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बिहार के इस गांव में होती है रावण की पूजा, जानिए क्यों - Kashi Bari Village

पूरे देश में विजयादशमी (Vijaya Dashami 2021) के अवसर पर बुराई के प्रतीक रावण को जलाया जाता है. लेकिन बिहार के किशनगंज जिले में एक ऐसा गांव है, जहां दूसरे देवी देवताओं की तरह ही रावण की भी पूजा अर्चना की जाती है. पढ़िए पूरी खबर..

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Published : Oct 15, 2021, 6:48 PM IST

किशनगंज : पूरे देश में आज दशहरा (Dussehra 2021) पर, बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के तौर पर रावण का पुतला दहन किया जाता है. वहीं किशनगंज जिले (Ravan Temple In Kishanganj) में एक गांव ऐसा भी है, जहां रावण ग्रामीणों के लिए आस्था का प्रतीक है. यहां ऐसा माना जाता है कि रावण, ग्रामीणों की मन्नत पूरी करता है.

यहां पर ग्रामीण रावण की मूर्ति की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं. दूर गांव के लोग भी यहां आकर रावण से मन्नतें मांगते हैं. इस गांव में रावण को जलाया नहीं जाता है. रावण प्रकांड विद्वान थे यह बात किसी से छुपी नहीं है. रावण अपनी शिव भक्ति के लिए भी जाने जाते हैं. उसके बावजूद रावण की पूजा राम के देश में होती हो, वो भी बिहार के किशनगंज में यह चौंकाने वाला है. लेकिन यह सच्चाई है कि बिहार के किशनगंज जिले में लोग न सिर्फ रावण की पूजा करते हैं, बल्कि रावण का मंदिर भी ग्रामीणों ने बनाकर रखा है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट.

"हम लोग पूरे साल रावण की पूजा करते हैं. यहां रावण का पुतला जलाया नहीं जाता है. मन्नत पूरी होने पर भी लोग आते हैं. सावन में भी विशेष रूप से रावण की पूजा की जाती है." - संगीता देवी, स्थानीय

बिहार के सीमावर्ती किशनगंज जिले का इतिहास बहुत प्राचीन है. मालूम हो कि महाभारत कालीन इतिहास से जिले की पहचान तो है ही, साथ ही 70% इस अल्पसंख्यक बाहुल जिले में लंकाधिपति रावण की भी पूजा की जाती है. यह मंदिर किशनगंज जिले के कोचाधामन प्रखंड स्थित रहमत पाडा के काशी बाड़ी गांव में स्थित है.

"रावण की पूजा करने से लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. हमलोग 5 साल से इस मंदिर में रावण की पूजा कर रहे हैं. इस गांव में रावण की पूजा होती है इसलिए उनका पुतला दहन नहीं किया जाता है."-स्थानीय

जहां विधि विधान के साथ रावण की सुबह-शाम पूजा की जाती है. प्रत्येक वर्ष महाशिवरात्रि में रावण के वार्षिकोत्सव में विशेष पूजा अर्चना आयोजित की जाती हैं और गांव में मेला भी लगता है. साथ ही श्रावण के प्रत्येक सोमवार को भी रावण के पूजा के लिए ग्रामीणों की भीड़ उमड़ पड़ती है.

बताते चलें कि यहां रावण का मंदिर बना हुआ है और रावण की पत्थर की मूर्ति स्थापित की गई है. ग्रामीणों द्वारा पूरे विधि विधान से जहां अन्य देवी देवताओं की पूजा की जाती है, वहीं लंकेश्वर की भी पूजा और आरती सुबह शाम होती है. स्थापित मूर्ति में रावण के दस सिर दिखाए गए हैं और हाथ में शिवलिंग भी है.

भले ही रावण का जन्म राक्षस कुल में हुआ था, लेकिन वो प्रकांड विद्वान और शिव भक्त थे.ग्रामीणों ने यहां मूर्ति स्थापित कर पूजा करने का उद्देश्य तो नहीं बताया,लेकिन ऐसी धारणा है कि तंत्र मंत्र सिद्धि के लिए रावण को प्रसन्न करने के लिए यहां पूजा की जाती है. लोगों की मन्नत भी पूरी होती है. लोग बड़ी संख्या में इस मंदिर में आते हैं और लंकाधिपति की पूजा कर उन्हें प्रसन्न कर मनचाहा वरदान मांगते हैं.

किशनगंज : पूरे देश में आज दशहरा (Dussehra 2021) पर, बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के तौर पर रावण का पुतला दहन किया जाता है. वहीं किशनगंज जिले (Ravan Temple In Kishanganj) में एक गांव ऐसा भी है, जहां रावण ग्रामीणों के लिए आस्था का प्रतीक है. यहां ऐसा माना जाता है कि रावण, ग्रामीणों की मन्नत पूरी करता है.

यहां पर ग्रामीण रावण की मूर्ति की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं. दूर गांव के लोग भी यहां आकर रावण से मन्नतें मांगते हैं. इस गांव में रावण को जलाया नहीं जाता है. रावण प्रकांड विद्वान थे यह बात किसी से छुपी नहीं है. रावण अपनी शिव भक्ति के लिए भी जाने जाते हैं. उसके बावजूद रावण की पूजा राम के देश में होती हो, वो भी बिहार के किशनगंज में यह चौंकाने वाला है. लेकिन यह सच्चाई है कि बिहार के किशनगंज जिले में लोग न सिर्फ रावण की पूजा करते हैं, बल्कि रावण का मंदिर भी ग्रामीणों ने बनाकर रखा है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट.

"हम लोग पूरे साल रावण की पूजा करते हैं. यहां रावण का पुतला जलाया नहीं जाता है. मन्नत पूरी होने पर भी लोग आते हैं. सावन में भी विशेष रूप से रावण की पूजा की जाती है." - संगीता देवी, स्थानीय

बिहार के सीमावर्ती किशनगंज जिले का इतिहास बहुत प्राचीन है. मालूम हो कि महाभारत कालीन इतिहास से जिले की पहचान तो है ही, साथ ही 70% इस अल्पसंख्यक बाहुल जिले में लंकाधिपति रावण की भी पूजा की जाती है. यह मंदिर किशनगंज जिले के कोचाधामन प्रखंड स्थित रहमत पाडा के काशी बाड़ी गांव में स्थित है.

"रावण की पूजा करने से लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. हमलोग 5 साल से इस मंदिर में रावण की पूजा कर रहे हैं. इस गांव में रावण की पूजा होती है इसलिए उनका पुतला दहन नहीं किया जाता है."-स्थानीय

जहां विधि विधान के साथ रावण की सुबह-शाम पूजा की जाती है. प्रत्येक वर्ष महाशिवरात्रि में रावण के वार्षिकोत्सव में विशेष पूजा अर्चना आयोजित की जाती हैं और गांव में मेला भी लगता है. साथ ही श्रावण के प्रत्येक सोमवार को भी रावण के पूजा के लिए ग्रामीणों की भीड़ उमड़ पड़ती है.

बताते चलें कि यहां रावण का मंदिर बना हुआ है और रावण की पत्थर की मूर्ति स्थापित की गई है. ग्रामीणों द्वारा पूरे विधि विधान से जहां अन्य देवी देवताओं की पूजा की जाती है, वहीं लंकेश्वर की भी पूजा और आरती सुबह शाम होती है. स्थापित मूर्ति में रावण के दस सिर दिखाए गए हैं और हाथ में शिवलिंग भी है.

भले ही रावण का जन्म राक्षस कुल में हुआ था, लेकिन वो प्रकांड विद्वान और शिव भक्त थे.ग्रामीणों ने यहां मूर्ति स्थापित कर पूजा करने का उद्देश्य तो नहीं बताया,लेकिन ऐसी धारणा है कि तंत्र मंत्र सिद्धि के लिए रावण को प्रसन्न करने के लिए यहां पूजा की जाती है. लोगों की मन्नत भी पूरी होती है. लोग बड़ी संख्या में इस मंदिर में आते हैं और लंकाधिपति की पूजा कर उन्हें प्रसन्न कर मनचाहा वरदान मांगते हैं.

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