नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता प्रशांत उमराव की उस याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें तमिलनाडु में बिहारी कार्यकर्ताओं पर हमले का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को एक साथ जोड़ने की मांग की गई थी और वह अपनी जमानत की शर्त को संशोधित करने की मांग कर रहे हैं, जिसके लिए उन्हें 15 दिनों के लिए पुलिस के सामने पेश होना होगा.
न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने यह भी कहा कि उमराव एक वकील हैं और उन्हें इस तरह की चीजों के लिए अधिक जिम्मेदार होना चाहिए. अदालत ने अब उन्हें सोमवार को सुबह 10 बजे पुलिस के सामने पेश होने को कहा है और उसके बाद जब भी जांच अधिकारी को उनकी आवश्यकता होगी, उन्हें उपस्थित होने का भी आदेश दिया है. मद्रास उच्च न्यायालय ने उन्हें इस शर्त पर जमानत दी थी कि वह 15 दिनों के लिए सुबह 10:30 बजे से शाम 5:30 बजे के बीच पुलिस के सामने पेश होंगे.
15 दिन तक हर दिन 5 घंटे से कोर्ट राजी नहीं हुआ. अदालत ने सवाल किया कि 'आप 15 दिन से रोजाना पांच घंटे कौन सी जांच कर रहे हैं?' अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि जमानत तमिलनाडु में दर्ज अन्य सभी प्राथमिकियों पर भी लागू होगी जो उनके खिलाफ कार्रवाई के कारण के लिए दर्ज की गई थी. हालांकि तमिलनाडु राज्य ने अदालत को बताया कि अन्य प्राथमिकी में प्रशांत उमराव का नाम नहीं था.
गुरुवार को सुनवाई के दौरान, वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि उमराव ने त्रुटि का एहसास होने पर 12 घंटे के भीतर ट्वीट को हटा दिया था. लूथरा ने कहा कि उन्होंने सिर्फ उस खबर को ट्वीट किया था, जिसे अन्य मीडिया एजेंसियां ट्वीट कर रही थीं और जैसे ही उन्हें पता चला कि यह गलत है, तो उन्होंने पोस्ट को हटा दिया था. न्यायमूर्ति जे गवई ने सवाल किया, 'इन दिनों हमें इतना संवेदनशील क्यों होना चाहिए?'
तमिलनाडु की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने अदालत को बताया कि उमराव एक बार भी पुलिस के सामने पेश नहीं हुए हैं और उन्होंने आज तक कोई हलफनामा दायर नहीं किया है जिसमें कहा गया है कि वह ऐसा कुछ भी पोस्ट करने से परहेज करेंगे, जिससे समूहों के बीच दुश्मनी पैदा हो. उन्होंने उमराव पर लगाई गई मद्रास उच्च न्यायालय की ज़मानत शर्त का यह कहते हुए समर्थन किया कि यह केवल उनसे पूछताछ के लिए है और वह शर्त का पालन कर सकते हैं.
एडवोकेट रोहतगी ने तर्क दिया कि 'उनके ट्वीट को देखें. वह एक वकील हैं. एक वकील कह रहा है कि तमिलनाडु में हिंदी भाषी लोगों पर हमले हो रहे हैं. एक वकील के लिए ऐसा कहना.' अदालत ने बार में उनकी स्थिति के बारे में पूछा, जिस पर यह सूचित किया गया कि उमराव गोवा के लिए एक स्थायी वकील हैं. जे गवई ने कहा कि 'उन्हें और अधिक जिम्मेदार होना चाहिए.' कोर्ट ने उनसे माफी मांगने को भी कहा.
सीनियर एडवोकेट लूथरा ने अदालत को आश्वासन दिया कि वह माफी मांगेंगे. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 23 फरवरी को प्रशांत उमराव ने ट्वीट किया था कि 15 प्रवासी कामगारों को हिंदी बोलने के लिए पीटा गया और उनमें से 12 की मौत हो गई. प्रवासियों पर हमले का दावा करने वाले वीडियो को फैक्ट चेकर्स और राज्य पुलिस ने फर्जी बताया था.