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संवरता बस्तर: फूड फार्म संस्था से बस्तर को व्यवसाय में रजिया ने दिलाई पहचान

नारी देवी का रूप होती है. धार्मिक मान्यताओं में भी नारी को विशेष दर्जा दिया गया है. ये हमारे जीवन में मां, बहन, बेटी और अर्द्धांगिनी के रूप में अहम भूमिका निभाती हैं. लेकिन हमारे पुरुष प्रधान समाज इसे शुरू से ही अबला करार देता रहा है. लेकिन कुछ महिलाओं ने इस मिथक को तोड़ते हुए समाज में खुद को शक्ति स्वरूपा के रूप में स्थापित भी किया है. तो इसी कड़ी में आइये मिलते हैं ऐसी ही कुछ महिलाओं से जिन्होंने अपने बूते इस समाज को संबल प्रदान किया है...

संवरता बस्तर
संवरता बस्तर
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Published : Oct 8, 2021, 8:46 PM IST

जगदलपुर : अभी शारदीय नवरात्र चल रहा है. देश समेत पूरा विश्व शक्ति की देवी की आराधना में लीन है. नारी को शक्ति का रूप कहा गया है. इस मौके पर ईटीवी भारत अपनी 'छत्तीसगढ़ की नवदुर्गा' की सीरीज के अंतर्गत आपको लगातार प्रदेश की उन महिलाओं से रू-ब-रू करा रहा है, जिन्होंने समाज को संबल प्रदान किया है. इस कड़ी में मिलिये बस्तर की एक ऐसी शख्सीयत से जिन्होंने अपने बूते न सिर्फ एक संस्था स्थापित की बल्कि बस्तर अंचल के सैकड़ों आदिवासी महिलाओं को आत्मनिर्भर (Women Self Reliant) बनाने के साथ-साथ उन्हें रोजगार (Employment) भी उपलब्ध कराया.

रजिया शेख

इतना ही नहीं बस्तर के वनोपज से विभिन्न तरह के प्रोडक्ट्स तैयार कर इन्हें अंतरराष्ट्रीय बाजार (International Market) में पहचान दिलाई. और बस्तर को कुपोषणमुक्त बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं. हम बात कर रहे हैं बस्तर की बेटी रजिया शेख की. रजिया शेख आज बस्तर के हर एक आदिवासी महिलाओं और युवतियों के लिए मिसाल बन गई हैं. वह अपने बस्तर फूड फार्म संस्था के माध्यम से लगातार युवती और आदिवासी महिलाओं को जोड़ने के साथ ही बस्तर के वनोपज (Forest Produce of Bastar) से बने प्रोडक्ट को अंतर राष्ट्रीय बाजार में सेलिंग भी कर रही हैं. इसके अलावा वे इन प्रॉडक्ट्स को तैयार करने के लिए महिलाओं को प्रशिक्षण भी दे रही हैं. अब तक बस्तर संभाग की करीब 2 हजार से अधिक आदिवासी महिलाएं आत्मनिर्भर बन चुकी हैं और उन्हें अच्छी आमदनी भी हो रही है.

सवाल : आपका लालन-पालन कहां हुआ, कहां से आपने शिक्षा ग्रहण की ?

जवाब : मैं यहीं पली-बढ़ी हूं. अपनी उच्च शिक्षा भी यहीं से ग्रहण की है. फिर विजयवाड़ा और हैदराबाद में भी अपनी आगे की पढ़ाई पूरी की. MSC माइक्रोबायोलॉजी के बाद शोधकर्ता बनी.

सवाल : कैसे शुरू हुआ यह सफर, कैसे इसे अंतर राष्ट्रीय बाजार में आपने दिलाई पहचान ?

जवाब : रायपुर में एक कार्यक्रम के दौरान कुछ आदिवासी महिलाएं महुआ लड्डू लेकर आई थीं. लड्डू देखकर उस पर रिसर्च शुरू किया. इसके बाद धीरे-धीरे बस्तर के बाकी वनोपज से भी फूड प्रोडक्ट्स बनाने की तैयारी शुरू की. इसके बाद बस्तर फूड फॉर्म के नाम से एक संस्था स्थापित की. इसमें महुआ लड्डू के साथ-साथ महुआ, जूस बार, महुआ टी, जेली, इमली के कैंडी, हनी नट्स, ड्राई फ्रूडस के लड्डू, डलिया प्रोडक्ट, मसाला काजू और करीब 12 से अधिक प्रकार के वनोपज से फूड प्रोडक्ट्स तैयार किया. इसके बाद इसकी सेलिंग कर इसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहचान दिलाई.

सवाल : कितनी मुश्किलें आईं, कैसे रोजगार बढ़ाया आपने ?

जवाब : यह सब इतना आसान नहीं था. इस दौरान कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा. बस्तर में लोगों की धारणा बन गई है कि महुआ से सिर्फ शराब बनाई जाती है. लिहाजा लोगों को महुआ का महत्व बताने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी. जब लोगों ने महुआ लड्डू, महुआ टी और महुआ से बने जूस बार का स्वाद चखा तो धीरे-धीरे इसकी डिमांड बढ़ने लगी. काफी रिसर्च के बाद मैं और मेरी टीम ने महुआ लड्डू को टेस्टी और हेल्दी बनाने का तरीका ढूंढा और बिना किसी कैमिकल के उपयोग के एक पैकेट प्रोडक्ट के रूप में इसे तैयार करने में कामयाबी पाई.

सवाल : अब तक कितनी महिलाओं को आपने रोजगार से जोड़ा ?

जवाब : शुरुआत में 8 महिलाओं ने स्वयं सहायता समूह के जरिये काम शुरू किया था. अब 80 महिलाएं और 5 पुरुष इसमें काम कर रहे हैं, जिन्हें महुआ लड्डू से आय भी हो रही है. जैसे-जैसे सफलता मिली वैसे-वैसे बस्तर ही नहीं कोंडागांव, कांकेर और बीजापुर में भी टीम बनाई, जिन्होंने महुआ से लड्डू बनाना शुरू किया. बाकायदा इन आदिवासी महिलाओं को प्रशिक्षण भी दिया. आज बस्तर संभाग की करीब 2 हजार से अधिक आदिवासी महिलाएं इन वनोपज से प्रोडक्ट्स तैयार कर आत्मनिर्भर बन रही हैं और उन्हें अच्छी खासी आमदनी भी हो रही है.

सवाल : क्या कुछ परेशानी आपने झेली, अंतरराष्ट्रीय स्तर तक कैसे पहुंचीं ?

जवाब : अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद बस्तर के वनोपज पर रिसर्च कर अकेले ही प्रोडक्ट बनाने की तैयारी की शुरुआत की थी. अब धीरे-धीरे मेरी टीम में 80 से भी अधिक लोग हैं, जो वनोपज में रिसर्च करने के साथ ही इससे प्रोडक्ट तैयार कर अंतरराष्ट्रीय बाजार में विभिन्न माध्यमों से इसकी सेलिंग भी कर रहे हैं. इस कार्य के लिए वे कई बार शासन से व महिला आयोग से सम्मानित भी हुई हैं. लेकिन सबसे बड़ा सम्मान उनके लिए यह है कि आज आदिवासी अंचलों में इस बस्तर फूड फार्म संस्था से जुड़ी महिलाएं अपनी बेटियों को भी रजिया की तरह ही बनाना चाहती हैं, इससे बड़ा सम्मान उनके लिए और कुछ नहीं है.

सवाल : इस रोजगार को बढ़ावा देने के नजरिये से और सरकारी स्तर पर क्या अपेक्षा है ?

जवाब : बस्तर की छवि देश-विदेशों में नक्सलवाद से ही बनी हुई है. जिस तरह से अब धीरे-धीरे बस्तर के वनोपज से बनाए जा रहे प्रोडक्ट्स को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल रही है, इससे धीरे-धीरे बस्तर की नक्सलवाद की छवि हटती जा रही है. अगर सरकार बस्तर के वनोपज पर विशेष ध्यान दे खासकर जिस तरह से विभिन्न वनोपज से खाद्य पदार्थ तैयार हो रहे हैं, इसके लिए अगर सरकार मदद करती है तो बस्तर में आदिवासी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने से कोई नहीं रोक सकता. शासन से मैंने 1 एकड़ जमीन और एक इंस्टीट्यूट की भी मांग की है, ताकि बेसिक पढ़ाई के साथ बस्तर के पढ़े-लिखे युवा बस्तर फूड में अपनी रुचि दिखा सकें. साथ ही अपना भविष्य बना सकें. मैंने फूड सेफ्टी टेक्नोलॉजी पर भी सरकार से ध्यान देने की गुजारिश की है, ताकि बस्तर के युवक-युवतियां और अंदरूनी क्षेत्रों की महिलाएं बस्तर वनोपज के जरिये खाद्य प्रोडक्ट्स तैयार कर अच्छी आमदनी पा सकें और अपना जीवन स्तर उठा सकें.

जगदलपुर : अभी शारदीय नवरात्र चल रहा है. देश समेत पूरा विश्व शक्ति की देवी की आराधना में लीन है. नारी को शक्ति का रूप कहा गया है. इस मौके पर ईटीवी भारत अपनी 'छत्तीसगढ़ की नवदुर्गा' की सीरीज के अंतर्गत आपको लगातार प्रदेश की उन महिलाओं से रू-ब-रू करा रहा है, जिन्होंने समाज को संबल प्रदान किया है. इस कड़ी में मिलिये बस्तर की एक ऐसी शख्सीयत से जिन्होंने अपने बूते न सिर्फ एक संस्था स्थापित की बल्कि बस्तर अंचल के सैकड़ों आदिवासी महिलाओं को आत्मनिर्भर (Women Self Reliant) बनाने के साथ-साथ उन्हें रोजगार (Employment) भी उपलब्ध कराया.

रजिया शेख

इतना ही नहीं बस्तर के वनोपज से विभिन्न तरह के प्रोडक्ट्स तैयार कर इन्हें अंतरराष्ट्रीय बाजार (International Market) में पहचान दिलाई. और बस्तर को कुपोषणमुक्त बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं. हम बात कर रहे हैं बस्तर की बेटी रजिया शेख की. रजिया शेख आज बस्तर के हर एक आदिवासी महिलाओं और युवतियों के लिए मिसाल बन गई हैं. वह अपने बस्तर फूड फार्म संस्था के माध्यम से लगातार युवती और आदिवासी महिलाओं को जोड़ने के साथ ही बस्तर के वनोपज (Forest Produce of Bastar) से बने प्रोडक्ट को अंतर राष्ट्रीय बाजार में सेलिंग भी कर रही हैं. इसके अलावा वे इन प्रॉडक्ट्स को तैयार करने के लिए महिलाओं को प्रशिक्षण भी दे रही हैं. अब तक बस्तर संभाग की करीब 2 हजार से अधिक आदिवासी महिलाएं आत्मनिर्भर बन चुकी हैं और उन्हें अच्छी आमदनी भी हो रही है.

सवाल : आपका लालन-पालन कहां हुआ, कहां से आपने शिक्षा ग्रहण की ?

जवाब : मैं यहीं पली-बढ़ी हूं. अपनी उच्च शिक्षा भी यहीं से ग्रहण की है. फिर विजयवाड़ा और हैदराबाद में भी अपनी आगे की पढ़ाई पूरी की. MSC माइक्रोबायोलॉजी के बाद शोधकर्ता बनी.

सवाल : कैसे शुरू हुआ यह सफर, कैसे इसे अंतर राष्ट्रीय बाजार में आपने दिलाई पहचान ?

जवाब : रायपुर में एक कार्यक्रम के दौरान कुछ आदिवासी महिलाएं महुआ लड्डू लेकर आई थीं. लड्डू देखकर उस पर रिसर्च शुरू किया. इसके बाद धीरे-धीरे बस्तर के बाकी वनोपज से भी फूड प्रोडक्ट्स बनाने की तैयारी शुरू की. इसके बाद बस्तर फूड फॉर्म के नाम से एक संस्था स्थापित की. इसमें महुआ लड्डू के साथ-साथ महुआ, जूस बार, महुआ टी, जेली, इमली के कैंडी, हनी नट्स, ड्राई फ्रूडस के लड्डू, डलिया प्रोडक्ट, मसाला काजू और करीब 12 से अधिक प्रकार के वनोपज से फूड प्रोडक्ट्स तैयार किया. इसके बाद इसकी सेलिंग कर इसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहचान दिलाई.

सवाल : कितनी मुश्किलें आईं, कैसे रोजगार बढ़ाया आपने ?

जवाब : यह सब इतना आसान नहीं था. इस दौरान कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा. बस्तर में लोगों की धारणा बन गई है कि महुआ से सिर्फ शराब बनाई जाती है. लिहाजा लोगों को महुआ का महत्व बताने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी. जब लोगों ने महुआ लड्डू, महुआ टी और महुआ से बने जूस बार का स्वाद चखा तो धीरे-धीरे इसकी डिमांड बढ़ने लगी. काफी रिसर्च के बाद मैं और मेरी टीम ने महुआ लड्डू को टेस्टी और हेल्दी बनाने का तरीका ढूंढा और बिना किसी कैमिकल के उपयोग के एक पैकेट प्रोडक्ट के रूप में इसे तैयार करने में कामयाबी पाई.

सवाल : अब तक कितनी महिलाओं को आपने रोजगार से जोड़ा ?

जवाब : शुरुआत में 8 महिलाओं ने स्वयं सहायता समूह के जरिये काम शुरू किया था. अब 80 महिलाएं और 5 पुरुष इसमें काम कर रहे हैं, जिन्हें महुआ लड्डू से आय भी हो रही है. जैसे-जैसे सफलता मिली वैसे-वैसे बस्तर ही नहीं कोंडागांव, कांकेर और बीजापुर में भी टीम बनाई, जिन्होंने महुआ से लड्डू बनाना शुरू किया. बाकायदा इन आदिवासी महिलाओं को प्रशिक्षण भी दिया. आज बस्तर संभाग की करीब 2 हजार से अधिक आदिवासी महिलाएं इन वनोपज से प्रोडक्ट्स तैयार कर आत्मनिर्भर बन रही हैं और उन्हें अच्छी खासी आमदनी भी हो रही है.

सवाल : क्या कुछ परेशानी आपने झेली, अंतरराष्ट्रीय स्तर तक कैसे पहुंचीं ?

जवाब : अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद बस्तर के वनोपज पर रिसर्च कर अकेले ही प्रोडक्ट बनाने की तैयारी की शुरुआत की थी. अब धीरे-धीरे मेरी टीम में 80 से भी अधिक लोग हैं, जो वनोपज में रिसर्च करने के साथ ही इससे प्रोडक्ट तैयार कर अंतरराष्ट्रीय बाजार में विभिन्न माध्यमों से इसकी सेलिंग भी कर रहे हैं. इस कार्य के लिए वे कई बार शासन से व महिला आयोग से सम्मानित भी हुई हैं. लेकिन सबसे बड़ा सम्मान उनके लिए यह है कि आज आदिवासी अंचलों में इस बस्तर फूड फार्म संस्था से जुड़ी महिलाएं अपनी बेटियों को भी रजिया की तरह ही बनाना चाहती हैं, इससे बड़ा सम्मान उनके लिए और कुछ नहीं है.

सवाल : इस रोजगार को बढ़ावा देने के नजरिये से और सरकारी स्तर पर क्या अपेक्षा है ?

जवाब : बस्तर की छवि देश-विदेशों में नक्सलवाद से ही बनी हुई है. जिस तरह से अब धीरे-धीरे बस्तर के वनोपज से बनाए जा रहे प्रोडक्ट्स को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल रही है, इससे धीरे-धीरे बस्तर की नक्सलवाद की छवि हटती जा रही है. अगर सरकार बस्तर के वनोपज पर विशेष ध्यान दे खासकर जिस तरह से विभिन्न वनोपज से खाद्य पदार्थ तैयार हो रहे हैं, इसके लिए अगर सरकार मदद करती है तो बस्तर में आदिवासी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने से कोई नहीं रोक सकता. शासन से मैंने 1 एकड़ जमीन और एक इंस्टीट्यूट की भी मांग की है, ताकि बेसिक पढ़ाई के साथ बस्तर के पढ़े-लिखे युवा बस्तर फूड में अपनी रुचि दिखा सकें. साथ ही अपना भविष्य बना सकें. मैंने फूड सेफ्टी टेक्नोलॉजी पर भी सरकार से ध्यान देने की गुजारिश की है, ताकि बस्तर के युवक-युवतियां और अंदरूनी क्षेत्रों की महिलाएं बस्तर वनोपज के जरिये खाद्य प्रोडक्ट्स तैयार कर अच्छी आमदनी पा सकें और अपना जीवन स्तर उठा सकें.

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