हैदराबाद: श्री रामानुज की 1000वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में तेलंगाना के मुंचिनताल में चीना जीयर आश्रम समारोह के लिए पूरी तरह तैयार है. 2 फरवरी से 14 फरवरी तक आयोजित कार्यक्रम के दौरान 5 फरवरी को प्रधानमंत्री मोदी स्टैच्यू ऑफ इक्वलिटी का उद्घाटन करेंगे. रामानुज की प्रतिमा 216 फीट लंबी है. प्रधानमंत्री कार्यालय ने पीएम के कार्यक्रम की पुष्टि की है. मोदी 5 फरवरी को दिन में साढ़े तीन बजे आश्रम पहुंचेंगे, स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी का अनावरण करेंगे. बाद में वह हवन के कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे.
पीएम 4 से 5 घंटे तक आश्रम में रहेंगे. उनके साथ मुख्यमंत्री केसीआर भी होंगे. प्रतिमा का निर्माण अनुमानित 34 एकड़ में किया गया है. रामानुज की प्रतिमा के अलावा, क्षेत्र के भीतर 108 आदर्श मंदिर और 144 यज्ञशालाएं हैं. समारोह के दौरान भव्य वैदिक अनुष्ठान में देश भर से लगभग 5,000 पुजारी और वैदिक विद्वान भाग लेंगे. सुबह और शाम दो चरणों में पूजा अर्चना की जाएगी.
पंचरात्र आगम शास्त्र के विद्वान मुदुम्बई मधुसूदनाचार्य स्वामी की देखरेख में मुख्य यज्ञशाला और आसपास की 144 यज्ञशालाओं का निर्माण किया गया था. चार दिशाओं में प्रत्येक में 36 मंदिर हैं. सभी यज्ञशालाओं में अनुष्ठान होंगे. शेष संकल्प मंडपम, अंकुररपन मंडपम, नित्य परायण मंडपम और दो इष्टीशालाएं हैं. यज्ञशालाओं में 1,035 हवन कुंड बनाए जा रहे हैं. समारोह के दौरान, अष्टाक्षरी मंत्र यानि ओम नमो नारायणाय का प्रतिदिन एक करोड़ बार जाप किया जाएगा.
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प्रत्येक यज्ञशाला में 9 होम कुंड होंगे. उन्हें चतुराश्रम, योनि कुंडम, धनुसु कुंडम, शदासराम, वृत्तम, पंचस्त्रम, त्रिकोणम, अष्टास्त्रम और पद्म कुंडम के रूप में जाना जाता है. कुंडों का निर्माण लगभग पूरा हो चुका है. प्रत्येक कुंड में, 3 पुजारी या वैदिक विद्वान अनुष्ठान करेंगे. आश्रम के विद्वान उदवर्ती सरथ स्वामी ने ईनाडु को बताया कि एक उपद्रष्ट प्रत्येक यज्ञशाला में अनुष्ठानों की निगरानी करेगा. मुख्य यज्ञशाला में वैदिक, प्रबंध, महाकाव्य और अन्य पाठ होंगे. होमशाला के बाहर दर्शनार्थियों के लिए विशेष व्यवस्था की जा रही है.
अनुष्ठान करने वालों को छोड़कर अन्य लोगों को यज्ञशाला में प्रवेश करने की अनुमति नहीं होगी. प्रत्येक होम कुंडम के लिए प्रति सत्र चार किलोग्राम घी का उपयोग किया जाएगा. प्रत्येक यज्ञशाला में 9 होम कुंडों के लिए प्रतिदिन 72 किलोग्राम घी की आवश्यकता होगी. राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र से लाए गए 2 लाख किलोग्राम शुद्ध गाय के घी का उपयोग किया जाएगा. जलाऊ लकड़ी के लिए पीपल, आम, बुटिया और अंजीर के पेड़ों के केवल सूखे डंठल का उपयोग किया जाएगा. गोबर के उपले का भी उपयोग किया जाएगा.