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बलात्कार-हत्या मामला : उच्चतम न्यायालय ने मौत की सजा के क्रियान्वयन पर रोक लगाई - Death Penalty

एक बच्ची से दुष्कर्म एवं उसकी हत्या के मामले में दोषी करार दिए गए व्यक्ति को सुनाई गई मौत की सजा के क्रियान्वयन पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने रोक लगा दी है. साथ ही कोर्ट ने याचिकाकर्ता की मनोवैज्ञानिक जांच कर उसकी रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया है. इससे पहले उत्तराखंड हाई कोर्ट (Uttarakhand High Court) ने निचली अदालत द्वारा दोषी को सुनाई गई मौत की सजा बरकरार रखी थी.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
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Published : Mar 6, 2022, 3:22 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने 2018 में देहरादून में 11 साल की एक बच्ची से दुष्कर्म एवं उसकी हत्या के मामले में दोषी करार दिए गए व्यक्ति को सुनाई गई मौत की सजा के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी है. उत्तराखंड उच्च न्यायालय (Uttarakhand High Court) के जनवरी 2020 के फैसले के खिलाफ दोषी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता की मनोवैज्ञानिक जांच कर इसकी रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया.

उच्च न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा दोषी को सुनाई गई मौत की सजा बरकरार रखी थी. न्यायमूर्ति यू.यू. ललित (Justice U U Lalit) की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, 'उत्तराखंड को नोटिस जारी किया जाए, जिसका जवाब चार मई 2022 तक देने को कहा जाए.' दो मार्च को जारी आदेश में पीठ ने कहा, 'अपील के विचाराधीन रहने तक याचिकाकर्ता को सुनाई गई मौत की सजा के क्रियान्वयन पर रोक रहेगी. संबंधित कारागार को इस संबंध में तत्काल सूचना भेजी जाए.'

पीठ में न्यायमूर्ति एस आर भट (Justices S R Bhat) और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा (Justices P S Narasimha) भी शामिल हैं. शीर्ष अदालत ने कहा कि मामले में 'पूर्ण सहायता' के लिए जेल प्रशासन द्वारा याचिकाकर्ता के कैद में रहने के दौरान उसके काम की प्रकृति के बारे में 25 अप्रैल तक एक रिपोर्ट सौंपी जाए. पीठ ने कहा, 'हमें यह भी लगता है कि न्याय का हित इसी में है कि हम याचिकाकर्ता की मनोवैज्ञानिक जांच कराएं.' पीठ ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश के निदेशक को याचिकाकर्ता की मनोवैज्ञानिक जांच के लिए एक टीम गठित करने और 25 अप्रैल तक इससे संबंधित रिपोर्ट भेजने का निर्देश दिया.

ये भी पढ़ें - सिंगल पेरेंट्स को यात्रा दस्तावेज में परेशानी पर अदालत ने पासपोर्ट अधिकारियों को लगाई फटकार

शीर्ष अदालत ने कहा कि जेल अधिकारी याचिकाकर्ता तक पहुंच उपलब्ध कराने और उसकी मनोवैज्ञानिक जांच कराने में पूरा सहयोग करें. पीठ ने मामले की सुनवाई चार मई तक स्थगित कर दी. याचिकाकर्ता जय प्रकाश को अगस्त 2019 में एक निचली अदालत ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम की विभन्न धाराओं के तहत दोषी करार दिया था. अभियोजन पक्ष के मुताबिक, पीड़िता के पिता की शिकायत पर जुलाई 2018 में प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जिसमें कहा गया था कि शिकायकर्ता की बेटी अन्य बच्चों के साथ खेलते समय लापता हो गई थी.

प्राथमिकी में कहा गया था कि जब शिकायतकर्ता ने अन्य बच्चों से अपनी बेटी के बारे में पूछताछ की तो उसे बताया गया कि आरोपी उसे अपनी झोपड़ी की तरफ ले गया है. शिकायतकर्ता ने दावा किया था कि बच्ची का शव आरोपी की झोपड़ी में मिला था. सुनवाई के दौरान आरोपी ने खुद को बेगुनाह बताया था और कहा था कि उसे मामले में फंसाया गया है. हालांकि, उच्च न्यायालय ने कहा था कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में सफल रहा है कि आरोपी ने दुष्कर्म के बाद बच्ची की हत्या कर दी थी.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने 2018 में देहरादून में 11 साल की एक बच्ची से दुष्कर्म एवं उसकी हत्या के मामले में दोषी करार दिए गए व्यक्ति को सुनाई गई मौत की सजा के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी है. उत्तराखंड उच्च न्यायालय (Uttarakhand High Court) के जनवरी 2020 के फैसले के खिलाफ दोषी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता की मनोवैज्ञानिक जांच कर इसकी रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया.

उच्च न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा दोषी को सुनाई गई मौत की सजा बरकरार रखी थी. न्यायमूर्ति यू.यू. ललित (Justice U U Lalit) की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, 'उत्तराखंड को नोटिस जारी किया जाए, जिसका जवाब चार मई 2022 तक देने को कहा जाए.' दो मार्च को जारी आदेश में पीठ ने कहा, 'अपील के विचाराधीन रहने तक याचिकाकर्ता को सुनाई गई मौत की सजा के क्रियान्वयन पर रोक रहेगी. संबंधित कारागार को इस संबंध में तत्काल सूचना भेजी जाए.'

पीठ में न्यायमूर्ति एस आर भट (Justices S R Bhat) और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा (Justices P S Narasimha) भी शामिल हैं. शीर्ष अदालत ने कहा कि मामले में 'पूर्ण सहायता' के लिए जेल प्रशासन द्वारा याचिकाकर्ता के कैद में रहने के दौरान उसके काम की प्रकृति के बारे में 25 अप्रैल तक एक रिपोर्ट सौंपी जाए. पीठ ने कहा, 'हमें यह भी लगता है कि न्याय का हित इसी में है कि हम याचिकाकर्ता की मनोवैज्ञानिक जांच कराएं.' पीठ ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश के निदेशक को याचिकाकर्ता की मनोवैज्ञानिक जांच के लिए एक टीम गठित करने और 25 अप्रैल तक इससे संबंधित रिपोर्ट भेजने का निर्देश दिया.

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शीर्ष अदालत ने कहा कि जेल अधिकारी याचिकाकर्ता तक पहुंच उपलब्ध कराने और उसकी मनोवैज्ञानिक जांच कराने में पूरा सहयोग करें. पीठ ने मामले की सुनवाई चार मई तक स्थगित कर दी. याचिकाकर्ता जय प्रकाश को अगस्त 2019 में एक निचली अदालत ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम की विभन्न धाराओं के तहत दोषी करार दिया था. अभियोजन पक्ष के मुताबिक, पीड़िता के पिता की शिकायत पर जुलाई 2018 में प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जिसमें कहा गया था कि शिकायकर्ता की बेटी अन्य बच्चों के साथ खेलते समय लापता हो गई थी.

प्राथमिकी में कहा गया था कि जब शिकायतकर्ता ने अन्य बच्चों से अपनी बेटी के बारे में पूछताछ की तो उसे बताया गया कि आरोपी उसे अपनी झोपड़ी की तरफ ले गया है. शिकायतकर्ता ने दावा किया था कि बच्ची का शव आरोपी की झोपड़ी में मिला था. सुनवाई के दौरान आरोपी ने खुद को बेगुनाह बताया था और कहा था कि उसे मामले में फंसाया गया है. हालांकि, उच्च न्यायालय ने कहा था कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में सफल रहा है कि आरोपी ने दुष्कर्म के बाद बच्ची की हत्या कर दी थी.

(पीटीआई-भाषा)

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