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Women Reservation Bill: महिला आरक्षण बिल पास होने से बदल जाएगी झारखंड विधानसभा की तस्वीर, किसी ने की तारीफ तो किसी ने बताया साजिश

लोकसभा में 128वें संविधान संशोधन बिल में नारी शक्ति वंदन विधेयक पेश किया गया. इसके बाद लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% रिजर्वेंशन का रास्ता साफ हो गया है. इस बिल के कानून बनने के बाद झारखंड पर इसका क्या असर होगा और क्या कहना है यहां के महिला जनप्रतिनिधियों का जानिए इस रिपोर्ट में.

Impact of Women Reservation Bill
lok sabha
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 19, 2023, 3:40 PM IST

रांची: 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र की मोदी सरकार ने मास्टर स्ट्रोक लगा दिया है. मोदी कैबिनेट ने लोकसभा और राज्य की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीट आरक्षित करने के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी है. लोकसभा से बिल पास होते ही यह व्यवस्था लागू हो जाएगी क्योंकि साल 2010 में ही राज्यसभा से यह बिल पास हो चुका है. हालांकि बिल पेश होने के बाद ही पता चल पाएगा कि इसमें और क्या-क्या प्रावधान हैं. लेकिन केंद्र के इस मास्ट्र स्ट्रोक से तमाम राज्यों के विधानसभा की तस्वीर बदल जाएगी. अब सवाल है कि इस झारखंड विधानसभा पर क्या असर होगा. साथ ही देश में होने जा रहे बड़े परिवर्तन पर क्रेडिट लेने की भी होड़ मच गयी है.

ये भी पढ़ें: Women Reservation Bill: दशकों से लंबित महिला आरक्षण विधेयक का जानें कौन है विरोधी और क्यों

विधानसभा में महिला विधायकों की भागीदारी: झारखंड में निर्वाचित होने वाले विधायकों की कुल संख्या 81 है. वर्तमान में 81 सीटों में 12 महिलाएं चुनाव जीतकर सदन पहुंची हैं. इनमें कांग्रेस और झामुमो से सबसे ज्यादा चार-चार महिला विधायक हैं. कांग्रेस से दीपिका पांडेय सिंह, पूर्णिमा नीरज सिंह, नेहा शिल्पी तिर्की और अंबा प्रसाद है. जबकि झामुमो से सीता सोरेन, सबिता महतो, जोबा मांझी और बेबी देवी विधायक हैं. वहीं भाजपा से अपर्णा सेन गुप्ता, नीरा यादव और पुष्पा देवी हैं. जबकि आजसू से सुनीता महतो जीती हैं. खास बात है कि 2019 के विधानसभा चुनाव में 10 महिलाएं चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंची थीं. लेकिन उसके बाद हुए उपचुनावों में जीत के बाद यह संख्या बढ़कर 12 हो गई है. आपको जानकर हैरानी होगी कि 2019 के विधानसभा चुनाव में कुल 81 सीटों पर 127 महिलाओं ने भाग्य आजमाया था.

राज्य बनने के बाद पहली बार सदन में महिलाओं विधायकों की इतनी संख्या है. इस लिहाज से कुल विधायकों की संख्या में 14.81 प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी है. इस बिल के पास होने पर झारखंड विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या बढ़कर कम से कम 27 हो जाएगी. क्योंकि अन्य सीटों पर भी महिलाएं चुनाव लड़ पाएंगी.

लोकसभा में महिला सांसदों की भागीदारी: अगर लोकसभा की बात करें तो झारखंड में कुल 14 सीटें हैं. इनमें भाजपा से अन्नपूर्णा देवी और कांग्रेस से गीता कोड़ा सांसद हैं. अन्नपूर्णा देवी कोडरमा सीट से जीती हैं तो गीता कोड़ा चाईबासा सीट से. इस लिहाजा से लोकसभा में झारखंड की महिला सांसदों का प्रतिनिधित्व सिर्फ 14.28 प्रतिशत है. महिला आरक्षण बिल से यह संख्या बढ़कर कम से कम पांच हो जाएगी. झारखंड की 14 लोकसभा सीटों में 8 सीटें अनारक्षित हैं जबकि 01 सीट एससी और 05 सीट एसटी के लिए रिजर्व है. 2019 के लोकसभा चुनाव में अनारक्षित 08 सीटों पर 13 महिलाओं ने भाग्य आजमाया था. इनमें से सिर्फ अन्नपूर्णा देवी की जीत हुई थी. वहीं एससी की 01 सीट पर 02 महिलाएं चुनाव मैदान में थी लेकिन किसी की जीत नहीं हुई. शेष एसटी की 05 सीटों पर कुल 10 महिलाओं चुनाव लड़ीं थी लेकिन सिर्फ एक सीट पर गीता कोड़ा की जीत हुई. आने वाले दिनों में यह डाटा बदल जाएगा.

ये भी पढ़ें: Women Reservation : संसद में महिला आरक्षण बिल की ऐसी रही है यात्रा

राज्यसभा में महिलाओं की भागीदारी: झारखंड में राज्य सभा की कुल 06 सीटें हैं. इनमें सिर्फ एक सीट पर झामुमो की महुआ माजी महिला सांसद के रूप में प्रतिनिधित्व कर रही हैं. खास बात है कि राज्य बनने के बाद यह दूसरा मौका है जब किसी महिला को राज्यसभा सांसद की सदस्यता मिली है. महुआ माजी से पहले साल 2006 में कांग्रेस की माबेल रेबेलो राज्यसभा सांसद निर्वाचित हुई थीं. यह आंकड़े बताते हैं कि महिलाओं की भागीदारी को लेकर राजनीतिक दलों की क्या सोच रही है.

सरकार नौकरी और निकाय चुनाव की स्थिति: झारखंड के पंचायत चुनाव में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण है. अनारक्षित सीट पर महिलाओं के जीतने से संख्या बढ़ जाती है. झारखंड में पिछले साल अप्रैल-मई में पंचायत का चुनाव हुआ था. लेकिन नगर निकाय वाले मामले में ट्रिपल टेस्ट के आधार पर आरक्षण तय होना है. इसकी वजह से अब तक चुनाव लंबित है.

झारखंड में भी सड़क से सदन तक सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण की मांग उठती रही है. फिलहाल झारखंड में क्षैतिज आरक्षण के तहत 60 प्रतिशत आरक्षण हैं. इसमें एसटी, एससी, ओबीसी, दिव्यांग और ईडब्यूएस का जिक्र है. हालांकि सरकार ने आरक्षण बढ़ाने के प्रस्ताव को सदन से मंजूरी दिलायी थी, लेकिन राज्यपाल ने संवैधानिक नियमों के उल्लंघन का हवाला देते हुए बिल को वापस कर दिया है. आश्चर्य की बात है कि हेमंत सरकार बनने से पहले से ही राज्य महिला आयोग डिफंक्ड है. आयोग में न अध्यक्ष हैं ना ही सदस्य.

महिलाओं को हक देने में झारखंड से आगे हैं बिहार: झारखंड की तुलना में पड़ोसी राज्य बिहार में महिलाओं को ज्यादा हक मिला हुआ है. बिहार की सभी नौकरियों में 33.5 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं. इसके अलावा प्राथमिक शिक्षक के पदों पर महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण मिला हुआ है. साथ ही पंचायत के अलावा नगर निकाय चुनाव में भी 50 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं.

पूर्ण बहुमत के बाद भी क्यों लटकाएं रखा बिल- दीपिका: कांग्रेस विधायक दीपिका पांडेय सिंह ने कहा कि इस बदलाव का पूरा क्रेडिट कांग्रेस नेता राजीव गांधी, मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी को जाता है. उन्होंने कहा कि सबसे पहले राजीव गांधी ने इस मसले को सोचा. बाद में नरसिम्हा राव ने इसको पंचायती राज में लागू कराया. फिर साल 2010 में मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी की पहल पर यह बिल राज्यसभा में पारित हुआ था. चूकि राज्यसभा में यह बिल पारित हुआ था, इसलिए यह बिल जीवित था. इसके लिए करीब 24 साल तक महिलाओं को इंतजार करना पड़ा. वर्तमान केंद्र सरकार का यह कदम स्वागत योग्य है. लेकिन यह सवाल जरूर उठेगा कि पूर्ण बहुमत के बाद भी इसको क्यों पेंडिंग रखा गया. इसकी वजह से पिछले 10 वर्षों में महिलाओं की स्थिति बिगड़ी है. मणिपुर जैसी घटनाओं से देश शर्मसार हुआ है. जब महिलाओं की राजनीतिक आवाज बुलंद होगी तो उनका स्टेट्स बदलेगा. कांग्रेस विधायक दीपिका पांडेय सिंह ने भरोसे के साथ कहा कि अब झारखंड विधानसभा में न सिर्फ 27 बल्कि 50 सीटों पर महिलाओं जीतकर पहुंचेंगी.

ये भी पढ़ें: Sonia On Women's Reservation Bill: महिला आरक्षण विधेयक पर सोनिया ने कहा- 'यह अपना है'

पीएम मोदी को जाता है सारा क्रेडिट- अपर्णा: भाजपा विधायक अपर्णा सेन गुप्ता ने इस पहल के लिए पीएम मोदी को धन्यवाद दिया. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार जब से सत्ता में आई है, महिलाओं के हक के लिए काम कर रही है. इस बिल को कांग्रेस की सरकार ने ही ठंडे बस्ते में डाल रखा था. अब इस बिल के लोकसभा से पारित होने और कानून बनने के बाद झारखंड विधानसभा में महिला विधायकों को संख्या आरक्षित सीटों की तुलना में ज्यादा बढ़ जाएगी. उन्होंने इसका क्रेडिट पीएम मोदी को दिया.

केंद्र और राज्य सरकार बधाई की पात्र- सविता महतो: ईचागढ़ से झामुमो की विधायक सविता महतो ने कहा महिलाओं के हक की मांग लंबे समय से चल रही थी. देर सबेर ही लेकिन इसको अमली जामा पहनाया जा रहा है. उन्होंने इसके लिए राज्य सरकार और केंद्र की मोदी सरकार दोनों की धन्यवाद दिया. झामुमो विधायक सविता महतो ने कहा कि इस बिल के पास होने के बाद झारखंड विधानसभा में महिलाओं की संख्या बढ़ेगी. महिलाएं अपने हक की आवाज को पुरजोर तरीके से उठा पाएंगी. यह बेहद ही सराहनीय पहल है.

केंद्र की नीयत पर संदेह- राजद नेत्री अनिता यादव: प्रदेश राजद उपाध्यक्ष अनिता यादव ने कहा कि अगर केंद्र सरकार की महिला आरक्षण पर नीयत सही है तो राजद समर्थन करेगा. लेकिन सवाल है कि महिलाओं के आरक्षण में दलित, आदिवासी, पिछड़े और अल्पसंख्यक को स्थान दिया जा रहा है या नहीं. अगर ऐसा नहीं होता है तो यह उनके साथ अन्याय होगा. फिलहाल लग रहा है कि यह भाजपा की एक साजिश है. आपको बता दें कि 2010 में मनमोहन सिंह की सरकार ने जब इस बिल को राज्यसभा से पारित कराया था तो लोकसभा में बिल के आने पर राजद और सपा ने विरोध किया था.

रांची: 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र की मोदी सरकार ने मास्टर स्ट्रोक लगा दिया है. मोदी कैबिनेट ने लोकसभा और राज्य की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीट आरक्षित करने के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी है. लोकसभा से बिल पास होते ही यह व्यवस्था लागू हो जाएगी क्योंकि साल 2010 में ही राज्यसभा से यह बिल पास हो चुका है. हालांकि बिल पेश होने के बाद ही पता चल पाएगा कि इसमें और क्या-क्या प्रावधान हैं. लेकिन केंद्र के इस मास्ट्र स्ट्रोक से तमाम राज्यों के विधानसभा की तस्वीर बदल जाएगी. अब सवाल है कि इस झारखंड विधानसभा पर क्या असर होगा. साथ ही देश में होने जा रहे बड़े परिवर्तन पर क्रेडिट लेने की भी होड़ मच गयी है.

ये भी पढ़ें: Women Reservation Bill: दशकों से लंबित महिला आरक्षण विधेयक का जानें कौन है विरोधी और क्यों

विधानसभा में महिला विधायकों की भागीदारी: झारखंड में निर्वाचित होने वाले विधायकों की कुल संख्या 81 है. वर्तमान में 81 सीटों में 12 महिलाएं चुनाव जीतकर सदन पहुंची हैं. इनमें कांग्रेस और झामुमो से सबसे ज्यादा चार-चार महिला विधायक हैं. कांग्रेस से दीपिका पांडेय सिंह, पूर्णिमा नीरज सिंह, नेहा शिल्पी तिर्की और अंबा प्रसाद है. जबकि झामुमो से सीता सोरेन, सबिता महतो, जोबा मांझी और बेबी देवी विधायक हैं. वहीं भाजपा से अपर्णा सेन गुप्ता, नीरा यादव और पुष्पा देवी हैं. जबकि आजसू से सुनीता महतो जीती हैं. खास बात है कि 2019 के विधानसभा चुनाव में 10 महिलाएं चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंची थीं. लेकिन उसके बाद हुए उपचुनावों में जीत के बाद यह संख्या बढ़कर 12 हो गई है. आपको जानकर हैरानी होगी कि 2019 के विधानसभा चुनाव में कुल 81 सीटों पर 127 महिलाओं ने भाग्य आजमाया था.

राज्य बनने के बाद पहली बार सदन में महिलाओं विधायकों की इतनी संख्या है. इस लिहाज से कुल विधायकों की संख्या में 14.81 प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी है. इस बिल के पास होने पर झारखंड विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या बढ़कर कम से कम 27 हो जाएगी. क्योंकि अन्य सीटों पर भी महिलाएं चुनाव लड़ पाएंगी.

लोकसभा में महिला सांसदों की भागीदारी: अगर लोकसभा की बात करें तो झारखंड में कुल 14 सीटें हैं. इनमें भाजपा से अन्नपूर्णा देवी और कांग्रेस से गीता कोड़ा सांसद हैं. अन्नपूर्णा देवी कोडरमा सीट से जीती हैं तो गीता कोड़ा चाईबासा सीट से. इस लिहाजा से लोकसभा में झारखंड की महिला सांसदों का प्रतिनिधित्व सिर्फ 14.28 प्रतिशत है. महिला आरक्षण बिल से यह संख्या बढ़कर कम से कम पांच हो जाएगी. झारखंड की 14 लोकसभा सीटों में 8 सीटें अनारक्षित हैं जबकि 01 सीट एससी और 05 सीट एसटी के लिए रिजर्व है. 2019 के लोकसभा चुनाव में अनारक्षित 08 सीटों पर 13 महिलाओं ने भाग्य आजमाया था. इनमें से सिर्फ अन्नपूर्णा देवी की जीत हुई थी. वहीं एससी की 01 सीट पर 02 महिलाएं चुनाव मैदान में थी लेकिन किसी की जीत नहीं हुई. शेष एसटी की 05 सीटों पर कुल 10 महिलाओं चुनाव लड़ीं थी लेकिन सिर्फ एक सीट पर गीता कोड़ा की जीत हुई. आने वाले दिनों में यह डाटा बदल जाएगा.

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राज्यसभा में महिलाओं की भागीदारी: झारखंड में राज्य सभा की कुल 06 सीटें हैं. इनमें सिर्फ एक सीट पर झामुमो की महुआ माजी महिला सांसद के रूप में प्रतिनिधित्व कर रही हैं. खास बात है कि राज्य बनने के बाद यह दूसरा मौका है जब किसी महिला को राज्यसभा सांसद की सदस्यता मिली है. महुआ माजी से पहले साल 2006 में कांग्रेस की माबेल रेबेलो राज्यसभा सांसद निर्वाचित हुई थीं. यह आंकड़े बताते हैं कि महिलाओं की भागीदारी को लेकर राजनीतिक दलों की क्या सोच रही है.

सरकार नौकरी और निकाय चुनाव की स्थिति: झारखंड के पंचायत चुनाव में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण है. अनारक्षित सीट पर महिलाओं के जीतने से संख्या बढ़ जाती है. झारखंड में पिछले साल अप्रैल-मई में पंचायत का चुनाव हुआ था. लेकिन नगर निकाय वाले मामले में ट्रिपल टेस्ट के आधार पर आरक्षण तय होना है. इसकी वजह से अब तक चुनाव लंबित है.

झारखंड में भी सड़क से सदन तक सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण की मांग उठती रही है. फिलहाल झारखंड में क्षैतिज आरक्षण के तहत 60 प्रतिशत आरक्षण हैं. इसमें एसटी, एससी, ओबीसी, दिव्यांग और ईडब्यूएस का जिक्र है. हालांकि सरकार ने आरक्षण बढ़ाने के प्रस्ताव को सदन से मंजूरी दिलायी थी, लेकिन राज्यपाल ने संवैधानिक नियमों के उल्लंघन का हवाला देते हुए बिल को वापस कर दिया है. आश्चर्य की बात है कि हेमंत सरकार बनने से पहले से ही राज्य महिला आयोग डिफंक्ड है. आयोग में न अध्यक्ष हैं ना ही सदस्य.

महिलाओं को हक देने में झारखंड से आगे हैं बिहार: झारखंड की तुलना में पड़ोसी राज्य बिहार में महिलाओं को ज्यादा हक मिला हुआ है. बिहार की सभी नौकरियों में 33.5 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं. इसके अलावा प्राथमिक शिक्षक के पदों पर महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण मिला हुआ है. साथ ही पंचायत के अलावा नगर निकाय चुनाव में भी 50 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं.

पूर्ण बहुमत के बाद भी क्यों लटकाएं रखा बिल- दीपिका: कांग्रेस विधायक दीपिका पांडेय सिंह ने कहा कि इस बदलाव का पूरा क्रेडिट कांग्रेस नेता राजीव गांधी, मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी को जाता है. उन्होंने कहा कि सबसे पहले राजीव गांधी ने इस मसले को सोचा. बाद में नरसिम्हा राव ने इसको पंचायती राज में लागू कराया. फिर साल 2010 में मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी की पहल पर यह बिल राज्यसभा में पारित हुआ था. चूकि राज्यसभा में यह बिल पारित हुआ था, इसलिए यह बिल जीवित था. इसके लिए करीब 24 साल तक महिलाओं को इंतजार करना पड़ा. वर्तमान केंद्र सरकार का यह कदम स्वागत योग्य है. लेकिन यह सवाल जरूर उठेगा कि पूर्ण बहुमत के बाद भी इसको क्यों पेंडिंग रखा गया. इसकी वजह से पिछले 10 वर्षों में महिलाओं की स्थिति बिगड़ी है. मणिपुर जैसी घटनाओं से देश शर्मसार हुआ है. जब महिलाओं की राजनीतिक आवाज बुलंद होगी तो उनका स्टेट्स बदलेगा. कांग्रेस विधायक दीपिका पांडेय सिंह ने भरोसे के साथ कहा कि अब झारखंड विधानसभा में न सिर्फ 27 बल्कि 50 सीटों पर महिलाओं जीतकर पहुंचेंगी.

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पीएम मोदी को जाता है सारा क्रेडिट- अपर्णा: भाजपा विधायक अपर्णा सेन गुप्ता ने इस पहल के लिए पीएम मोदी को धन्यवाद दिया. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार जब से सत्ता में आई है, महिलाओं के हक के लिए काम कर रही है. इस बिल को कांग्रेस की सरकार ने ही ठंडे बस्ते में डाल रखा था. अब इस बिल के लोकसभा से पारित होने और कानून बनने के बाद झारखंड विधानसभा में महिला विधायकों को संख्या आरक्षित सीटों की तुलना में ज्यादा बढ़ जाएगी. उन्होंने इसका क्रेडिट पीएम मोदी को दिया.

केंद्र और राज्य सरकार बधाई की पात्र- सविता महतो: ईचागढ़ से झामुमो की विधायक सविता महतो ने कहा महिलाओं के हक की मांग लंबे समय से चल रही थी. देर सबेर ही लेकिन इसको अमली जामा पहनाया जा रहा है. उन्होंने इसके लिए राज्य सरकार और केंद्र की मोदी सरकार दोनों की धन्यवाद दिया. झामुमो विधायक सविता महतो ने कहा कि इस बिल के पास होने के बाद झारखंड विधानसभा में महिलाओं की संख्या बढ़ेगी. महिलाएं अपने हक की आवाज को पुरजोर तरीके से उठा पाएंगी. यह बेहद ही सराहनीय पहल है.

केंद्र की नीयत पर संदेह- राजद नेत्री अनिता यादव: प्रदेश राजद उपाध्यक्ष अनिता यादव ने कहा कि अगर केंद्र सरकार की महिला आरक्षण पर नीयत सही है तो राजद समर्थन करेगा. लेकिन सवाल है कि महिलाओं के आरक्षण में दलित, आदिवासी, पिछड़े और अल्पसंख्यक को स्थान दिया जा रहा है या नहीं. अगर ऐसा नहीं होता है तो यह उनके साथ अन्याय होगा. फिलहाल लग रहा है कि यह भाजपा की एक साजिश है. आपको बता दें कि 2010 में मनमोहन सिंह की सरकार ने जब इस बिल को राज्यसभा से पारित कराया था तो लोकसभा में बिल के आने पर राजद और सपा ने विरोध किया था.

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