जोधपुर : ऑनलाइन ठगी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. साथ ही लोगों में जागरूकता भी आ रही है. जिसके चलते अगर अब कोई ओटीपी नंबर मांगता है, तो ज्यादातर मामलों में लोग उसे अनसुना कर देते हैं. लेकिन ऑनलाइन ठग भी ठगी के नए तरीकों की खोज में लगे रहते हैं. बिना ओटीपी के भी आप ट्रांजेक्शन में ठगी का शिकार हो सकते हैं. देखिए यह रिपोर्ट...
शातिर ठग अब लोगों के क्रेडिट कार्ड या बैंक खातों में बिना ओटीपी नंबर मांगे ही सेंध लगा रहे हैं. इस काम में इन दिनों सर्वाधिक क्यूआर कोड का इस्तेमाल हो रहा है. ठग मैसेज के जरिए क्यूआर कोड का लिंक भेजते हैं और उसके बाद कॉल करते हैं कि आपको किस तरह क्यूआर कोड को स्कैन करने से फायदा होगा. या फिर यह राशि आपने इनाम में जीती है जो आपके खाते में ट्रांसफर हो जाएगी.
फोन करने वाला किसी तरह का ओटीपी नंबर नहीं मांगता. इससे लोग ठग के झांसे में आ भी जाते हैं. क्यूआर कोड के लिंक को स्कैन करते ही लोगों के खाते से तुरंत भुगतान हो जाता है और उनकी मेहनत की कमाई एक झटके में उड़ जाती है.
क्यूआर कोड से ठगी
जोधपुर शहर में बीते 1 सप्ताह में ऐसे 2 मामले सामने आए हैं, जिनमें क्यूआर कोड भेजकर खातों से रुपये निकाल लिए गए. देव नगर थाना क्षेत्र में एक महिला को केक का भुगतान करने के लिए क्यूआर कोड भेजा गया. जिससे उनके खाते से 98 हजार रुपये निकल गए.
रातानाड़ा थाना क्षेत्र में होटल रणबंका के एक व्यक्ति के खाते से 75000 रुपये इसी तरह निकाल लिए गए. हालांकि, पुलिस की साइबर एक्सपर्ट टीम इन मामलों की पड़ताल कर रही है. लेकिन जरूरत है ऑनलाइन ठगों के नए तरीकों को जानने की और उनसे सतर्क रहने की.
क्यूआर कोड से रहें सावधान
साइबर एक्सपर्ट प्रिया सांखला बताती हैं कि हर आदमी को इस बात को लेकर बिल्कुल जागरूक हो जाना चाहिए कि क्यूआर कोड से सिर्फ भुगतान होता है. क्यूआर कोड से कभी भी भुगतान प्राप्त नहीं किया जाता है. यानी कि कोड स्कैन करने वाले के खाते में कभी भी राशि जमा नहीं होती है.
प्रिया बताती हैं कि आम आदमी अबकी बार कोड से भुगतान करने लगा है. उसमें स्पष्ट लिखा आता है कि भुगतान हो रहा है. लेकिन इसके बावजूद लोग समझ नहीं पाते हैं कि यह सिर्फ पेमेंट करने के लिए एक माध्यम है. ऐसी स्थिति में जब भी क्यूआर कोड या उसका लिंक मिलता है तो समझ लेना चाहिए कि पैसा जाएगा, आएगा नहीं.
ऐसे मामलों में भी भुगतान रोका जा सकता है. अगर हमें तुरंत पता चल जाए कि इललीगल ट्रांजैक्शन हो गया है, तो सबसे पहले अपने बैंक की ब्रांच में संपर्क कर बताना चाहिए. शुरुआती 1 घंटे के अंदर बैंक इस डिजिटल ट्रांजैक्शन को फ्रीज कर सकता है. इसके बाद पुलिस में भी कंप्लेंट की जा सकती है. बैंक से संपर्क करने के बाद कस्टमर केयर पर जाकर भी इस तरह के ट्रांसफर जानकारी देकर हम उसे रुकवा सकते हैं.
क्यूआर स्कैन की ठगी से कैसे बचें
साइबर एक्सपर्ट प्रिया सांखला का कहना है कि ट्रांजेक्शन के बाद जो राशि दूसरे खाते में गई है, अगर वहां से विड्रोल नहीं हुई है तब तक बैंक उस ट्रांजैक्शन को रोक सकता है. कई बार छुट्टी के दिनों में इस तरह के ट्रांजेक्शन की राशि विड्रोल नहीं हो पाती है. ऐसे में बैंक आसानी से कार्यवाही भी कर सकता है.
दरअसल, क्यूआर कोड का जो लिंक प्राप्त होता है उसमें संबंधित व्यक्ति के खाते से जुड़ी पूरी जानकारी होती है. जो उसने ऑनलाइन कभी दर्ज की होती है. जहां से सायबर अपराधी ट्रेस कर लेते हैं. पूरी जानकारी मैच होने के साथ लिंक क्रिएट कर भेजा जाता है. जिससे लिंक के एक्टिवेट होते ही ट्रांजेक्शन हो जाता है.