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Bihar Caste Census : जातीय गणना पर बिहार सरकार को हाईकोर्ट से झटका, जानिए पटना हाईकोर्ट ने क्या कहा?

Patna High Court बिहार में जातीय जनगणना को लेकर बिहार सरकार ने पटना हाईकोर्ट से जल्द सुनवाई की मांग की थी. लेकिन पटना हाईकोर्ट ने सुनवाई की तारीख नहीं बदली और कहा कि केस की अगली सुनवाई 3 जुलाई को ही होगी. पढ़ें पूरी खबर -

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Published : May 9, 2023, 8:00 PM IST

Updated : May 9, 2023, 9:47 PM IST

बिहार सरकार को हाईकोर्ट से झटका

पटना: बिहार में जातीय गणना पर जल्द सुनवाई की मांग को पटना हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है. 5 मई को बिहार सरकार ने हाईकोर्ट से मामले में जल्द सुनवाई की अपील की थी. लेकिन अपील खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कहा है कि अब 3 जुलाई को ही इस मामले में सुनवाई होगी. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार ने कहा कि इसपर कोर्ट ने सरकार को कोई राहत नहीं दी है.

ये भी पढ़ें- Caste Census in Bihar: बिहार सरकार को पटना हाईकोर्ट से झटका, जातीय जनगणना पर जल्द सुनवाई की याचिका खारिज

जातीय जनगणना पर नीतीश सरकार को झटका: पटना हाईकोर्ट में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा प्राथमिक तौर पर माना था कि राज्य सरकार के पास जाति आधारित गणना कराने का कोई वैधानिक क्षेत्राधिकार नहीं है. कोर्ट ने इसे जनता की निजता का उल्लंघन भी माना था और ये कहते हुए इसपर रोक लगाते हुए तीन जुलाई को सुनवाई की तारीख मुकर्रर की थी. लेकिन बिहार सरकार ने इसपर अग्रिम सुनवाई की याचिका लगाकर 9 मई को फिर सुनवाई की तारीख ले ली. इसके बावजूद कोर्ट की ओर से बिहार सरकार को कोई फौरी राहत नहीं मिली. पटना हाईकोर्ट ने इस मामले में 3 मई को ही सुनने की बात कहकर अपील को खारिज कर दिया.

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''दो दिन की लगातार सुनवाई के बाद प्रथम दृष्टया हाईकोर्ट ने पाया कि जातीय जनगणना असंवैधानिक है. स्टेट के पास कोई अधिकार नहीं है कि वो कास्ट बेस गणना करें. इस पर महाधिवक्ता ने अंडरटेकिंग देने की बात कही. और कहा कि हमें कास्ट बेस जनगणना करने दिया जाए. हम डाटा को लीक नहीं करेंगे. आज हाईकोर्ट ने बिहार सरकार की इंटरलोकेटरी अपील को खारिज कर दिया और कहा कि इसपर सुनवाई पूर्व निर्धारित तिथि 3 जुलाई को ही होगी''- दीनू कुमार, याचिकाकर्ता के अधिवक्ता, पटना हाईकोर्ट

बिहार में सरकार क्यों कराना चाहती है जातिगत जनगणना? : बिहार में 215 जातियों की गणना की जा रही है. उनसे कुल 17 तरह की जानकारियां ली जा रही हैं. जातीय गणना से बिहार सरकार का उद्देश्य है कि सभी जातियों का सही-सही आंकड़ा सरकार को प्राप्त हो जाए. ताकि उनकी आर्थिक और सामाजिक आधार पर उनके लिए योजनाएं बनाई जा सके.

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वर्तमान में किस जाति की कितनी हिस्सेदारी? : एक आंकड़े के मुताबिक बिहार में दलित और मुस्लिमों की संख्या 16-16% है, जबकि यादव 14.4%, कुशवाहा 8 फीसदी, बनिया 6%, कुर्मी 4%, राजपूत 5.7 प्रतिशत, ब्राह्मण 5.7% हैं. हालांकि जातीय जनगणना के बाद ही इस आंकड़े को पुष्ट किया जा सकेगा. बिहार में सबसे ज्यादा आरक्षण अति पिछड़ा वर्ग को मिल रहा है. अनुसूचित जाति श्रेणी को 16 फीसदी जबकि पिछड़ा वर्ग को 12 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है. अनुसूचित जनजाति को 1 फीसदी और सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 फीसदी आरक्षण का फायदा दिया जा रहा है.

अभी तक हुई जातीय गणना के आंकड़े सार्वजनिक नहीं: सरकार की मंशा जातीय संख्या के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था लागू कराने की है. 1931 में जातीय जनगणना कराई गई थी. इसके बाद भी कई बार जातीय जनगणना हो चुकी है लेकिन कभी भी इन आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं किया गया. हाईकोर्ट ने बिहार की जातीय जनगणना पर रोक लगाने के साथ ही यह भी आदेश दिया है कि अब तक कलेक्ट किए गए डाटा को न तो शेयर किया जाए और न ही लीक किया जाए.

बिहार सरकार को हाईकोर्ट से झटका

पटना: बिहार में जातीय गणना पर जल्द सुनवाई की मांग को पटना हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है. 5 मई को बिहार सरकार ने हाईकोर्ट से मामले में जल्द सुनवाई की अपील की थी. लेकिन अपील खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कहा है कि अब 3 जुलाई को ही इस मामले में सुनवाई होगी. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार ने कहा कि इसपर कोर्ट ने सरकार को कोई राहत नहीं दी है.

ये भी पढ़ें- Caste Census in Bihar: बिहार सरकार को पटना हाईकोर्ट से झटका, जातीय जनगणना पर जल्द सुनवाई की याचिका खारिज

जातीय जनगणना पर नीतीश सरकार को झटका: पटना हाईकोर्ट में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा प्राथमिक तौर पर माना था कि राज्य सरकार के पास जाति आधारित गणना कराने का कोई वैधानिक क्षेत्राधिकार नहीं है. कोर्ट ने इसे जनता की निजता का उल्लंघन भी माना था और ये कहते हुए इसपर रोक लगाते हुए तीन जुलाई को सुनवाई की तारीख मुकर्रर की थी. लेकिन बिहार सरकार ने इसपर अग्रिम सुनवाई की याचिका लगाकर 9 मई को फिर सुनवाई की तारीख ले ली. इसके बावजूद कोर्ट की ओर से बिहार सरकार को कोई फौरी राहत नहीं मिली. पटना हाईकोर्ट ने इस मामले में 3 मई को ही सुनने की बात कहकर अपील को खारिज कर दिया.

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''दो दिन की लगातार सुनवाई के बाद प्रथम दृष्टया हाईकोर्ट ने पाया कि जातीय जनगणना असंवैधानिक है. स्टेट के पास कोई अधिकार नहीं है कि वो कास्ट बेस गणना करें. इस पर महाधिवक्ता ने अंडरटेकिंग देने की बात कही. और कहा कि हमें कास्ट बेस जनगणना करने दिया जाए. हम डाटा को लीक नहीं करेंगे. आज हाईकोर्ट ने बिहार सरकार की इंटरलोकेटरी अपील को खारिज कर दिया और कहा कि इसपर सुनवाई पूर्व निर्धारित तिथि 3 जुलाई को ही होगी''- दीनू कुमार, याचिकाकर्ता के अधिवक्ता, पटना हाईकोर्ट

बिहार में सरकार क्यों कराना चाहती है जातिगत जनगणना? : बिहार में 215 जातियों की गणना की जा रही है. उनसे कुल 17 तरह की जानकारियां ली जा रही हैं. जातीय गणना से बिहार सरकार का उद्देश्य है कि सभी जातियों का सही-सही आंकड़ा सरकार को प्राप्त हो जाए. ताकि उनकी आर्थिक और सामाजिक आधार पर उनके लिए योजनाएं बनाई जा सके.

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वर्तमान में किस जाति की कितनी हिस्सेदारी? : एक आंकड़े के मुताबिक बिहार में दलित और मुस्लिमों की संख्या 16-16% है, जबकि यादव 14.4%, कुशवाहा 8 फीसदी, बनिया 6%, कुर्मी 4%, राजपूत 5.7 प्रतिशत, ब्राह्मण 5.7% हैं. हालांकि जातीय जनगणना के बाद ही इस आंकड़े को पुष्ट किया जा सकेगा. बिहार में सबसे ज्यादा आरक्षण अति पिछड़ा वर्ग को मिल रहा है. अनुसूचित जाति श्रेणी को 16 फीसदी जबकि पिछड़ा वर्ग को 12 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है. अनुसूचित जनजाति को 1 फीसदी और सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 फीसदी आरक्षण का फायदा दिया जा रहा है.

अभी तक हुई जातीय गणना के आंकड़े सार्वजनिक नहीं: सरकार की मंशा जातीय संख्या के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था लागू कराने की है. 1931 में जातीय जनगणना कराई गई थी. इसके बाद भी कई बार जातीय जनगणना हो चुकी है लेकिन कभी भी इन आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं किया गया. हाईकोर्ट ने बिहार की जातीय जनगणना पर रोक लगाने के साथ ही यह भी आदेश दिया है कि अब तक कलेक्ट किए गए डाटा को न तो शेयर किया जाए और न ही लीक किया जाए.

Last Updated : May 9, 2023, 9:47 PM IST
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