ETV Bharat / bharat

निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति और फार्मेसी संशोधन विधेयक संसद में हुए पेश - फार्मेसी संशोधन विधेयक

केंद्र सरकार ने गुरुवार को विपक्ष के हंगामे के बीच कुछ विधेयक पेश किए गए और उन्हें पारित किया गया. इनमें से एक विधेयक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और आयुक्तों के चयन के लिए समिति में प्रधान न्यायाधीश के स्थान पर एक कैबिनेट मंत्री को शामिल करने के प्रस्ताव का था. इसके अलावा राज्यसभा में फार्मेसी संशोधन विधेयक 2023 को भी मंजूरी दी गई.

Bill introduced in Parliament
संसद में विधेयक पेश
author img

By

Published : Aug 10, 2023, 5:18 PM IST

नई दिल्ली: सरकार ने गुरुवार को विपक्ष के हंगामे के बीच एक विवादास्पद विधेयक पेश किया, जिसमें मुख्य निर्वाचन आयुक्त और आयुक्तों के चयन के लिए समिति में प्रधान न्यायाधीश के स्थान पर एक कैबिनेट मंत्री को शामिल करने का प्रस्ताव किया गया है. उच्चतम न्यायालय ने मार्च में एक ऐतिहासिक फैसला दिया था कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्तियां प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधान न्यायाधीश की सदस्यता वाली एक समिति की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएंगी.

न्यायालय ने कहा था कि यह मानदंड तब तक प्रभावी रहेगा, जब तक कि इस मुद्दे पर संसद में कोई कानून नहीं बन जाता. विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पदावधि) विधेयक, 2023 पुर:स्थापित किया. विपक्षी सदस्यों के विरोध के बीच उन्होंने यह विधेयक सदन में पेश किया. यह विधेयक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति, सेवा की शर्तों और कार्यकाल के विनियमन से संबंधित है.

इस विधेयक में प्रावधान किया गया है कि भविष्य में निर्वाचन आयुक्तों का चयन प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति द्वारा किया जाएगा, जिसमें लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और एक कैबिनेट मंत्री शामिल होंगे. कांग्रेस सहित विभिन्न विपक्षी दलों के नेताओं ने सरकार पर संविधान पीठ के आदेश को शिथिल करने का आरोप लगाया. निर्चाचन आयोग में पहली रिक्ति अगले साल होगी, जब मौजूदा निर्वाचन आयुक्त अनूप चंद्र पांडे 14 फरवरी को 65 वर्ष की उम्र होने के बाद अवकाशग्रहण करेंगे.

वह 2024 के लोकसभा चुनावों की संभावित घोषणा से कुछ दिन पहले अवकाशग्रहण करेंगे. उच्चतम न्यायालय ने मार्च में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था, जिसका मकसद मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति को कार्यपालिका के हस्तक्षेप से बचाना है. न्यायालय ने फैसला दिया था कि उनकी नियुक्तियां प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधान न्यायाधीश की सदस्यता वाली एक समिति की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएंगी.

न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मत फैसले में कहा था कि यह मानदंड तब तक प्रभावी रहेगा जब तक कि इस मुद्दे पर संसद में कोई कानून नहीं बन जाता. उच्चतम न्यायालय के फैसले से पहले, मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती थी.

सरकार के इस कदम पर वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि अगर यह विधेयक संसद से पारित हो जाता है, तो उनके विचार में यह असंवैधानिक होगा और उच्चतम न्यायालय द्वारा इसे रद्द किये जाने की संभावना है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि उन्होंने हमेशा कहा है कि मौजूदा केंद्र सरकार उच्चतम न्यायालय के ऐसे किसी भी आदेश को पलट देगी जो उसे पसंद नहीं आएगा. उन्होंने कहा कि यह एक खतरनाक स्थिति है और इससे चुनाव की निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है.

केजरीवाल ने एक्स पर कहा कि प्रस्तावित समिति में भारतीय जनता पार्टी के दो और कांग्रेस के एक सदस्य होंगे. उन्होंने कहा कि '...जाहिर है कि जो निर्वाचन आयुक्त चुने जाएंगे, वह भाजपा के वफादार होंगे.' सोशल मीडिया मंच ट्विटर का नाम बदलकर अब एक्स कर दिया गया है. कांग्रेस महासचिव (संगठन) के सी वेणुगोपाल ने सरकार पर निशाना साधा और इसे निर्वाचन आयोग को प्रधानमंत्री के हाथों की कठपुतली बनाने का प्रयास बताया.

वेणुगोपाल ने एक्स पर कहा कि उच्चतम न्यायालय के मौजूदा फैसले के बारे में क्या कहना है जिसके तहत एक निष्पक्ष समिति की आवश्यकता है? प्रधानमंत्री को पक्षपाती निर्वाचन आयुक्त नियुक्त करने की आवश्यकता क्यों महसूस होती है? यह एक असंवैधानिक, मनमाना और अनुचित विधेयक है - हम हर मंच पर इसका विरोध करेंगे. कांग्रेस नेता और लोकसभा में पार्टी के सचेतक मणिक्कम टैगोर ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह यह विधेयक लाकर निर्वाचन आयोग को नियंत्रित करना चाहते हैं.

टैगोर ने एक्स पर लिखा कि मोदी और शाह निर्वाचन आयोग को नियंत्रित करना चाहते हैं, जैसा वे अभी कर रहे हैं. मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पदावधि) विधेयक, 2023 के अनुसार मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति एक चयन समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी. विधेयक के अनुसार, प्रधानमंत्री इस समिति के प्रमुख होंगे और समिति में लोकसभा में विपक्ष के नेता (एलओपी) और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री होंगे.

फार्मेसी संशोधन विधेयक 2023 को मंजूरी

राज्यसभा ने गुरुवार को फार्मेसी संशोधन विधेयक 2023 को मंजूरी दे दी, जिसमें केंद्रशासित प्रदेश जम्मू कश्मीर के संबंध में फार्मेसी अधिनियम, 1948 में संशोधन का प्रस्ताव है. उच्च सदन ने विपक्ष के हंगामे के बीच इस विधेयक को मंजूरी दी. उस समय विपक्ष के सदस्य मणिपुर मुद्दे को लेकर हंगामा कर रहे थे. कुछ सदस्य आसन के समीप आकर सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे. स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने विधेयक को पारित करने का प्रस्ताव किया जिसे सदन ने ध्वनिमत से मंजूरी दे दी.

पढ़ें: लोकसभा में सीतारमण का विपक्ष पर कटाक्ष, बोलीं- बनेगा, मिलेगा का जमाना गया...जनता आज बोलती है बन गया, मिल गया

लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है. फार्मेसी अधिनियम, 1948 में संशोधन के प्रावधान वाला यह विधेयक फार्मासिस्ट के पंजीकरण से जुड़ा हुआ है. भारत में फार्मेसी का अभ्यास करने के लिए मूल फार्मेसी अधिनियम के तहत पंजीकरण अनिवार्य है. इस विधेयक में कहा गया है कि जो कोई भी जम्मू कश्मीर फार्मेसी अधिनियम, के तहत फार्मासिस्ट के रूप में पंजीकृत है या निर्धारित पात्रता रखता है, उसे फार्मेसी अधिनियम, 1948 के तहत फार्मासिस्ट के रूप में पंजीकृत माना जाएगा.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली: सरकार ने गुरुवार को विपक्ष के हंगामे के बीच एक विवादास्पद विधेयक पेश किया, जिसमें मुख्य निर्वाचन आयुक्त और आयुक्तों के चयन के लिए समिति में प्रधान न्यायाधीश के स्थान पर एक कैबिनेट मंत्री को शामिल करने का प्रस्ताव किया गया है. उच्चतम न्यायालय ने मार्च में एक ऐतिहासिक फैसला दिया था कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्तियां प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधान न्यायाधीश की सदस्यता वाली एक समिति की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएंगी.

न्यायालय ने कहा था कि यह मानदंड तब तक प्रभावी रहेगा, जब तक कि इस मुद्दे पर संसद में कोई कानून नहीं बन जाता. विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पदावधि) विधेयक, 2023 पुर:स्थापित किया. विपक्षी सदस्यों के विरोध के बीच उन्होंने यह विधेयक सदन में पेश किया. यह विधेयक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति, सेवा की शर्तों और कार्यकाल के विनियमन से संबंधित है.

इस विधेयक में प्रावधान किया गया है कि भविष्य में निर्वाचन आयुक्तों का चयन प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति द्वारा किया जाएगा, जिसमें लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और एक कैबिनेट मंत्री शामिल होंगे. कांग्रेस सहित विभिन्न विपक्षी दलों के नेताओं ने सरकार पर संविधान पीठ के आदेश को शिथिल करने का आरोप लगाया. निर्चाचन आयोग में पहली रिक्ति अगले साल होगी, जब मौजूदा निर्वाचन आयुक्त अनूप चंद्र पांडे 14 फरवरी को 65 वर्ष की उम्र होने के बाद अवकाशग्रहण करेंगे.

वह 2024 के लोकसभा चुनावों की संभावित घोषणा से कुछ दिन पहले अवकाशग्रहण करेंगे. उच्चतम न्यायालय ने मार्च में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था, जिसका मकसद मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति को कार्यपालिका के हस्तक्षेप से बचाना है. न्यायालय ने फैसला दिया था कि उनकी नियुक्तियां प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधान न्यायाधीश की सदस्यता वाली एक समिति की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएंगी.

न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मत फैसले में कहा था कि यह मानदंड तब तक प्रभावी रहेगा जब तक कि इस मुद्दे पर संसद में कोई कानून नहीं बन जाता. उच्चतम न्यायालय के फैसले से पहले, मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती थी.

सरकार के इस कदम पर वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि अगर यह विधेयक संसद से पारित हो जाता है, तो उनके विचार में यह असंवैधानिक होगा और उच्चतम न्यायालय द्वारा इसे रद्द किये जाने की संभावना है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि उन्होंने हमेशा कहा है कि मौजूदा केंद्र सरकार उच्चतम न्यायालय के ऐसे किसी भी आदेश को पलट देगी जो उसे पसंद नहीं आएगा. उन्होंने कहा कि यह एक खतरनाक स्थिति है और इससे चुनाव की निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है.

केजरीवाल ने एक्स पर कहा कि प्रस्तावित समिति में भारतीय जनता पार्टी के दो और कांग्रेस के एक सदस्य होंगे. उन्होंने कहा कि '...जाहिर है कि जो निर्वाचन आयुक्त चुने जाएंगे, वह भाजपा के वफादार होंगे.' सोशल मीडिया मंच ट्विटर का नाम बदलकर अब एक्स कर दिया गया है. कांग्रेस महासचिव (संगठन) के सी वेणुगोपाल ने सरकार पर निशाना साधा और इसे निर्वाचन आयोग को प्रधानमंत्री के हाथों की कठपुतली बनाने का प्रयास बताया.

वेणुगोपाल ने एक्स पर कहा कि उच्चतम न्यायालय के मौजूदा फैसले के बारे में क्या कहना है जिसके तहत एक निष्पक्ष समिति की आवश्यकता है? प्रधानमंत्री को पक्षपाती निर्वाचन आयुक्त नियुक्त करने की आवश्यकता क्यों महसूस होती है? यह एक असंवैधानिक, मनमाना और अनुचित विधेयक है - हम हर मंच पर इसका विरोध करेंगे. कांग्रेस नेता और लोकसभा में पार्टी के सचेतक मणिक्कम टैगोर ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह यह विधेयक लाकर निर्वाचन आयोग को नियंत्रित करना चाहते हैं.

टैगोर ने एक्स पर लिखा कि मोदी और शाह निर्वाचन आयोग को नियंत्रित करना चाहते हैं, जैसा वे अभी कर रहे हैं. मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पदावधि) विधेयक, 2023 के अनुसार मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति एक चयन समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी. विधेयक के अनुसार, प्रधानमंत्री इस समिति के प्रमुख होंगे और समिति में लोकसभा में विपक्ष के नेता (एलओपी) और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री होंगे.

फार्मेसी संशोधन विधेयक 2023 को मंजूरी

राज्यसभा ने गुरुवार को फार्मेसी संशोधन विधेयक 2023 को मंजूरी दे दी, जिसमें केंद्रशासित प्रदेश जम्मू कश्मीर के संबंध में फार्मेसी अधिनियम, 1948 में संशोधन का प्रस्ताव है. उच्च सदन ने विपक्ष के हंगामे के बीच इस विधेयक को मंजूरी दी. उस समय विपक्ष के सदस्य मणिपुर मुद्दे को लेकर हंगामा कर रहे थे. कुछ सदस्य आसन के समीप आकर सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे. स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने विधेयक को पारित करने का प्रस्ताव किया जिसे सदन ने ध्वनिमत से मंजूरी दे दी.

पढ़ें: लोकसभा में सीतारमण का विपक्ष पर कटाक्ष, बोलीं- बनेगा, मिलेगा का जमाना गया...जनता आज बोलती है बन गया, मिल गया

लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है. फार्मेसी अधिनियम, 1948 में संशोधन के प्रावधान वाला यह विधेयक फार्मासिस्ट के पंजीकरण से जुड़ा हुआ है. भारत में फार्मेसी का अभ्यास करने के लिए मूल फार्मेसी अधिनियम के तहत पंजीकरण अनिवार्य है. इस विधेयक में कहा गया है कि जो कोई भी जम्मू कश्मीर फार्मेसी अधिनियम, के तहत फार्मासिस्ट के रूप में पंजीकृत है या निर्धारित पात्रता रखता है, उसे फार्मेसी अधिनियम, 1948 के तहत फार्मासिस्ट के रूप में पंजीकृत माना जाएगा.

(पीटीआई-भाषा)

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.