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सिंधु जल आयोग की बैठक तय करेगा भारत-पाक के बीच बर्फ पिघली या नहीं - indus water commission

सिंधु जल आयोग की बैठक मंगलवार को है. अगर बातचीत सफल हुई, तो भारत और पाकिस्तान के बीच आगे भी दूसरे मुद्दों पर बातचीत संभव है. पाकिस्तान का दावा है कि उसने अपने नजरिए में मूलभूत बदलाव लाया है. उसने अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी को भी दरकिनार कर दिया है. यह बदलाव पाकिस्तान ने अपने हितों को ध्यान में रखकर लिया है, या फिर कुछ और, इसका पता आने वाले समय में ही लग पाएगा. एक विश्लेषण ईटीवी भारत के न्यूज एडीटर बिलाल भट्ट का.

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सिंधु जल समझौता (कॉन्सेप्ट फोटो)
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Published : Mar 21, 2021, 7:10 PM IST

भारत और पाकिस्तान के बीच बने सिंधु जल स्थायी आयोग की बैठक मंगलवार को प्रस्तावित है. जल बंटवारे और कानूनी वितरण पर विचार विमर्श होने की संभावना है. कश्मीर में चिनाब नदी पर बनने वाले बांध के निर्माण कार्य पर भी चर्चा हो सकती है. जल आयोग का गठन 1960 की संधि के आधार पर बना था.

इस संधि के मुताबिक साल में कम से कम एक बैठक होनी चाहिए. लेकिन दोनों देशों के बीच तनाव की वजह से कई बार बैठकें नहीं हुईं. पिछली बार 2018 में लाहौर में आयोग की बैठक हुई थी. अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के बाद भारत और पाक के बीच तनाव उत्पन्न हो गया था. सीमा पर फायरिंग की घटना की वजह से भी बातचीत टलती रही. पर, हाल ही में दोनों देशों के बीच बनी सहमति के बाद सीमा पर फायरिंग बंद हो गई है. उम्मीद है कि अब जल आयोग पर बातचीत शांतिपूर्वक तरीके से हो सकेगी.

सिंधु नदी के अलावा दूसरी नदियों के पानी के बंटवारे पर भी चर्चा होगी. इसमें उन नदियों का उल्लेख है, जिनका उदगम एक देश में है, जबकि बहाव दूसरे देशों की ओर. इस संधि के पहले 1948 में बने समझौते के आधार पर पानी का बंटवारा होता था.

सिंधु जल आयोग के तहत कुल छह नदियों के पानी के बंटवारे को लेकर उल्लेख किया गया है. ये हैं सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, सतलज और ब्यास. झेलम,चिनाब और सिंधु पर पाकिस्तान को अधिकार दिया गया है. तीनों नदियां का उद्गम स्थल पाकिस्तान में नहीं हैं. जाहिर है, ऐसे में इन नदियों पर भारत में बांध बनाए जाते हैं, तो पाकिस्तान प्रभावित होगा. संधि के मुताबिक भारत इन पर बांध नहीं बना सकता है.

इसी तरह से रावी, सतलज और ब्यास के पानी का उपयोग सिर्फ भारत कर सकता है. सिंधु का उदगम स्थल चीन का तिब्बत इलाका है. इसके बावजूद चीन को इस संधि का भागीदार नहीं बनाया गया है. संधि पर हस्ताक्षर करने वालों में विश्वबैंक भी शामिल है. विश्व बैंक की भूमिका मध्यस्थ जैसी है. संधि का उल्लंघन करने वाले किसी भी प्रोजेक्ट का समर्थन विश्व बैंक नहीं कर सकता है. दरअसल, विश्व बैंक ने ही दोनों देशों के बीच संधि करवाई थी.

सिंधु, चिनाब और झेलम पाकिस्तान की लाइफ लाइन मानी जाती है. वहां की खेती से होने वाली आमदनी में इन तीनों नदियों की अहम भूमिका है. चिनाब और झेलम जम्मू-कश्मीर से होकर नियंत्रण रेखा को पार कर पाकिस्तान में प्रवेश करती हैं.

पाकिस्तानी दल के प्रमुख होंगे सैयद मेहर अली शाह. भारत की ओर से प्रमुख होंगे पीके सक्सेना. मेट्रोलॉजिकल, सिंचाई और अन्य विभागों के प्रमुख भी इसमें शामिल होंगे. बागलिहार और पाकलदुल हाइड्रो प्रोजेक्ट के विशेषज्ञ भी उपस्थित होंगे. दोनों प्रोजेक्ट जम्मू में चिनाब नदी पर बनाए जा रहे हैं. डोडा और किश्तीवाड़ जिले के मिलन बिंदु पर यह प्रोजेक्ट है.

पाकिस्तान ने इन दोनों प्रोजेक्ट पर आपत्ति जताई थी. पाकिस्तानी दल ने प्रोजेक्ट साइट पर जाने की इजाजत मांगी थी. उनका एक प्रतिनिधिमंडल यहां पहुंचा भी था. विश्व बैंक के हस्तक्षेप के बाद प्रोजेक्ट पर फिर से काम शुरू हो चुका है.

ये भी पढ़ें : क्या है सिंधु जल संधि, यहां समझें

पाकिस्तान की आपत्ति प्रोजेक्ट की संख्या पर है. पाकिस्तानी नेतृत्व ने इस बाबत भारत से संपर्क साधा है.

कश्मीर के मुद्दे पर बातचीत को लेकर पहले इमरान और उसके बाद जनरल बाजवा ने उत्सुकता दिखाई. उसने अनुकूल माहौल बनाने पर जोर देने की बात कही.

पाक सेना प्रमुख ने वार्ता के लिए विगत काल के अनुभव को बाधा न बनने देने की अपील की है. पाकिस्तान के लिए यह बहुत बड़ा नीतिगत बदलाव है. इसने न ही 370 के पुनर्बहाली की मांग की और न ही संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव की चर्चा की. सीमा पर बनी सहमति के बाद ही बातचीत का माहौल बनने लगा है.

पाकिस्तान ने कश्मीर के अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी को साइड लाइऩ कर दिया. गिलानी ने दोनों देशों के बीच हुई सहमति को सिद्धान्तों का त्याग बताया था.

आपको बता दें कि इस पृष्ठभूमि में सिंधु जल आयोग पर बैठक होने जा रही है. झेलम नदी का उदगम स्थल द. कश्मीर के वेरीनाग में है.

पाकिस्तान चाहता है कि बातचीत से समस्या का हल निकले. उसने इच्छा जताई है. पाकिस्तान पर एफएटीएफ का जबरदस्त दबाव है. कश्मीर ही वह मुद्दा है, जिसने पाकिस्तान को कटघरे में खड़ा किया है. इससे ही पानी का मुद्दा भी जुड़ा है. लिहाजा, इमरान और बाजवा पानी समेत सभी विवादास्पद मुद्दों का समाधान चाहते हैं.

यह सब वैसे समय में हो रहा है, जब दुनिया एक महत्वपूर्ण बदलाव के दौर से गुजर रही है. एक तरफ भारत क्वाड के जरिए चीन और पाकिस्तान पर दबाव बना रहा है, वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान चीन के सबसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट बीआरआई का अहम किरदार है. चीन और रूस के बीच रिश्ते बेहद ही अच्छे हैं. अब यह देखना बाकी है कि सिंधु जल आयोग पर बैठक से दोनों देशों के बीच कड़वाहट कम होती है या नहीं. पाकिस्तान अपनी ओर से बहुत से बदलाओं को स्वीकार करने के लिए तैयार दिख रहा है. वह कश्मीर के प्रति अपने नजरिए में भी बदलाव लाने को तैयार है. वह अपने घरेलू मुद्दों को सुलझाना चाहता है, न कि खुद किसी विवाद का एक विषय बनना चाहता है.

भारत और पाकिस्तान के बीच बने सिंधु जल स्थायी आयोग की बैठक मंगलवार को प्रस्तावित है. जल बंटवारे और कानूनी वितरण पर विचार विमर्श होने की संभावना है. कश्मीर में चिनाब नदी पर बनने वाले बांध के निर्माण कार्य पर भी चर्चा हो सकती है. जल आयोग का गठन 1960 की संधि के आधार पर बना था.

इस संधि के मुताबिक साल में कम से कम एक बैठक होनी चाहिए. लेकिन दोनों देशों के बीच तनाव की वजह से कई बार बैठकें नहीं हुईं. पिछली बार 2018 में लाहौर में आयोग की बैठक हुई थी. अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के बाद भारत और पाक के बीच तनाव उत्पन्न हो गया था. सीमा पर फायरिंग की घटना की वजह से भी बातचीत टलती रही. पर, हाल ही में दोनों देशों के बीच बनी सहमति के बाद सीमा पर फायरिंग बंद हो गई है. उम्मीद है कि अब जल आयोग पर बातचीत शांतिपूर्वक तरीके से हो सकेगी.

सिंधु नदी के अलावा दूसरी नदियों के पानी के बंटवारे पर भी चर्चा होगी. इसमें उन नदियों का उल्लेख है, जिनका उदगम एक देश में है, जबकि बहाव दूसरे देशों की ओर. इस संधि के पहले 1948 में बने समझौते के आधार पर पानी का बंटवारा होता था.

सिंधु जल आयोग के तहत कुल छह नदियों के पानी के बंटवारे को लेकर उल्लेख किया गया है. ये हैं सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, सतलज और ब्यास. झेलम,चिनाब और सिंधु पर पाकिस्तान को अधिकार दिया गया है. तीनों नदियां का उद्गम स्थल पाकिस्तान में नहीं हैं. जाहिर है, ऐसे में इन नदियों पर भारत में बांध बनाए जाते हैं, तो पाकिस्तान प्रभावित होगा. संधि के मुताबिक भारत इन पर बांध नहीं बना सकता है.

इसी तरह से रावी, सतलज और ब्यास के पानी का उपयोग सिर्फ भारत कर सकता है. सिंधु का उदगम स्थल चीन का तिब्बत इलाका है. इसके बावजूद चीन को इस संधि का भागीदार नहीं बनाया गया है. संधि पर हस्ताक्षर करने वालों में विश्वबैंक भी शामिल है. विश्व बैंक की भूमिका मध्यस्थ जैसी है. संधि का उल्लंघन करने वाले किसी भी प्रोजेक्ट का समर्थन विश्व बैंक नहीं कर सकता है. दरअसल, विश्व बैंक ने ही दोनों देशों के बीच संधि करवाई थी.

सिंधु, चिनाब और झेलम पाकिस्तान की लाइफ लाइन मानी जाती है. वहां की खेती से होने वाली आमदनी में इन तीनों नदियों की अहम भूमिका है. चिनाब और झेलम जम्मू-कश्मीर से होकर नियंत्रण रेखा को पार कर पाकिस्तान में प्रवेश करती हैं.

पाकिस्तानी दल के प्रमुख होंगे सैयद मेहर अली शाह. भारत की ओर से प्रमुख होंगे पीके सक्सेना. मेट्रोलॉजिकल, सिंचाई और अन्य विभागों के प्रमुख भी इसमें शामिल होंगे. बागलिहार और पाकलदुल हाइड्रो प्रोजेक्ट के विशेषज्ञ भी उपस्थित होंगे. दोनों प्रोजेक्ट जम्मू में चिनाब नदी पर बनाए जा रहे हैं. डोडा और किश्तीवाड़ जिले के मिलन बिंदु पर यह प्रोजेक्ट है.

पाकिस्तान ने इन दोनों प्रोजेक्ट पर आपत्ति जताई थी. पाकिस्तानी दल ने प्रोजेक्ट साइट पर जाने की इजाजत मांगी थी. उनका एक प्रतिनिधिमंडल यहां पहुंचा भी था. विश्व बैंक के हस्तक्षेप के बाद प्रोजेक्ट पर फिर से काम शुरू हो चुका है.

ये भी पढ़ें : क्या है सिंधु जल संधि, यहां समझें

पाकिस्तान की आपत्ति प्रोजेक्ट की संख्या पर है. पाकिस्तानी नेतृत्व ने इस बाबत भारत से संपर्क साधा है.

कश्मीर के मुद्दे पर बातचीत को लेकर पहले इमरान और उसके बाद जनरल बाजवा ने उत्सुकता दिखाई. उसने अनुकूल माहौल बनाने पर जोर देने की बात कही.

पाक सेना प्रमुख ने वार्ता के लिए विगत काल के अनुभव को बाधा न बनने देने की अपील की है. पाकिस्तान के लिए यह बहुत बड़ा नीतिगत बदलाव है. इसने न ही 370 के पुनर्बहाली की मांग की और न ही संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव की चर्चा की. सीमा पर बनी सहमति के बाद ही बातचीत का माहौल बनने लगा है.

पाकिस्तान ने कश्मीर के अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी को साइड लाइऩ कर दिया. गिलानी ने दोनों देशों के बीच हुई सहमति को सिद्धान्तों का त्याग बताया था.

आपको बता दें कि इस पृष्ठभूमि में सिंधु जल आयोग पर बैठक होने जा रही है. झेलम नदी का उदगम स्थल द. कश्मीर के वेरीनाग में है.

पाकिस्तान चाहता है कि बातचीत से समस्या का हल निकले. उसने इच्छा जताई है. पाकिस्तान पर एफएटीएफ का जबरदस्त दबाव है. कश्मीर ही वह मुद्दा है, जिसने पाकिस्तान को कटघरे में खड़ा किया है. इससे ही पानी का मुद्दा भी जुड़ा है. लिहाजा, इमरान और बाजवा पानी समेत सभी विवादास्पद मुद्दों का समाधान चाहते हैं.

यह सब वैसे समय में हो रहा है, जब दुनिया एक महत्वपूर्ण बदलाव के दौर से गुजर रही है. एक तरफ भारत क्वाड के जरिए चीन और पाकिस्तान पर दबाव बना रहा है, वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान चीन के सबसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट बीआरआई का अहम किरदार है. चीन और रूस के बीच रिश्ते बेहद ही अच्छे हैं. अब यह देखना बाकी है कि सिंधु जल आयोग पर बैठक से दोनों देशों के बीच कड़वाहट कम होती है या नहीं. पाकिस्तान अपनी ओर से बहुत से बदलाओं को स्वीकार करने के लिए तैयार दिख रहा है. वह कश्मीर के प्रति अपने नजरिए में भी बदलाव लाने को तैयार है. वह अपने घरेलू मुद्दों को सुलझाना चाहता है, न कि खुद किसी विवाद का एक विषय बनना चाहता है.

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