बीकानेर. बीकानेर के मोहम्मद नसीम इंसान के रूप में एक फरिश्ता हैं, जो उनकी मदद करते हैं जिनका कोई नहीं होता. बीकानेर नगर निगम के हेल्प सेंटर में कार्यरत नसीम ऐसे तो एक सामान्य कर्मचारी हैं. बावजूद इसके आज वो किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. उनकी नेकी और मानवता के प्रति सच्ची सेवा ने उन्हें आम लोगों का मसीहा बना दिया है. नसीम पिछले 24 सालों से जिले में लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर रहे हैं और वो भी मृतक के धार्मिक परंपराओं के अनुसार.
ऐसे शुरू हुआ सिलसिला : नसीम बताते हैं कि करीब 24 साल पहले वो हर रोज की तरह ही एक दिन कार्यालय जा रहे थे, तभी एक परिचित ने उनसे संपर्क किया और उन्हें बताया कि एक मुस्लिम व्यक्ति का शव पीबीएम अस्पताल की मॉर्चरी में लावारिस हालत में पड़ा है. कोई उस शव को लेने नहीं आ रहा है. ऐसे में उसे सुपुर्द-ए-खाक कैसे किया जाए. उसके बाद उन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर उस शव को इस्लामिक रीति-रिवाज से दफन किया और तभी से ये सिलसिला शुरू हो गया. नसीम बताते हैं कि उनके इस किए की इमाम मरहूम गुलाम अहमद फरीदी ने तारीफ की और उन्हें सलाह दी कि वो बदस्तूर इस नेकी को जारी रखें.
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1400 लावारिस शवों का किया अंतिम संस्कार - नसीम की मानें तो अब तक उन्होंने करीब 1400 से अधिक लावारिस शवों का अंतिम संस्कार किया है. इसको लेकर वो कहते हैं कि लावारिस हालत में मिले शवों की शिनाख्त के बाद वो उनके धार्मिक रीति से उनका अंतिम संस्कार या फिर उन्हें दफन करते हैं. उन्होंने आगे बताया कि इस सेवा कार्य में उनके साथ और भी कई लोग जुड़े हैं, जो बिना किसी धार्मिक भेदभाव के निरंतर सेवा कर रहे है.
अकेला चला था, लोग जुड़ते गए और कारवां बनता गया : नसीम कहते हैं कि शुरू-शुरू में कई तरह की दिक्कतें आईं, लेकिन धीरे-धीरे लोग नेकी के इस काम में जुड़ते गए. आज उनकी संस्था 'खिदमतगार खादिम सोसायटी' से लोग खुद-ब-खुद जुड़ रहे हैं, जिससे उनका संस्था रूपी कुनबा तेजी से बढ़ रहा है. मौजूदा समय में संस्था के पास दो फोर व्हीलर गाड़ियां भी हैं. इसके अलावा चार डीप बॉडी फ्रीजर व अन्य जरूरी चीजें भी मौजूद हैं. इतना ही नहीं आगे उन्होंने बताया कि अब एक शख्स उन्हें बिना राशि लिए निशुल्क कफन का कपड़ा मुहैया कराता है तो वहीं गाड़ी के तेल, सर्विस व अन्य खर्चे भी सामाजिक सहयोग से मिल जाते हैं.
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नहीं लेते निगम से मदद : नसीम कहते हैं कि लावारिस शवों के अंतिम संस्कार या फिर उसे दफनाने के लिए नगर निगम की ओर से राशि दी जाती है, लेकिन उन्होंने कभी भी निगम से एक रुपए भी नहीं लिया. वो कहते हैं कि हमारी संस्था में सहयोग करने वाले सभी धर्म के लोग हैं. यही कारण है कि खुद जिला प्रशासन के स्तर पर उनकी संस्था के कार्य को देखते हुए उन्हें सम्मानित किया जा चुका है.
कोरोना में भी जारी रहा सेवा का जज्बा : नसीम के साथी अब्दुल सलाम कहते हैं कि कोरोना जैसी आपदा में भी संस्था के बैनर तले शवों के अंतिम संस्कार का सिलसिला जारी रखा. उन्होंने बताया कि पीबीएम अस्पताल और जिले के अलग-अलग पुलिस थानों से भी लावारिस शवों की सूचना संस्था को दी जाती रही और वो उन शवों का अंतिम संस्कार करते रहे.