कुल्लू: एक सप्ताह तक चलने वाले अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा (International Kullu Dussehra) का आज से आगाज हो गया है. अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में भाग लेने के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां ढालपुर के रथ मैदान पहुंचे. वहीं, हजारों की भीड़ के बीच में भगवान रघुनाथ के दर्शन के लिए मंच से भी नीचे उतरे. इस दौरान सुरक्षाकर्मियों को भी भीड़ को व्यवस्थित करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हजारों की भीड़ के बीच उतर गए और उन्होंने भगवान रघुनाथ का भी आशीर्वाद ग्रहण किया.
इस दौरान भगवान रघुनाथ के आशीर्वाद के तौर पर उनकी टोपी में पवित्र पगड़ी भी बांधी गई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुरेश कश्यप, केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर अटल सदन के बाहर बने मंच से ही भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा का नजारा देख रहे थे. थोड़ी देर बाद ही पीएम मोदी मंच से नीचे उतरे और सुरक्षाकर्मियों के साथ में भगवान रघुनाथ के रथ की ओर निकल गए. (PM Narendra Modi in international Kullu Dussehra)
पीएम मोदी को मैदान की ओर आता देख भीड़ भी उनकी ओर मुड़ गई और सभी लोग यह नजारा अपने मोबाइल में कैद करने में जुट गए. वहीं,प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भगवान रघुनाथ के रथ के पास जाकर जहां भगवान रघुनाथ के दर्शन किए. वहीं, उन्होंने भगवान के रथ के बारे में भी भगवान रघुनाथ के छड़ीबरदार महेश्वर सिंह से जानकारी ली. इस दौरान उन्होंने रथ के साथ खड़े देवी देवताओं का भी आशीर्वाद लिया और भगवान रघुनाथ के कारदार दानवेन्द्र सिंह के साथ हुई दशहरा उत्सव को लेकर विशेष रूप से चर्चा की. (PM Modi in Himachal)
भगवान रघुनाथ के दर्शन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वापस मंच की ओर आसीन हो गए. अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव के पहले दिन रथयात्रा में जहां हजारों लोग भगवान रघुनाथ का आशीर्वाद लेने के लिए ढालपुर पहुंचे. वहीं, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देखने के लिए भी प्रदेश के विभिन्न इलाकों से भीड़ उमड़ी रही. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के द्वारा जहां कुल्लू की टोपी और शॉल देकर सम्मानित किया गया. वहीं, इस दौरान पीएम मोदी को राम दरबार भी विशेष रूप से भेंट किया गया. इसके बाद मंच के चारों ओर से उन्होंने स्थानीय जनता के समक्ष खड़े होकर हाथ हिलाकर उनका अभिवादन भी स्वीकार किया और हजारों की भीड़ भी मोबाइल में इस दृश्य को कैद करने में जुटी रही.
उत्सव से पहले देवी हिडिंबा देती हैं विशेष संकेत: सप्ताह भर चलने वाला ये उत्सव इसलिए अनूठा है क्योंकि जब देश के बाकी हिस्सों में दशहरा उत्सव समाप्त हो जाता है तब इसका आयोजन किया जाता है. कहा जाता है कि इस अद्भुत पर्व में स्वर्ग से धरती पर देवी-देवता आते हैं और लोगों की उत्सव को लेकर अटूट आस्था जुड़ी हुई है. देवी देवताओं के महाकुंभ के नाम से मशहूर दशहरे का आगाज बीज पूजा और देवी हिडिंबा, बिजली महादेव और माता भेखली का इशारा मिलने के बाद ही होता है. उसके बाद भगवान रघुनाथ जी की पालकी निकाली जाती है. भगवान रघुनाथ की पालकी और रथयात्रा निकलने के दौरान यहां पुलिस नहीं बल्कि उनके आगे चलने वाले देवता (धूमल नाग) ट्रैफिक का नियंत्रण करते हैं. कुल्लू दशहरा का वास्तविक नाम विजयादशमी से जोड़ा जाता है. (importance of Kullu Dussehra festival )
कैसे हुई शुरुआत: यहां इस पर्व को मनाने की परंपरा राजा जगत सिंह के राज में 1637 से शुरू हुई थी. मान्यता है कि राजा जगत सिंह के शासनकाल में मणिकर्ण घाटी के टिप्परी गांव में एक गरीब ब्राह्मण दुर्गादत्त रहता था. उस गरीब ब्राह्मण ने राजा जगत सिंह की किसी गलतफहमी के कारण आत्मदाह कर लिया था. गरीब ब्राह्मण के इस आत्मदाह का दोष राजा जगत सिंह को लगा.
इससे राजा जगत सिंह को भारी ग्लानि हुई और इस दोष के कारण राजा को एक असाध्य रोग भी हो गया था. असाध्य रोग से ग्रसित राजा जगत सिंह को झीड़ी के एक पयोहारी बाबा किशन दास ने सलाह दी कि वह अयोध्या के त्रेतानाथ मंदिर से भगवान राम चंद्र, माता सीता और रामभक्त हनुमान की मूर्ति लाएं. इन मूर्तियों को कुल्लू के मंदिर में स्थापित करके अपना राज-पाठ भगवान रघुनाथ को सौंप दें तो उन्हें ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति मिल जाएगी.
अयोध्या से चुराकर लानी पड़ी थी मूर्तियां: इसके बाद राजा जगत सिंह ने श्री रघुनाथ जी की प्रतिमा लाने के लिए बाबा किशनदास के चेले दामोदर दास को अयोध्या भेजा था. बताया जाता है कि बड़े जतन से जब मूर्ति को चुराकर हरिद्वार पहुंचे तो वहां उन्हें पकड़ लिया गया. उस समय ऐसा करिश्मा हुआ कि जब आयोध्या के पंडित मूर्ति को वापस ले जाने लगे तो वह इतनी भारी हो गई कि कइयों के उठाने से नहीं उठी और जब यहां के पंडित दामोदर ने उठाया तो मूर्ति फूल के समान हल्की हो गई. ऐसे में पूरे प्रकरण को स्वयं भगवान रघुनाथ की लीला जानकार अयोध्या वालों ने मूर्ति को कुल्लू लाने दिया. कहते हैं कि इन मूर्तियों के दर्शन के बाद राजा का रोग खत्म हो गया था. स्वस्थ होने के बाद राजा ने अपना जीवन और राज्य भगवान को समर्पित कर दिया और इस तरह से यहां दशहरे की शुरुआत हुई.
देवी-देवताओं के लिए रंगबिरंगी पालकियां: दशहरा उत्सव के दौरान यहां के रहवासियों की रंग-बिरंगी पौशाके देखते ही बनती है. या यूं कहे की उत्सव में चार चांद लगा देती हैं. इन लोगों के हाथ में दांत की बनी गोल तुरही होती है और कुछ नगाड़ों को पीटते चलते हैं. बचे हुए लोग जब साथ में नाचते गाते हुए इस मंडली के साथ होते हैं. पहाड़ के विभिन्न रास्तों से घाटी में आते हुए देवताओं के इस अनुष्ठान को देख लगता है कि सभी देवी-देवता स्वर्ग का द्वार खोल कर धरती पर आनंदोत्सव मनाने आ रहे हैं. इस दौरान रंगबिरंगी पालकियों में सभी देवी देवताओं की मूर्तियों को रखा जाता है और यात्रा निकाली जाती है. उत्सव के छठे दिन सभी देवी-देवता इकट्ठे आ कर मिलते हैं जिसे 'मोहल्ला' कहते हैं. रघुनाथ जी के इस पड़ाव पर उनके आसपास अनगिनत रंगबिरंगी पालकियों का दृश्य बहुत ही अनूठा लेकिन लुभावना होता है और सारी रात लोगों का नाचगाना चलता है.
रथ में रघुनाथ जी की प्रतिमा: दशहरे के दौरान एक रथ यात्रा भी निकाली जाती है. रथ में रघुनाथ जी (lord raghunath in kullu dussehra) की तीन इंच की प्रतिमा को उससे भी छोटी सीता तथा हिडिंबा को बड़ी सुंदरता से सजा कर रखा जाता है. पहाड़ी से माता भेखली का आदेश मिलते ही रथ यात्रा शुरू होती है. रस्सी की सहायता से रथ को इस जगह से दूसरी जगह ले जाया जाता है, जहां यह रथ छह दिन तक ठहरता है. राज परिवार के सभी पुरुष सदस्य राजमहल से दशहरा मैदान की ओर धूम-धाम से रवाना होते हैं.
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