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Bihar Politics: आंबेडकर जयंती के बहाने बिहार में राजनीति, दलितों के लिए उमड़ा दलों का प्यार

भले ही लोकसभा चुनाव में अभी वक्त है लेकिन तमाम पार्टियों ने तैयारी काफी पहले से शुरू कर दी है. बिहार की सभी राजनीतिक पार्टियों का पूरा फोकस जातीय समीकरण पर है और इसे दुरुस्त करने में लगी हैं. दलित वोटरों को साधने के लिए बिहार में डॉ भीमराव आंबेडकर की जयंती को सभी दलों की ओर से मनाया गया. दलितों के प्रति नेताओं के इस दुलार के क्या कारण है और दलितों का बिहार की राजनीति में कितना प्रभाव होता है जानने के लिए पढ़े पूरी खबर..

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Published : Apr 14, 2023, 9:25 PM IST

देखें वीडियो.

पटना: बिहार में चुनाव परिणाम को जातीय समीकरण हमेशा से प्रभावित करता रहा है. आज भी लोग यहां विकास और काम पर कम जाति फैक्टर पर ज्यादा वोट कास्ट करते हैं. यही कारण है कि सभी दल जातीय समीकरण पर अपनी नजर रखती है. जातीय समीकरण को सेट करने के लिए हर तरह के हथकंडे तक अपनाने से परहेज नहीं किए जाते हैं. यही कारण है कि बिहार में आंबेडकर जयंती के बहाने दलित वोटरों को रिझाने का प्रयास किया गया. इस कड़ी में बीजेपी. जेडीयू, आरजेडी, हम, आरएलजेडी सहित आरएलजेपी ने भी अपनी पूरी ताकत झोंक दी.

पढ़ें- Ambedkar Jayanti 2023: विजय सिन्हा ने माल्यार्पण कर कहा- अंबेडकर के आर्दर्शों पर चल रही BJP

बोले सीएम नीतीश- 'बीजेपी को वोट मत कीजिएगा': आंबेडकर जयंती के बहाने दलित वोट बैंक साधने की मुहिम में जेडीयू भी शामिल थी. सीएम नीतीश कुमार ने राजकीय समारोह के जरिए दलितों को अपने पाले में करने की कोशिश की. 13 अप्रैल को प्रदेश भर में जेडीयू ने कई कार्यक्रम आयोजित किए. वहीं 14 अप्रैल पंचायत स्तर तक में कार्यक्रम किए गए. पटना में डॉक्टर भीमराव आंबेडकर की जयंती समारोह में सीएम नीतीश कुमार और ललन सिंह पहुंचे थे. दोनों ने इस दौरान बीजेपी पर जमकर निशाना साधा.

बीजेपी को वोट मत दीजिए नहीं तो नाश कर देगी. हम लोग विकास करेंगे. सबके लिए विकास कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे. अटल बिहारी जी के नेतृत्व में हम 6 साल केंद्र में मंत्री रहे, हमको बहुत प्यार करते थे. लेकिन आजकल दो ही लोगों के नाम की चर्चा हो रही है. बिहार को विशेष राज्य का दर्जा भी नहीं दे रहे हैं. बिहार में जो लोग मेरे खिलाफ पहले बोलते नहीं थे, अब केंद्र से कुछ मिल जाए इसलिए खूब बोल रहे हैं.- नीतीश कुमार, सीएम, बिहार

सचेत नहीं हुए तो संविधान को बदलने की तैयारी हो रही है. संस्थाओं पर कब्जा करने की लगातार कोशिश हो रही है और भगवाकरण किया जा रहा है.- ललन सिंह, राष्ट्रीय अध्यक्ष, जेडीयू

''न्याय के साथ विकास बाबा साहब का सपना था जिसे नीतीश कुमार ने बिहार में जमीन पर उतारा है. शराबबंदी बाबा साहेब की सोच थी, उसे भी नीतीश कुमार ने ही लागू किया है. नीतीश कुमार बाबा साहेब के बताए रास्ते पर चल रहे हैं इसलिए जयंती तो सभी दल मनाते हैं लेकिन दावेदारी हम लोगों की अधिक है.''- संतोष निराला, पूर्व मंत्री, बिहार

आरजेडी ने भी किया याद : इधर बाबा साहेब की 132 वीं जयंती शुक्रवार को आरजेडी के प्रदेश कार्यालय में मनायी गयी. इस मौके पर जगदानंद सिंह, उदय नारायण चौधरी, शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर, कानून मंत्री शमीम अहमद, पार्टी प्रवक्ता प्रोफेसर नवल किशोर, प्रदेश प्रवक्ता चितरंजन गगन के अलावा कई अन्य नेता व कार्यकर्ताओं ने डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के चित्र पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए.

"जिस दिन स्वतंत्र भारत में संविधान लागू हुआ तब बाबा साहब ने कहा था कि मुझे अति खुशी है इस बात की है कि संविधान में भारत के हर नागरिक को बराबर दर्जा दिया है. हमें लगता है कि आज के दिन बाबा साहब के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि और प्रेम यह होनी चाहिए कि समाज में जहां अभी भिन्नता है, उन चीजों को खत्म करके संवैधानिक तरीके से सबको बराबर लाने का प्रयास किया जाए"- प्रोफेसर नवल किशोर, राष्ट्रीय प्रवक्ता, राजद

मांझी ने फिर उठायी प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण की मांग : इसके अलावा बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी नालंदा विधानसभा के मेहुदीनगर गांव पहुंचे. जहां उन्होंने संविधान निर्माता बाबा साहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के 132 वीं जयंती समारोह में शामिल हुए. इस दौरान उन्होंने बिना नाम लिए केन्द्र सरकार पर हमला किया.

''संविधान कितना भी खराब हो, लेकिन संविधान चलाने वाला सही रहेगा तो कोई काम खराब नहीं होगा. वहीं संविधान कितना भी अच्छा हो अगर उसे चलाने वाला सही नहीं होगा तो हालत खराब हो जायेगा. आज संविधान चलाने वाले रेलवे, जहाज, फाइनेंसियल कंपनी, खाद्यान का प्राइवेटाइजेशन कर रहे हैं, जिसमें आरक्षण नहीं है. जितने प्रतिशत आरक्षण की बात थी, उतने आरक्षण प्राइवेट में भी होते तभी हमलोगों के बच्चों को नौकरी मिलती. लेकिन संविधान चलाने वाले व्यक्ति के दिल में इतना नहीं है कि गरीब का बाल बच्चा नौकरी की चिंता हो.''- जीतन राम मांझी, पूर्व मुख्यमंत्री

बीजेपी ने की दलितों को साधने की कोशिश : 14 अप्रैल को आंबेडकर जयंती के बहाने दलितों को साधने की पुरजोर कोशिश की गई. बीजेपी ने तो अपनी स्थापना दिवस के मौके से ही रणनीति तैयार कर ली थी. 6 अप्रैल से 14 अप्रैल तक बीजेपी ने सामाजिक न्याय सप्ताह मनाया. कार्यक्रमों के साथ ही आंबेडकर की प्रतिमा की साफ-सफाई भी की गई. पटना में दलों के मुख्य कार्यालयों के साथ साथ प्रखंड स्तर पर भी जयंती का आयोजन किया गया था. बीजेपी कार्यालय में भी आंबेडकर जयंती मनाई गई. पार्टी कार्यालय में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी, राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी सहित तमाम बड़े नेता और कार्यकर्ता मौजूद रहे. इस दौरान बीजेपी ने कहा कि बाबा साहेब को कांग्रेस ने भारत रत्न से वंचित रखा. वहीं वैशाली में दलित नेता की हत्या को भी भूनाने की पूरी कोशिश की गई. वहीं राजकीय समारोह में आमंत्रण नहीं देने पर बीजेपी ने सीएम नीतीश पर निशाना साधा.

''कांग्रेस की ओर से बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर को कभी सम्मान नहीं दिया गया. भीमराव जब चुनाव लड़े थे तो हराने का काम कांग्रेस ने किया था. अपने कार्यकाल में कांग्रेस ने उन्हें भारत रत्न से वंचित रखा. राजद के कार्यकाल में दर्जन भर से ज्यादा नरसंहार कराए गए थे.''- सुशील मोदी, राज्यसभा सांसद, बीजेपी

"सीएम ने संविधान को भूलने का काम किया है. सबकुछ सदन में लोगों ने देख लिया है. राजकीय समारोह में आमंत्रित भी नहीं किया गया. नीतीश परिवारवाद से घिर गए हैं. हमारी कोशिश समाज के अंतिम पंक्ति के व्यक्ति तक का विकास करना है."- विजय सिन्हा, नेता प्रतिपक्ष

बिहार में दलित वोट बैंक की राजनीति: बिहार में दलितों को लेकर लंबे समय से सियासत होती रही है. देश में पहले दलित मुख्यमंत्री भोला पासवान शास्त्री बिहार में ही 1968 में बने थे. उसके बाद राम सुंदर दास भी दलित मुख्यमंत्री बने. बिहार में 243 विधानसभा के सीट हैं जिसमें से 39 सीट पर दलितों का कब्जा है. जदयू के 8, भाजपा के 10, हम पार्टी के तीन, वीआईपी के एक, राजद के आठ, कांग्रेस के 5, माले के तीन और सीपीआई के एक विधायक 2020 के चुनाव में चुने गए थे. हालांकि वीआईपी के विधायक बीजेपी में शामिल हो गए. विधानसभा में अभी दलित विधायकों की संख्या इस प्रकार से है.

50,000 से अधिक वोटर: बिहार में 40 लोकसभा सीट हैं और प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र में दलितों की भूमिका महत्वपूर्ण माना जाता है. 50,000 से अधिक वोटर हर लोकसभा क्षेत्र में हैं. 13 लोकसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां दलित वोटरों की संख्या 300000 से अधिक है और जीत हार में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. नीतीश कुमार दलित वोट बैंक की सियासत लंबे समय से करते रहे हैं. बिहार में दलितों की कुल 22 जातियां हैं. उसमें रामविलास पासवान दलितों के सबसे बड़े नेता माने जाते थे. लेकिन नीतीश कुमार ने दलित पॉलिटिक्स के तहत 21 जाति को महादलित घोषित कर दिया और पासवान को उससे अलग कर दिया.

इन सीटों पर दलितों का वर्चस्व: हालांकि बाद में रामविलास पासवान के साथ बेहतर संबंध होने के बाद पासवान को भी महादलित में शामिल कर लिया गया. नीतीश कुमार ने महादलित वर्ग से आने वाले उदय नारायण चौधरी को दो-दो बार बिहार विधानसभा का अध्यक्ष बनाया. अभी बिहार में 40 लोकसभा सीट में से एक सीट पर चिराग पासवान और 2 सीट पर पशुपति पारस गुट का कब्जा है. वहीं 3 सीट पर बीजेपी का कब्जा है. बिहार के औरंगाबाद, गया, नालंदा, नवादा, काराकाट, सासाराम, उजियारपुर, खगड़िया, हाजीपुर, समस्तीपुर, बक्सर, जहानाबाद और आरा लोकसभा सीट है जहां दलित वोटरों की संख्या काफी अधिक है और जीत हार में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं.

मिशन दलित में जुटी सभी पार्टियां: जेडीयू के साथ ही राजद ने भी आंबेडकर जयंती मनाई. इसके साथ ही उपेंद्र कुशवाहा से लेकर पशुपति पारस तक ने दलितों को अपने पाले में करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया. अब देखना दिलचस्प होगा कि डॉ आंबेडकर 2024 के लोकसभा चुनाव और बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की जंग में कितना काम आते हैं.

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पटना: बिहार में चुनाव परिणाम को जातीय समीकरण हमेशा से प्रभावित करता रहा है. आज भी लोग यहां विकास और काम पर कम जाति फैक्टर पर ज्यादा वोट कास्ट करते हैं. यही कारण है कि सभी दल जातीय समीकरण पर अपनी नजर रखती है. जातीय समीकरण को सेट करने के लिए हर तरह के हथकंडे तक अपनाने से परहेज नहीं किए जाते हैं. यही कारण है कि बिहार में आंबेडकर जयंती के बहाने दलित वोटरों को रिझाने का प्रयास किया गया. इस कड़ी में बीजेपी. जेडीयू, आरजेडी, हम, आरएलजेडी सहित आरएलजेपी ने भी अपनी पूरी ताकत झोंक दी.

पढ़ें- Ambedkar Jayanti 2023: विजय सिन्हा ने माल्यार्पण कर कहा- अंबेडकर के आर्दर्शों पर चल रही BJP

बोले सीएम नीतीश- 'बीजेपी को वोट मत कीजिएगा': आंबेडकर जयंती के बहाने दलित वोट बैंक साधने की मुहिम में जेडीयू भी शामिल थी. सीएम नीतीश कुमार ने राजकीय समारोह के जरिए दलितों को अपने पाले में करने की कोशिश की. 13 अप्रैल को प्रदेश भर में जेडीयू ने कई कार्यक्रम आयोजित किए. वहीं 14 अप्रैल पंचायत स्तर तक में कार्यक्रम किए गए. पटना में डॉक्टर भीमराव आंबेडकर की जयंती समारोह में सीएम नीतीश कुमार और ललन सिंह पहुंचे थे. दोनों ने इस दौरान बीजेपी पर जमकर निशाना साधा.

बीजेपी को वोट मत दीजिए नहीं तो नाश कर देगी. हम लोग विकास करेंगे. सबके लिए विकास कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे. अटल बिहारी जी के नेतृत्व में हम 6 साल केंद्र में मंत्री रहे, हमको बहुत प्यार करते थे. लेकिन आजकल दो ही लोगों के नाम की चर्चा हो रही है. बिहार को विशेष राज्य का दर्जा भी नहीं दे रहे हैं. बिहार में जो लोग मेरे खिलाफ पहले बोलते नहीं थे, अब केंद्र से कुछ मिल जाए इसलिए खूब बोल रहे हैं.- नीतीश कुमार, सीएम, बिहार

सचेत नहीं हुए तो संविधान को बदलने की तैयारी हो रही है. संस्थाओं पर कब्जा करने की लगातार कोशिश हो रही है और भगवाकरण किया जा रहा है.- ललन सिंह, राष्ट्रीय अध्यक्ष, जेडीयू

''न्याय के साथ विकास बाबा साहब का सपना था जिसे नीतीश कुमार ने बिहार में जमीन पर उतारा है. शराबबंदी बाबा साहेब की सोच थी, उसे भी नीतीश कुमार ने ही लागू किया है. नीतीश कुमार बाबा साहेब के बताए रास्ते पर चल रहे हैं इसलिए जयंती तो सभी दल मनाते हैं लेकिन दावेदारी हम लोगों की अधिक है.''- संतोष निराला, पूर्व मंत्री, बिहार

आरजेडी ने भी किया याद : इधर बाबा साहेब की 132 वीं जयंती शुक्रवार को आरजेडी के प्रदेश कार्यालय में मनायी गयी. इस मौके पर जगदानंद सिंह, उदय नारायण चौधरी, शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर, कानून मंत्री शमीम अहमद, पार्टी प्रवक्ता प्रोफेसर नवल किशोर, प्रदेश प्रवक्ता चितरंजन गगन के अलावा कई अन्य नेता व कार्यकर्ताओं ने डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के चित्र पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए.

"जिस दिन स्वतंत्र भारत में संविधान लागू हुआ तब बाबा साहब ने कहा था कि मुझे अति खुशी है इस बात की है कि संविधान में भारत के हर नागरिक को बराबर दर्जा दिया है. हमें लगता है कि आज के दिन बाबा साहब के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि और प्रेम यह होनी चाहिए कि समाज में जहां अभी भिन्नता है, उन चीजों को खत्म करके संवैधानिक तरीके से सबको बराबर लाने का प्रयास किया जाए"- प्रोफेसर नवल किशोर, राष्ट्रीय प्रवक्ता, राजद

मांझी ने फिर उठायी प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण की मांग : इसके अलावा बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी नालंदा विधानसभा के मेहुदीनगर गांव पहुंचे. जहां उन्होंने संविधान निर्माता बाबा साहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के 132 वीं जयंती समारोह में शामिल हुए. इस दौरान उन्होंने बिना नाम लिए केन्द्र सरकार पर हमला किया.

''संविधान कितना भी खराब हो, लेकिन संविधान चलाने वाला सही रहेगा तो कोई काम खराब नहीं होगा. वहीं संविधान कितना भी अच्छा हो अगर उसे चलाने वाला सही नहीं होगा तो हालत खराब हो जायेगा. आज संविधान चलाने वाले रेलवे, जहाज, फाइनेंसियल कंपनी, खाद्यान का प्राइवेटाइजेशन कर रहे हैं, जिसमें आरक्षण नहीं है. जितने प्रतिशत आरक्षण की बात थी, उतने आरक्षण प्राइवेट में भी होते तभी हमलोगों के बच्चों को नौकरी मिलती. लेकिन संविधान चलाने वाले व्यक्ति के दिल में इतना नहीं है कि गरीब का बाल बच्चा नौकरी की चिंता हो.''- जीतन राम मांझी, पूर्व मुख्यमंत्री

बीजेपी ने की दलितों को साधने की कोशिश : 14 अप्रैल को आंबेडकर जयंती के बहाने दलितों को साधने की पुरजोर कोशिश की गई. बीजेपी ने तो अपनी स्थापना दिवस के मौके से ही रणनीति तैयार कर ली थी. 6 अप्रैल से 14 अप्रैल तक बीजेपी ने सामाजिक न्याय सप्ताह मनाया. कार्यक्रमों के साथ ही आंबेडकर की प्रतिमा की साफ-सफाई भी की गई. पटना में दलों के मुख्य कार्यालयों के साथ साथ प्रखंड स्तर पर भी जयंती का आयोजन किया गया था. बीजेपी कार्यालय में भी आंबेडकर जयंती मनाई गई. पार्टी कार्यालय में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी, राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी सहित तमाम बड़े नेता और कार्यकर्ता मौजूद रहे. इस दौरान बीजेपी ने कहा कि बाबा साहेब को कांग्रेस ने भारत रत्न से वंचित रखा. वहीं वैशाली में दलित नेता की हत्या को भी भूनाने की पूरी कोशिश की गई. वहीं राजकीय समारोह में आमंत्रण नहीं देने पर बीजेपी ने सीएम नीतीश पर निशाना साधा.

''कांग्रेस की ओर से बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर को कभी सम्मान नहीं दिया गया. भीमराव जब चुनाव लड़े थे तो हराने का काम कांग्रेस ने किया था. अपने कार्यकाल में कांग्रेस ने उन्हें भारत रत्न से वंचित रखा. राजद के कार्यकाल में दर्जन भर से ज्यादा नरसंहार कराए गए थे.''- सुशील मोदी, राज्यसभा सांसद, बीजेपी

"सीएम ने संविधान को भूलने का काम किया है. सबकुछ सदन में लोगों ने देख लिया है. राजकीय समारोह में आमंत्रित भी नहीं किया गया. नीतीश परिवारवाद से घिर गए हैं. हमारी कोशिश समाज के अंतिम पंक्ति के व्यक्ति तक का विकास करना है."- विजय सिन्हा, नेता प्रतिपक्ष

बिहार में दलित वोट बैंक की राजनीति: बिहार में दलितों को लेकर लंबे समय से सियासत होती रही है. देश में पहले दलित मुख्यमंत्री भोला पासवान शास्त्री बिहार में ही 1968 में बने थे. उसके बाद राम सुंदर दास भी दलित मुख्यमंत्री बने. बिहार में 243 विधानसभा के सीट हैं जिसमें से 39 सीट पर दलितों का कब्जा है. जदयू के 8, भाजपा के 10, हम पार्टी के तीन, वीआईपी के एक, राजद के आठ, कांग्रेस के 5, माले के तीन और सीपीआई के एक विधायक 2020 के चुनाव में चुने गए थे. हालांकि वीआईपी के विधायक बीजेपी में शामिल हो गए. विधानसभा में अभी दलित विधायकों की संख्या इस प्रकार से है.

50,000 से अधिक वोटर: बिहार में 40 लोकसभा सीट हैं और प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र में दलितों की भूमिका महत्वपूर्ण माना जाता है. 50,000 से अधिक वोटर हर लोकसभा क्षेत्र में हैं. 13 लोकसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां दलित वोटरों की संख्या 300000 से अधिक है और जीत हार में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. नीतीश कुमार दलित वोट बैंक की सियासत लंबे समय से करते रहे हैं. बिहार में दलितों की कुल 22 जातियां हैं. उसमें रामविलास पासवान दलितों के सबसे बड़े नेता माने जाते थे. लेकिन नीतीश कुमार ने दलित पॉलिटिक्स के तहत 21 जाति को महादलित घोषित कर दिया और पासवान को उससे अलग कर दिया.

इन सीटों पर दलितों का वर्चस्व: हालांकि बाद में रामविलास पासवान के साथ बेहतर संबंध होने के बाद पासवान को भी महादलित में शामिल कर लिया गया. नीतीश कुमार ने महादलित वर्ग से आने वाले उदय नारायण चौधरी को दो-दो बार बिहार विधानसभा का अध्यक्ष बनाया. अभी बिहार में 40 लोकसभा सीट में से एक सीट पर चिराग पासवान और 2 सीट पर पशुपति पारस गुट का कब्जा है. वहीं 3 सीट पर बीजेपी का कब्जा है. बिहार के औरंगाबाद, गया, नालंदा, नवादा, काराकाट, सासाराम, उजियारपुर, खगड़िया, हाजीपुर, समस्तीपुर, बक्सर, जहानाबाद और आरा लोकसभा सीट है जहां दलित वोटरों की संख्या काफी अधिक है और जीत हार में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं.

मिशन दलित में जुटी सभी पार्टियां: जेडीयू के साथ ही राजद ने भी आंबेडकर जयंती मनाई. इसके साथ ही उपेंद्र कुशवाहा से लेकर पशुपति पारस तक ने दलितों को अपने पाले में करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया. अब देखना दिलचस्प होगा कि डॉ आंबेडकर 2024 के लोकसभा चुनाव और बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की जंग में कितना काम आते हैं.

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