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BHU के अध्ययन में खुलासा, नेपाली लोगों का 70 फीसदी जीन इंडियन

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (Banaras Hindu University) के शोधार्थियों ने नेपाली लोगों की जीन का अध्यन किया है. अध्ययन में नेवार, मगर, शेरपा, ब्राह्मण, थारू, तमांग, काठमांडू और पूर्वी नेपाल की आबादी शामिल है.

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय
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Published : Oct 18, 2022, 4:11 PM IST

वाराणसीः बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (Banaras Hindu University) के शोधार्थियों ने दुनिया में पहली बार नेपाल का आनुवांशिक इतिहास (genetic history of nepal) पता लगाया गया है. शोध में पता चला है कि नेपाली लोगों का 70 फीसद जीन इंडियन है. इस अध्यन में वैज्ञानिकों ने पाया कि तिब्बत का जीन नेपाल के लोगों में 10% से 80% तक ही पाया जाता है. यह अध्ययन बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के सीएसआईआर-सेलुलर (CSIR-Cellular) और आणविक जीवविज्ञान केंद्र में हुआ है.

दरअसल, BHU के जंतु विज्ञान स्थित जीन वैज्ञानिक प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे (Gene Scientist Professor Dnyaneshwar Choubey) और सीसीएमबी (CCMB) के डॉ. के थंगराज ने यह शोध किया है. उन्होंने 999 नेपालियों के सैंपल पर यह रिसर्च किया है. यह 15 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय जर्नल ह्यूमन जेनेटिक्स (international journal human genetics) में पब्लिश भी हो चुका है. बीएचयू (BHU) के जंतु विज्ञान स्थित जीन वैज्ञानिक प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने बताया कि नेपाल की शेरपा जातियों को छोड़ दें, तब वहां की लगभग आबादी इंडियन है.

नेपाल के लोगों में 10 से 80 फीसदी है तिब्बत का जीन
प्रोफेसर ने बताया कि इस स्टडी में वैज्ञानिकों ने पाया कि तिब्बत का जीन नेपाल के लोगों में 10% से 80% तक ही पाया जाता है. इससे पता चलता है कि नेपाल में तिब्बत से हुआ जीन फ्लो केवल तराई क्षेत्र तक ही पहुंच सका. इसके अलावा वह आगे नहीं बढ़ा सका. क्योंकि अगर ऐसा होता तो उस जीन के लोग गंगा घाटी के लोगों का जीन अलग नहीं होता.

6 हजार साल पहले तिब्बती नेपाल पहुंचे
जीन वैज्ञानिक ने बताया कि भारत और तिब्बत के साथ नेपाल के सांस्कृतिक संबंध उनके अनुवांशिक इतिहास में भी परिलक्षित होते हैं. इस अध्ययन से प्राप्त परिणामों ने शोधकर्ताओं को इतिहास और अतीत की डेमोग्राफिक घटनाओं के बारे में कई घटनाक्रमों को पता करने में मदद की है. जिसने वर्तमान नेपाली आनुवंशिक विविधता को बनाया है. उन्होंने बताया कि, हमारे अध्ययन से पता चला है कि नेपालियों के प्राचीन अनुवांशिक डीएनए को धीरे-धीरे विभिन्न मिश्रण एपिसोड द्वारा बदल दिया गया था. साथ ही दक्षिणपूर्व तिब्बत के रास्ते 3.8 से 6 हजार साल पहले लोगों के हिमालय पार करने के प्रमाण मिले है.

शेरपा के जीन तिब्बतियों के ज्यादा करीब
जीन वैज्ञानिक प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने बताया कि शेरपा के जीन तिब्बतियों के ज्यादा करीब हैं. शेरपा हाई एल्टीट्यूड पर रहने में अभ्यस्त हैं. उनमें तिब्बती लोगों में पाया जाने वाला जीन ईपीएएस-1 (EPAS1) होता है. इस रिसर्च में नेपाल की नेवार, मगर, शेरपा, ब्राह्मण, थारू, तमांग और काठमांडू और पूर्वी नेपाल की आबादी को रखा गया था. इन सभी लोगों के माइटोकांड्रियल DNA सीक्वेंस की एनालिसिस की गई थी.

वाराणसीः बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (Banaras Hindu University) के शोधार्थियों ने दुनिया में पहली बार नेपाल का आनुवांशिक इतिहास (genetic history of nepal) पता लगाया गया है. शोध में पता चला है कि नेपाली लोगों का 70 फीसद जीन इंडियन है. इस अध्यन में वैज्ञानिकों ने पाया कि तिब्बत का जीन नेपाल के लोगों में 10% से 80% तक ही पाया जाता है. यह अध्ययन बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के सीएसआईआर-सेलुलर (CSIR-Cellular) और आणविक जीवविज्ञान केंद्र में हुआ है.

दरअसल, BHU के जंतु विज्ञान स्थित जीन वैज्ञानिक प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे (Gene Scientist Professor Dnyaneshwar Choubey) और सीसीएमबी (CCMB) के डॉ. के थंगराज ने यह शोध किया है. उन्होंने 999 नेपालियों के सैंपल पर यह रिसर्च किया है. यह 15 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय जर्नल ह्यूमन जेनेटिक्स (international journal human genetics) में पब्लिश भी हो चुका है. बीएचयू (BHU) के जंतु विज्ञान स्थित जीन वैज्ञानिक प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने बताया कि नेपाल की शेरपा जातियों को छोड़ दें, तब वहां की लगभग आबादी इंडियन है.

नेपाल के लोगों में 10 से 80 फीसदी है तिब्बत का जीन
प्रोफेसर ने बताया कि इस स्टडी में वैज्ञानिकों ने पाया कि तिब्बत का जीन नेपाल के लोगों में 10% से 80% तक ही पाया जाता है. इससे पता चलता है कि नेपाल में तिब्बत से हुआ जीन फ्लो केवल तराई क्षेत्र तक ही पहुंच सका. इसके अलावा वह आगे नहीं बढ़ा सका. क्योंकि अगर ऐसा होता तो उस जीन के लोग गंगा घाटी के लोगों का जीन अलग नहीं होता.

6 हजार साल पहले तिब्बती नेपाल पहुंचे
जीन वैज्ञानिक ने बताया कि भारत और तिब्बत के साथ नेपाल के सांस्कृतिक संबंध उनके अनुवांशिक इतिहास में भी परिलक्षित होते हैं. इस अध्ययन से प्राप्त परिणामों ने शोधकर्ताओं को इतिहास और अतीत की डेमोग्राफिक घटनाओं के बारे में कई घटनाक्रमों को पता करने में मदद की है. जिसने वर्तमान नेपाली आनुवंशिक विविधता को बनाया है. उन्होंने बताया कि, हमारे अध्ययन से पता चला है कि नेपालियों के प्राचीन अनुवांशिक डीएनए को धीरे-धीरे विभिन्न मिश्रण एपिसोड द्वारा बदल दिया गया था. साथ ही दक्षिणपूर्व तिब्बत के रास्ते 3.8 से 6 हजार साल पहले लोगों के हिमालय पार करने के प्रमाण मिले है.

शेरपा के जीन तिब्बतियों के ज्यादा करीब
जीन वैज्ञानिक प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने बताया कि शेरपा के जीन तिब्बतियों के ज्यादा करीब हैं. शेरपा हाई एल्टीट्यूड पर रहने में अभ्यस्त हैं. उनमें तिब्बती लोगों में पाया जाने वाला जीन ईपीएएस-1 (EPAS1) होता है. इस रिसर्च में नेपाल की नेवार, मगर, शेरपा, ब्राह्मण, थारू, तमांग और काठमांडू और पूर्वी नेपाल की आबादी को रखा गया था. इन सभी लोगों के माइटोकांड्रियल DNA सीक्वेंस की एनालिसिस की गई थी.

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