रांची : झारखंड में नक्सलवाद के खात्मे को लेकर सभी कदम उठाए जा रहे हैं. इसी क्रम में झारखंड पुलिस अब राज्य में बोली जाने वाली लोकल भाषाओं का प्रयोग कर आम लोगों को नक्सलियों के दोहरे चरित्र को सामने लाने का काम कर रही है.
साइ ऑप्श के जरिए झारखंड पुलिस ने नक्सल प्रभावित इलाकों में बोली जाने वाली भाषा का इस्तेमाल करते हुए पोस्टर और पम्पलेट बनवाए हैं और उसे गांव-गांव में बांटा जा रहा है.
क्यों पड़ी जरूरत
दरअसल, झारखंड में नक्सली संगठनों द्वारा इलाकावार बोली जाने वाली भाषा में संगठन का प्रचार- प्रसार किया जाता रहा है. नक्सली संगठन गांव-गांव में घूमकर ग्रामीणों और युवाओं को जोड़ने के लिए स्थानीय भाषा में ही लोगों से संपर्क करते हैं.
ऐसे में अब झारखंड पुलिस भी स्थानीय भाषाओं का इस्तेमाल अपने पोस्टर में कर रही है. झारखंड पुलिस के प्रवक्ता सह आईजी अभियान साकेत कुमार सिंह ने बताया कि माओवादियों से निपटने के लिए पुलिस अब स्थानीय भाषाओं का इस्तेमाल कर रही है.
माओवादियों के खिलाफ चलाए जा रहे साइ ऑप्श में भी स्थानीय भाषा में पोस्टर चस्पा किए जा रहे हैं. स्थानीय भाषा में ही ग्रामीणों को माओवाद से दूर रहने व माओवादियों के गतिविधि की जानकारी दी जा रही है.
हिंदी के बजाय स्थानीय भाषा अपना रहे भाकपा माओवादी
झारखंड में पूर्व में अधिकांश जगहों पर पोस्टरबाजी या संदेश पहुंचाने के लिए भाकपा माओवादी हिंदी का ही इस्तेमाल करते थे. अधिकांश जगहों पर हिंदी में ही पोस्टरबाजी करते थे, वहीं झारखंड में अधिकांश माओवादी पोलित ब्यूरो मेंबर, केंद्रीय कमेटी सदस्य बिहार व बंगाल के राज्यों से हैं.
ऐसे में स्थानीय कैडरों से उनका जुड़ाव नहीं हो पा रहा था, फरवरी 2019 के बाद झारखंड में माओवादी संगठन में उतरे छोटा नागपुर जोन के पतिराम मांझी उर्फ अनल को कोल्हान के इलाके में संगठन को मजबूत करने की जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन बाहरी माओवादी नेताओं का स्थानीय कैडरों के बीच लगातार विरोध भी होता रहा था.
ऐसे में स्थानीय नेताओं को आगे कर संगठन में भाषायी माध्यम का इस्तेमाल कर नए कैडरों को जोड़ने की रणनीति पर माओवादियों ने काम किया है.
लॉकडाउन के बाद चाईबासा समेत कई इलाकों में जनमिलिशिया के जरिए पार्टी संगठन से नए कैडरों को जोड़ा गया है. संथाली, नागपुरिया, सादरी भाषाओं में माओवादी पोस्टरबाजी कर अपने संदेश ग्रामीणों तक पहुंचा रहे थे.
पुलिस ने भी अपनायी स्थानीय भाषा
स्थानीय भाषा में ही ग्रामीणों को माओवाद से दूर रहने व माओवादियों के गतिविधि की जानकारी दी जा रही है. झारखंड पुलिस नक्सलियों के खिलाफ हथियार के साथ-साथ दिमाग की लड़ाई लड़ने में लगी है.
झारखंड पुलिस का मानना है कि अगर नक्सली संगठन के निचले स्तर के कैडरों को यह समझ में आ जाए कि बड़े नक्सली नेता अपनी कमाई के लिए उनके जीवन के साथ खेल रहे हैं, तो वे अपने आप मुख्य धारा में लौट आएंगे, जिसके बाद संगठन अपने आप ही कमजोर हो जाएगा.
क्या है पोस्टर में
इन प्रचार सामग्रियों में माओवादियों की ओर से ग्रामीणों पर की गई कार्रवाई और घटनाओं का विवरण है. माओवादियों से दूर रहने और सरकार का साथ देने की अपील है. वहीं कुछ सामग्रियों पर माओवादियों की तस्वीरों के साथ उन पर रखे इनाम की जानकारी लिखी है. इस प्रचार अभियान में पुलिस एहतिहात भी बरत रही है.
वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक पिछले अनुभव बताते हैं कि प्रभावित क्षेत्रों में जिन लोगों के घरों अथवा दुकानों पर सरकारी प्रचार सामग्री टंगी थी, उन्हें माओवादियों की ओर से प्रताड़ना झेलनी पड़ी. ऐसे में पुलिस गांव के सार्वजनिक स्थानों, थानों सरकारी भवनों और पेड़ों पर ऐसी प्रचार सामग्री का इस्तेमाल कर रही है.
लगातार मिल रहीं हैं सफलताएं
दिसंबर 2020 में झारखंड पुलिस को इनामी नक्सलियों के पोस्टर स्थानीय भाषाओं में जारी करने का फायदा भी मिला है.
झारखंड के डीजीपी एमवी राव के अनुसार पुलिस के पास नक्सलियों के मूवमेंट, बड़े नक्सल नेताओं के बारे में जानकारी आ रही है, जिसके आधार पर कार्रवाई भी की जा रही हैं. दिसंबर 2020 में पुलिस ने इन्हीं सूचनाओं के आधार पर कार्रवाई करते हुए तीन दुर्दांत नक्सलियों को मुठभेड़ में मार गिराया था.
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डीजीपी ने दी चेतावनी
वहीं डीजीपी एमवी राव ने नक्सल संगठनों को यह चेतावनी भी दी है कि वे पुलिस से सामने की लड़ाई में कभी भी पार नहीं पाएंगे. पुलिस के पास अत्याधुनिक हथियार हैं, मैनपावर है जिसका सामना नक्सली संगठन कहीं से भी नहीं कर सकते हैं, ऐसे में उनकी सलाह है कि नक्सली आत्मसमर्पण करें नहीं, तो फिर पुलिस का सामना करने के लिए तैयार रहें.
माओवादियों के घर जा रही पुलिस
दूसरी तरफ राज्य में सक्रिय 170 से अधिक उग्रवादियों पर वर्तमान में एक लाख से एक करोड़ तक का इनाम है. राज्य पुलिस मुख्यालय ने माओवादियों को मुख्यधारा में जोड़ने के लिए नई पहल की है, जिलों के एसपी स्तर के अधिकारी अब खुद फरार इनामी उग्रवादियों के घर जाते हैं.
उग्रवादियों के घर जाकर पुलिस उग्रवादियों के परिजनों को बताते हैं कि वह अपने परिवार के माओवादी सदस्य को सरेंडर कराएं, बदले में माओवादी को इनाम की पूरी राशि दी जाएगी.
इसके साथ ही बच्चों को मुफ्त शिक्षा, जमीन, पूर्व के लंबित केस को जल्द से जल्द निपटाने, ओपन जेल में सपरिवार रहने की सुविधा समेत कई पहलुओं की जानकारी दी जा रही है.
झारखंड सरकार के आत्मसमर्पण नीति को भी लोकल भाषाओं में ग्रामीणों के बीच बताया और समझाया जा रहा है. झारखंड पुलिस अबतक इनामी उग्रवादी मिसिर बेसरा, रवींद्र गंझू, महाराज प्रमाणिक, अमित मुंडा समेत कई फरार इनामी उग्रवादियों के घर जाकर दबिश दे चुकी है. साथ ही परिवार के सदस्यों से मिलकर उग्रवादियों को सरेंडर करने का निवेदन कर चुकी है.