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प्रक्रियाओं में प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल माकूल सुरक्षा उपायों के बाद हो: संसदीय समिति

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By PTI

Published : Nov 23, 2023, 1:52 PM IST

समिति ने कहा कि प्रौद्योगिकी के बढ़ते उपयोग से कई फायदे मिलते हैं, लेकिन यह हेरफेर और दुरुपयोग के अवसर भी पैदा करती है. उसने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य का संग्रह और भंडारण, डेटा सुरक्षा और अनधिकृत पहुंच या उल्लंघनों की संभावना के बारे में चिंता पैदा करता है. (technology in legal process, CRIMINAL TECHNOLOGY)

technology in legal process
संसदीय समिति

नई दिल्ली: तीन प्रस्तावित आपराधिक कानूनों की समीक्षा करने वाली एक संसदीय समिति ने कानूनी कार्यवाही में प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा देने के कदम की सराहना की है, लेकिन साथ ही उसने ताकीद की है कि संवाद और सुनवाई के साधनों के रूप में प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल माकूल सुरक्षा उपायों के साथ हो और तभी इस दिशा में आगे बढ़ा जाना चाहिए. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद बृजलाल की अध्यक्षता वाली गृह मामलों पर संसद की स्थायी समिति ने यह भी कहा कि ऑनलाइन या इलेक्ट्रॉनिक प्राथमिकी दर्ज करने की अनुमति देना एक सकारात्मक कदम है, लेकिन इन्हें केवल राज्य द्वारा निर्दिष्ट तरीकों के माध्यम से अनुमति दी जानी चाहिए.

समिति ने कहा, 'संहिता में खंड 532 के प्रावधान के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से सुनवाई की स्वीकृति का प्रावधान है, जिसमें जांच, पूछताछ या सुनवाई संबंधी कार्यवाही उन इलेक्ट्रॉनिक संचार उपकरणों के माध्यम से की जा सकती है, जिनमें डिजिटल साक्ष्य होने की संभावना है.' उसने कहा, 'इलेक्ट्रॉनिक संचार में मोबाइल, कंप्यूटर या टेलीफोन जैसे उपकरण शामिल हैं. समिति संहिता में बढ़े हुए तकनीकी एकीकरण पर ध्यान देती है, कानूनी कार्यवाही में प्रौद्योगिकी के बढ़ते उपयोग पर जोर देती है और इसे एक स्वागत योग्य बदलाव मानती है.'

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के खंड 532 के अनुसार, 'इस संहिता के तहत सभी सुनवाई, पूछताछ और कार्यवाही - समन और वारंट, जारी करने, सेवा और निष्पादन सहित जांच का आयोजन, शिकायतकर्ता और गवाहों की जांच, सत्र न्यायालय के समक्ष मुकदमा, वारंट मामलों में सुनवाई, समन-मामलों में सुनवाई, सारांश परीक्षण और याचिका सौदेबाजी, पूछताछ और सुनवाई में साक्ष्य की रिकॉर्डिंग, उच्च न्यायालयों के समक्ष मुकदमे, सभी अपीलीय कार्यवाही और ऐसी अन्य कार्यवाही, इलेक्ट्रॉनिक संचार या ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक साधनों के उपयोग के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक मोड में आयोजित की जा सकती हैं.'

समिति ने कहा कि प्रौद्योगिकी के बढ़ते उपयोग से कई फायदे मिलते हैं, लेकिन यह हेरफेर और दुरुपयोग के अवसर भी पैदा करती है. उसने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य का संग्रह और भंडारण, डेटा सुरक्षा और अनधिकृत पहुंच या उल्लंघनों की संभावना के बारे में चिंता पैदा करता है. इसलिए, समिति सिफारिश करती है कि संवाद और सुनवाई के लिए इलेक्ट्रॉनिक साधनों को अपनाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक रूप से उपलब्ध डेटा के सुरक्षित उपयोग और प्रमाणीकरण को सुनिश्चित करने के लिए मजबूत सुरक्षा उपाय किए जाने के बाद ही आगे बढ़ना चाहिए.

इसमें कहा गया है, 'इससे न्याय प्रणाली की अखंडता की रक्षा करने में मदद मिलेगी और यह सुनिश्चित होगा कि न्याय निष्पक्ष और सटीक रूप से प्रशासित हो.' समिति ने कहा कि एफआईआर दर्ज करने के लिए किसी भी प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक संचार की अनुमति देने से कानून प्रवर्तन के लिए लॉजिस्टिक और तकनीकी चुनौतियां पैदा हो सकती हैं. इसके अलावा, दर्ज की गई सभी एफआईआर को ट्रैक करना मुश्किल हो सकता है, खासकर उस परिस्थिति में जब किसी पुलिस अधिकारी को एसएमएस भेजे जाने मात्र को ही खंड 173 के दायरे में जानकारी प्रदान करने के रूप में मान लिया जाए.

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के खंड 173 के अनुसार, 'संज्ञेय अपराध से संबंधित हर जानकारी, चाहे अपराध किसी भी क्षेत्र में किया गया हो, मौखिक रूप से या इलेक्ट्रॉनिक संचार द्वारा दी जा सकती है.' जैसा कि संहिता विभिन्न प्रक्रियाओं को करने के लिए दृश्य-श्रव्य और इलेक्ट्रॉनिक साधनों को औपचारिक रूप से अपनाने की शुरुआत करती है, समिति महसूस करती है कि ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक मोड के माध्यम से भी बचाव के लिए साक्ष्य की रिकॉर्डिंग की सुविधा के लिए खंड 266 में एक प्रावधान जोड़ा जा सकता है.

इसमें कहा गया है, 'हालांकि, समिति का यह भी मानना है कि गवाहों को सिखाने या धमकाने की संभावना से बचने के लिए इस तरह की रिकॉर्डिंग की अनुमति केवल चुनिंदा सरकारी स्थानों पर दी जानी चाहिए.' इसमें कहा गया है, 'इसलिए समिति सिफारिश करती है कि उचित सुरक्षा उपाय सुनिश्चित करने के बाद बचाव पक्ष के साक्ष्य की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग की सुविधा के लिए खंड में एक उचित प्रावधान जोड़ा जा सकता है.'

पढ़ें: प्रस्तावित आपराधिक कानूनों को हिंदी में दिए गए नामों पर संसदीय समिति ने लगाई मुहर

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसए-2023) विधेयक को 11 अगस्त को लोकसभा में भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस-2023) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए-2023) विधेयकों के साथ पेश किया गया था. तीन प्रस्तावित कानून क्रमशः दंड प्रक्रिया संहिता अधिनियम, 1898, भारतीय दंड संहिता, 1860 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 को प्रतिस्थापित करने के लिए हैं.

नई दिल्ली: तीन प्रस्तावित आपराधिक कानूनों की समीक्षा करने वाली एक संसदीय समिति ने कानूनी कार्यवाही में प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा देने के कदम की सराहना की है, लेकिन साथ ही उसने ताकीद की है कि संवाद और सुनवाई के साधनों के रूप में प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल माकूल सुरक्षा उपायों के साथ हो और तभी इस दिशा में आगे बढ़ा जाना चाहिए. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद बृजलाल की अध्यक्षता वाली गृह मामलों पर संसद की स्थायी समिति ने यह भी कहा कि ऑनलाइन या इलेक्ट्रॉनिक प्राथमिकी दर्ज करने की अनुमति देना एक सकारात्मक कदम है, लेकिन इन्हें केवल राज्य द्वारा निर्दिष्ट तरीकों के माध्यम से अनुमति दी जानी चाहिए.

समिति ने कहा, 'संहिता में खंड 532 के प्रावधान के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से सुनवाई की स्वीकृति का प्रावधान है, जिसमें जांच, पूछताछ या सुनवाई संबंधी कार्यवाही उन इलेक्ट्रॉनिक संचार उपकरणों के माध्यम से की जा सकती है, जिनमें डिजिटल साक्ष्य होने की संभावना है.' उसने कहा, 'इलेक्ट्रॉनिक संचार में मोबाइल, कंप्यूटर या टेलीफोन जैसे उपकरण शामिल हैं. समिति संहिता में बढ़े हुए तकनीकी एकीकरण पर ध्यान देती है, कानूनी कार्यवाही में प्रौद्योगिकी के बढ़ते उपयोग पर जोर देती है और इसे एक स्वागत योग्य बदलाव मानती है.'

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के खंड 532 के अनुसार, 'इस संहिता के तहत सभी सुनवाई, पूछताछ और कार्यवाही - समन और वारंट, जारी करने, सेवा और निष्पादन सहित जांच का आयोजन, शिकायतकर्ता और गवाहों की जांच, सत्र न्यायालय के समक्ष मुकदमा, वारंट मामलों में सुनवाई, समन-मामलों में सुनवाई, सारांश परीक्षण और याचिका सौदेबाजी, पूछताछ और सुनवाई में साक्ष्य की रिकॉर्डिंग, उच्च न्यायालयों के समक्ष मुकदमे, सभी अपीलीय कार्यवाही और ऐसी अन्य कार्यवाही, इलेक्ट्रॉनिक संचार या ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक साधनों के उपयोग के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक मोड में आयोजित की जा सकती हैं.'

समिति ने कहा कि प्रौद्योगिकी के बढ़ते उपयोग से कई फायदे मिलते हैं, लेकिन यह हेरफेर और दुरुपयोग के अवसर भी पैदा करती है. उसने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य का संग्रह और भंडारण, डेटा सुरक्षा और अनधिकृत पहुंच या उल्लंघनों की संभावना के बारे में चिंता पैदा करता है. इसलिए, समिति सिफारिश करती है कि संवाद और सुनवाई के लिए इलेक्ट्रॉनिक साधनों को अपनाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक रूप से उपलब्ध डेटा के सुरक्षित उपयोग और प्रमाणीकरण को सुनिश्चित करने के लिए मजबूत सुरक्षा उपाय किए जाने के बाद ही आगे बढ़ना चाहिए.

इसमें कहा गया है, 'इससे न्याय प्रणाली की अखंडता की रक्षा करने में मदद मिलेगी और यह सुनिश्चित होगा कि न्याय निष्पक्ष और सटीक रूप से प्रशासित हो.' समिति ने कहा कि एफआईआर दर्ज करने के लिए किसी भी प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक संचार की अनुमति देने से कानून प्रवर्तन के लिए लॉजिस्टिक और तकनीकी चुनौतियां पैदा हो सकती हैं. इसके अलावा, दर्ज की गई सभी एफआईआर को ट्रैक करना मुश्किल हो सकता है, खासकर उस परिस्थिति में जब किसी पुलिस अधिकारी को एसएमएस भेजे जाने मात्र को ही खंड 173 के दायरे में जानकारी प्रदान करने के रूप में मान लिया जाए.

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के खंड 173 के अनुसार, 'संज्ञेय अपराध से संबंधित हर जानकारी, चाहे अपराध किसी भी क्षेत्र में किया गया हो, मौखिक रूप से या इलेक्ट्रॉनिक संचार द्वारा दी जा सकती है.' जैसा कि संहिता विभिन्न प्रक्रियाओं को करने के लिए दृश्य-श्रव्य और इलेक्ट्रॉनिक साधनों को औपचारिक रूप से अपनाने की शुरुआत करती है, समिति महसूस करती है कि ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक मोड के माध्यम से भी बचाव के लिए साक्ष्य की रिकॉर्डिंग की सुविधा के लिए खंड 266 में एक प्रावधान जोड़ा जा सकता है.

इसमें कहा गया है, 'हालांकि, समिति का यह भी मानना है कि गवाहों को सिखाने या धमकाने की संभावना से बचने के लिए इस तरह की रिकॉर्डिंग की अनुमति केवल चुनिंदा सरकारी स्थानों पर दी जानी चाहिए.' इसमें कहा गया है, 'इसलिए समिति सिफारिश करती है कि उचित सुरक्षा उपाय सुनिश्चित करने के बाद बचाव पक्ष के साक्ष्य की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग की सुविधा के लिए खंड में एक उचित प्रावधान जोड़ा जा सकता है.'

पढ़ें: प्रस्तावित आपराधिक कानूनों को हिंदी में दिए गए नामों पर संसदीय समिति ने लगाई मुहर

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसए-2023) विधेयक को 11 अगस्त को लोकसभा में भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस-2023) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए-2023) विधेयकों के साथ पेश किया गया था. तीन प्रस्तावित कानून क्रमशः दंड प्रक्रिया संहिता अधिनियम, 1898, भारतीय दंड संहिता, 1860 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 को प्रतिस्थापित करने के लिए हैं.

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