रायपुर: राज्यपाल द्वारा आरक्षण बिल लौटाए जाने की खबर छत्तीसगढ़ में तेजी से फैली. इस पर भूपेश सरकार के कैबिनेट मंत्री रविंद्र चौबे ने प्रतिक्रिया दी है. लेकिन तब तक इस बिल के वापस किए जाने की कोई पुष्टि नहीं की गई. ना तो राजभवन की ओर से कोई जानकारी दी गई और ना ही सरकार ने इस बिल को वापस किए जाने को लेकर कोई सूचना दी है. जिसके बाद रविंद्र चौबे ने मीडिया में आई जानकारी के अनुसार आरक्षण बिल पर प्रतिक्रिया देने की बात कही है.
राजभवन के पीआरओ ने किया इनकार: राजभवन के पीआरओ ने बिल लौटाए जाने की बात से साफ इनकार कर दिया. उन्होंने ईटीवी भारत से टेलिफोनिक चर्चा के दौरान कहा कि "राजभवन की ओर से आरक्षण बिल लौटाए जाने की कोई सूचना जारी नहीं की गई है." वहीं सरकार की ओर से भी बिल को वापस लौटने को लेकर कोई बयान जारी नहीं किया गया है."
"बिल वापस होने की कोई सूचना नहीं मिली": आरक्षण बिल लौटाए जाने की खबर पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम का बयान सामने आया है. मोहन मरकाम ने भी बिल के वापस होने की सूचना से इनकार कर दिया है. मोहन मरकाम ने बताया कि "उन्हें अब तक राजभवन से बिल वापस होने की कोई सूचना नहीं मिली है."
"राज्यपाल को आरक्षण पर जल्द फैसला लेना चाहिए": इस बीच मरकाम ने राज्यपाल से बिल को लेकर अपनी स्थिति स्पष्ट करने की बात जरूर कही है. मोहन मरकाम ने कहा कि "आरक्षण बिल पर राज्यपाल के हस्ताक्षर ना होने की वजह से आज भर्तियां रुकी हुईं हैं, शिक्षा प्रभावित हो रही है. ऐसे में राज्यपाल को इस बिल को लेकर जल्द निर्णय लेना चाहिए. राज्यपाल या तो बिल पर हस्ताक्षर कर दें या इस बिल को वापस कर दें."
आरक्षण विधेयक के मसले पर बीजेपी ने रविंद्र चौबे का मांगा इस्तीफा: आरक्षण विधेयक के राजभवन से लौटाने के मसले पर वाले बयान पर बीजेपी ने कृषि मंत्री रविंद चौबे पर हमला बोला है. बीजेपी महामंत्री केदार कश्यप ने संसदीय कार्य मंत्री रविंद्र चौबे ने विधेयक लौटाए जाने की पुष्टि किए बिना जो बात कही है यह गलत है. यह मंत्री के रूप में उनका बेहद गैर जिम्मेदाराना व्यवहार है. क्या छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार मीडिया की खबरों पर चल रही है? क्या संसदीय कार्य मंत्री को इतने संवेदनशील विषय में जानकारी नहीं होना चाहिए? आखिर संसदीय कार्य मंत्री कर क्या रहे हैं? राज्य के संसदीय कार्य मंत्री को अपने विषय से जुड़ी जानकारी न होना साबित कर रहा है कि यह सरकार हवा में तैर रही है.
केदार कश्यप ने कहा कि" बिना किसी तथ्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राजभवन, भाजपा और केंद्र सरकार के विरुद्ध अनर्गल प्रलाप करने की जो परंपरा अपना रखी है. उसी का पालन उनके मंत्री कर रहे हैं. राज्यपाल ने आरक्षण विधेयक सरकार को वापस नहीं लौटाया और, संसदीय कार्य मंत्री ने बिना किसी पड़ताल के बयानबाजी करते हुए मंत्री की मर्यादा भंग कर दी. संसदीय इतिहास में ऐसा अजूबा पहली बार सामने आया है. ऐसा लगता है कि इस घटनाक्रम की पटकथा कांग्रेस के दफ्तर में लिखी गई है. संसदीय कार्य मंत्री रविन्द्र चौबे, राज्यपाल और छत्तीसगढ़ की जनता से अपने भ्रामक कृत्य के लिए क्षमा मांगें. इसके अलावा वह संसदीय कार्य मंत्री के पद से इस्तीफा दें"
केदार कश्यप ने कहा "संसदीय कार्य मंत्री ने मीडिया के सामने यह कहा कि, मीडिया के माध्यम से कल जानकारी लगी कि, राज्यपाल ने विधेयक लौटाया है. यानी कि 1 दिन बाद भी सच्चाई का पता नहीं लगाया गया. इसे पता किए बिना संसदीय कार्य मंत्री के रूप में उनकी टिप्पणी आना एक साजिश की तरफ इशारा करता है. आरक्षण पर कांग्रेस इसी प्रकार केवल जनता को बेवकूफ बनाने का काम कर रही है. रविंद्र चौबे जैसे जानकार व्यक्ति प्रदेश की इतनी बड़ी समस्या पर इस प्रकार का बयान देते हैं. तो बाकियों का क्या हाल होगा. राज्य सरकार के इस कृत्य ने पूरे प्रदेश को शर्मसार किया है."
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आम आदमी पार्टी ने भाजपा और कांग्रेस पर साधा निशाना: आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कोमल हुपेंडी ने कहा "भाजपा और कांग्रेस आरक्षण विधेयक को मजाक बनाकर रख दिए हैं. इसे लेकर छत्तीसगढ़ की जनता माफ नहीं करने वाली है. आज दोनों की वजह से छत्तीसगढ़ के युवाओं को रोजगार नहीं मिल पा रहा है. कर्मचारियों का प्रमोशन अटका हुआ है, काफी लोग परेशान है. आरक्षण मुद्दे पर सिर्फ और सिर्फ राजनीति की जा रही है. प्रदेश की जनता आज अच्छी शिक्षा, अच्छा स्वास्थ्य और रोजगार चाहती है. किसानों, महिलाओं के हक और अधिकार चाहती है. लेकिन आज आरक्षण के नाम पर छत्तीसगढ़ के लोगों को परेशान किया जा रहा है. दोनों ही पार्टियां इसमें शामिल है."
दिसंबर 2022 से लटका है विधेयक: छत्तीसगढ़ आरक्षण संशोधन विधेयक 2022 पूर्व राज्यपाल अनुसुइया उइके के समय से ही चर्चा में बना हुआ है. दिसंबर 2022 में विधानसभा से पारित होने के बाद यह बिल राज्यपाल के पास हस्ताक्षर के लिए भेजा गया था. इस विधेयक में राज्य सरकार ने जनसंख्या के आधार पर अनुसूचित जनजाति को 32 प्रतिशत, अनुसूचित जाति को 13 प्रतिशत तथा अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने का प्रावधान रखा है. इसी प्रकार आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 4 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है. उसके बाद से यह बिल राज्यपाल के पास लंबित था.
इस बीच राज्यपाल अनुसुइया उइके की जगह विश्व भूषण हरिचंदन को छत्तीसगढ़ का राज्यपाल बनाया गया. जिसके बाद संभावना जताई जा रही थी कि नए राज्यपाल जल्द इस बिल को लेकर निर्णय लेंगे. लेकिन अब तक इन राज्यपाल ने भी आरक्षण बिल 2022 को लेकर कोई निर्णय नहीं लिया है.