कन्नौजः उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले के छिपट्टी मोहल्ले में रहने वाले पीयूष जैन की जीवन शैली बड़ी सादगी वाली है. शायद यही वजह है कि उसके पास से अभी तक बरामद अकूत खजाने को लेकर लोग अंचभित हैं. अब वे चर्चा कर रहे हैं कि आखिर एक आम आदमी की तरह नजर आने वाला यह शख्स करोड़ों का मालिक निकला है. लोगों की मानें तो पीयूष जैन का परिवार मोहल्ले में बड़ी ही सादगी से रहता है. पीयूष जैन ही अक्सर शादियों में रबड़ की चप्पल और पैजामा पहनकर जाते थे. उनके पास एक पुराना स्कूटर है. वह उसी से चलते थे.
स्थानीय लोगों के मुताबिक, पीयूष जैन के पुरखे कई पीढ़ियों से कन्नौज के छिपट्टी मोहल्ले में रह रहे हैं. सामाजिक गतिविधियों में कम नजर आने वाले उनके परिवार के बारे में लोग कम ही जानते हैं.
कुछ लोग कहते हैं कि बढ़िया मकान और अच्छा कारोबार होने के बावजूद पीयूष कई बार शादियों या किसी अन्य समारोहों में पैजामा और रबड़ की चप्पल पहनकर ही पहुंच जाते थे. हालांकि वे लोगों से ज्यादा मिलते-जुलते नहीं थे. वह अपने काम से ही काम रखते थे. बताते हैं कि पीयूष जैन आईआईटी से एमएससी टॉपर भी रहे हैं.
उन्हें होम्योपैथिक की अच्छी जानकारी है. कन्नौज के पैतृक आवास के पास तीन मकान थोड़ी-थोड़ी दूरी पर है. घर के पीछे एक बड़ा गोदाम है. यहां पीयूष केमिकल से कंपाउंड बनाने का काम करता है. पीयूष के दो बेटे हैं. प्रत्यूष जैन और मोलू जैन उनका नाम है. पीयूष के छोटे भाई अमरीश जैन है. लोगों के मुताबिक पीयूष के पिता महेश चंद्र जैन पेशे से केमिस्ट हैं.
दो साल पहले महेश की पत्नी का निधन हो गया था. महेश से ही उनके बेटों पीयूष और अंबरीष ने इत्र और खाने-पीने की चीजों में मिलाए जाने वाले एसेंस (कंपाउंड) को बनाने का तरीका सीखा है. जानकार बताते हैं कि पीयूष के परिवार की माली हालत पिछले 15 सालों में पूरी तरह बदल गई.
इसके पहले परिवार के पास जैन स्ट्रीट (छिपट्टी मोहल्ला) में मकान का एक छोटा सा हिस्सा ही था. आर्थिक हालात बदले तो आसपास के दो मकानों को खरीदकर एक कर दिया गया.
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दावा किया जाता है कि करीब 700 वर्ग गज के इस मकान को बनवाने के लिए जयपुर से कारीगर बुलवाए गए थे. जिसकी मोटी-मोटी दीवारें, महंगे एयरकंडिशनर, स्टील की बालकनी और दरवाजें इस कोठी को बाकी मकानों से एकदम अलग बनाते हैं.
इतना बड़ा कारोबार और जोखिम होने के बावजूद घर के किसी भी बाहरी हिस्से में एक भी सीसी टीवी नहीं लगा है. घर भी ऐसा बना है कि दूसरे मकानों से बालकनी के अलावा कुछ नहीं दिखता. इस मकान में मुख्यतौर पर महेश चंद्र जैन और उनका स्टाफ रहता है.
पीयूष और अंबरीष यहां अक्सर आते-जाते रहते थे. पड़ोसियों के अनुसार, यह परिवार बहुत विनम्र है, लेकिन वे किसी भी कार्यक्रम में कभी-कभार ही दिखते हैं.
शादियों में कई बार पीयूष पैजामा और हवाई चप्पल पहनकर ही पहुंच जाते थे. और एक पुराने स्कूटर से भी चलते है. पीयूष और अंबरीष के छह बेटे-बेटियां हैं. सभी कानपुर में पढ़ते हैं और कन्नौज में कम ही आते-जाते थे.
छिपट्टी मोहल्ले के कई लोग इस परिवार को 'रूखा' करार देते हैं. एक स्थानीय शख्स के मुताबिक भले ही बाहरी लोग पीयूष और उसके परिवार की 'हैसियत' का अंदाजा नहीं लगा पाए लेकिन कन्नौज में बिजनेस से जुड़ी लॉबी में पीयूष और अंबरीष का नाम पूरे 'सम्मान' से लिया जाता था.