हैदराबाद : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज करीब 8 महीने बाद अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में थे. राजनीतिक हलकों में इस यात्रा ने गर्माहट ला दी है. पीएम मोदी ने अपने दौरे में एक अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर "रुद्राक्ष" का लोकार्पण किया. इसके अलावा करीब 1500 करोड़ रुपए की विभिन्न परियोजनाओं की सौगात भी दी. इन परियोजनाओं के जरिये उत्तर प्रदेश के वोटरों को लुभाने की कोशिश की गयी है. ये दौरा सिर्फ दौरा ही नहीं है, सभी जानते हैं की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई भी दौरा सिर्फ परियोजनाओं की शुरुआत या आधारशिला रखना मात्र नहीं होता है. इस दौरे के भी राजनितिक मायने है. इसे समझने के लिए हमें थोड़ा पीछे जाना होगा.
मिशन 2022 की है तैयारी
दरअसल नरेंद्र मोदी पहले राजनेता नहीं है जिन्होंने पूर्वांचल का रुख किया हो. इससे ठीक पहले सपा प्रमुख अखिलेश यादव तीन दिन तक पूर्वांचल में रहकर अपना राजनीतिक हित साधते नजर आए तो वहीं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी रविदास जयंती पर वाराणसी पहुंच गयीं. इन दोनों के दो दिन बाद ही भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा पूर्वांचल में डेरा डालकर पार्टी को मजबूती देने की कवायद करते नजर आए. AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी भी प्रधानमंत्री के दौरे से ठीक पहले उत्तर प्रदेश आकर सय्यद सालार मसूद गाज़ी की मज़ार पर चादरपोशी करके अपने राजनीतिक हितों की आधारशिला रखकर गए है. अखिलेश यादव ने साल 2022 के विधानसभा चुनाव के संचालन का फैसला आजमगढ़ से करने का फैसला किया है.
वहीं बीएसपी ने हाल ही में पूर्वांचल के मऊ के रहने वाले भीम राजभर को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर बड़ा दांव खेल दिया है. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने आजमगढ़ की अनाबिया को अपने वार्षिक कैलेंडर में शामिल कर मुसलमानों को साधने की पूरी कोशिश कर दी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो अब आये हैं, इन सबके बाद तो उनका आना भी लाज़मी था क्योंकि पार्टी की नैय्या के खेवनहार भी तो वो इकलौते हैं.
पूर्वांचल पर सबकी नज़र
खैर हम आपको बताते हैं कि आखिर पूर्वांचल ही क्यों सभी के विहार का डेस्टिनेशन बना हुआ है. क्योंकि यहां सबसे ज्यादा ओबीसी और अति पिछड़ी जातियां हैं. पूर्वांचल की 117 विधानसभा सीटों पर फतह के लिए अखिलेश यादव, मायावती और ओवैसी तक सभी की नजर इन वोटों पर है. अतीत पर नजर डाली जाए तो पूर्वांचल ने जिसका भी साथ दिया वह सत्ता का सुख भोगने में सफल रहा है. चाहे वह मुलायम सिंह यादव हों या मायावती हों या फिर अखिलेश यादव. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इसी पूर्वांचल की ताकत के दम पर ही सत्तासीन हैं.
राह अलग पर मंजिल एक
अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा को मात देने की रणनीति भी विपक्ष पूर्वांचल से ही तय कर रहा है. एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर के साथ छोटी-छोटी जातियों और छोटे दलों को मिलाकर इसी पूर्वांचल में जोर आजमाइश कर रहे हैं. दलित-मुस्लिम गठबंधन की कोशिश यहां अधूरी रह गयी क्योंकि मायावती ने एकला चलो का रास्ता अख्तियार कर लिया. इससे ओवैसी को भी मज़बूरन ओम प्रकाश राजभर का साथ लेना पड़ा लेकिन जैसा कि हर राजनीतिक पंडित जानता है की ओवैसी की दिलचस्पी रायता पीने से ज्यादा उसे फैलाने में रहती है. यहां भी वो इसी रस्ते पर चल पड़े हैं. यूपी में करीब 18 फीसदी मुस्लिम मतदाता है जो कि 140 से अधिक विधानसभा सीट पर असरदार हैं. इनमें से पूर्वांचल भी उनकी सियासी उम्मीद का एक 'रण क्षेत्र' है.
पीएम मोदी का मिशन
प्रधानमंत्री मोदी का इस वर्ष का वाराणसी का पहला दौरा है लेकिन कुल मिलकर ये उनका 27वां काशी दौरा था. उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले नरेंद्र मोदी की वाराणसी यात्रा का अपना महत्व है. एक तो इसलिए कि पंचायत चुनाव में पराजय के बाद बीजेपी ने जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में बंपर जीत हासिल की. भाजपा के प्रदर्शन ने योगी सरकार की ताकत को और बढ़ा दिया है. यूपी में 75 जिला पंचायत अध्यक्ष चुनावों में भाजपा समर्थित उम्मीदवारों ने 66 में जीत हासिल की. इनमें से 21 निर्विरोध निर्वाचित हुए हैं, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी का भी अहम योगदान है.
दूसरा ये कि कोरोना की दूसरी लहर में उत्तर प्रदेश के लोगों को तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ा. लोगों में काफी आक्रोश था, यहां तक कि लोग सरकार के विरुद्ध सड़कों पर निकल आये थे. जिससे भाजपाइयों के माथे पर शिकन पैदा हो गयी थीं. पार्टी की आंतरिक कलह भी किसी से छुपी नहीं है उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की उपेक्षा और निषाद की उन्हें उप मुख्यमंत्री बनाने की मांग ने भाजपा के अंदर चल रहे कलह को उजागर किया था. उसके बाद संघ की पहल पर सभी नेताओं का जमा होना और मौर्य के बेटे की शादी के बहाने एक जुटता का सन्देश देने की कोशिश करना. इससे ज़ाहिर है कि पार्टी के भीतर कुछ तो दाल में काला था. परेशानियां इतनी बलवती हो गयी थीं कि राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की सुगबुगाहट शुरू हो गयी.
इसके बाद यूपी सरकार ने तेजी से स्थिति को संभालना शुरू किया. मौर्य को मीडिया के सामने आकर मुख्यमंत्री योगी की तारीफ करनी पड़ी. योगी जी को भी दिल्ली तक भाग दौड़ करनी पड़ गयी और जब तक योगी जी और मोदी जी रूबरू नहीं हुए, तब तक अफवाहें रुकी नहीं. अनुप्रिया पटेल को कैबिनेट में शामिल कर प्रधानमंत्री पहले ही अपना दल को अपना बना चुके हैं.
सत्ता से दूरी सताती है
बीएसपी नौ साल से सत्ता से दूर है तो एसपी 4 साल से सत्ता की दूरी बर्दाश्त नहीं कर पा रही है. वहीं कांग्रेस तो करीब तीन दशक से सत्ता का सुख भोगने से वंचित है. भाजपा तो सत्ता सुख में डूबी हुई है तो हार कैसे मानेगी. वैसे भी जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनावों में भाजपा की सफलता को योगी का ही करिश्मा समझा जा रहा है जिसने योगी सरकार को और ताकतवर बना दिया है. प्रधानमंत्री ने भी योगी को यशस्वी, उर्जावान और कर्मठ मुख्यमंत्री बता कर जनता को साफ संदेश दे दिया है कि योगी को उनका पूरा समर्थन हासिल है.
कुल मिलाकर प्रधानमंत्री के इस दौरे ने काशी वासियों को तो तमाम सौगातें दे ही है लेकिन उससे ज्यादा यूपी विधानसभा चुनाव की तैयारी के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं को स्पष्ट सन्देश दिया है. भाजपा के उन नेताओं के लिए भी साफ़ सन्देश मिल गया होगा कि चुनाव तो योगी के चेहरे पर ही लड़ा जायेगा. यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर संघ और भाजपा नेतृत्व किसी तरह का जोखिम उठाने को तैयार नहीं है. इसलिए पार्टी रणनीतिकार लोगों के बीच यह संदेश नहीं जाने देना चाहते कि पार्टी में खींचतान या नेताओं के बीच किसी तरह का मनमुटाव है. प्रधानमंत्री के दौरे से ये मैसेज भी दे दिया गया है कि अब कुछ भी धुंध नहीं है. सब मिलकर चुनाव में ताक़त झोंके.
अब पीएम के दौरे के दौरे के बाद पार्टी को उम्मीद है, कि जनता में एक सकारात्मक संदेश जाएगा और कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचालन होगा. हो सकता है कि पीएम मोदी के इस दौरे के बाद विपक्ष को पृथक रणनीतियां बनाने पर विवश होना पड़े.