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जिंदा रहते इलाज के लिए भटके, मरकर भी शांति नसीब नहीं

देश भर में कोरोना ने इस कदर कहर ढाया है कि एक ओर मरीजों को अस्पताल में जगह नहीं मिल रही तो दूसरी तरफ जो दम तोड़ चुके हैं उन्हें श्मशान घाट और कब्रिस्तान में दो गज जमीन. अव्यवस्था का आलम ये है कि श्मशान के बाहर और पार्किंग तक में शव जलाए जा रहे हैं. 'ईटीवी भारत' की खास रिपोर्ट.

जिंदा रहते इलाज के लिए भटके
जिंदा रहते इलाज के लिए भटके
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Published : Apr 27, 2021, 8:40 PM IST

Updated : Apr 28, 2021, 4:18 PM IST

हैदराबाद : कोरोना ने किसी की आंखों का तारा छीन लिया तो किसी के सिर से माता-पिता का साया. किसी से भाई तो किसी से बहन का दुलार लेकिन सबसे अफसोसजनक ये है कि जिंदा रहते इलाज के लिए भटकते रहे तो मरने के बाद एंबुलेंस, श्मशान घाट और कब्रिस्तानों में भी ठिकाना नहीं मिल रहा.

कहते हैं कि जिंदगी से विदाई के बाद विधि-विधान पूर्वक अंतिम संस्कार सभी धर्मों में हर व्यक्ति का अधिकार माना गया है, लेकिन कोरोना के कहर के चलते संक्रमित लोगों से यह अधिकार भी छिन सा गया है.

राजधानी दिल्ली में लोग अपनों का अंतिम संस्कार करने से भी डरने लगे हैं, शव श्मशान घाट के बाहर रखकर भाग जा रहे हैं. वहीं राजधानी से सटे गाजियाबाद में श्मशान घाट पर ना तो लकड़ियां हैं और ना ही शव का अंतिम संस्कार करवाने वाले पुरोहित की व्यवस्था.

राजधानी दिल्ली से ग्राउंड रिपोर्ट

राजस्थान के बाड़मेर में कोरोना संक्रमित की मौत के बाद अंतिम संस्कार के लिए शव ले जाने के लिए अस्पताल के कर्मियों ने उसके परिजनों से रुपये मांगे. महाराष्ट्र के बीड जिले में तो इस कदर इंसानियत को शर्मसार किया गया कि एक ही एंबुलेंस में 22 शव कब्रिस्तान ले जाए गए. ये सारी घटनाएं व्यवस्था पर सवाल खड़े कर रही हैं.

महाराष्ट्र : बीड में एक ही एंबुलेंस में रखे 22 शव

अंबाजोगाई (बीड): अंबाजोगाई के स्वामी रामानंद तीर्थ अस्पताल से चौंकाने वाली खबर सामने आई है. अस्पताल से जिन 22 लोगों की कोरोना के कारण मृत्यु हुई, उन्हें एक ही एम्बुलेंस में कब्रिस्तान में ले जाया गया. कोरोना मरीजों के शवों के साथ ऐसे व्यवहार से लोंगों में रोष है.

दिल्ली से खास रिपोर्ट

दिल्ली में श्मशानघाट के बाहर तक जल रही चिताएं

दिल्ली : देश का दिल दिल्ली इन दिनों आजादी के बाद मौत का सबसे बड़ा मंजर देख रही है. पिछले कुछ दिनों से लगातार यहां कोरोना से 300 से ज्यादा लोगों की मौत हो रही हैं, जिसके चलते अब श्मशान घाट के बाहर चिता जलाने की नौबत आ गई है.

मृतकों की संख्या बढ़ने के साथ ही श्मशान घाट पर अब जगह की कमी होने लगी है और ऐसे में खुली जगहों पर कोरोना से मृत लोगों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है. पूर्वी दिल्ली के गाजीपुर श्मशान घाट के पार्किंग एरिया में एक साथ सैकड़ों लोगों का अंतिम संस्कार खुले आसमान के नीचे हो रहा है.

गाजीपुर श्मशान घाट की विचलित कर देने वाली तस्वीरें

विचलित कर देने वाली हैं तस्वीरें

गाजीपुर श्मशान घाट पर 48 शवदाह गृह पहले से ही मौजूद है, लेकिन मृतकों की संख्या बढ़ने के साथ ही यहां कुछ अस्थाई शवदाह गृह का निर्माण पूर्वी दिल्ली नगर निगम ने कराया है. इसके बावजूद भी श्मशान घाट की पार्किंग एरिया में खुले आसमान के नीचे एक साथ कोरोना से मृत और कोरोना के संदेहास्पद सैकड़ों शवों का एक साथ अंतिम संस्कार किया जा रहा है. रात 9 बजे भी गाजीपुर श्मशान घाट में सैकड़ों चिता एक साथ जल रही थीं.

शव छोड़कर भाग गए

शव श्मशान घाट के बाहर रखकर भाग रहे लोग

राजधानी दिल्ली में कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रकोप के साथ ही लोगों में खौफ भी बढ़ता जा रहा है. खौफ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लोग अपनों का अंतिम संस्कार भी करने से डरने लगे हैं और शव श्मशान घाट के बाहर रखकर भाग जा रहे हैं.

सोमवार रात ऐसा ही एक मामला सामने आया, जहां न्यू सीमापुरी श्मशान घाट पर एक परिवार श्मशान घाट के बाहर शव रखकर भाग गया. मामले की जानकारी शहीद भगत सिंह सेवा दल को हुई तो शहीद भगत सिंह सेवा दल के वालंटियर ने लावारिश शव की जानकारी पुलिस को दी और जरूरी कागजी कार्रवाई के बाद शव का अंतिम संस्कार कराया.

मोर्चरी के बाहर भी घाटों इंतजार

दिल्ली में हालात इतने खराब हैं कि अब शवों को लेने के लिए मोर्चरी के बाहर भी घाटों इतंजार करना पड़ रहा है. स्थिति इतनी विकराल है कि घंटों इंतजार के बाद भी परिजनों को शव देखना नसीब नहीं होता है.

कई लोगों को यह भी नहीं पता लग पा रहा कि मोर्चरी में उनके अपने का शव मौजूद भी है, या नहीं. इसी बीच लगातार मौत होने के कारण उत्तर पूर्वी दिल्ली स्थित गुरु तेग बहादुर अस्पताल की व्यवस्था भी पूरी तरह से चरमरा गई है.

हालत यह है कि यहां की मोर्चरी पर शवों को लेने वालों की भीड़ इकट्ठा हो जाती है और लोग अपनों के आखिरी दीदार को भी तरह रहे हैं. मोर्चरी से शव मिलने में लोगों को कई-कई घंटे इंतजार करना पड़ रहा है.

पढ़ें- पति की सांसों की खातिर, CMO के कदमों पर गिरी महिला

जानकारी मिलने में भी हो रही दिक्कत

तीन दिन पहले अपने रिश्तेदार को अस्पताल में भर्ती कराकर गए एक शख्स ने बताया कि जब वह, मरीज के बारे में जानकारी लेने पहुंचे तो उन्हें बताया गया कि उनकी मौत हो गई है और घंटों गुजरने के बाद भी उन्हें भाई के शव का कुछ नहीं पता लगा. उन्हें दोपहर बाद पर चला कि शव मोर्चरी में रखा है. तब से वह शव मिलने के इंतजार में ही भटक रहे थे. यहां एक दो नहीं, बल्कि कई ऐसे परिजन भटकते मिले, जो शव लेने आए थे.

एंबुलेंस वाले एक नहीं दो से तीन शव ले जाते दिखे

अस्पताल के बाहर रो रोकर बेहाल परिजन खुद को मजबूत करके अपनों के शव लेने के लिए कागजी कार्रवाई पूरी करते दिखाई दिये. वहीं बहुत से लोग मोर्चरी के बाहर खड़े होकर शव मिलने का इंतजार कर रहे थे. इसी बीच सबसे ज्यादा पीड़ादायक स्थिति यह भी दिखी कि एक एंबुलेंस में दो से तीन शव ले जाते दिखाई दिए.

राजस्थान में अंतिम संस्कार के लिए के मांगे 25 हजार रुपये

बाड़मेर : राजस्थान के बाड़मेर में कोरोना संक्रमित की मौत के बाद जिला अस्पताल के कुछ कार्मिकों ने शव के अंतिम संस्कार के लिए मृतक के परिजनों से रुपयों की मांग की. हरियाणा निवासी मुकेश कुमार अपनी अध्यापक पत्नी के साथ इंद्रा कॉलोनी में रह रहे थे. कुछ दिन पूर्व उनकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद जिला अस्पताल में इलाज चल रहा था.

राजस्थान में ये हालात

पढ़ें- ऑक्सीजन की भीख मांगती इस मां के क्रंदन से अस्पताल में मचा हड़कंप

शनिवार को इलाज के दौरान संक्रमित मुकेश की मौत हो गई. जिसके अंतिम संस्कार के लिए अस्पताल के कार्मिकों ने 25 हजार रुपये की मांग की थी और डी-फ्रीजर में शव रखने के लिए उसके परिजनों से 2 हजार रुपये वसूल भी किए थे.

गाजियाबाद में श्मशान घाट पर खुद ले जानी पड़ रही लकड़ियां

गाजियाबाद : राजधानी दिल्ली से सटे गाजियाबाद के शालीमार गार्डन इलाके में स्थित श्मशान घाट पर ना तो लकड़ियां हैं और ना ही शव का अंतिम संस्कार करवाने वाले पुरोहित की व्यवस्था. ऐसे में इस श्मशान घाट में लकड़ियां भी खुद ले जानी पड़ती है और शव के अंतिम संस्कार के लिए पुरोहित को भी साथ ले जाना पड़ता है.

गाजियाबाद से हैरान कर देने वाली रिपोर्ट

यह श्मशान घाट लापरवाही की ऐसी तस्वीर उजागर करता है, जो कई सवाल खड़े करती है. श्मशान घाट नया नहीं है, साल 2009 में इस श्मशान घाट को तैयार कर दिया गया था. लेकिन 2020 में कोरोना महामारी से सबक नहीं लिया गया.

अस्थियों का भी नहीं हो रहा विसर्जन

इंदौर : जिले के सभी मुक्तिधामों में बीते 2 सप्ताह से स्थिति ऐसी है कि संक्रमित शवों को जलाए जाने के बाद लोग उनका विधि-विधान से ना तो अस्थि संचय कर रहे हैं, और नाही वर्तमान दौर में नदियों में अस्थि विसर्जन कर पाने की स्थिति में हैं. अधिकांश मामलों में कई परिवार मृतक की अस्थियों को मुक्तिधाम के लॉकर में ही छोड़कर जा रहे हैं. जिन का विसर्जन संभवत शहर में स्थितियां सामान्य होने के बाद ही हो सकेगा.

इंदौर में ये है हाल

श्मशान में संक्रमण से बचने की चुनौती

अंतिम संस्कार के दौरान शवों को जलाए जाने की तमाम व्यवस्थाओं को संभालने वाले कर्मचारी और शमशान के सफाईकर्मी शवों के साथ आने वाले परिजनों के संपर्क में आने के कारण खुद भी संक्रमित हो रहे हैं.

इसके अलावा अस्पताल से लाई जाने वाली बॉडी के कवर और उपयोग की गई पीपीई किट लोग मुक्तिधाम में ही छोड़कर जा रहे हैं, जो सफाईकर्मियों को संक्रमित कर रही है. लिहाजा लोगों के अंतिम संस्कार के समय जो लोग महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, उन्हें भी संक्रमण से बच पाना मुश्किल हो चुका है.

हैदराबाद : कोरोना ने किसी की आंखों का तारा छीन लिया तो किसी के सिर से माता-पिता का साया. किसी से भाई तो किसी से बहन का दुलार लेकिन सबसे अफसोसजनक ये है कि जिंदा रहते इलाज के लिए भटकते रहे तो मरने के बाद एंबुलेंस, श्मशान घाट और कब्रिस्तानों में भी ठिकाना नहीं मिल रहा.

कहते हैं कि जिंदगी से विदाई के बाद विधि-विधान पूर्वक अंतिम संस्कार सभी धर्मों में हर व्यक्ति का अधिकार माना गया है, लेकिन कोरोना के कहर के चलते संक्रमित लोगों से यह अधिकार भी छिन सा गया है.

राजधानी दिल्ली में लोग अपनों का अंतिम संस्कार करने से भी डरने लगे हैं, शव श्मशान घाट के बाहर रखकर भाग जा रहे हैं. वहीं राजधानी से सटे गाजियाबाद में श्मशान घाट पर ना तो लकड़ियां हैं और ना ही शव का अंतिम संस्कार करवाने वाले पुरोहित की व्यवस्था.

राजधानी दिल्ली से ग्राउंड रिपोर्ट

राजस्थान के बाड़मेर में कोरोना संक्रमित की मौत के बाद अंतिम संस्कार के लिए शव ले जाने के लिए अस्पताल के कर्मियों ने उसके परिजनों से रुपये मांगे. महाराष्ट्र के बीड जिले में तो इस कदर इंसानियत को शर्मसार किया गया कि एक ही एंबुलेंस में 22 शव कब्रिस्तान ले जाए गए. ये सारी घटनाएं व्यवस्था पर सवाल खड़े कर रही हैं.

महाराष्ट्र : बीड में एक ही एंबुलेंस में रखे 22 शव

अंबाजोगाई (बीड): अंबाजोगाई के स्वामी रामानंद तीर्थ अस्पताल से चौंकाने वाली खबर सामने आई है. अस्पताल से जिन 22 लोगों की कोरोना के कारण मृत्यु हुई, उन्हें एक ही एम्बुलेंस में कब्रिस्तान में ले जाया गया. कोरोना मरीजों के शवों के साथ ऐसे व्यवहार से लोंगों में रोष है.

दिल्ली से खास रिपोर्ट

दिल्ली में श्मशानघाट के बाहर तक जल रही चिताएं

दिल्ली : देश का दिल दिल्ली इन दिनों आजादी के बाद मौत का सबसे बड़ा मंजर देख रही है. पिछले कुछ दिनों से लगातार यहां कोरोना से 300 से ज्यादा लोगों की मौत हो रही हैं, जिसके चलते अब श्मशान घाट के बाहर चिता जलाने की नौबत आ गई है.

मृतकों की संख्या बढ़ने के साथ ही श्मशान घाट पर अब जगह की कमी होने लगी है और ऐसे में खुली जगहों पर कोरोना से मृत लोगों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है. पूर्वी दिल्ली के गाजीपुर श्मशान घाट के पार्किंग एरिया में एक साथ सैकड़ों लोगों का अंतिम संस्कार खुले आसमान के नीचे हो रहा है.

गाजीपुर श्मशान घाट की विचलित कर देने वाली तस्वीरें

विचलित कर देने वाली हैं तस्वीरें

गाजीपुर श्मशान घाट पर 48 शवदाह गृह पहले से ही मौजूद है, लेकिन मृतकों की संख्या बढ़ने के साथ ही यहां कुछ अस्थाई शवदाह गृह का निर्माण पूर्वी दिल्ली नगर निगम ने कराया है. इसके बावजूद भी श्मशान घाट की पार्किंग एरिया में खुले आसमान के नीचे एक साथ कोरोना से मृत और कोरोना के संदेहास्पद सैकड़ों शवों का एक साथ अंतिम संस्कार किया जा रहा है. रात 9 बजे भी गाजीपुर श्मशान घाट में सैकड़ों चिता एक साथ जल रही थीं.

शव छोड़कर भाग गए

शव श्मशान घाट के बाहर रखकर भाग रहे लोग

राजधानी दिल्ली में कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रकोप के साथ ही लोगों में खौफ भी बढ़ता जा रहा है. खौफ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लोग अपनों का अंतिम संस्कार भी करने से डरने लगे हैं और शव श्मशान घाट के बाहर रखकर भाग जा रहे हैं.

सोमवार रात ऐसा ही एक मामला सामने आया, जहां न्यू सीमापुरी श्मशान घाट पर एक परिवार श्मशान घाट के बाहर शव रखकर भाग गया. मामले की जानकारी शहीद भगत सिंह सेवा दल को हुई तो शहीद भगत सिंह सेवा दल के वालंटियर ने लावारिश शव की जानकारी पुलिस को दी और जरूरी कागजी कार्रवाई के बाद शव का अंतिम संस्कार कराया.

मोर्चरी के बाहर भी घाटों इंतजार

दिल्ली में हालात इतने खराब हैं कि अब शवों को लेने के लिए मोर्चरी के बाहर भी घाटों इतंजार करना पड़ रहा है. स्थिति इतनी विकराल है कि घंटों इंतजार के बाद भी परिजनों को शव देखना नसीब नहीं होता है.

कई लोगों को यह भी नहीं पता लग पा रहा कि मोर्चरी में उनके अपने का शव मौजूद भी है, या नहीं. इसी बीच लगातार मौत होने के कारण उत्तर पूर्वी दिल्ली स्थित गुरु तेग बहादुर अस्पताल की व्यवस्था भी पूरी तरह से चरमरा गई है.

हालत यह है कि यहां की मोर्चरी पर शवों को लेने वालों की भीड़ इकट्ठा हो जाती है और लोग अपनों के आखिरी दीदार को भी तरह रहे हैं. मोर्चरी से शव मिलने में लोगों को कई-कई घंटे इंतजार करना पड़ रहा है.

पढ़ें- पति की सांसों की खातिर, CMO के कदमों पर गिरी महिला

जानकारी मिलने में भी हो रही दिक्कत

तीन दिन पहले अपने रिश्तेदार को अस्पताल में भर्ती कराकर गए एक शख्स ने बताया कि जब वह, मरीज के बारे में जानकारी लेने पहुंचे तो उन्हें बताया गया कि उनकी मौत हो गई है और घंटों गुजरने के बाद भी उन्हें भाई के शव का कुछ नहीं पता लगा. उन्हें दोपहर बाद पर चला कि शव मोर्चरी में रखा है. तब से वह शव मिलने के इंतजार में ही भटक रहे थे. यहां एक दो नहीं, बल्कि कई ऐसे परिजन भटकते मिले, जो शव लेने आए थे.

एंबुलेंस वाले एक नहीं दो से तीन शव ले जाते दिखे

अस्पताल के बाहर रो रोकर बेहाल परिजन खुद को मजबूत करके अपनों के शव लेने के लिए कागजी कार्रवाई पूरी करते दिखाई दिये. वहीं बहुत से लोग मोर्चरी के बाहर खड़े होकर शव मिलने का इंतजार कर रहे थे. इसी बीच सबसे ज्यादा पीड़ादायक स्थिति यह भी दिखी कि एक एंबुलेंस में दो से तीन शव ले जाते दिखाई दिए.

राजस्थान में अंतिम संस्कार के लिए के मांगे 25 हजार रुपये

बाड़मेर : राजस्थान के बाड़मेर में कोरोना संक्रमित की मौत के बाद जिला अस्पताल के कुछ कार्मिकों ने शव के अंतिम संस्कार के लिए मृतक के परिजनों से रुपयों की मांग की. हरियाणा निवासी मुकेश कुमार अपनी अध्यापक पत्नी के साथ इंद्रा कॉलोनी में रह रहे थे. कुछ दिन पूर्व उनकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद जिला अस्पताल में इलाज चल रहा था.

राजस्थान में ये हालात

पढ़ें- ऑक्सीजन की भीख मांगती इस मां के क्रंदन से अस्पताल में मचा हड़कंप

शनिवार को इलाज के दौरान संक्रमित मुकेश की मौत हो गई. जिसके अंतिम संस्कार के लिए अस्पताल के कार्मिकों ने 25 हजार रुपये की मांग की थी और डी-फ्रीजर में शव रखने के लिए उसके परिजनों से 2 हजार रुपये वसूल भी किए थे.

गाजियाबाद में श्मशान घाट पर खुद ले जानी पड़ रही लकड़ियां

गाजियाबाद : राजधानी दिल्ली से सटे गाजियाबाद के शालीमार गार्डन इलाके में स्थित श्मशान घाट पर ना तो लकड़ियां हैं और ना ही शव का अंतिम संस्कार करवाने वाले पुरोहित की व्यवस्था. ऐसे में इस श्मशान घाट में लकड़ियां भी खुद ले जानी पड़ती है और शव के अंतिम संस्कार के लिए पुरोहित को भी साथ ले जाना पड़ता है.

गाजियाबाद से हैरान कर देने वाली रिपोर्ट

यह श्मशान घाट लापरवाही की ऐसी तस्वीर उजागर करता है, जो कई सवाल खड़े करती है. श्मशान घाट नया नहीं है, साल 2009 में इस श्मशान घाट को तैयार कर दिया गया था. लेकिन 2020 में कोरोना महामारी से सबक नहीं लिया गया.

अस्थियों का भी नहीं हो रहा विसर्जन

इंदौर : जिले के सभी मुक्तिधामों में बीते 2 सप्ताह से स्थिति ऐसी है कि संक्रमित शवों को जलाए जाने के बाद लोग उनका विधि-विधान से ना तो अस्थि संचय कर रहे हैं, और नाही वर्तमान दौर में नदियों में अस्थि विसर्जन कर पाने की स्थिति में हैं. अधिकांश मामलों में कई परिवार मृतक की अस्थियों को मुक्तिधाम के लॉकर में ही छोड़कर जा रहे हैं. जिन का विसर्जन संभवत शहर में स्थितियां सामान्य होने के बाद ही हो सकेगा.

इंदौर में ये है हाल

श्मशान में संक्रमण से बचने की चुनौती

अंतिम संस्कार के दौरान शवों को जलाए जाने की तमाम व्यवस्थाओं को संभालने वाले कर्मचारी और शमशान के सफाईकर्मी शवों के साथ आने वाले परिजनों के संपर्क में आने के कारण खुद भी संक्रमित हो रहे हैं.

इसके अलावा अस्पताल से लाई जाने वाली बॉडी के कवर और उपयोग की गई पीपीई किट लोग मुक्तिधाम में ही छोड़कर जा रहे हैं, जो सफाईकर्मियों को संक्रमित कर रही है. लिहाजा लोगों के अंतिम संस्कार के समय जो लोग महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, उन्हें भी संक्रमण से बच पाना मुश्किल हो चुका है.

Last Updated : Apr 28, 2021, 4:18 PM IST
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