नई दिल्ली: एक सांसद के रूप में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की अयोग्यता के बाद, शनिवार को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है. इस याचिका में एक आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद सांसद या विधायकों की योग्यता स्वत: समाप्त होने के प्रावधानों को चुनौती दी गई है. सामाजिक कार्यकर्ता एवं वकील की ओर से दायर इस याचिका में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8(3) की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है. इसके तहत एक कानून निर्माता को अवैध बताते हुए स्वत: अयोग्यता का प्रावधान है.
यह याचिका वकील मुरलीधरन द्वारा दायर की गई है. याचिका में अदालत से कहा गया है कि धारा 8(3) के तहत कोई स्वत: अयोग्यता का प्रावधान नहीं है. अयोग्यता के मामलों में धारा 8(3) मनमाना और अवैध है. यह संविधान से परे है. यह याचिका वकील दीपक प्रकाश के माध्यम से दायर की गई है. इस याचिका में शीर्ष अदालत से मांग की गई है कि वह यह निर्देश दें कि आईपीसी की धारा 499 (जो मानहानि का अपराधीकरण करती है) या किसी अन्य अपराध जिसके तहत दो साल की अधिकतम सजा होने पर किसी भी सांसद या विधायक की मौजूदा सदस्यता स्वत: अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है.
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उन्होंने तर्क दिया कि यह एक निर्वाचित प्रतिनिधि की बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है. याचिका में यह भी कहा गया कि धारा 8(3) संविधान के अधिकार क्षेत्र से बाहर है क्योंकि यह संसद के निर्वाचित सदस्य या विधान सभा के सदस्य के बोलने की स्वतंत्रता को बाधित करता है. सांसदों या विधायकों को उनके संबंधित कर्तव्यों का स्वतंत्र रूप से निर्वहन करने में भी बाधा पहुंचाता है.
यह याचिका ऐसे समय में दायर की गई है जब राहुल गांधी को एक मामले में दोषी करार दिया गया है और इसके बाद उनकी सदस्यता स्वत: समाप्त हो गई है. याचिका में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि 1951 के अधिनियम के अध्याय 3 के तहत अयोग्यता पर विचार करते समय आरोपी की प्रकृति, गंभीरता, नैतिक और उसकी भूमिका जैसे तथ्यों पर गौर किया जाना चाहिए. इसमें कहा गया है कि 1951 के अधिनियम को निर्धारित करते समय विधायिका का इरादा स्पष्ट था कि एक गंभीर / जघन्य अपराध के लिए अदालतों द्वारा दोषी ठहराए जाने पर उन्हें अयोग्य घोषित किया जा सकता है.
(एएनआई)