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मांसाहारी अवयवों का प्रयोग कर उसे शाकाहार उत्पाद के रूप से पेश करने से धार्मिक भावना आहत होती है :अदालत

अदालत ने कहा कि हर व्यक्ति को यह जानने का हक है कि वह क्या खा रहे है और धोखे एवं चोरी -छिपे थाली में कुछ भी नहीं परोसा जा सकता है. उच्च न्यायालय ने केंद्र और भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि किसी भी खाद्य सामग्री के विनिर्माण में इस्तेमाल लाये गये सभी अवयवों का पूर्ण खुलासा किया जाए.

DELHI HC
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Published : Dec 14, 2021, 9:43 PM IST

नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि मासांहारी अवयवों (Religious sentiments are hurt by using non-vegetarian ingredients) का इस्तेमाल करने एवं उन्हें शाकाहारी ( vegetarian product) के रूप में निरूपति करने से विशुद्ध शाकाहारियों की धार्मिक एवं सांस्कृतिक भावनाएं (Religious sentiments) आहत होती हैं तथा यह स्वतंत्र रूप से अपने धर्म का पालन करने के उनके अधिकार में दखल है.

अदालत ने कहा कि हर व्यक्ति को यह जानने का हक है कि वह क्या खा रहे है और धोखे एवं चोरी -छिपे थाली में कुछ भी नहीं परोसा जा सकता है. उच्च न्यायालय (Delhi high Court ) ने केंद्र और भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि किसी भी खाद्य सामग्री के विनिर्माण में इस्तेमाल लाये गये सभी अवयवों का पूर्ण खुलासा किया जाए. अदालत ने कहा कि यह खुलासा बस कोड नाम से ही नहीं हो, बल्कि यह भी बताया जाए कि उनका स्रोत पेड़-पौधे हैं या जानवर, या फिर, क्या वे प्रयोगशाला में बनाय गये हैं, भले खाद्य सामग्री में उनका प्रतिशत कुछ भी हो.

अदालत ने राम गऊ रक्षा दल ट्रस्ट की याचिका सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया. इस याचिका में लोगों के उपयेाग में आने वाले घरेलू उपकरणों एवं परिधानों समेत ‘सभी वस्तुओं’ का उनके अवयवों और ‘‘विनिर्माण में इस्तेमाल लायी गयी चीजों’’ के आधार पर ‘शाकाहारी’ या ‘मांसाहारी’ के रूप में निरूपण करने का अनुरोध किया गया है.

न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने कहा कि ऐसी खामियां रोक पाने में प्रशासन की असमर्थता से न केवल ऐसे खाद्य व्यावसाय संचालकों द्वारा खाद्य सुरक्षा एवं मानक कानून एवं विनियमों के अनुपालन नहीं हो रहा है, बल्कि लोगों को ठगा भी जा रहा है, खासकर ऐसे लोग जो विशुद्ध शाकाहार करते हैं.

पीठ ने कहा, ‘‘यह कोई मायने नहीं रखता है कि ऐसे अवयवों (जिनका स्रोत पशु हैं) का प्रतिशत क्या है, जिनका खाद्य सामग्री के विनिर्माण में उपयोग किया जाता है. ’’

पीठ ने कहा, ‘‘भले ही मांसाहारी अवयवों का इस्तेमाल बहुत कम मात्रा/फीसद में हो, लेकिन ऐसे अवयवों का इस्तेमाल भर से ही ऐसी खाद्य सामग्री मांसाहारी बन जाती है और वह विशुद्ध शाकाहारी की धार्मिक एवं सांस्कृतिक भावना आहत करती हैं तथा अपने धर्म का स्वंतंत्र रूप से पालन करने के उसके अधिकार में हस्तक्षेप करता है. हर व्यक्ति को यह जानने का हक है कि वह क्या खा रहा/रही है और उसे धोखे या चोरी -छिपे कुछ भी नहीं परोसा जा सकता है. ’’

अदालत ने कहा कि इस आदेश का पर्याप्त रूप से प्रचारित किया जाए ताकि प्रत्येक संबंधित व्यक्त को उसके कानूनी और संवैधानिक दायित्वों और अधिकारों की जानकारी मिल सके. साथ ही अदालत ने इसमे अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश देते हुए याचिका 31 जनवरी के लिए सूचीबद्ध कर दी.

(पीटीआई-भाषा)

नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि मासांहारी अवयवों (Religious sentiments are hurt by using non-vegetarian ingredients) का इस्तेमाल करने एवं उन्हें शाकाहारी ( vegetarian product) के रूप में निरूपति करने से विशुद्ध शाकाहारियों की धार्मिक एवं सांस्कृतिक भावनाएं (Religious sentiments) आहत होती हैं तथा यह स्वतंत्र रूप से अपने धर्म का पालन करने के उनके अधिकार में दखल है.

अदालत ने कहा कि हर व्यक्ति को यह जानने का हक है कि वह क्या खा रहे है और धोखे एवं चोरी -छिपे थाली में कुछ भी नहीं परोसा जा सकता है. उच्च न्यायालय (Delhi high Court ) ने केंद्र और भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि किसी भी खाद्य सामग्री के विनिर्माण में इस्तेमाल लाये गये सभी अवयवों का पूर्ण खुलासा किया जाए. अदालत ने कहा कि यह खुलासा बस कोड नाम से ही नहीं हो, बल्कि यह भी बताया जाए कि उनका स्रोत पेड़-पौधे हैं या जानवर, या फिर, क्या वे प्रयोगशाला में बनाय गये हैं, भले खाद्य सामग्री में उनका प्रतिशत कुछ भी हो.

अदालत ने राम गऊ रक्षा दल ट्रस्ट की याचिका सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया. इस याचिका में लोगों के उपयेाग में आने वाले घरेलू उपकरणों एवं परिधानों समेत ‘सभी वस्तुओं’ का उनके अवयवों और ‘‘विनिर्माण में इस्तेमाल लायी गयी चीजों’’ के आधार पर ‘शाकाहारी’ या ‘मांसाहारी’ के रूप में निरूपण करने का अनुरोध किया गया है.

न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने कहा कि ऐसी खामियां रोक पाने में प्रशासन की असमर्थता से न केवल ऐसे खाद्य व्यावसाय संचालकों द्वारा खाद्य सुरक्षा एवं मानक कानून एवं विनियमों के अनुपालन नहीं हो रहा है, बल्कि लोगों को ठगा भी जा रहा है, खासकर ऐसे लोग जो विशुद्ध शाकाहार करते हैं.

पीठ ने कहा, ‘‘यह कोई मायने नहीं रखता है कि ऐसे अवयवों (जिनका स्रोत पशु हैं) का प्रतिशत क्या है, जिनका खाद्य सामग्री के विनिर्माण में उपयोग किया जाता है. ’’

पीठ ने कहा, ‘‘भले ही मांसाहारी अवयवों का इस्तेमाल बहुत कम मात्रा/फीसद में हो, लेकिन ऐसे अवयवों का इस्तेमाल भर से ही ऐसी खाद्य सामग्री मांसाहारी बन जाती है और वह विशुद्ध शाकाहारी की धार्मिक एवं सांस्कृतिक भावना आहत करती हैं तथा अपने धर्म का स्वंतंत्र रूप से पालन करने के उसके अधिकार में हस्तक्षेप करता है. हर व्यक्ति को यह जानने का हक है कि वह क्या खा रहा/रही है और उसे धोखे या चोरी -छिपे कुछ भी नहीं परोसा जा सकता है. ’’

अदालत ने कहा कि इस आदेश का पर्याप्त रूप से प्रचारित किया जाए ताकि प्रत्येक संबंधित व्यक्त को उसके कानूनी और संवैधानिक दायित्वों और अधिकारों की जानकारी मिल सके. साथ ही अदालत ने इसमे अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश देते हुए याचिका 31 जनवरी के लिए सूचीबद्ध कर दी.

(पीटीआई-भाषा)

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