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प्रतापगढ़ के इस गांव में 70 सालों से हजारों चमगादड़ों ने बना रखा है अपना आशियाना, जानिए पूरी कहानी

गांवों में लोग मुर्गे की बांग सुनकर जान जाते थे कि सबेरा हो गया है. लेकिन, प्रतापगढ़ में इसके उलट लोग चमगादड़ों की आवाज सुनकर उठ जाते हैं. यहां के एक गांव में चमगादड़ों ने एक घर में अपना आशियाना बना रखा है. आइए जानते हैं क्या है इसके पीछे पूरी कहानी.

प्रतापगढ़ के गोई गांव में चमगादड़ों बसेरा
प्रतापगढ़ के गोई गांव में चमगादड़ों बसेरा
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 18, 2023, 10:34 PM IST

Updated : Sep 18, 2023, 10:44 PM IST

प्रतापगढ़ के गोई गांव में चमगादड़ों बसेरा

प्रतापगढ़: आप बचपन से सुनते रहे होंगे कि गांव के लोग मुर्गे की बांग सुनकर सुबह उठ जाया करते थे. मुर्गा सबसे पहले उठकर बांग देता है, जो नेचुरल अलार्म माना जाता था, जिसकी वजह से लोग देर तक सोने से बच जाते थे और हमेशा वक्त के पाबंद होते थे. लेकिन, प्रतापगढ़ के पट्टी तहसील का एक गांव ऐसा है, जहां ग्रामीण मुर्गे की बंग से नहीं, बल्कि चमगादड़ के शोरगुल से सुबह होने का अनुमान लगाते हैं.

दरअसल, इस गांव का नाम है गोई. इस गांव में कई दशकों से चमगादड़ों का बसेरा है. यहां दस बीस नहीं, बल्कि हजारों की संख्या में चमगादड़ निवास करते हैं. यह चमगादड़ गांव के बाहर नहीं, बल्कि गांव के बीच में बने काशी प्रसाद पाण्डेय के घर के आंगन में रहते हैं. ग्रामीणों की मानें तो जब गांव में चमगादड़ों का बसेरा शुरू हुआ था तो इसे अशुभ मानकर ग्रामीण भागने में जुट गए थे. ग्रामीणों ने पटाखे छोड़े और टायर भी जलाया. लेकिन, चमगादड़ों को यहां से नहीं भगा पाए.

प्रतापगढ़ के गांव में चमगादड़ों का बसेरा
प्रतापगढ़ के गांव में चमगादड़ों का बसेरा

ग्रामीणों का कहना है कि इन प्रयासों से थोड़ा बहुत तो असर हुआ. लेकिन, कुछ देर के बाद यह चमगादड़ इस स्थान पर वापस आ जाते थे. लेकिन, अब गांव वालों की चमगादड़ के बीच रहने की आदत हो चुकी है. चमगादड़ों ने काशी प्रसाद पाण्डेय के आंगन में लगे पेड़ों को अपना आशियाना बना लिया है. काशी प्रसाद के आंगन में आम, महुआ, कटहल, बड़हल समेत अन्य पेड़ पौधे हैं. जिस पर लगभग 2 से 3 हजार चमगादड़ों का बसेरा है.

गांव से 500 मीटर पहले सुनाई देने लगती है आवाज

गोई गांव पहुंचने से 500 मीटर पहले से ही चमगादड़ों की आवाज सुनाई पढ़ने लगती है. इस राह से गुजरने वाला हर नया राहगीर अचंभित हो जाता है. रास्ते में रुककर चमगादड़ों की इस आवाज को जानने की कोशिश करता है और इतने बड़े-बड़े चमगादड़ों को देखकर डर जाता है. वहीं, दूसरी तरफ जब कोरोना के समय लोग अपने घरों में कैद थे तो लोगों का चमगादड़ के प्रति नजरिया बदल गया था. वाबजूद इसके इस गांव के लोग कोरोना जैसे महामारी में इन चमगादड़ों से बेखौफ होकर अपना जीवन जी रहे थे. इसी बीच कोरोना के बाद निपाह वायरस ने भी भारत में दस्तक दे दी है. लेकिन, ग्रामीणों पर इसका कोई असर नहीं पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है. हालांकि, ग्रामीणों का मानना है कि अब वन विभाग को इन चमगादड़ों से यहां से भगाने के लिए कोई ठोस कदम उठाना चाहिए.

कोरोना काल में चमगादड़ों को लेकर लोगों में थी दहशत

कोरोना का प्रकोप बढ़ने लगा तो यह भी चर्चा तेज हो गई कि संक्रमण चमगादड़ से फैल रहा है. इसको लेकर पहले तो गांव के लोग दहशत में आ गए थे. उस वक्त प्रशासनिक अधिकारी ने भी गोई गांव पहुंचकर निरीक्षण किया था. इसके अलावा लोगों को चमगादड़ों को भगाने की सलाह भी दी थी. लेकिन, ग्रामीणों ने ऐसा कोई प्रयास नहीं किया. आज भी काशी प्रसाद पाण्डेय के आंगन में चमगादड़ों ने अपना डेरा जमाया हुआ है.

काशी प्रसाद पाण्डेय ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कहा कि यह चमगादड़ तकरीबन 60-70 सालों से यहां रह रहे हैं. इनकी संख्या लगभग तीन हजार होगी. उनका कहना है कि चमगादड़ फसलों को नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं. लेकिन, बाग में आम, कटहल समेत अन्य फलों को बर्बाद कर देते हैं. चमगादड़ आम, कटहल, महुआ और बड़हल के पेड़ों पर रहते हैं. इनके शोरगुल से सोना मुश्किल हो गया है. काशी प्रसाद के बेटे संतोष पांडेय का कहना है कि चमगादड़ों से काफी गंदगी होती है, जो अब परेशानी का सबक बन चुका है. इसे वन विभाग को हटाने का प्रयास करना चाहिए.

रात में चमगादड़ों के शोरगुल से सोने में होती है दिक्कत

गांव के विजय कुमार का कहना है कि उनकी उम्र 30-32 साल है. तब से वो चमगादड़ों को इसी स्थान पर देख रहे हैं. हालांकि उन्हें चमगादड़ों से कोई समस्या नहीं है. काशी प्रसाद पांडेय के पड़ोसी जयप्रकाश पांडेय ने बताया कि शुरुआती दिनों में इन्हें भगाने के लिए बहुत प्रयास किया. पटाखे भी फोड़े. लेकिन, इसका कोई असर नहीं हुआ. यह थोड़ी देर के लिए भाग जाते थे और उसके बाद फिर आ जाते हैं. इनके शोरगुल से रात में सोने में भी काफी दिक्कत होती है. उनका मानना है कि वन विभाग को इस ओर ध्यान देना चाहिए. चमगादड़ जिन पेड़ों पर बैठते हैं, उसे खत्म कर दे रहे हैं.

पर्यावरणविद का कहना, पर्यावरण के लिए चमगादड़ बहुत जरूरी

पर्यावरणविद अजय क्रांतिकारी का कहना है कि चमगादड़ पर्यावरण और हमारी पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बहुत जरूरी हैं. इनके द्वारा बीजों का (परागण क्रिया) फैलाव होता है. साथ ही फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़े मकोड़े को अपना भोजन बनाते हैं, जिससे फसलें सुरक्षित रहती हैं. अजय क्रांतिकारी का मानना है कि चमगादड़ विलुप्त होते जा रहे हैं. चमगादड़ों के न रहने से मच्छरों का प्रकोप बढ़ गया है. उन्होंने बताया कि चमगादड़ों की ग्रंथियों में इको लोकेशन सिस्टम होता है, ये अपने आप जान जाते हैं कि कहां पर मच्छर अधिक हैं. चमगादड़ भी इस पर्यावरण के अंग हैं, इन्हें बचाना चाहिए.

यह भी पढ़ें: अगर आपके पास है इलेक्ट्रिक वाहन तो आप हैं सब्सिडी के हकदार, इस तरह से करें आवेदन

प्रतापगढ़ के गोई गांव में चमगादड़ों बसेरा

प्रतापगढ़: आप बचपन से सुनते रहे होंगे कि गांव के लोग मुर्गे की बांग सुनकर सुबह उठ जाया करते थे. मुर्गा सबसे पहले उठकर बांग देता है, जो नेचुरल अलार्म माना जाता था, जिसकी वजह से लोग देर तक सोने से बच जाते थे और हमेशा वक्त के पाबंद होते थे. लेकिन, प्रतापगढ़ के पट्टी तहसील का एक गांव ऐसा है, जहां ग्रामीण मुर्गे की बंग से नहीं, बल्कि चमगादड़ के शोरगुल से सुबह होने का अनुमान लगाते हैं.

दरअसल, इस गांव का नाम है गोई. इस गांव में कई दशकों से चमगादड़ों का बसेरा है. यहां दस बीस नहीं, बल्कि हजारों की संख्या में चमगादड़ निवास करते हैं. यह चमगादड़ गांव के बाहर नहीं, बल्कि गांव के बीच में बने काशी प्रसाद पाण्डेय के घर के आंगन में रहते हैं. ग्रामीणों की मानें तो जब गांव में चमगादड़ों का बसेरा शुरू हुआ था तो इसे अशुभ मानकर ग्रामीण भागने में जुट गए थे. ग्रामीणों ने पटाखे छोड़े और टायर भी जलाया. लेकिन, चमगादड़ों को यहां से नहीं भगा पाए.

प्रतापगढ़ के गांव में चमगादड़ों का बसेरा
प्रतापगढ़ के गांव में चमगादड़ों का बसेरा

ग्रामीणों का कहना है कि इन प्रयासों से थोड़ा बहुत तो असर हुआ. लेकिन, कुछ देर के बाद यह चमगादड़ इस स्थान पर वापस आ जाते थे. लेकिन, अब गांव वालों की चमगादड़ के बीच रहने की आदत हो चुकी है. चमगादड़ों ने काशी प्रसाद पाण्डेय के आंगन में लगे पेड़ों को अपना आशियाना बना लिया है. काशी प्रसाद के आंगन में आम, महुआ, कटहल, बड़हल समेत अन्य पेड़ पौधे हैं. जिस पर लगभग 2 से 3 हजार चमगादड़ों का बसेरा है.

गांव से 500 मीटर पहले सुनाई देने लगती है आवाज

गोई गांव पहुंचने से 500 मीटर पहले से ही चमगादड़ों की आवाज सुनाई पढ़ने लगती है. इस राह से गुजरने वाला हर नया राहगीर अचंभित हो जाता है. रास्ते में रुककर चमगादड़ों की इस आवाज को जानने की कोशिश करता है और इतने बड़े-बड़े चमगादड़ों को देखकर डर जाता है. वहीं, दूसरी तरफ जब कोरोना के समय लोग अपने घरों में कैद थे तो लोगों का चमगादड़ के प्रति नजरिया बदल गया था. वाबजूद इसके इस गांव के लोग कोरोना जैसे महामारी में इन चमगादड़ों से बेखौफ होकर अपना जीवन जी रहे थे. इसी बीच कोरोना के बाद निपाह वायरस ने भी भारत में दस्तक दे दी है. लेकिन, ग्रामीणों पर इसका कोई असर नहीं पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है. हालांकि, ग्रामीणों का मानना है कि अब वन विभाग को इन चमगादड़ों से यहां से भगाने के लिए कोई ठोस कदम उठाना चाहिए.

कोरोना काल में चमगादड़ों को लेकर लोगों में थी दहशत

कोरोना का प्रकोप बढ़ने लगा तो यह भी चर्चा तेज हो गई कि संक्रमण चमगादड़ से फैल रहा है. इसको लेकर पहले तो गांव के लोग दहशत में आ गए थे. उस वक्त प्रशासनिक अधिकारी ने भी गोई गांव पहुंचकर निरीक्षण किया था. इसके अलावा लोगों को चमगादड़ों को भगाने की सलाह भी दी थी. लेकिन, ग्रामीणों ने ऐसा कोई प्रयास नहीं किया. आज भी काशी प्रसाद पाण्डेय के आंगन में चमगादड़ों ने अपना डेरा जमाया हुआ है.

काशी प्रसाद पाण्डेय ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कहा कि यह चमगादड़ तकरीबन 60-70 सालों से यहां रह रहे हैं. इनकी संख्या लगभग तीन हजार होगी. उनका कहना है कि चमगादड़ फसलों को नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं. लेकिन, बाग में आम, कटहल समेत अन्य फलों को बर्बाद कर देते हैं. चमगादड़ आम, कटहल, महुआ और बड़हल के पेड़ों पर रहते हैं. इनके शोरगुल से सोना मुश्किल हो गया है. काशी प्रसाद के बेटे संतोष पांडेय का कहना है कि चमगादड़ों से काफी गंदगी होती है, जो अब परेशानी का सबक बन चुका है. इसे वन विभाग को हटाने का प्रयास करना चाहिए.

रात में चमगादड़ों के शोरगुल से सोने में होती है दिक्कत

गांव के विजय कुमार का कहना है कि उनकी उम्र 30-32 साल है. तब से वो चमगादड़ों को इसी स्थान पर देख रहे हैं. हालांकि उन्हें चमगादड़ों से कोई समस्या नहीं है. काशी प्रसाद पांडेय के पड़ोसी जयप्रकाश पांडेय ने बताया कि शुरुआती दिनों में इन्हें भगाने के लिए बहुत प्रयास किया. पटाखे भी फोड़े. लेकिन, इसका कोई असर नहीं हुआ. यह थोड़ी देर के लिए भाग जाते थे और उसके बाद फिर आ जाते हैं. इनके शोरगुल से रात में सोने में भी काफी दिक्कत होती है. उनका मानना है कि वन विभाग को इस ओर ध्यान देना चाहिए. चमगादड़ जिन पेड़ों पर बैठते हैं, उसे खत्म कर दे रहे हैं.

पर्यावरणविद का कहना, पर्यावरण के लिए चमगादड़ बहुत जरूरी

पर्यावरणविद अजय क्रांतिकारी का कहना है कि चमगादड़ पर्यावरण और हमारी पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बहुत जरूरी हैं. इनके द्वारा बीजों का (परागण क्रिया) फैलाव होता है. साथ ही फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़े मकोड़े को अपना भोजन बनाते हैं, जिससे फसलें सुरक्षित रहती हैं. अजय क्रांतिकारी का मानना है कि चमगादड़ विलुप्त होते जा रहे हैं. चमगादड़ों के न रहने से मच्छरों का प्रकोप बढ़ गया है. उन्होंने बताया कि चमगादड़ों की ग्रंथियों में इको लोकेशन सिस्टम होता है, ये अपने आप जान जाते हैं कि कहां पर मच्छर अधिक हैं. चमगादड़ भी इस पर्यावरण के अंग हैं, इन्हें बचाना चाहिए.

यह भी पढ़ें: अगर आपके पास है इलेक्ट्रिक वाहन तो आप हैं सब्सिडी के हकदार, इस तरह से करें आवेदन

Last Updated : Sep 18, 2023, 10:44 PM IST
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