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धर्मांतरित दलितों के लिए SC के दर्जे की जांच के लिए गठित आयोग पर रोक की मांग वाली याचिका

धर्मांतरित दलितों के लिए अनुसूचित जाति के दर्जे की जांच के लिए आयोग गठित किया गया है. इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक याचिका दायर की गई है. याचिका के जरिए इस पर रोक लगाने की मांगकी गई है.

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Published : Dec 29, 2022, 3:32 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक याचिका दायर की गई है जिसमें तीन सदस्यीय आयोग के गठन को चुनौती दी गई है जो यह जांचने के लिए गठित किया गया है कि क्या उन दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जा सकता है जिन्होंने वर्षों से इस्लाम धर्म अपना लिया है.

याचिका एडवोकेट प्रताप बाबूराव पंडित द्वारा दायर की गई है, जो स्वयं महार समुदाय से संबंधित अनुसूचित जाति मूल के ईसाई थे. दलील के अनुसार, हिंदू या सिख धर्म या बौद्ध धर्म के अलावा किसी अन्य धर्म से संबंधित किसी भी व्यक्ति को अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं दिया जा सकता है, लेकिन विशेषज्ञ समितियों द्वारा इसके विपरीत विचार रखे गए हैं. याचिकाकर्ता आयोग के कामकाज पर रोक लगाने और इसे स्थापित करने वाली अधिसूचना को रद्द करने की मांग करता है.

1955 से पिछड़े वर्गों के लिए गठित विभिन्न आयोगों का हवाला देते हुए, याचिकाकर्ता का तर्क है कि वर्षों से सभी आयोगों ने पहले ही कहा है कि दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की आवश्यकता है, जो इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए हैं और फिर से एक नए आयोग की नियुक्ति से मामले में देरी होगी. याचिका में यह भी आरोप लगाया कि 'पक्षपाती रिपोर्ट प्राप्त करने के लिए नया आयोग गठित किया जा सकता है.'

याचिकाकर्ता का तर्क है कि 'मुख्य रिट याचिका और संबंधित याचिकाएं पिछले 18 वर्षों से लंबित हैं. याचिकाकर्ता की आशंका यह है कि यदि वर्तमान आयोग को अनुमति दी जाती है, तो मुख्य याचिका पर सुनवाई में और देरी हो सकती है, जिससे अनुसूचित जाति मूल के ईसाइयों को अपूरणीय क्षति हो सकती है, जिन्हें पिछले 72 वर्षों से इस अनुसूचित जाति के विशेषाधिकार से वंचित रखा गया है. यह प्रभावित समुदाय के मौलिक अधिकारों को भी प्रभावित कर रहा है, अनुच्छेद 21 के अनुसार शीघ्र न्याय देना अनिवार्य है.'

इस मुद्दे से संबंधित दलीलों का बैच 2004 से शीर्ष अदालत में लंबित है. सरकार ने भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालकृष्णन की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया है, जिसमें सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी रविंदर कुमार जैन और प्रोफेसर सुषमा यादव भी शामिल हैं. यह आयोग जांच करेगा कि क्या अनुसूचित जाति का दर्जा उन लोगों को दिया जा सकता है जो ऐतिहासिक रूप से अनुसूचित जाति श्रेणी से संबंधित थे, लेकिन बाद में राष्ट्रपति के आदेशों में वर्णित धर्मों के अलावा किसी अन्य धर्म में परिवर्तित हो गए.'

केंद्र ने शीर्ष अदालत से कहा था कि इस्लाम या ईसाई धर्म को एससी का दर्जा नहीं दिया जा सकता है क्योंकि उनमें से किसी में भी छुआछूत की दमनकारी व्यवस्था नहीं है जिसे एससी का दर्जा देते समय माना जाता है.

पढ़ें- जबरन धर्मांतरण के खिलाफ याचिका पर SC में सुनवाई नौ जनवरी तक टली

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक याचिका दायर की गई है जिसमें तीन सदस्यीय आयोग के गठन को चुनौती दी गई है जो यह जांचने के लिए गठित किया गया है कि क्या उन दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जा सकता है जिन्होंने वर्षों से इस्लाम धर्म अपना लिया है.

याचिका एडवोकेट प्रताप बाबूराव पंडित द्वारा दायर की गई है, जो स्वयं महार समुदाय से संबंधित अनुसूचित जाति मूल के ईसाई थे. दलील के अनुसार, हिंदू या सिख धर्म या बौद्ध धर्म के अलावा किसी अन्य धर्म से संबंधित किसी भी व्यक्ति को अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं दिया जा सकता है, लेकिन विशेषज्ञ समितियों द्वारा इसके विपरीत विचार रखे गए हैं. याचिकाकर्ता आयोग के कामकाज पर रोक लगाने और इसे स्थापित करने वाली अधिसूचना को रद्द करने की मांग करता है.

1955 से पिछड़े वर्गों के लिए गठित विभिन्न आयोगों का हवाला देते हुए, याचिकाकर्ता का तर्क है कि वर्षों से सभी आयोगों ने पहले ही कहा है कि दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की आवश्यकता है, जो इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए हैं और फिर से एक नए आयोग की नियुक्ति से मामले में देरी होगी. याचिका में यह भी आरोप लगाया कि 'पक्षपाती रिपोर्ट प्राप्त करने के लिए नया आयोग गठित किया जा सकता है.'

याचिकाकर्ता का तर्क है कि 'मुख्य रिट याचिका और संबंधित याचिकाएं पिछले 18 वर्षों से लंबित हैं. याचिकाकर्ता की आशंका यह है कि यदि वर्तमान आयोग को अनुमति दी जाती है, तो मुख्य याचिका पर सुनवाई में और देरी हो सकती है, जिससे अनुसूचित जाति मूल के ईसाइयों को अपूरणीय क्षति हो सकती है, जिन्हें पिछले 72 वर्षों से इस अनुसूचित जाति के विशेषाधिकार से वंचित रखा गया है. यह प्रभावित समुदाय के मौलिक अधिकारों को भी प्रभावित कर रहा है, अनुच्छेद 21 के अनुसार शीघ्र न्याय देना अनिवार्य है.'

इस मुद्दे से संबंधित दलीलों का बैच 2004 से शीर्ष अदालत में लंबित है. सरकार ने भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालकृष्णन की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया है, जिसमें सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी रविंदर कुमार जैन और प्रोफेसर सुषमा यादव भी शामिल हैं. यह आयोग जांच करेगा कि क्या अनुसूचित जाति का दर्जा उन लोगों को दिया जा सकता है जो ऐतिहासिक रूप से अनुसूचित जाति श्रेणी से संबंधित थे, लेकिन बाद में राष्ट्रपति के आदेशों में वर्णित धर्मों के अलावा किसी अन्य धर्म में परिवर्तित हो गए.'

केंद्र ने शीर्ष अदालत से कहा था कि इस्लाम या ईसाई धर्म को एससी का दर्जा नहीं दिया जा सकता है क्योंकि उनमें से किसी में भी छुआछूत की दमनकारी व्यवस्था नहीं है जिसे एससी का दर्जा देते समय माना जाता है.

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