हैदराबाद : पूरी मानवता कोरोना के खिलाफ युद्धरत है. दुनिया के 174 देशों में वैक्सीन की 125 करोड़ डोज दी जा चुकी हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि जब तक हरेक व्यक्ति को वैक्सीन नहीं दे दी जाती है, तब तक कोई सुरक्षित नहीं है. संगठन के अनुसार संपन्न देशों में गरीब देशों के मुकाबले 25 गुणा अधिक गति से वैक्सीन दी जा रही है. यह असमानता दुनिया के लिए आत्मघाती साबित हो सकती है.
पिछले साल अक्टूबर में भारत और द. अफ्रीका ने वैक्सीन को लेकर पेटेंट के नियमों में ढील देने की मांग की थी ताकि सभी को जल्द से जल्द सस्ती दर पर इसे उपलब्ध करवाई जा सके. लेकिन आज तक इस पर सहमति नहीं बन सकी. अभी अमेरिका इस पर तैयार हो गया है कि पेटेंट को लेकर राहत देने की जरूरत है. लेकिन दूसरे देश अभी भी इत-उत में लगे हैं. बहुत सारी गुत्थियों को सुलझाना बाकी है.
आबादी के लिहाज से भारत दुनिया के कई देशों की सम्मिलित आबादी के बराबर है. पूरी दुनिया में 60 फीसदी वैक्सीन का उत्पादन भारत करता है. लेकिन सरकार की अदूरदर्शिता की वजह से भारत आज वैक्सीन की कमियों से जूझ रहा है. 45 साल से ऊपर के लोगों को टीका दिलवाने का खर्च भारत सरकार उठा रही है. 18 साल से ऊपर के लोगों को टीका दिलवाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. इस वजह से अचानक की वैक्सीन की कमी हो गई है. एक महीने में करीब 10 से 11 करोड़ वैक्सीन की जरूरत है. अनुमान लगाया जा रहा है कि इस लेवल तक उत्पादन बढ़ाने में कम के कम एक या दो महीने का समय लग सकता है. इस बीच 12 राज्यों में कोरोना सुनामी बनकर कहर बरपा रहा है. विशेषज्ञों का आकलन है कि जून से पहले राहत नहीं मिल सकती है. इन सब परिस्थितियों के बीच सुप्रीम कोर्ट नई उम्मीद लेकर आया है.
आपको बता दें कि यदि वैक्सीन देने की वर्तमान गति जारी रही, तो 80 करोड़ लोगों को टीका दिलवाने में कम-से-कम आठ महीने का वक्त अवश्य लगेगा. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की वैक्सीन नीति को लोगों के जीने के अधिकार के साथ खिलवाड़ बताया है. कोर्ट ने सरकार को एक विस्तृत वैक्सीन नीति बनाने को कहा है.
आरबीआई के पूर्व गवर्नर सी रंगराजन ने सुझाव दिया है कि केंद्र को मुफ्त में वैक्सीन उपलब्ध करवाने पर पूरा ध्यान देना चाहिए, जबकि राज्यों को मेडिकल ढांचा और अस्पतालों की सुविधा बढ़ाने पर जोर देना चाहिए. अगर यह संभव हो पाता है, तो बहुत उचित है. दूसरे देशों में कोरोना टेस्टिंग की गति ज्यादा है. 50 फीसदी से भी अधिक. इसकी वजह से कोरोना पीड़ितों की पहचान सुनिश्चित की जा रही है. भारत में सिर्फ 20 फीसदी टेस्टिंग की जा रही है. इसकी वजह से कोरोना वायरस को बढ़ने का मौका मिल रहा है. ऑक्सीजन और वेंटिलेटर की अनुपलब्धता की वजह से हजारों देशवासी अकाल ही मौत के शिकार हो गए. बार-बार केंद्र से मदद की अपील करने के बाद भी जब सहयोग नहीं मिला, तो राज्यों का भी धीरज जबाव दे गया. ऑक्सीजन की सप्लाई को लेकर उन्होंने कोर्ट में अपील की. यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब तक सुप्रीम कोर्ट ने इनकी खिंचाई नहीं की, तब तक इनके कान पर जू नहीं रेंगा.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की उस दलील को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि ऑक्सीजन को आईसीयू और राज्य के अस्पतालों में उपलब्ध बेड के अनुपात के आधार पर बांटा गया है. अब तो कहा जा रहा है कि तीसरी लहर में बच्चों को सबसे अधिक खतरा है. सुप्रीम कोर्ट ने अभी से ही इन चुनौतियों से निपटने के लिए तैयारियों का आदेश दिया है. ऑक्सीजन बनाने वाली मशीन पर जीएसटी राहत देने से केंद्र ने साफ इनकार कर दिया है. कोर्ट को भी इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा. यह आश्चर्य है कि बार-बार कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ रहा है, अन्यथा केंद्र अपनी गलती नहीं मानता है.