सिलीगुड़ी : कोरोना संक्रमण से ठीक हो जाने वाले मरीजों में मानसिक रोग की समस्या सामने आ रही है. इसके चलते कई ऐसे मामले आ रहे हैं जिसमें कुछ लोगों ने अस्थायी रूप से अपनी स्मरण क्षमता खो दी है. ऐसे रोगियों के इलाज के लिए उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज और अस्पताल ने संस्थान के मनोरोग विभाग ने राज्य का पहला पोस्ट कोविड मनोरोग क्लीनिक शुरू करने का निर्णय लिया है. फिलहाल की इसकी शुरुआत 20 बेड से होगी.
कोरोना वायरस रोगियों के ट्रॉमा फैक्टर और मानसिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए, पश्चिम बंगाल में अपनी तरह का पहला कोविड साइकियाट्रिक क्लीनिक विकसित किया जा रहा है. हालांकि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान निरंतर प्रतिबंधों के कारण राज्य में कोरोना का दैनिक ग्राफ घटने के साथ ही रिकवरी रेट भी बढ़ने लगा है. वहीं डॉक्टरों का एक वर्ग अभी भी कोरोना को लेकर चिंतित है.
चिकित्सकों का मानना है कि उन्होंने देखा है कि कोरोना संक्रमण से ठीक हुए मरीजों में से लगभग एक तिहाई मानसिक समस्याओं से पीड़ित हैं. इसके अलावा इनमें कोविड-19 के कुछ लक्षण में आत्महत्या की प्रवृत्ति का विकास, नींद न आना, याददाश्त कम होना और हीन भावना आदि पाये जा रहे हैं.
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हालांकि महामारी की अवधि के दौरान रोजगार का नुकसान, वेतन में कटौती, घर में अलगाव, व्यवसाय में नुकसान अक्सर इन मानसिक समस्याओं का कारण बनता है.
डॉक्टरों का कहना है कि ऐसे मरीजों के लिए स्थिति वास्तव में जटिल हो जाती है. यहां पर उन्हें परामर्श, संगीत चिकित्सा, ध्यान और आधुनिक मानसिक उपचार के अन्य रूपों के माध्यम से ठीक किया जाएगा. राज्य का स्वास्थ्य विभाग पहले ही इस उद्देश्य के लिए 20 लाख रुपये खर्च कर चुका है.
इस बारे में संस्थान के मनोरोग विभाग के डॉ. सुशांत रॉय ने कहा कि कई रोगी ठीक होने के बाद कोविड-19 मनोरोग संबंधी समस्याओं का विकास कर रहे हैं. उन्होंने कहा किउनके लिए यह विशेष क्लीनिक खोला गया है. वहीं संस्थान के मनोरोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. निर्मल बेरा ने कहा कि इस तरह का क्लीनिक शुरू करने वाला उनका संस्थान राज्य का पहला संस्थान है.
वहीं विभाग के सहायक प्रोफेसर, डॉ. उत्तम मजूमदार ने कहा कि कोविड-19 से ठीक होने वाले रोगियों में से एक तिहाई मानसिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे रोगियों का इलाज करने के अलावा हम विभिन्न केस स्टडी के निष्कर्षों को जमा करते हैं और एक थीसिस रिपोर्ट तैयार करते हैं. इससे हमें भविष्य में ऐसे मरीजों का बेहतर इलाज करने में मदद मिलेगी.