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विधानसभा चुनाव 2021 : कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता पर क्यों उठे सवाल ?

पश्चिम बंगाल में इंडियन सेक्युलर फ्रंट के साथ गठबंधन के मुद्दे पर कांग्रेस घिर गई है. भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस के धर्मनिरपेक्षता पर सवाल उठाए हैं. और तो और, पार्टी के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने भी इसे सांप्रदायिकता पर पार्टी का दोहरा रवैया माना है. पार्टी की और अधिक आलोचना न हो, कांग्रेस ने कहा कि आईएसएफ और वाम दलों के बीच गठबंधन हुआ है, कांग्रेस अपनी सीट आईएसएफ को नहीं देगी. वैसे, कांग्रेस ने इससे पहले भी इस तरह की पार्टियों के साथ गठबंधन किए हैं. असम, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और केरल में इसके उदाहरण देखे जा सकते हैं.

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राहुल गांधी- आनंद शर्मा
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Published : Mar 3, 2021, 7:12 PM IST

Updated : Mar 3, 2021, 7:45 PM IST

हैदराबाद : पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की घोषणा होते ही कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने सांप्रदायिकता को लेकर पार्टी के नजरिए पर सवाल क्या उठाए, उनकी लानत-मलानत शुरू हो गई. किसी ने इसे पार्टी को कमजोर करने वाला बताया, तो किसी ने सहूलियत की राजनीति बताई. दरअसल, पूरा विवाद कांग्रेस और इंडियन सेक्युलर फ्रंट के बीच गठबंधन को लेकर खड़ा किया गया है. वैसे, कांग्रेस ने इससे पहले भी इस तरह की पार्टियों के साथ गठबंधन किए हैं. असम, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और केरल में इसके उदाहरण देखे जा सकते हैं.

आइए सबसे पहले ताजा विवाद पर नजर डालते हैं. पश्चिम बंगाल में इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) का गठन फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने किया है. सिद्दीकी मुख्य रूप से धार्मिक गुरु हैं. हालांकि, समय-समय पर उन्होंने किसी न किसी राजनीतिक दल का समर्थन किया है. कुछ महीने पहले तक वह तृणमूल कांग्रेस के समर्थक माने जाते थे. लेकिन पिछले कुछ दिनों से स्थितियां बदल गई हैं. अब उन्होंने बाकायदा राजनीतिक दल का गठन कर लिया है. उनके सुर बदले हुए हैं.

पार्टी की घोषणा करने के बाद गठबंधन को लेकर उनके बयान बदलते रहे. आखिरकार उन्होंने वाम दलों के साथ गठबंधन को लेकर ऐलान कर दिया. कांग्रेस को लेकर उन्होंने कहा कि बातचीत सफल नहीं हो सकी. उन्होंने कांग्रेस को अड़ियल बताया. इस बीच वरिष्ठ कांग्रेस नेता आनंद शर्मा का विवादास्पद बयान आ गया. शर्मा ने कहा कि कांग्रेस सांप्रदायिकता को लेकर दोहरे रवैया नहीं अपना सकती है. उसे आईएसएफ के साथ गठबंधन नहीं करना चाहिए.

उनके बयान के बाद कांग्रेस में अंदरुनी घमासान बाहर आ गया. पार्टी ने आनन-फानन में आईएसएफ के साथ किसी भी गठबंधन में जाने से इनकार कर दिया. पर, सवाल बहुतेरे हैं. कांग्रेस और लेफ्ट एक साथ चुनाव लड़ रही है. वाम दल अपनी सीटों में से आईएसएफ को सीटें दे रहे हैं. फिर कांग्रेस भी तो उसी गठबंधन का हिस्सा हुई. वह उससे अलग कैसे हो सकती है. क्या यह दोहरी राजनीति नहीं है.

आपको बता दें कि पीरजादा ने टीएमसी सांसद नुसरत जहां को लेकर विवादास्पद बयान दिया था. नुसरत जब एक मंदिर गई थीं, तो पीरजादा ने उन्हें सार्वजनिक तौर पर पिटाई करने की बात कही थी. उनके लिए अपशब्द तक कहे थे.

तृणमूल कांग्रेस के मंत्री फिरहाद हाकिम को वे 'गद्दार' बता चुके हैं. हाकिम ने भी एक मंदिर का दौरा किया था.

सिद्दीकी के और भी बयान हैं, जिसमें उनकी कट्टरता साफ झलकती है. ऐसे में कांग्रेस का उसी गठबंधन का हिस्सा होना चुनावी गणित के लिहाज से द्विधारी तलवार पर चलने जैसा हो सकता है. प.बंगाल में करीब 29 फीसदी मुस्लिम आबादी है. 100 से ज्यादा सीटों पर उनका मत बहुत अहम है. प. बंगाल में कुल 294 सीट है.

दूसरे राज्यों में भी कांग्रेस का इसी तरह की दूसरी पार्टियों के साथ गठबंधन रहा है.

आंध्र प्रदेश में कांग्रेस और मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन भी कभी साथ-साथ थे. 2012 में चारमीनार के निकट एक मंदिर के जीर्णोद्धार के मुद्दे पर यह गठबंधन टूट गया.

कांग्रेस का दूसरे राज्यों में ऐसी ही अन्य पार्टियों के साथ गठबंधन है. इस पर समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं. केरल में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के साथ कांग्रेस का लंबे समय से गठबंधन है. मुस्लिम लीग ने भारत विभाजन में भूमिका निभाई थी. बंटवारे के बाद भारत में रह गए उनके नेताओं ने अपनी पार्टी के साथ इंडियन शब्द जोड़ दिया. लेकिन उसकी विचारधारा पर हमेशा ही सवाल उठते रहे हैं. राहुल गांधी केरल के वायनाड से सांसद हैं. यहां पर भी मुस्लिम लीग की अच्छी पकड़ है.

केरल में यूडीएफ और वेलफेयर पार्टी के बीच गठबंधन रहा है. वेलफेयर और एसीडीपीआई का रिश्ता गहरा रहा है. एसडीपीआई को पीएफआई का राजनीतिक संगठन माना जाता है. कांग्रेस दावा करती है कि उसका एसडीपीआई से कोई लेना देना नहीं है.

ये भी पढ़ें : केरल में कई मंत्रियों के कटेंगे टिकट, सीट शेयरिंग पर घमासान

असम में कांग्रेस ने एआईयूडीएफ के साथ चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. एआईयूडीएफ के नेता बदरुद्दीन अजमल अपने कट्टर विचारों के लिए जाने जाते हैं. यह सवाल जब कांग्रेस से किया गया, तो पार्टी ने कहा कि मुद्दा यह नहीं है कि किसने किससे हाथ मिलाया है. मुद्दा भाजपा को बेदखल करने और उसकी सांप्रदायिक राजनीति को हराने का है. एआईयूडीएफ की राजनीति के केंद्र में है बांग्लादेश से आए मुस्लिम शरणार्थी. यहां पर 34 फीसदी मुस्लमान वोटर हैं. जब से इस पार्टी का गठन हुआ है, कांग्रेस लगातार कमजोर होती गई है. शायद इसे भांपते हुए ही पार्टी ने इस बार साथ जाने का निर्णय लिया है.

ऐसे में आनंद शर्मा से कई नेताओं से ये सवाल उठाए हैं कि आखिर उन्होंने इसी मौके पर पार्टी से सवाल क्यों पूछे. इससे पहले जब भी पार्टी ने इस तरह के दलों से गठबंधन बनाए, उन्होंने चुप्पी क्यों साधे रखी. कहीं ऐसा तो नहीं कि उन्हें पार्टी ने दरकिनार कर दिया है, और वे अपने लिए किसी और भूमिका की तलाश कर रहे हैं.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि हमें पता है कि आनंद शर्मा का बिग बॉस कौन है. और वे किसे खुश करना चाहते हैं. अगर मंशा साफ है तो उन्हें फोन कर वस्तुस्थिति साफ कर लेनी चाहिए थी. अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि हमारे गठबंधन का प्रमुख मकसद भाजपा की 'गुंडा' राजनीति और उसके धर्मिरपेक्षता के ढकोसले के खिलाफ एकजुट होकर मुकाबला करना है.

हैदराबाद : पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की घोषणा होते ही कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने सांप्रदायिकता को लेकर पार्टी के नजरिए पर सवाल क्या उठाए, उनकी लानत-मलानत शुरू हो गई. किसी ने इसे पार्टी को कमजोर करने वाला बताया, तो किसी ने सहूलियत की राजनीति बताई. दरअसल, पूरा विवाद कांग्रेस और इंडियन सेक्युलर फ्रंट के बीच गठबंधन को लेकर खड़ा किया गया है. वैसे, कांग्रेस ने इससे पहले भी इस तरह की पार्टियों के साथ गठबंधन किए हैं. असम, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और केरल में इसके उदाहरण देखे जा सकते हैं.

आइए सबसे पहले ताजा विवाद पर नजर डालते हैं. पश्चिम बंगाल में इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) का गठन फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने किया है. सिद्दीकी मुख्य रूप से धार्मिक गुरु हैं. हालांकि, समय-समय पर उन्होंने किसी न किसी राजनीतिक दल का समर्थन किया है. कुछ महीने पहले तक वह तृणमूल कांग्रेस के समर्थक माने जाते थे. लेकिन पिछले कुछ दिनों से स्थितियां बदल गई हैं. अब उन्होंने बाकायदा राजनीतिक दल का गठन कर लिया है. उनके सुर बदले हुए हैं.

पार्टी की घोषणा करने के बाद गठबंधन को लेकर उनके बयान बदलते रहे. आखिरकार उन्होंने वाम दलों के साथ गठबंधन को लेकर ऐलान कर दिया. कांग्रेस को लेकर उन्होंने कहा कि बातचीत सफल नहीं हो सकी. उन्होंने कांग्रेस को अड़ियल बताया. इस बीच वरिष्ठ कांग्रेस नेता आनंद शर्मा का विवादास्पद बयान आ गया. शर्मा ने कहा कि कांग्रेस सांप्रदायिकता को लेकर दोहरे रवैया नहीं अपना सकती है. उसे आईएसएफ के साथ गठबंधन नहीं करना चाहिए.

उनके बयान के बाद कांग्रेस में अंदरुनी घमासान बाहर आ गया. पार्टी ने आनन-फानन में आईएसएफ के साथ किसी भी गठबंधन में जाने से इनकार कर दिया. पर, सवाल बहुतेरे हैं. कांग्रेस और लेफ्ट एक साथ चुनाव लड़ रही है. वाम दल अपनी सीटों में से आईएसएफ को सीटें दे रहे हैं. फिर कांग्रेस भी तो उसी गठबंधन का हिस्सा हुई. वह उससे अलग कैसे हो सकती है. क्या यह दोहरी राजनीति नहीं है.

आपको बता दें कि पीरजादा ने टीएमसी सांसद नुसरत जहां को लेकर विवादास्पद बयान दिया था. नुसरत जब एक मंदिर गई थीं, तो पीरजादा ने उन्हें सार्वजनिक तौर पर पिटाई करने की बात कही थी. उनके लिए अपशब्द तक कहे थे.

तृणमूल कांग्रेस के मंत्री फिरहाद हाकिम को वे 'गद्दार' बता चुके हैं. हाकिम ने भी एक मंदिर का दौरा किया था.

सिद्दीकी के और भी बयान हैं, जिसमें उनकी कट्टरता साफ झलकती है. ऐसे में कांग्रेस का उसी गठबंधन का हिस्सा होना चुनावी गणित के लिहाज से द्विधारी तलवार पर चलने जैसा हो सकता है. प.बंगाल में करीब 29 फीसदी मुस्लिम आबादी है. 100 से ज्यादा सीटों पर उनका मत बहुत अहम है. प. बंगाल में कुल 294 सीट है.

दूसरे राज्यों में भी कांग्रेस का इसी तरह की दूसरी पार्टियों के साथ गठबंधन रहा है.

आंध्र प्रदेश में कांग्रेस और मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन भी कभी साथ-साथ थे. 2012 में चारमीनार के निकट एक मंदिर के जीर्णोद्धार के मुद्दे पर यह गठबंधन टूट गया.

कांग्रेस का दूसरे राज्यों में ऐसी ही अन्य पार्टियों के साथ गठबंधन है. इस पर समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं. केरल में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के साथ कांग्रेस का लंबे समय से गठबंधन है. मुस्लिम लीग ने भारत विभाजन में भूमिका निभाई थी. बंटवारे के बाद भारत में रह गए उनके नेताओं ने अपनी पार्टी के साथ इंडियन शब्द जोड़ दिया. लेकिन उसकी विचारधारा पर हमेशा ही सवाल उठते रहे हैं. राहुल गांधी केरल के वायनाड से सांसद हैं. यहां पर भी मुस्लिम लीग की अच्छी पकड़ है.

केरल में यूडीएफ और वेलफेयर पार्टी के बीच गठबंधन रहा है. वेलफेयर और एसीडीपीआई का रिश्ता गहरा रहा है. एसडीपीआई को पीएफआई का राजनीतिक संगठन माना जाता है. कांग्रेस दावा करती है कि उसका एसडीपीआई से कोई लेना देना नहीं है.

ये भी पढ़ें : केरल में कई मंत्रियों के कटेंगे टिकट, सीट शेयरिंग पर घमासान

असम में कांग्रेस ने एआईयूडीएफ के साथ चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. एआईयूडीएफ के नेता बदरुद्दीन अजमल अपने कट्टर विचारों के लिए जाने जाते हैं. यह सवाल जब कांग्रेस से किया गया, तो पार्टी ने कहा कि मुद्दा यह नहीं है कि किसने किससे हाथ मिलाया है. मुद्दा भाजपा को बेदखल करने और उसकी सांप्रदायिक राजनीति को हराने का है. एआईयूडीएफ की राजनीति के केंद्र में है बांग्लादेश से आए मुस्लिम शरणार्थी. यहां पर 34 फीसदी मुस्लमान वोटर हैं. जब से इस पार्टी का गठन हुआ है, कांग्रेस लगातार कमजोर होती गई है. शायद इसे भांपते हुए ही पार्टी ने इस बार साथ जाने का निर्णय लिया है.

ऐसे में आनंद शर्मा से कई नेताओं से ये सवाल उठाए हैं कि आखिर उन्होंने इसी मौके पर पार्टी से सवाल क्यों पूछे. इससे पहले जब भी पार्टी ने इस तरह के दलों से गठबंधन बनाए, उन्होंने चुप्पी क्यों साधे रखी. कहीं ऐसा तो नहीं कि उन्हें पार्टी ने दरकिनार कर दिया है, और वे अपने लिए किसी और भूमिका की तलाश कर रहे हैं.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि हमें पता है कि आनंद शर्मा का बिग बॉस कौन है. और वे किसे खुश करना चाहते हैं. अगर मंशा साफ है तो उन्हें फोन कर वस्तुस्थिति साफ कर लेनी चाहिए थी. अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि हमारे गठबंधन का प्रमुख मकसद भाजपा की 'गुंडा' राजनीति और उसके धर्मिरपेक्षता के ढकोसले के खिलाफ एकजुट होकर मुकाबला करना है.

Last Updated : Mar 3, 2021, 7:45 PM IST
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