सागर। यूरेशिया (यूरोप और एशिया) की मानव जातियां अपने आप में एक दूसरे से संबंधित हैं या फिर इसमें कई तरह के अंतर और समानताएं हैं. इस तरह के कई सवालों की खोज में रूस के मास्को की Paleontological Institute, Russian Academy of Sciences और सागर विश्वविद्यालय के मानव विज्ञान विभाग के बीच एक एग्रीमेंट हुआ है. इस करार(agreement) के तहत सागर विश्वविद्यालय के मानव विज्ञान विभाग की मदद से मास्को की पेलियोन्टोलॉजिकल इंस्टीट्यूट, रूसी विज्ञान अकादमी मध्यभारत की कोरकू जनजाति पर अध्ययन करेगा. बता दें कि कोरकू जनजाति दुनिया की सबसे प्राचीन जनजाति मानी जाती है. यह एक ऐसी जनजाति है, जिसने अपने मूलभूत और सांस्कृतिक लक्षणों को अब तक जीवित रखा है. यह मानव विज्ञान के क्षेत्र में बड़ा शोध(research) माना जा रहा है और इस शोध से यूरोप और एशिया की मानव जाति के संबंध में नई जानकारी सामने आएगी.
रूस का बड़ा शोध परियोजना: रूस के मास्को में स्थित शोध संस्थान Paleontological Institute, Russian Academy of Sciences और सागर विश्विद्यालय के मानवविज्ञान विभाग के बीच शोध को लेकर एक बड़ा एग्रीमेंट हुआ है. ये करार(agreement) यूरोप और एशिया महाद्वीप की मानवजाति के विकास और विविधता को समझने और उनका अध्ययन करने में मददगार होगा. इस एग्रीमेंट के तहत यूरोप और एशिया की मानवजाति के समझने के लिए मध्यभारत की कोरकू जनजाति का अध्ययन किया जाएगा. इस करार के तहत दोनों संस्थान के विद्यार्थी, शोधार्थी और शिक्षक मिलकर ये स्टडी करेंगे. दोनों अपने द्वारा किए गए शोध और जुटाए गए आंकड़ों का आदान-प्रदान करेंगे. इसके लिए दोनों देशों में वर्कशाप, सेमीनार और कैंप लगाकर जनजाति अध्ययन का काम किया जाएगा. दोनों संस्थानों के प्रोफेसर, शोधकर्ता और विद्यार्थी अपने शोध और अध्ययन तकनीकों का आदान प्रदान करेंगे.
तकनीकों का आदान प्रदान करेगा सागर और रूस: सागर विश्विविद्यालय के मानव विज्ञान विभाग के साथ हुआ ये करार काफी अहम माना जा रहा है, क्योंकि मास्को Paleontological Institute, Russian Academy of Sciences विश्व स्तरीय संस्थान है. इसकी स्थापना 1930 में हुई है. इस संस्थान द्वारा अपने शोध के लिए सागर विश्वविद्यालय के मानव विज्ञान का चयन करना काफी महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जा रहा है. इस अध्ययन से सागर विश्वविद्यालय के छात्रों को रूस जाकर रिसर्च करने का मौका मिलेगा. वहां के शोधकर्ता और वैज्ञानिक भारत आएंगे और एक दूसरे की तकनीकों का आदान प्रदान करेंगे. प्रोजेक्ट के लिए डेटा कलेक्शन, टेबुलेशन और मानवमिति परीक्षण के आधार पर निकले परिणामों पर काम करेंगे. ये परियोजना काफी लंबी शोध परियोजना है.
कोरकू जनजाति पर अध्ययन क्यों: दरअसल Paleontological Institute, Russian Academy of Sciences यूरोप और एशिया महाद्वीप मानव जातियों के इंटरकनेक्शन पर शोध करना चाह रहा है. इस शोध के लिए उन जनजातियों को चुना जा रहा है जो इन महाद्वीपों की सबसे पुरानी जनजातियों में एक मानी जाती है. इस आधार पर मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में पाई जाने वाली काेरकू जनजाति उन प्राचीनतम जनजातियों में गिनी जाती है, जो अपने बुनियादी और सांस्कृतिक लक्षण अब तक अपने साथ लेकर चल रहे हैं. काेरकू जनजाति मध्यप्रदेश के 6 जिलों में निवास करती है. 1991 की जनगणना के लिहाज से कोरकू जनजाति की जनसंख्या 4 लाख 52 हजार 149 है. कोरकू जनजाति के लोगों की भाषा भी कोरकू है. कोरकू जनजाति सतपुड़ा पर्वत माला से लगे इलाके छिंदवाड़ा के मवासी, बैतूल की भैंसदेही, चिचोली तहसील, हरदा की टिमरनी और खिरकिया, खंडवा की खालवा, देवास की बागली और उदयनगर के अलावा सीहोर जिले में निवास करती है. इसके अलावा महाराष्ट्र के अकोला, मेलघाट और मोर्शी तहसीलों में भी रहते हैं. प्रोजेक्ट के तहत मानव विविधता को लेकर अलग-अलग पैरामीटर पर डेटा कलेक्शन कर जनजाति पर शोध किया जाएगा. जेनेटिक सीक्वेसिंग के आधार पर पता लग जाएगा कि कोरकू जनजाति कितनी पुरानी है और कैसे इसका विकास हुआ है और अपनी प्राचीनतम लक्षणों को कैसे इन्होंने सहेजकर रखा है.
शोधकर्ताओं का क्या कहना है: सागर के डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के मानव विज्ञान विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर और प्रोजेक्ट हेड डॉ. सर्वेन्द्र यादव बताते हैं कि "पिछले साल हमारा पेलेन्थ्रोपोलॉजी रिसर्च सेंटर के साथ एग्रीमेंट हुआ है. इस करार के तहत यूरेशिया की जनसंख्या में आपस में क्या संबंध है, इसको लेकर मास्को का प्रतिष्ठित संस्थान अलग-अलग देशों के साथ शोध कर रहा है. इसी को लेकर देश के अलग-अलग संस्थानों से इसका एग्रीमेंट हुआ है. जैसे त्रिपुरा में त्रिपुरी जनजाति, कोलकाता में संथाल जनजाति के अलावा मध्यभारत में कोरकू जनजाति को चुना गया है. कोरकू जनजाति एक ऐसी जनजाति है जो अभी भी अपने मूलभूत और सांस्कृतिक लक्षणों को जीवित रखे हुए है. इस रिसर्च परियोजना के तहत रूस के रिसर्चर हमारे विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर कोरकू जनजाति के मानवमिति के मापदंडों के आधार पर अध्ययन शोध करेंगे. ये जनजातियां किस तरह एक दूसरे से अलग है और किस तरह एक दूसरे से समान हैं. इन मानवमिति के मापदंड के जरिए भिन्नता और समानता का पता लगाने की कोशिश की जा रही है. इसी को लेकर हम अंतर्राष्ट्रीय स्तर का सम्मेलन आयोजित कर चुके हैं. हमारा उद्देश्य है कि मानव विविधता का कैसे वैज्ञानिक तरीके से अध्ययन कर सकते हैं. मानव विविधता का पता लगाने हम सिर्फ सांस्कृतिक नहीं, बल्कि शारीरिक पहलू पर भी काम कर रहे हैं."
मानवविज्ञान के क्षेत्र में बड़ा रिसर्च: प्रोजेक्ट हेड डॉ सर्वेन्द्र यादव बताते हैं कि "जो मानवविज्ञान का उद्देश्य है कि एक इंसान दूसरे इंसान से किस तरह अलग और समान है. उसका विकास किन-किन चरणों में हुआ है, इसी कड़ी में हम लोग कोरकू जनजाति का अध्ययन कर रहे हैं. उनकी शारीरिक संरचना का मानवमिति के मापदंड के अनुसार अध्ययन करेंगे. ये अध्ययन हमें यह समझने में मदद करेगा कि कोरकू जनजाति है, वो यूरेशिया की अन्य जनजातियों से कितने करीब या दूर है. ये आपस में एक दूसरे से क्या संबंध रखते हैं. ये मानव विज्ञान के लिए अच्छे आंकड़े देगा, जिससे हम लोग बड़े पैमाने पर जनसंख्या के साथ तुलना कर बता सकेंगे कि इनमें क्या विशेषताएं है."