सिरमौर/कांगड़ा: शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर के राजौरी में शहीद हुए 5 जवानों में से दो हिमाचल प्रदेश के थे. सिरमौर जिले के प्रमोद नेगी और कांगड़ा जिले के अरविंद कुमार आतंकियों के साथ मुठभेड़ के दौरान शहीद हो गए थे. वहीं, आज सिरमौर के रहने वाले शहीद जवान का सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार हो चुका है. वहीं, कांगड़ा के रहने वाले जवान अरविंद कुमार को कल रविवार को अंतिम विदाई दी जाएगी.
'बेटे से फोन पर आखिरी बात रुला रही है'- सिरमौर जिले के शिलाई गांव में मातम पसरा है. पूरा गांव शहीद प्रमोद नेगी के घर पर इकट्ठा है. सबकी आंखें नम हैं लेकिन सपूत की शहादत पर गर्व भी है. शहीद प्रमोद नेगी के पिता देविंदर नेगी को बेटे की शहादत पर गर्व है लेकिन बेटे को खोने का ग़म आंखों से आंसू बनकर बह रहा है. मां को रह रहकर बेटे से फोन पर हुई आखिरी बात भी याद आ रही है. मां बताती है कि दो दिन पहले ही बेटे से बात हुए थी तो उसने कहा कि 'मेरी चिंता मत किया कर, अपना ख्याल रख. 10 दिन तक फोन बंद रहेगा इसलिये बात नहीं हो पाएगी'. इसके बाद शुक्रवार को बेटे की शहादत की खबर आ गई.
प्रमोद का पहला प्यार थी वर्दी- 25 साल के पैराट्रूपर प्रमोद नेगी का दिल बहुत पहले की आर्मी की वर्दी पर आ गया था. प्रमोद नेगी के भाई भी सेना में हैं. वो साल 2017 में 9 पैरा रेजीमेंट में भर्ती हुए और फिर स्पेशल फोर्से का हिस्सा बनकर देश की सुरक्षा में डटे थे. मां तारा देवी बताती है कि "मैंने उसे कहा था कि तेरे दोनों मामा टीचर हैं, तू क्यों आर्मी में जाना चाहता है" जिसके जवाब में प्रमोद ने देशप्रेम और आर्मी ज्वाइन करने की बात कही थी. शिलाई के ग्रामीणों को भी अपने सपूत की शहादत पर गर्व है. ग्रामीण कहते हैं कि गांव के बेटे ने देश के लिए सीमाओं पर सर्वोच्च बलिदान दे दिया, ऐसे बेटे हर घर में पैदा होने चाहिए.
पालमपुर का लाल भी हुआ शहीद- कांगड़ा जिले के पालमपुर का सपूत भी राजौरी में आतंकियों के साथ हुए एनकाउंटर में शहीद हुआ है. शुक्रवार को पहले अरविंद कुमार के घायल होने और फिर शहीद होने की खबर मिली. जिसके बाद से उनके पैतृक गांव सूरी में मातम पसरा है.
दो मासूम बेटियों को छोड़ गए शहीद अरविंद कुमार- साल 2010 में पंजाब रेजिमेंट में भर्ती हुए अरविंद कुमार ने चंद सालों में ही स्पेशल फोर्स में जगह बना ली. अपने जुनून, साहस और प्रतिभा के बलबूते उन्होंने ये मुकाम पाया था. 33 साल के अरविंद की शादी साल 2017 में हुई थी उनकी दो बेटियां हैं जिनकी उम्र दो और चार साल है. इन मासूमों को पता भी नहीं होगा कि उनके सिर से पिता का साया उठ चुका है. पिता रिटायर्ड हैं और मानसिक रूप से अस्वस्थ रहते हैं. बड़े भाई का परिवार और सबसे छोटी बहन भी है. छोटी बेटी के इलाज के लिए आखिरी बार फरवरी में घर आए थे.
अरविंद कुमार बेहतरीन कमांडो थे- शहीद अरविंद कुमार के मामा संजीव कुमार भी एनएसजी में रहे. उनके मुताबिक अरविंद बचपन से ही जुनूनी थे और वो एक फाइटर थे. जिसने उन्हें एक बेहतरीन कमांडो बनने में मदद की. पंजाब रेजीमेंट में भर्ती होने के बाद उनका सपना एक कमांडो बनने का था, जिसके बाद 9 पैरा एसएफ की सिलेक्शन में सैकडों प्रतिभागियों में से सिर्फ 3 का चुने गए, जिसमें अरविंद अव्वल रहे. एनएसजी में भी उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया था.
अरविंद के बड़े भाई भूपेंद्र बताते हैं कि वो हर कॉम्पिटीशन में अव्वल रहता था. वो फरवरी में अपनी छोटी बेटी के ऑपरेशन के लिए घर आए थे. दिल्ली में ऑपरेशन के बाद वो वापस लौट गए. शुक्रवार को उन्हें पहले अरविंद के घायल होने की खबर दी गई और फिर शहादत की खबर आ गई. मौसम खराब होने के कारण अरविंद की पार्थिव देह को उधमपुर से एयरलिफ्ट नहीं किया जा सका जिसके बाद सड़क मार्ग से पहुंचाने की कोशिश की जा रही है. भूपेंद्र बताते हैं कि उनका भाई इलाके के अन्य युवाओं को आर्मी ज्वाइन करने के लिए हमेशा प्रेरित करता था.
शहादत को सलाम- अरविंद कुमार और प्रमोद नेगी की शहादत को पूरा देश सलाम कर रहा है. देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले इन जांबाजों के लिए हर आंख नम है, लेकिन देश की सुरक्षा में अपने प्राण न्योछावर करने वालों की ऐसी कहानियां सीना चौड़ा कर देती हैं. दोनों शहीदों की पार्थिव देह घर पहुंच चुकी है, जहां एक जवान का आज सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार हो गया और दूसरे जवान का कल सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार होगा.