वाराणसी: आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से आश्विन अमावस्या तक पितरों को समर्पित मास आश्विन मास को 'पितृ पक्ष" (Pitru Paksha 2023) कहा जाता है. इस बार के श्राद्ध की दृष्टि से द्वितीया व तृतीया का श्राद्ध एक अक्टूबर को किया जाएगा. हालांकि यह पखवारा पूरे 15 दिनों का ही है. सनातन धर्म में किसी मास के पखवारे की शुरुआत उदयातिथि के अनुसार होता है. वहीं, तर्पण काल व श्राद्ध समय मध्याह्न में होना आवश्यक माना जाता है इसलिए पितृ पक्ष का प्रारम्भ 30 सितम्बर से हो रहा है तो वहीं प्रतिपदा का श्राद्ध 30 सितम्बर को ही होगी. आश्विन प्रतिपदा तिथि 29 सितम्बर की शाम 04:02 बजे लग रही है जो 30 सितम्बर को दिन में 01:58 मिनट तक रहेगी. पितृ विसर्जन या सर्वपितृ अमावस्या 14 अक्टूबर को है. पूर्णिमा का श्राद्ध (नांदीमातामह श्राद्ध) 29 सितम्बर को किया जाएगा.
![Etv bahrat](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/29-09-2023/19636168_thum.jpg)
ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार श्राद्ध की दृष्टि से यह पखवारा 16 दिनों का हो जाता है. अर्थात, भाद्र शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या, सर्वपितृ अमावस्या तक. इसे महालया कहा जाता है. वहीं, आश्विन प्रतिपदा उदया में होने से इसे पितृपक्ष कहा जाता है. शास्त्रों में मनुष्यों के लिए देव, ऋषि व पितृ के रूप में तीन ऋण बताये गये हैं, क्योंकि जिन माता-पिता ने हमारी आयु-आरोग्यता और सुख-सौभाग्यादि के अभिवृद्धि के लिए अनेकानेक तरह के प्रयास किये. उनके ऋण से मुक्त नहीं होने पर हमारा जन्म ग्रहण करना निरर्थक होता है इसलिए सनातन धर्म में पितरों के प्रति श्रद्धा निवेदित करने के लिए पितृ पक्ष महालया की व्यवस्था बनी. श्राद्ध के 10 प्रकारों में से एक प्रकार को महालया कहा जाता है.
पितरों को नहीं करें नाराज
पितृ विसर्जन तिथि पर रात्रि में मुख्य द्वार पर दीपक जलाकर पितृ विसर्जन किया जाता है. पितृ लोग अपने पुत्रादिक से श्राद्ध-तर्पण की कामना करते हैं, यदि उन्हें यह उपलब्ध नहीं होता तो वे नाराज होकर श्राप देकर चले जाते हैं इसलिए सभी सनातनी को केवल वर्ष भर में पितरों की मृत्यु तिथि को सर्वसुलभ जल, तिल, यव, कुश और पुष्पादि से श्राद्ध करने और गऊ ग्रास देकर एक, तीन या पांच ब्राह्मणों को भोजन करा देने मात्र से पितृगण संतुष्ट होते हैं और उनके ऋणों से मुक्ति मिलती है.
अत: इस सरलता के साथ ही होने वाले कार्य की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए. इसके लिए जिस मास की जिस तिथि को माता-पिता आदि की मृत्यु हुई हो, उस तिथि को श्राद्ध-तर्पण, गऊ ग्रास और ब्राह्मणों को भोजनादि करना-कराना आवश्यक होता है. इससे पितृगण प्रसन्न होते हैं और परिवार का सौभाग्य, सुख, सम्पत्ति, पुत्र, पौत्र आदि की अभिवृद्धि होती है. जिस स्त्री को कोई पुत्र न हो वह स्वयं भी अपने पति का श्राद्ध उनकी मृत्यु तिथि पर कर सकती है.
याज्ञवल्य स्मृति के अनुसार
'आयु: पुत्रां धनं विद्यां स्वर्गं मोक्ष सुखानिच। प्रयच्छति तथा राज्यं प्रीता नृणां पितामहा: अर्थात, श्राद्ध कर्म से प्रसन्न पितर मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, धन, विद्या, स्वर्ग-मोक्ष, सुख और राज्य दे देते हैं. मोक्ष, स्वर्ग और पुत्र के दाता जीवित पितर नहीं होते हैं, अपितु, दिव्य पितर ही हो सकते हैं. श्रद्धा करने वालों के लिए श्राद्ध से बढ़कर कल्यणाप्रद दूसरा कर्म नहीं है.
महत्वपूर्ण श्राद्ध की तिथियां
- मातृ नवमी (सात अक्टूबर): इस दिन यदि माता की मृत्यु तिथि ज्ञान न हो तो श्राद्ध करने के साथ ही सौभाग्यवती स्त्रियों के श्राद्ध का विधान होता है.
- एकादशी (10 अक्टूबर): इस दिन इंदिरा एकादशी व्रत-उपवास सहित एकादशी का श्राद्ध होगा.
- द्वादशी (11 अक्टूबर): इस दिन संन्यासी, यति, वैष्णवजन के श्राद्ध का विधान होगा.
- चतुर्दशी (13 अक्टूबर): किसी दुर्घटना में मृत व्यक्तियों के श्राद्ध का विधान होगा.
- सर्वपितृ अमावस्या (14 अक्टूबर): अन्य के अतिरिक्त जिस मृतक की तिथि ज्ञात न हो या अन्य कारणों से नियत तिथि पर श्राद्ध नहीं करने के कारण इस दिन श्राद्ध किया जाता है.
ये भी पढ़ेंः Pitru Paksha Mela 2023: आज से पितृ पक्ष की शुरुआत, जानें तर्पण की तिथियां और विधि