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घना में 36 साल बाद पता चलेगी वेटलैंड की स्थिति, वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के वैज्ञानिक करेंगे शोध! - Rajasthan Hindi news

भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में 36 साल बाद पानी की क्षमता पर शोध होने जा रहा है. इसके तहत घना के वेटलैंड एरिया का आंकलन कर उसके अनुरूप पानी का प्रबंधन किया जाएगा.

Research on Bharatpur Keoladeo, Keoladeo National Park
घना में 36 साल बाद पता चलेगी वेटलैंड की स्थिति.
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 29, 2023, 8:51 PM IST

केवलादेव में 36 साल बाद होगा शोध

भरतपुर. विश्व प्रसिद्ध केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (घना) बीते तीन दशक में ग्लोबल वार्मिंग और मौसम के बदलाव के कई हालातों से गुजरा है. दुनियाभर में जिस उद्यान को वेटलैंड के लिए पहचाना जाता है, उसके क्षेत्रफल में भी कमी आई है. घना पानी की कमी के दंश को भी करीब दो दशक से झेल रहा है. ऐसे में अब करीब 36 साल बाद फिर से केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पानी की आवश्यकता, वेटलैंड की स्थिति पर शोध किया जाएगा.

घना के निदेशक मानस सिंह ने बताया कि 1986 में घना पर शोध हुआ था, जिससे पता चला था कि घना के लिए 550 एमसीएफटी (मिलियन क्यूबिक फीट) पानी की आवश्यकता होती है. उसके बाद अभी तक पानी की जरूरत व अन्य पहलुओं पर दोबारा घना में शोध नहीं हुआ. अब फिर से घना में पानी की जरूरत व अन्य पहलुओं पर शोध करने के लिए प्रपोजल तैयार कर मुख्यालय को भेजा गया है. मुख्यालय की अनुमति मिलते ही शोध शुरू कर दिया जाएगा.

Research on Bharatpur Keoladeo
केवलादेव के बारे में यहां जानिए

पढ़ें. घना में कई साल बाद ब्लैक नेक्ड स्टार्क व डस्की आउल ने की नेस्टिंग, पहुंचे कई प्रजाति के हजारों पक्षी

रडार और सैटेलाइट इमेजरी का इस्तेमाल : मानस सिंह ने बताया कि शोध में वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (डबल्यू आई आई) के वैज्ञानिकों की मदद ली जाएगी. शोध में सैटेलाइट इमेजरी, सैटेलाइट डेटा का इस्तेमाल कर घना के वेटलैंड एरिया का आंकलन किया जाएगा. रडार तकनीक और डीजीपीएस से सही लोकेशन ली जाएगी. ट्रोपोग्राफी सर्वे से हर ब्लॉक की गहराई का पता चलेगा. साथ ही यह भी पता लगाएंगे कि कहां पर गहराई कम होती जा रही है. इसके बाद इसकी तुलना वर्ष 1986 के शोध के आंकड़ों से की जाएगी.

Research on Bharatpur Keoladeo
केवलादेव में कई प्रजाति के पक्षी करते हैं प्रवास

पढे़ं. World Migratory Bird Day: यहां हर साल प्रवास पर आते हैं 200 से अधिक प्रजाति के विदेशी पक्षी, इसलिए कहलाता है 'पक्षियों का स्वर्ग'

ये होगा फायदा : शोध के बाद वर्तमान में पानी की जरूरत का सही अंदाजा लग सकेगा और उद्यान प्रशासन उसी के अनुरूप पानी की मांग कर सकेगा. किस ब्लॉक की कितनी गहराई है और उसमें कौन सी प्रजाति के पक्षी प्रवास करते हैं, उसी अनुरूप पानी भरा जाएगा. घना में पानी का प्रबंधन नए आंकड़ों के आधार पर किया जा सकेगा.

Research on Bharatpur Keoladeo
केवलादेव में बड़ी संख्या में आते हैं पर्यटक

पढे़ं. राजस्थान के केवलादेव में बच्चों के साथ दिखी दुर्लभ प्रजाति की 'रस्टी स्पॉटेड कैट', IUCN की रेड लिस्ट में है सूचीबद्ध

घट गया वेटलैंड क्षेत्र : वर्ष 1986 के शोध के आंकड़ों के अनुसार घना में करीब 11 वर्ग किमी वेटलैंड क्षेत्र था, लेकिन अब उद्यान के कदंब कुंज, एफ 1 और एफ 2 ब्लॉक पूरी तरह से सूख गए हैं. कभी ये ब्लॉक वेटलैंड थे, लेकिन अब वुडलैंड बनकर रह गए हैं. घना का वेटलैंड का करीब 11 वर्ग किमी क्षेत्र, करीब 8 वर्ग किमी तक कम होकर रह गया है. ये सब पानी की कमी की वजह से हुआ है. इसी का प्रभाव है कि कई प्रजाति के पक्षियों का यहां आना कम या बिलकुल बंद हो गया है.

केवलादेव में 36 साल बाद होगा शोध

भरतपुर. विश्व प्रसिद्ध केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (घना) बीते तीन दशक में ग्लोबल वार्मिंग और मौसम के बदलाव के कई हालातों से गुजरा है. दुनियाभर में जिस उद्यान को वेटलैंड के लिए पहचाना जाता है, उसके क्षेत्रफल में भी कमी आई है. घना पानी की कमी के दंश को भी करीब दो दशक से झेल रहा है. ऐसे में अब करीब 36 साल बाद फिर से केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पानी की आवश्यकता, वेटलैंड की स्थिति पर शोध किया जाएगा.

घना के निदेशक मानस सिंह ने बताया कि 1986 में घना पर शोध हुआ था, जिससे पता चला था कि घना के लिए 550 एमसीएफटी (मिलियन क्यूबिक फीट) पानी की आवश्यकता होती है. उसके बाद अभी तक पानी की जरूरत व अन्य पहलुओं पर दोबारा घना में शोध नहीं हुआ. अब फिर से घना में पानी की जरूरत व अन्य पहलुओं पर शोध करने के लिए प्रपोजल तैयार कर मुख्यालय को भेजा गया है. मुख्यालय की अनुमति मिलते ही शोध शुरू कर दिया जाएगा.

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रडार और सैटेलाइट इमेजरी का इस्तेमाल : मानस सिंह ने बताया कि शोध में वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (डबल्यू आई आई) के वैज्ञानिकों की मदद ली जाएगी. शोध में सैटेलाइट इमेजरी, सैटेलाइट डेटा का इस्तेमाल कर घना के वेटलैंड एरिया का आंकलन किया जाएगा. रडार तकनीक और डीजीपीएस से सही लोकेशन ली जाएगी. ट्रोपोग्राफी सर्वे से हर ब्लॉक की गहराई का पता चलेगा. साथ ही यह भी पता लगाएंगे कि कहां पर गहराई कम होती जा रही है. इसके बाद इसकी तुलना वर्ष 1986 के शोध के आंकड़ों से की जाएगी.

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