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राजस्थान : भिखारियों को रोजगार से जोड़ने का अभियान शुरू

जयपुर शहर में सड़कों पर नजर आने वाले भिखारियों का एक अभियान के तहत रेस्क्यू किया जा रहा है. प्रयास यह किया जा रहा है कि भिखारियों को रोजगार करने के लिए सक्षम बनाया जाए. ताकि वे भिक्षावृति छोड़कर आत्मनिर्भर बन सकें.

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Published : Sep 7, 2021, 8:07 PM IST

जयपुर : राजस्थान की राजधानी जयपुर की सड़कों पर अब आपको भीख मांगते भिखारी नजर नहीं आएंगे. जिन हाथों में कल तक कटोरा होता था, अब उन हाथों में जोरगार के लिए औजार दिये जाएंगे. प्रदेश की गहलोत सरकार (Ashok Gehlot Govt.) राज्य को भिक्षावृति मुक्त बनाने के लिए अभियान चला रही है.

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग, श्रम एवं कौशल विभाग और पुलिस विभाग मिलकर जयपुर शहर को भिक्षावृति से मुक्त (beggary free jaipur) बनाने के लिए अभियान चला रहे हैं. इस अभियान में चार पुलिस निरीक्षकों की देखरेख में 16 कांस्टेबलों के साथ चार टीमों का गठन किया गया है.

जानिये भिक्षावृति मुक्त जयपुर अभियान के बारे में...

भिक्षावृत्ति मुक्त जयपुर के इस अभियान (beggar free Jaipur campaign) का आगाज मंगलवार सुबह 10 बजे बड़ी चौपड़, रामबाग चौराहा, गोपालपुरा पुलिया और 200 फीट बाईपास से एक साथ किया गया.

टीम ने शहर के विभिन्न चौराहों, धार्मिक स्थलों, पर्यटन स्थलों, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और सार्वजनिक स्थानों पर पाए गए भिखारियों को रेस्क्यू किया और राजकीय अंबेडकर छात्रावास जालूपुरा और सार्थक मानव कुष्ठ आश्रम में पहुंचाया. अभियान की कामना संभाल रही इंस्पेक्टर ममता शार्दूल ने बताया कि इन सभी भिक्षुकों को पहले अभियान के जरिये एकत्रित किया जा रहा है, इसके बाद रोजगार करने के इच्छुक लोगों को प्रशिक्षण देकर समाज की मुख्यधारा में शामिल करने का प्रयास किया जाएगा.

पहले किया सर्वे
ममता शार्दुल ने बताया कि राज्य सरकार के निर्देश पर जयपुर शहर के अलग-अलग स्थानों पर भिक्षावृति में लिप्त लोगों का सर्वे किया गया था. सर्वे में लगभग 2500 भिखारियों को चिह्नित किया गया. इसमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे. सर्वे के दौरान भिक्षुकों से पूछा गया कि यदि उन्हें रोजगार मुहैया करा दिया जाए, तो क्या वे भिक्षावृति छोड़ देंगे. बच्चों से उनकी पढ़ने की इच्छा को लेकर सवाल किया गया था. ममता शार्दूल बताती हैं कि सर्वे में यह बात सामने आई कि बच्चों और महिलाओं समेत 80 फीसदी भिक्षुक बेहतर जीवन जीना चाहते हैं. वे मजबूरी में भिक्षावृति कर रहे हैं. यदि उन्हें पढ़ने और कमाने का अवसर मिले तो वे भीख मांगने का काम नहीं करना चाहते.

पढ़ें- बेरोजगारी vs नौकरी : विपक्ष के बेरोजगारी के मुद्दे पर CM का पलटवार...कहा- एक लाख सरकारी नौकरियां दीं...

बच्चों को शिक्षा से जोड़ा जाएगा
ममता बताती हैं कि रेस्क्यू अभियान के बाद भीख मांगने वाले बच्चों को भिक्षावृति से मुक्त कर शिक्षा कार्यक्रमों से जोड़ा जाएगा. दिव्यांग और बुजुर्ग भिखारियों को वृद्धाश्रम में रखा जाएगा. अन्य भिक्षुकों को श्रम कौशल योजना से जोड़कर रोजगार की ट्रेनिंग दी जाएगी. यह ट्रेनिंग 3 महीने की होगी. ट्रेनिंग के बाद इन्हें रोजगार से जोड़ा जाएगा.

पर्यटकों में जाता है गलत संदेश
गुलाबी नगरी जयपुर की खूबसूरती देखने हर साल लाखों की तादाद में देशी-विदेशी पर्यटक यहां आते हैं. शहर के प्रमुख चौराहों, धार्मिक स्थलों, ऐतिहासिक धरोहरों और सार्वजनिक स्थानों पर भीख मांगते लोगों-बच्चों-महिलाओं के कारण पर्यटक जयपुर की गलत तस्वीर साथ लेकर जाते हैं. अकेले जयपुर शहर में करीब 5 हजार बच्चे, महिलाएं और पुरुष भिक्षावृति में लिप्त हैं.

पिछले साल 1 हजार भिखारियों को किया था रेस्क्यू
पिछले साल भी इसी तरह का अभियान चलाया गया था. इसमें लगभग 1 हजार भिक्षुकों को रेस्क्यू किया गया था. इनमें से 100 से ज्यादा लोग अब रोजगार से जुड़े हैं. इसके अलावा कुछ दिव्यांग और वृद्ध विभिन्न सामाजिक संस्थाओं में हैं, जबकि लगभग 500 बच्चे शिक्षा से जुड़ गए हैं.

जयपुर : राजस्थान की राजधानी जयपुर की सड़कों पर अब आपको भीख मांगते भिखारी नजर नहीं आएंगे. जिन हाथों में कल तक कटोरा होता था, अब उन हाथों में जोरगार के लिए औजार दिये जाएंगे. प्रदेश की गहलोत सरकार (Ashok Gehlot Govt.) राज्य को भिक्षावृति मुक्त बनाने के लिए अभियान चला रही है.

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग, श्रम एवं कौशल विभाग और पुलिस विभाग मिलकर जयपुर शहर को भिक्षावृति से मुक्त (beggary free jaipur) बनाने के लिए अभियान चला रहे हैं. इस अभियान में चार पुलिस निरीक्षकों की देखरेख में 16 कांस्टेबलों के साथ चार टीमों का गठन किया गया है.

जानिये भिक्षावृति मुक्त जयपुर अभियान के बारे में...

भिक्षावृत्ति मुक्त जयपुर के इस अभियान (beggar free Jaipur campaign) का आगाज मंगलवार सुबह 10 बजे बड़ी चौपड़, रामबाग चौराहा, गोपालपुरा पुलिया और 200 फीट बाईपास से एक साथ किया गया.

टीम ने शहर के विभिन्न चौराहों, धार्मिक स्थलों, पर्यटन स्थलों, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और सार्वजनिक स्थानों पर पाए गए भिखारियों को रेस्क्यू किया और राजकीय अंबेडकर छात्रावास जालूपुरा और सार्थक मानव कुष्ठ आश्रम में पहुंचाया. अभियान की कामना संभाल रही इंस्पेक्टर ममता शार्दूल ने बताया कि इन सभी भिक्षुकों को पहले अभियान के जरिये एकत्रित किया जा रहा है, इसके बाद रोजगार करने के इच्छुक लोगों को प्रशिक्षण देकर समाज की मुख्यधारा में शामिल करने का प्रयास किया जाएगा.

पहले किया सर्वे
ममता शार्दुल ने बताया कि राज्य सरकार के निर्देश पर जयपुर शहर के अलग-अलग स्थानों पर भिक्षावृति में लिप्त लोगों का सर्वे किया गया था. सर्वे में लगभग 2500 भिखारियों को चिह्नित किया गया. इसमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे. सर्वे के दौरान भिक्षुकों से पूछा गया कि यदि उन्हें रोजगार मुहैया करा दिया जाए, तो क्या वे भिक्षावृति छोड़ देंगे. बच्चों से उनकी पढ़ने की इच्छा को लेकर सवाल किया गया था. ममता शार्दूल बताती हैं कि सर्वे में यह बात सामने आई कि बच्चों और महिलाओं समेत 80 फीसदी भिक्षुक बेहतर जीवन जीना चाहते हैं. वे मजबूरी में भिक्षावृति कर रहे हैं. यदि उन्हें पढ़ने और कमाने का अवसर मिले तो वे भीख मांगने का काम नहीं करना चाहते.

पढ़ें- बेरोजगारी vs नौकरी : विपक्ष के बेरोजगारी के मुद्दे पर CM का पलटवार...कहा- एक लाख सरकारी नौकरियां दीं...

बच्चों को शिक्षा से जोड़ा जाएगा
ममता बताती हैं कि रेस्क्यू अभियान के बाद भीख मांगने वाले बच्चों को भिक्षावृति से मुक्त कर शिक्षा कार्यक्रमों से जोड़ा जाएगा. दिव्यांग और बुजुर्ग भिखारियों को वृद्धाश्रम में रखा जाएगा. अन्य भिक्षुकों को श्रम कौशल योजना से जोड़कर रोजगार की ट्रेनिंग दी जाएगी. यह ट्रेनिंग 3 महीने की होगी. ट्रेनिंग के बाद इन्हें रोजगार से जोड़ा जाएगा.

पर्यटकों में जाता है गलत संदेश
गुलाबी नगरी जयपुर की खूबसूरती देखने हर साल लाखों की तादाद में देशी-विदेशी पर्यटक यहां आते हैं. शहर के प्रमुख चौराहों, धार्मिक स्थलों, ऐतिहासिक धरोहरों और सार्वजनिक स्थानों पर भीख मांगते लोगों-बच्चों-महिलाओं के कारण पर्यटक जयपुर की गलत तस्वीर साथ लेकर जाते हैं. अकेले जयपुर शहर में करीब 5 हजार बच्चे, महिलाएं और पुरुष भिक्षावृति में लिप्त हैं.

पिछले साल 1 हजार भिखारियों को किया था रेस्क्यू
पिछले साल भी इसी तरह का अभियान चलाया गया था. इसमें लगभग 1 हजार भिक्षुकों को रेस्क्यू किया गया था. इनमें से 100 से ज्यादा लोग अब रोजगार से जुड़े हैं. इसके अलावा कुछ दिव्यांग और वृद्ध विभिन्न सामाजिक संस्थाओं में हैं, जबकि लगभग 500 बच्चे शिक्षा से जुड़ गए हैं.

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