों की सराहना करते हुए ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) बीके खन्ना ने कहा कि GOLF के प्रति संवेदनशिल क्षेत्रों में और उसके आसपास निर्माण गतिविधियों को रोकना बहुत आवश्यक है. एनडीएमए के एक वरिष्ठ सदस्य ब्रिगेडियर खन्ना ने कहा ईटीवी भारत से कहा कि वास्तव में, उत्तराखंड और अन्य स्थानों में पहले जो GOLF की स्थिति बनी वह निर्माण कार्यों के कारण ही बनी. जिन्हें किसी भी कीमत पर रोकने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि हिमालयी क्षेत्र की सभी राज्य सरकारों को सामूहिक रूप से काम करना चाहिए ताकि यदि कोई घटना होती है, तो वे एकजुट होकर काम कर सकें. ब्रिगेडियर खन्ना ने इस बात पर भी जोर दिया कि किसी भी हिमनद विस्फोट के लिए पूर्व चेतावनी प्रणाली बहुत आवश्यक है. पिछले साल उत्तराखंड के चमोली जिले में आई विनाशकारी बाढ़ के कारण 50 लोगों की मौत हो गई थी और कई लोग बेघर हो गए थे.

नई दिल्ली: कभी-कभार होने वाली हिमनद झील फटने (ग्लेशियल लेक आउटब्रस्ट फ्लड ) (glacial lake outburst floods) (GOLF) से अवगत होने के कारण, गृह मामलों की एक संसदीय समिति ने केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमबीए) (Parliamentary Panel to MHA) को GOLF के प्रति संवेदनशिल क्षेत्रों में निर्माण और विकास गतिविधियों को प्रतिबंधित करने का सुझाव दिया है. समिति ने केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमबीए) को इस मुद्दे पर संबंधित मंत्रालयों और विभागों के साथ-साथ हिमालयी राज्यों के साथ भी बातचीत करने की सलाह दी है. राज्यसभा सांसद आनंद शर्मा की अध्यक्षता वाली समिति ने अपनी 238 रिपोर्ट में कहा है कि जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पीछे हट रहे हैं, जो हिमनद झील फटने से आने वाली बाढ़ के प्रमुख कारण है.
समिति ने हाल ही में संसद में प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में हाल के दिनों में देश के अनुभव का भी अवलोकन किया है जो इंगित करता है कि प्राकृतिक वनों के बढ़ते विनाश, GOLF के प्रति संवेदनशिल क्षेत्रों में बस्तियों के विकास के नाम पर निर्माण कार्य ने वहां रहने वाली आबादी के लिए जोखिम पैदा किया है. समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि एनडीआरएफ को हिमालयी क्षेत्र में स्थानीय समुदायों के साथ प्रशिक्षण अभ्यास करना चाहिए. ताकि वे GOLF की स्थिति में आपातकालीन आश्रयों की स्थापना और राहत पैकेज वितरित करने आदि को लेकर तैयारी कर सकें. समिति GOlF से निपटने के लिए उत्तराखंड में उठाए गए कदमों को नोट करते हुए कहा कि उपग्रह आधारित माउंटेन हैजर्ड असेसमेंट एंड मॉनिटरिंग (एमएचएएम) का कार्यान्वयन, ग्लेशियरों और हिमनद झीलों की मैपिंग और निगरानी, ​​प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (ईडब्ल्यूएस) स्थापित करने के लिए केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) के साथ समन्वय जैसे काम हुए हैं.

पढ़ें: ग्लोबल वार्मिंग के चलते हिमालय हिमनद के पिघलने की चेतावनी

एनडीएमए के साथ एमएचए जल्द से जल्द हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर और लद्दाख में भी इसी तरह के उपाय शुरू कर सकता है ताकि GOLF से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए निगरानी, ​​प्रारंभिक चेतावनी, और शमन क्षमता निर्माण हो सके. समिति आगे सिफारिश करती है कि आसमानी बिजली गिरने को राष्ट्रीय स्तर पर एक प्राकृतिक आपदा के रूप में अधिसूचित किया जा सकता है. इसके लिए राज्यों को समय पर राहत और मुआवजे के विस्तार के लिए दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए. ताकि बिजली गिरने से पीड़ितों के परिजनों के खातों में मुआवजे की रकम सीधे हस्तांतरित हो जाए.

अपनी कार्रवाई रिपोर्ट में, एमएचए ने समिति को सूचित किया है कि हिमालयी क्षेत्र में पड़ने वाले केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, लद्दाख और राज्यों में उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में किसी भी आपदा जैसी स्थिति के मद्देनजर तत्काल प्रतिक्रिया के लिए, एनडीआरएफ की चार अतिरिक्त बटालियन बनाने की मंजूरी दी है. यहां यह उल्लेख किया जा सकता है कि उत्तराखंड, जो कभी-कभार हिमनदों के विस्फोट का सामना करता है, ने ग्लेशियरों, ग्लेशियर से पोषित झीलों, संभावित मलबे के प्रवाह, हिमस्खलन और भूस्खलन की निगरानी के लिए भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान (Indian Institute of Remote Sensing (IIRS)) (IIRS) के साथ एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं. भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान (Institute of Remote Sensing) (IIRS) खतरे की संभावना के संदर्भ में आसपास के पर्यावरण पर उनके प्रभाव का आकलन करता है.

पढ़ें: ग्लेशियरों पर दिख रहा ग्लोबल वार्मिंग का असर, ग्लेशियर झीलों के बारे में वैज्ञानिकों की है ये राय

तद्नुसार, उपग्रह आधारित प्रणाली के माध्यम से सृजित सूचना, जान-माल के नुकसान को कम करने के लिए उचित उपाय करने के लिए हितधारकों को प्रसारित की जाएगी. इस परियोजना के तहत, आईआईआरएस तीन सबसे कमजोर क्षेत्रों को कवर करेगा, जिसमें मंदाकिनी घाटी (केदारनाथ से गुप्तकाशी सहित वासुकी गंगा घाटी), गंगोत्री और आसपास के क्षेत्रों में भागीरथी घाटी (गौमुख से हर्सिल) और ऋषिगंगा और आसपास के क्षेत्रों में अलकनंदा घाटी के क्षेत्र आसपास के क्षेत्रों में शामिल हैं. पिछले महीने हुई एक बैठक में, एमएचए के प्रतिनिधियों ने समिति को सूचित किया कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) उत्तरी सिक्किम के ल्होनक और शाको-चो-झीलों में "ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड रिस्क को कम करने" पर एक पायलट प्रोजेक्ट तैयार कर रहा है. एनडीएमए परियोजना जोखिम मूल्यांकन, पूर्व चेतावनी, जागरूकता, क्षमता निर्माण, शमन आदि पर ध्यान केंद्रित करेगी.

संसदीय समिति की सिफारिशों की सराहना करते हुए ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) बीके खन्ना ने कहा कि GOLF के प्रति संवेदनशिल क्षेत्रों में और उसके आसपास निर्माण गतिविधियों को रोकना बहुत आवश्यक है. एनडीएमए के एक वरिष्ठ सदस्य ब्रिगेडियर खन्ना ने कहा ईटीवी भारत से कहा कि वास्तव में, उत्तराखंड और अन्य स्थानों में पहले जो GOLF की स्थिति बनी वह निर्माण कार्यों के कारण ही बनी. जिन्हें किसी भी कीमत पर रोकने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि हिमालयी क्षेत्र की सभी राज्य सरकारों को सामूहिक रूप से काम करना चाहिए ताकि यदि कोई घटना होती है, तो वे एकजुट होकर काम कर सकें. ब्रिगेडियर खन्ना ने इस बात पर भी जोर दिया कि किसी भी हिमनद विस्फोट के लिए पूर्व चेतावनी प्रणाली बहुत आवश्यक है. पिछले साल उत्तराखंड के चमोली जिले में आई विनाशकारी बाढ़ के कारण 50 लोगों की मौत हो गई थी और कई लोग बेघर हो गए थे.

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