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सिद्धू के इस्तीफे के बाद अधर में पायलट-गहलोत सीजफायर ! पंजाब का हल खोजने में उलझा आलाकमान - sachin pilot

पंजाब की सियासी उठापटक का असर राजस्थान की राजनीति (Rajasthan politics) पर हो रहा है. राजस्थान में पल-पल राजनीतिक हालात बदल रहे हैं. माना जा रहा था कि श्राद्धपक्ष के बाद राजस्थान के सियासी संकट का हल होगा, लेकिन अब कैबिनेट विस्तार (cabinet extension) और बाकी फैसलों पर नए सिरे से विचार किया जाएगा. माना जा रहा है कि ये एक्सरसाइज भी उपचुनाव (by-election) के बाद ही शुरू होगी. फिलहाल सचिन पायलट (Sachin Pilot) पर फैसला होल्ड हो गया है.

पायलट
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Published : Sep 29, 2021, 10:27 PM IST

जयपुर: क्या पंजाब कांग्रेस का असर राजस्थान और खासकर पायलट खेमे पर भी पड़ेगा ? मंगलवार 28 सितंबर को नवजोत सिंह सिद्धू ने पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देते ही चंडीगढ़ से दिल्ली तक कांग्रेस के कुनबे में हड़कंप मच गया. नवजोत सिंह सिद्धू के इस्तीफे के बाद सबसे ज्यादा सवालिया निशान अब सचिन पायलट कैंप पर लग गए हैं. सवाल है कि अब पायलट का क्या होगा ?

पंजाब की तर्ज पर मांगा था राजस्थान का हल

बीते लंबे वक्त से राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच तलवारें खिंची हुई है. पंजाब में भी कैप्टन और सिद्धू के बीच यही हालात हुए तो चंडीगढ़ से दिल्ली तक बैठकें हुई और सिद्धू को अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दे दी गई. 23 जुलाई पंजाब कांग्रेस की कमान सिद्धू को मिलते ही सचिन पायलट की उम्मीदें बढ़ गईं. जिसके बाद पायलट कैंप की तरफ से कहा जाने लगा कि पंजाब कांग्रेस का चंद हफ्तों में सुलझ गया लेकिन राजस्थान का मामला एक साल से अधर में लटका पड़ा है. इसके बाद गहलोत और सचिन पायलट के बीच सब कुछ ठीक करने की पहल भी तेज हो गई थी.

मंगलवार 28 सिंतबर की सुबह तक कहा जा रहा था कि राजस्थान कैबिनेट विस्तार नवरात्र में हो सकता है. अशोक गहलोत 2 अक्टूबर के बाद दिल्ली जाएंगे और राजस्थान कांग्रेस का मसला भी हल हो जाएगा और पायलट बनाम गहलोत की जंग की हैप्पी एंडिंग हो जाएगी.

इस्तीफा सिद्धू का मुश्किल पायलट की
इस्तीफा सिद्धू का मुश्किल पायलट की

लेकिन सिद्धू के कारण सब धरा का धरा रह गया

मंगलवार शाम को जैसे ही ख़बर आई कि नवजोत सिंह ने प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है तो पायलट कैंप पर तो जैसे सिर मुंडाते ही ओेले पड़ गए. जिस सिद्दू के सहारे पायलट अपना विवाद सुलझाने की बाट जोह रहे थे उन्होंने ही अब रास्ते पर ला दिया. अमरिंदर सिंह के इस्तीफे के बाद बड़ा हुआ पंजाब का संकट, सिद्धू के बाद और भी विशाल हो गया है. कांग्रेस आलाकमान के सामने फिलहाल पंजाब का हल खोजने की चुनौती है, जहां 5 महीने बाद चुनाव होना है. जहां मुख्यमंत्री भी नया है और प्रदेश अध्यक्ष इस्तीफा दे चुका है. ऐसे में पायलट का मुद्दा एक बार फिर ठंडे बस्ते में जा सकता है.

सिब्बल ने भी उठाए आलाकमान पर सवाल

बुधवार को कपिल सिब्बल ने भी कांग्रेस आलाकमान को आड़े हाथ ले लिया है. पार्टी की हालत को देखते हुए सिब्बल ने पार्टी छोड़ने वाले नेताओं का जिक्र भी किया और कहा कि लोग क्यों पार्टी छोड़ रहे हैं, क्या इसमें हमारी गलती है. पंजाब कांग्रेस में चल रही उठापटक पर भी उन्होंने सवाल उठाए, उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस का कोई अध्यक्ष नहीं है तो फिर फैसले कौन ले रहा है.

ये भी पढ़ें: कोई अध्यक्ष नहीं तो पार्टी में फैसले कौन ले रहा : कपिल सिब्बल

अनुभव बनाम युवा

कांग्रेस में अनुभव बनाम युवाओं का मसला लंबे वक्त से मौजूद है. जिसमें अब तक अनुभव की ही जीत हुई है. जब कांग्रेस की कमान राहुल गांधी को सौंपी गई थी तो कहा जा रहा था कि अब कांग्रेस में युवाओं की चलेगी लेकिन दो साल से भी कम वक्त में राहुल को कुर्सी छोड़नी पड़ी. जानकार मानते हैं कि पार्टी में पुराने और अनुभवी नेताओं की फौज भी इसकी एक वजह थी. पिछले 7 साल से लोकसभा से लेकर विधनसभा चुनावों में लगातार हार और पार्टी से नेताओं के जाने का ऐसा सिलसिला चल रहा है, जो कब थमेगा पता नहीं.

बीते साल 23 कांग्रेस नेताओं ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर सक्रिय नेतृत्व और व्यापक संगठनात्मक बदलाव की मांग की थी. 23 नेताओं के इसी समूह को जी-23 का नाम दिया गया. जिसमें गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, शशि थरूर, मनीष तिवारी, आनंद शर्मा, पीजे कुरियन, भूपेंद्र हुड्डा, राजिंदर कौर भट्टल, वीरप्पा मोइली, पृथ्वीराज चव्हाण, अजय सिंह, राज बब्बर, अरविंदर सिंह लवली, कौल सिंह ठाकुर, रेणुका चौधरी, मिलिंद देवड़ा, मुकुल वासनिक, कुलदीप शर्मा, संदीप दीक्षित को मिलाकर कुल 23 नेता थे. पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद भी इस जी-23 का हिस्सा थे जो अब बीजेपी में शामिल होने के बाद योगी के कैबिनेट मंत्री बन चुके हैं.

पायलट का क्या होगा ?

दरअसल बीते साल गहलोत और पायलट खेमे के बीच जो रस्साकशी चली उसके बाद पायलट को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया गया. उनके करीबी विधायकों की भी कैबिनेट से छुट्टी कर दी गई. सिद्धू के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद पायलट चाहते थे कि राजस्थान का भी हल निकले और उनके विधायकों को सरकार और संगठन में जगह मिले. इस ओर गहलोत और कांग्रेस आलाकमान दोनों ने कुछ कदम चल भी दिए थे लेकिन सिद्धू के इस्तीफे के बाद मामला फिर से अधर में लटक गया है.

सिद्धू को कांग्रेस पंजाब में एक नए चेहरे के रूप में देख रही थी लेकिन उनकी वजह से पहले कैप्टन अमरिंदर ने इस्तीफा दिया और अब वो खुद चले गए हैं. जानकार कहते हैं कि इस वाक्ये के बाद अगर पार्टी में चल रही अनुभवी और युवाओं की जंग में अनुभव ने बाजी मार ली तो राजस्थान में गहलोत का पलड़ा ही भारी रहेगा और सचिन पायलट फिर से खाली हाथ रह सकते हैं. जी-23 के नेताओं ने जिस तरह से कांग्रेस आलाकमान के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है उसके बाद पायलट का इंतजार और लंबा भी हो सकता है.

सिद्धू के इस्तीफे के बाद सियासी हालात पूरी तरह से बदल गए हैं. जानकार मानते हैं कि ऐसे वक्त में जी 23 गुट का हावी होना लाजमी है. पंजाब का सियासी बवाल इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती है. कांग्रेस किसी भी हालत में उस राज्य को दांव पर नहीं लगाना चाहेगी जहां उसकी मौजूदा सरकार है और अगले चुनाव में जीत का दावा कर रही हो. खासकर चन्नी को पंजाब का पहला दलित मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस फ्रंटफुट पर नजर आ रही थी लेकिन सिद्धू के इस्तीफे के बाद ऐसा लग रहा है कि पूरे करे कराए पर पानी फिर गया है. कांग्रेस आलाकमान भी पायलट के मसले पर जल्दबाजी दिखाने से बचेगा. अब कांग्रेस आलाकमान का पूरा ध्यान पंजाब पर होगा ऐसे में पायलट का मसला फिलहाल ठंडे बस्ते में ही समझिये.

ये भी पढ़ें :क्या यूपी चुनाव के बाद 'हाथ' छोड़ 'उड़ान' भरने की तैयारी में हैं पायलट ?

जयपुर: क्या पंजाब कांग्रेस का असर राजस्थान और खासकर पायलट खेमे पर भी पड़ेगा ? मंगलवार 28 सितंबर को नवजोत सिंह सिद्धू ने पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देते ही चंडीगढ़ से दिल्ली तक कांग्रेस के कुनबे में हड़कंप मच गया. नवजोत सिंह सिद्धू के इस्तीफे के बाद सबसे ज्यादा सवालिया निशान अब सचिन पायलट कैंप पर लग गए हैं. सवाल है कि अब पायलट का क्या होगा ?

पंजाब की तर्ज पर मांगा था राजस्थान का हल

बीते लंबे वक्त से राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच तलवारें खिंची हुई है. पंजाब में भी कैप्टन और सिद्धू के बीच यही हालात हुए तो चंडीगढ़ से दिल्ली तक बैठकें हुई और सिद्धू को अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दे दी गई. 23 जुलाई पंजाब कांग्रेस की कमान सिद्धू को मिलते ही सचिन पायलट की उम्मीदें बढ़ गईं. जिसके बाद पायलट कैंप की तरफ से कहा जाने लगा कि पंजाब कांग्रेस का चंद हफ्तों में सुलझ गया लेकिन राजस्थान का मामला एक साल से अधर में लटका पड़ा है. इसके बाद गहलोत और सचिन पायलट के बीच सब कुछ ठीक करने की पहल भी तेज हो गई थी.

मंगलवार 28 सिंतबर की सुबह तक कहा जा रहा था कि राजस्थान कैबिनेट विस्तार नवरात्र में हो सकता है. अशोक गहलोत 2 अक्टूबर के बाद दिल्ली जाएंगे और राजस्थान कांग्रेस का मसला भी हल हो जाएगा और पायलट बनाम गहलोत की जंग की हैप्पी एंडिंग हो जाएगी.

इस्तीफा सिद्धू का मुश्किल पायलट की
इस्तीफा सिद्धू का मुश्किल पायलट की

लेकिन सिद्धू के कारण सब धरा का धरा रह गया

मंगलवार शाम को जैसे ही ख़बर आई कि नवजोत सिंह ने प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है तो पायलट कैंप पर तो जैसे सिर मुंडाते ही ओेले पड़ गए. जिस सिद्दू के सहारे पायलट अपना विवाद सुलझाने की बाट जोह रहे थे उन्होंने ही अब रास्ते पर ला दिया. अमरिंदर सिंह के इस्तीफे के बाद बड़ा हुआ पंजाब का संकट, सिद्धू के बाद और भी विशाल हो गया है. कांग्रेस आलाकमान के सामने फिलहाल पंजाब का हल खोजने की चुनौती है, जहां 5 महीने बाद चुनाव होना है. जहां मुख्यमंत्री भी नया है और प्रदेश अध्यक्ष इस्तीफा दे चुका है. ऐसे में पायलट का मुद्दा एक बार फिर ठंडे बस्ते में जा सकता है.

सिब्बल ने भी उठाए आलाकमान पर सवाल

बुधवार को कपिल सिब्बल ने भी कांग्रेस आलाकमान को आड़े हाथ ले लिया है. पार्टी की हालत को देखते हुए सिब्बल ने पार्टी छोड़ने वाले नेताओं का जिक्र भी किया और कहा कि लोग क्यों पार्टी छोड़ रहे हैं, क्या इसमें हमारी गलती है. पंजाब कांग्रेस में चल रही उठापटक पर भी उन्होंने सवाल उठाए, उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस का कोई अध्यक्ष नहीं है तो फिर फैसले कौन ले रहा है.

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अनुभव बनाम युवा

कांग्रेस में अनुभव बनाम युवाओं का मसला लंबे वक्त से मौजूद है. जिसमें अब तक अनुभव की ही जीत हुई है. जब कांग्रेस की कमान राहुल गांधी को सौंपी गई थी तो कहा जा रहा था कि अब कांग्रेस में युवाओं की चलेगी लेकिन दो साल से भी कम वक्त में राहुल को कुर्सी छोड़नी पड़ी. जानकार मानते हैं कि पार्टी में पुराने और अनुभवी नेताओं की फौज भी इसकी एक वजह थी. पिछले 7 साल से लोकसभा से लेकर विधनसभा चुनावों में लगातार हार और पार्टी से नेताओं के जाने का ऐसा सिलसिला चल रहा है, जो कब थमेगा पता नहीं.

बीते साल 23 कांग्रेस नेताओं ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर सक्रिय नेतृत्व और व्यापक संगठनात्मक बदलाव की मांग की थी. 23 नेताओं के इसी समूह को जी-23 का नाम दिया गया. जिसमें गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, शशि थरूर, मनीष तिवारी, आनंद शर्मा, पीजे कुरियन, भूपेंद्र हुड्डा, राजिंदर कौर भट्टल, वीरप्पा मोइली, पृथ्वीराज चव्हाण, अजय सिंह, राज बब्बर, अरविंदर सिंह लवली, कौल सिंह ठाकुर, रेणुका चौधरी, मिलिंद देवड़ा, मुकुल वासनिक, कुलदीप शर्मा, संदीप दीक्षित को मिलाकर कुल 23 नेता थे. पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद भी इस जी-23 का हिस्सा थे जो अब बीजेपी में शामिल होने के बाद योगी के कैबिनेट मंत्री बन चुके हैं.

पायलट का क्या होगा ?

दरअसल बीते साल गहलोत और पायलट खेमे के बीच जो रस्साकशी चली उसके बाद पायलट को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया गया. उनके करीबी विधायकों की भी कैबिनेट से छुट्टी कर दी गई. सिद्धू के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद पायलट चाहते थे कि राजस्थान का भी हल निकले और उनके विधायकों को सरकार और संगठन में जगह मिले. इस ओर गहलोत और कांग्रेस आलाकमान दोनों ने कुछ कदम चल भी दिए थे लेकिन सिद्धू के इस्तीफे के बाद मामला फिर से अधर में लटक गया है.

सिद्धू को कांग्रेस पंजाब में एक नए चेहरे के रूप में देख रही थी लेकिन उनकी वजह से पहले कैप्टन अमरिंदर ने इस्तीफा दिया और अब वो खुद चले गए हैं. जानकार कहते हैं कि इस वाक्ये के बाद अगर पार्टी में चल रही अनुभवी और युवाओं की जंग में अनुभव ने बाजी मार ली तो राजस्थान में गहलोत का पलड़ा ही भारी रहेगा और सचिन पायलट फिर से खाली हाथ रह सकते हैं. जी-23 के नेताओं ने जिस तरह से कांग्रेस आलाकमान के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है उसके बाद पायलट का इंतजार और लंबा भी हो सकता है.

सिद्धू के इस्तीफे के बाद सियासी हालात पूरी तरह से बदल गए हैं. जानकार मानते हैं कि ऐसे वक्त में जी 23 गुट का हावी होना लाजमी है. पंजाब का सियासी बवाल इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती है. कांग्रेस किसी भी हालत में उस राज्य को दांव पर नहीं लगाना चाहेगी जहां उसकी मौजूदा सरकार है और अगले चुनाव में जीत का दावा कर रही हो. खासकर चन्नी को पंजाब का पहला दलित मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस फ्रंटफुट पर नजर आ रही थी लेकिन सिद्धू के इस्तीफे के बाद ऐसा लग रहा है कि पूरे करे कराए पर पानी फिर गया है. कांग्रेस आलाकमान भी पायलट के मसले पर जल्दबाजी दिखाने से बचेगा. अब कांग्रेस आलाकमान का पूरा ध्यान पंजाब पर होगा ऐसे में पायलट का मसला फिलहाल ठंडे बस्ते में ही समझिये.

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