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जम्मू कश्मीर : क्वार्टरों की मरम्मत के लिए सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटते लेप्रसी कॉलोनी के लोग - सरकारी कार्यालयों के चक्कर

जम्मू कश्मीर के श्रीनगर स्थित बहरार कॉलोनी (Bahrar Colony) के निवासी पिछले तीन साल से अपने क्वार्टर की मरम्मत के लिए सरकारी दफ्तरों का चक्कर लगा रहे हैं. आग लगने से कॉलोनी के तीन क्वार्टर क्षतिग्रस्त हो गए थे.

लेप्रसी कॉलोनी के लोग
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Published : Jul 10, 2021, 4:09 AM IST

श्रीनगर : जम्मू कश्मीर के श्रीनगर स्थित बहरार कॉलोनी (Bahrar Colony) के निवासी पिछले तीन साल से अपने क्वार्टर की मरम्मत के लिए सरकारी दफ्तरों का चक्कर लगा रहे हैं. 2018 में आग लगने से कॉलोनी के तीन क्वार्टर क्षतिग्रस्त हो गए थे.

गौरतलब है कि कॉलोनी का निर्माण 19वीं शताब्दी के आखिर में अंग्रेजों द्वारा लेप्रसी (leprosy) रोग से पीड़ित रोगियों के इलाज के लिए किया गया था, जो उस समय घातक बीमारी मानी जाती थी. निगीन झील (Lake Nigeen) के किनारे 312 कनाल भूमि पर बनी कॉलोनी में एक मंजिला क्वार्टर, झोपड़ी और एक अस्पताल है.

शुरुआत में 30 रोगियों को यहां रखा गया था और समय के साथ, इन सामाजिक रूप से अलग-थलग रोगियों (socially isolated patients) की आबादी में काफी वृद्धि हुई. हालांकि, सन 2000 में इस कॉलोनी में आगे नामांकन रोक दिया गया था क्योंकि इस दौरान कुष्ठ रोग का पूरा इलाज उपलब्ध हो चुका था.

क्वार्टरों की मरम्मत के लिए सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटते लेप्रसी कॉलोनी के लोग

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक कॉलोनी में महज 100 मरीज हैं, लेकिन, वास्तविक संख्या अब 250 से अधिक हो गई है क्योंकि इस कॉलोनी में मरने वाले मरीजों के परिवार अभी भी रह रहे हैं. यहां कई मरीज अपने बच्चों और पोते-पोतियों के साथ रह रहे हैं.

अपनी दुर्दशा के बारे में बताते हुए 65 वर्षीय मोहम्मद जमाल (Mohammad Jamal ) ने कहा कि तीन साल पहले, कॉलोनी में आग लगने की घटना (fire incident) हुई थी और इस दौरान तीन क्वार्टर क्षतिग्रस्त हो गए थे.

तब से हम क्वार्टरों की आवश्यक मरम्मत के लिए सरकारी कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन कोई हमें गंभीरता से नहीं ले रहा है. हमने श्रीनगर के उपायुक्त (Deputy Commissioner of Srinagar), कश्मीर के संभागीय आयुक्त, श्रीनगर नगर आयुक्त से मुलाकात की है लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है. हम इस डर के साथ जी रहे हैं कि किसी दिन ये क्वार्टर ढह जाएंगे.

उन्होंने कहा कि हमारे पास अपने दैनिक खर्चों (daily expenses) को पूरा करने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं है और हमें शहर के केंद्र में स्थित एक सरकारी कार्यालय में जाने के लिए एक ऑटो रिक्शा (auto rickshaw) के लिए 400 रुपये का भुगतान करना पड़ता है. हम असहाय हैं और कोई भी हमारी स्थिति को समझने की कोशिश नहीं कर रहा है. आग की घटना के तुरंत बाद डिवीजनल कश्मीर ने हमें मरम्मत की जरूरत का आश्वासन दिया था. अब तीन साल बीत चुके हैं और कुछ भी नहीं किया गया है.'

पढ़ें - बिहार में टीका वाली नाव, बाढ़ग्रस्त इलाकों में किया जा रहा वैक्सीनेशन

महामारी के बारे में बोलते हुए, उन्होंने कहा कि चार परिवार एक कमरे में रह रहे हैं, हम सामाजिक दूरी कैसे बनाए रख सकते हैं? अगर हम बाहर जाते हैं, तो कुत्ते के काटने का खतरा होता है और अंदर छत गिरने का डर होता है. इन परिस्थितियों में हम COVID दिशानिर्देशों का पालन कैसे कर सकते हैं?

इस मामले में जब ईटीवी भारत ने कश्मीर संभागीय आयुक्त पांडुरंग कोंडबाराऊ पोल से संपर्क किया, तो उन्होंने कहा कि मुझे इसकी जानकारी नहीं है, लेकिन मैं आपको विश्वास दि लाता हूं कि मैं व्यक्तिगत रूप से इस मुद्दे को देखूंगा.

श्रीनगर : जम्मू कश्मीर के श्रीनगर स्थित बहरार कॉलोनी (Bahrar Colony) के निवासी पिछले तीन साल से अपने क्वार्टर की मरम्मत के लिए सरकारी दफ्तरों का चक्कर लगा रहे हैं. 2018 में आग लगने से कॉलोनी के तीन क्वार्टर क्षतिग्रस्त हो गए थे.

गौरतलब है कि कॉलोनी का निर्माण 19वीं शताब्दी के आखिर में अंग्रेजों द्वारा लेप्रसी (leprosy) रोग से पीड़ित रोगियों के इलाज के लिए किया गया था, जो उस समय घातक बीमारी मानी जाती थी. निगीन झील (Lake Nigeen) के किनारे 312 कनाल भूमि पर बनी कॉलोनी में एक मंजिला क्वार्टर, झोपड़ी और एक अस्पताल है.

शुरुआत में 30 रोगियों को यहां रखा गया था और समय के साथ, इन सामाजिक रूप से अलग-थलग रोगियों (socially isolated patients) की आबादी में काफी वृद्धि हुई. हालांकि, सन 2000 में इस कॉलोनी में आगे नामांकन रोक दिया गया था क्योंकि इस दौरान कुष्ठ रोग का पूरा इलाज उपलब्ध हो चुका था.

क्वार्टरों की मरम्मत के लिए सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटते लेप्रसी कॉलोनी के लोग

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक कॉलोनी में महज 100 मरीज हैं, लेकिन, वास्तविक संख्या अब 250 से अधिक हो गई है क्योंकि इस कॉलोनी में मरने वाले मरीजों के परिवार अभी भी रह रहे हैं. यहां कई मरीज अपने बच्चों और पोते-पोतियों के साथ रह रहे हैं.

अपनी दुर्दशा के बारे में बताते हुए 65 वर्षीय मोहम्मद जमाल (Mohammad Jamal ) ने कहा कि तीन साल पहले, कॉलोनी में आग लगने की घटना (fire incident) हुई थी और इस दौरान तीन क्वार्टर क्षतिग्रस्त हो गए थे.

तब से हम क्वार्टरों की आवश्यक मरम्मत के लिए सरकारी कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन कोई हमें गंभीरता से नहीं ले रहा है. हमने श्रीनगर के उपायुक्त (Deputy Commissioner of Srinagar), कश्मीर के संभागीय आयुक्त, श्रीनगर नगर आयुक्त से मुलाकात की है लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है. हम इस डर के साथ जी रहे हैं कि किसी दिन ये क्वार्टर ढह जाएंगे.

उन्होंने कहा कि हमारे पास अपने दैनिक खर्चों (daily expenses) को पूरा करने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं है और हमें शहर के केंद्र में स्थित एक सरकारी कार्यालय में जाने के लिए एक ऑटो रिक्शा (auto rickshaw) के लिए 400 रुपये का भुगतान करना पड़ता है. हम असहाय हैं और कोई भी हमारी स्थिति को समझने की कोशिश नहीं कर रहा है. आग की घटना के तुरंत बाद डिवीजनल कश्मीर ने हमें मरम्मत की जरूरत का आश्वासन दिया था. अब तीन साल बीत चुके हैं और कुछ भी नहीं किया गया है.'

पढ़ें - बिहार में टीका वाली नाव, बाढ़ग्रस्त इलाकों में किया जा रहा वैक्सीनेशन

महामारी के बारे में बोलते हुए, उन्होंने कहा कि चार परिवार एक कमरे में रह रहे हैं, हम सामाजिक दूरी कैसे बनाए रख सकते हैं? अगर हम बाहर जाते हैं, तो कुत्ते के काटने का खतरा होता है और अंदर छत गिरने का डर होता है. इन परिस्थितियों में हम COVID दिशानिर्देशों का पालन कैसे कर सकते हैं?

इस मामले में जब ईटीवी भारत ने कश्मीर संभागीय आयुक्त पांडुरंग कोंडबाराऊ पोल से संपर्क किया, तो उन्होंने कहा कि मुझे इसकी जानकारी नहीं है, लेकिन मैं आपको विश्वास दि लाता हूं कि मैं व्यक्तिगत रूप से इस मुद्दे को देखूंगा.

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