रायपुर: Reservation bill passed from Chhattisgarh assembly छत्तीसगढ़ विधानसभा में आरक्षण बिल पास हो गया इसके बाद से हस्ताक्षर के लिए राज्यपाल के पास भेजा गया है. लेकिन कानून और संविधान के जानकार कहते हैं कि राज्यपाल के हस्ताक्षर के बाद भी इसे लागू करना इतना आसान नहीं है. इसमें कई तरह की कानूनी अड़चनें सामने खड़ी हैं. आखिर इस बिल को लागू करने में किस तरह की कानूनी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. नए आरक्षण बिल की पेचीदगियों पर ईटीवी भारत संवाददाता प्रवीण कुमार सिंह ने संविधान विशेषज्ञ और रिटायर्ड आईएएस अधिकारी डॉक्टर सुशील त्रिवेदी से खास बातचीत की है. आइए जानते हैं उन्होंने क्या कहा ? Interview with constitution expert Sushil Trivedi
सवाल : विधानसभा में बिल पास होने के बाद भी नए आरक्षण बिल को लेकर किस तरह की कानूनी अड़चनें आ सकती हैं ?
जवाब : राज्यपाल के हस्ताक्षर के बाद यह विधेयक कानून बन जाएगा लेकिन इसे लागू करने में कई अड़चनें हैं. सबसे पहली बात सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि किसी भी परिस्थिति में 50% से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता. इस वजह से इसे लागू करना कठिन है. सरकार का यह भी दावा है कि इस मामले को लेकर संसद में जाएंगे और संसद में आग्रह किया जाएगा कि आरक्षण बढ़ाए जाने वाले कानून को संविधान के अनुसूची 9 में लागू किया जाए. इसके लिए संसद की स्वीकृति जरूरी है. यानी कि लोकसभा और राज्यसभा में इसकी मंजूरी मिलनी चाहिए. जो कि इतना आसान नहीं है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट का मामला भी इस मामले में आड़े आ सकता है. इन परिस्थितियों को देखते हुए लगता है कि वर्तमान में इसे लागू करना काफी कठिन होगा.आरक्षण का मामला हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है. जैसे ही राज्यपाल की इस पर स्वीकृति मिलेगी, वैसे ही प्रकरण दायर करने वाले लोग हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट चले जाएंगे. ऐसे में संसद पहुंचने के पहले ही यह मामला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अटक जाएगा. इस वजह से यह नहीं लगता कि निकट भविष्य में इसे लागू किया जा सकता है.constitution expert Sushil Trivedi on reservation
सवाल : जनसंख्या के आधार पर आरक्षण बिल बनाया गया है. लेकिन उस आंकड़े को ही सदन में प्रस्तुत नहीं किया गया, तो क्या आरक्षण का मुद्दा लटकने की एक यह भी वजह हो सकती है
जवाब : साल 2011 में जनगणना की गई थी और उसके बाद साल 2021 में जनगणना की गई है. लेकिन 2021 के आंकड़े जारी नहीं किए गए हैं. वर्तमान में सरकार के द्वारा क्वांटिफाएबल आयोग बनाया गया. जिसके द्वारा 2011 की जनसंख्या के अनुसार आंकड़े का सर्वेक्षण कर अपनी रिपोर्ट तैयार की गई. जिसमें अनुसूचित जाति जनजाति पिछड़ा सहित अन्य जानकारी सरकार को सौंपी गई है. लेकिन यह रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई है. वह रिपोर्ट केवल एक अनुमान है. वर्तमान में कितनी आबादी किस वर्ग में आती है यह जानकारी नहीं है. 2011 के आंकड़े 2022 में प्रोजेक्ट करके बता रहे हैं वह भी थोड़े सर्वेक्षण किए गए हैं. इसलिए वह आंकड़े भी चैलेंज किए जा सकते हैं. इतना ही नहीं वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के द्वारा भारत में भुखमरी के आंकड़े जारी किए गए थे जिसे भारत सरकार ने चैलेंज किया कि आपने किस आधार पर यह जानकारी दी है. तो ऑर्गनाइजेशन का कहना था कि उन्होंने क्वांटिफायबल आंकड़े के आधार पर यह जानकारी जारी की है. क्योंकि इसका सर्वेक्षण नहीं किया गया. ऐसे कभी भी क्वांटिफायबल आंकड़े आते हैं. तो उस पर हमेशा प्रश्न चिन्ह बना रहता है. वह आंकड़े सही है या नहीं. इस मामले में यह बात भी सामने आ सकती सरकार किस आधार पर मानती है कि प्रदेश में 32% जनजाति के लोग हैं और 16% अनुसूचित जाति के लोग हैं यह आंकड़ा स्वाभाविक है चेलेंज होगा. सरकार के द्वारा जिन तथाकथित आंकड़ों के आधार पर यह आरक्षण देने का विधेयक प्रस्तुत किया है. वहीं आंकड़े चैलेंजेबल है दूसरी बात यह मामला पहले से ही हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है उसके रहते हुए इसे लागू किया जाना अभी संभव नहीं है.
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सवाल : अब तक जातिगत आरक्षण की व्यवस्था की गई थी लेकिन कुछ साल पहले ईडब्ल्यूएस का आरक्षण भी जोड़ा गया है उसमें भी ईस बिल में कटौती की गई है.
जवाब : EWS आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही स्वीकृति दे दी है. ऐसे में EWS आरक्षण में राज्य सरकार के द्वारा किस आधार पर कटौती की जा रही है वह भी देखना होगा .ऐसे में आपको जो भी आंकड़े हैं. उसे चैलेंज किया जा सकता है. इसकी पुष्टि करना आपके लिए इतना आसान नहीं होगा.
सवाल : यदि राज्यपाल के द्वारा इस आरक्षण बिल पर हस्ताक्षर किए जाते हैं और नहीं किए जाते हैं, इन दोनों परिस्थितियों में क्या स्थिति निर्मित होगी ?
जवाब : यदि राज्यपाल हस्ताक्षर नहीं करते हैं तो ऐसी परिस्थिति में इस बिल को पुनर्विचार के लिए वापस भेजा जाएगा . इसके बाद यदि विधानसभा इसे पारित कर देती है तो राज्यपाल को उस पर दस्तखत करने पड़ते हैं. वह नहीं लगता कि यहां पर देखने को मिलेगा. दूसरी स्थिति यह भी हो सकती कि राज्यपाल इस बिल को अपने पास विचार करने के लिए रख ले, इसके पहले भी कई बिल राज्यपाल के पास विचार के लिए लंबित हैं. यह भी हो सकता है कि राज्यपाल इस पूरे मामले को राष्ट्रपति को भेज दे ,क्योंकि यह एक राष्ट्रीय मुद्दा है ,लेकिन वर्तमान परिस्थिति को देखते हो राज्यपाल के द्वारा जिस तरीके की भावना व्यक्त की जा रही है उसका यह अर्थ निकाला जा सकता है कि वे इस पर स्वीकृति दे देंगे.
सवाल : यदि राज्यपाल के द्वारा इस बिल को स्वीकृति दे दी जाती है तो क्या माना जाए कि यह कानून छत्तीसगढ़ में लागू हो जाएगा ?
जवाब : राज्यपाल की स्वीकृति के बाद भी यह कानून छत्तीसगढ़ में लागू नहीं हो पाएगा, इसे व्यवहार में लाना संभव नहीं हो पाएगा क्योंकि प्रकरण अभी न्याय की प्रक्रिया के अधीन है राज्यपाल की स्वीकृति मिलते ही सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट में बहुत सारी याचिका दायर हो जाएगी, ऐसे में इसे लागू करना संभव नहीं होगा.
सवाल : क्या माना जाए कि इस आरक्षण बिल को जल्दबाजी में लाया गया है या फिर इसके लिए और तैयारी की जरूरत थी?
जवाब : इस मामले को लेकर दोनों ही राजनीतिक दल कांग्रेस और भाजपा के द्वारा बातचीत जारी थी. लेकिन आज तक के मामले को लेकर जनता की भावना दोनों ही दलों के खिलाफ जा रही थी और राजनीतिक आधार पर इस मुद्दे को लेकर चर्चा की जा रही थी. ये सबको पता था. जनता के बीच भाजपा और कांग्रेस दोनों ही ये मैसेज देना चाहते थे कि हम आपका आरक्षण बढ़ाने की तैयारी में है और इसलिए इसे लाया गया. इस बीच भानुप्रतापपुर विधानसभा उपचुनाव चल रहा है, इस पर भाजपा ने आरोप लगाया कि उसका लाभ लेने के लिए इसे लागू कर दिया गया. वहीं कांग्रेस कह रही है कि आप खुद ही इसे जल्द लाने के लिए हल्ला मचा रहे थे. इतनी आपत्ति के बावजूद भाजपा के द्वारा इस बिल का विरोध नहीं किया गया. यदि उनके द्वारा इस बिल का विरोध किया जाता तो उसका अलग राजनीतिक प्रभाव पड़ता.दोनों ही राजनीतिक दलों के लिए यह बड़े विचार का मामला है कि हम किस तरीके से अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, ओबीसी और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को आरक्षण दें. इस पूरे प्रकरण में सबसे बड़ी बात यह है कि जब तक जनगणना नहीं हो जाती है उसके बाद ही कुछ करना आसान होगा.
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सवाल: क्या माना जाए कि बिल पास होने और हस्ताक्षर होने के बाद कानून तो बन जाएगा. लेकिन उसका लागू होना कठिन है ?
जवाब : यह कानून तो बन जाएगा लेकिन इसका लागू होना कठिन है. राज्य सरकार चाहेगी कि इसे संविधान की अनुसूची 9 में डाल दें. लेकिन उसकी भी प्रक्रिया बहुत लंबी है. यह संसद में जाएगा उस पर विचार होगा. उनको विचार करना पड़ेगा कि न्यायालय ने इस संबंध में अभिमत अलग दे रखा है.