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संसद ने झारखंड के भोगता समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने संबंधी विधेयक को मंजूरी दी

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Published : Apr 5, 2022, 10:43 PM IST

संसद ने मंगलवार को एक विधेयक को मंजूरी दे दी जिसमें झारखंड में भोगता समुदाय को अनुसूचित जातियों की सूची से हटाकर (remove Bhogta caste from SC list) अनुसूचित जनजातियों की सूची में डालने तथा कुछ अन्य समुदायों को जनजाति की सूची में शामिल करने के प्रावधान हैं. लोकसभा ने संविधान (अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां) आदेश (संशोधन) विधेयक, 2022 (Constitution (Scheduled Castes and Scheduled Tribes) Order (Amendment) Bill, 2022) को आज चर्चा के बाद ध्वनिमत से पारित कर दिया.

Arjun Munda
अर्जुन मुंडा

नई दिल्ली: संसद ने मंगलवार को एक विधेयक को मंजूरी दे दी जिसमें झारखंड में भोगता समुदाय को अनुसूचित जातियों की सूची से हटाकर (remove Bhogta caste from SC list) अनुसूचित जनजातियों की सूची में डालने तथा कुछ अन्य समुदायों को जनजाति की सूची में शामिल करने के प्रावधान हैं. लोकसभा ने संविधान (अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां) आदेश (संशोधन) विधेयक, 2022 (Constitution (Scheduled Castes and Scheduled Tribes) Order (Amendment) Bill, 2022) को आज चर्चा के बाद ध्वनिमत से पारित कर दिया. राज्यसभा ने गत बुधवार को इस विधेयक को मंजूरी दी थी. निचले सदन में चर्चा का जवाब देते हुए जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जनजातियों के विकास एवं कल्याण का कार्य प्रतिबद्धता के साथ किया जा रहा है. इन्हीं प्रयासों के तहत विसंगतियों को दूर किया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव की मूल अवधारणा यह है कि जनजातियों को लेकर जो चीजें 75 साल में नहीं हो सकीं, वो 100 वर्ष पूरा करने तक हो जाएं और उन्हें मुख्यधारा में लाया जाए. जनजातियों को लेकर राजनीति करने के कांग्रेस के एक सदस्य के आरोप पर मुंडा ने कहा कि आपकी पार्टी ने लंबे समय तक शासन किया तब आपने ऐसा क्यों नहीं किया ? आपने जनजातियों को नजरंदाज किया? उन्होंने कहा कि हमने संविधान के तहत निर्धारित मानदंडों के तहत काम किया. यह ऐतिहासिक कालखंड है जब आदिवासियों के कल्याण की चिंता सरकार कर रही है.

पढ़ें: अनुसूचित जनजाति से जुड़े संवैधानिक आदेश में संशोधन की पहल, लोक सभा से विधेयक पारित

मंत्री के जवाब के बाद लोकसभा ने ‘संविधान (अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां) आदेश (संशोधन) विधेयक, 2022’ को मंजूरी दे दी. इस विधेयक के माध्यम से झारखंड राज्य के संबंध में अनुसूचित जातियों की सूची में से भोगता समुदाय को लोप करने के लिए संविधान अनुसूचित जातियां आदेश 1950 तथा झारखंड राज्य के संबंध में अनुसूचित जनजातियों की सूचियों में कुछ समुदायों को सम्मिलित करने के लिये संविधान अनुसूचित जनजातियां आदेश 1950 का और संशोधन करने का प्रस्ताव किया गया है. विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि, संशोधन के तहत संविधान अनुसूचित जनजातियां आदेश 1950 की अनुसूची के भाग 22 में झारखंड में प्रविष्टि 16 के स्थान पर खरवार, भोगता, देशवारी, गंझू, दौलतबंदी, पटबंदी, राउत, माझिया और खैरी को रखा जाएगा.

वहीं, इसकी प्रविष्टि 24 में ‘पतार’ के बाद ‘तमरिया’ अंत:स्थापित करने तथा प्रविष्टि 32 में पुरान समुदाय को शामिल करने का प्रस्ताव है. विधेयक पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए कांग्रेस के के. सुरेश ने कहा कि पहले त्रिपुरा, फिर उत्तर प्रदेश और अब झारखंड के लिए इस तरह का विधेयक लाया गया है. उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव की दृष्टि से कई समुदायों को अनुसूचित जातियों से अनुसूचित जनजातियों में जोड़ने के लिए ऐसे विधेयक लाये जा रहे हैं. सुरेश ने कहा कि इन समुदायों की वास्तविक समस्याओं पर भी सरकार को ध्यान देना चाहिए.

पढ़ें: केंद्रीय मंत्री ने असम के छह समूहों के अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग पर विस्तृत जानकारी नहीं दी

उद्देश्य तुष्टीकरण है, उत्थान नहीं: उन्होंने यह भी दावा किया कि सरकार वन अधिकार कानून को लागू करने के लिए भी कुछ नहीं कर रही. भाजपा के सुनील कुमार सिंह ने कहा कि इन जातियों को 74 वर्ष बाद न्याय मिल पाया है. उन्होंने कहा कि हम वोट बैंक के लिए ऐसे विधेयक नहीं ला रहे, बल्कि कांग्रेस की गलतियों को सुधार रहे हैं. द्रमुक के वी सेंथिल कुमार ने भी आरोप लगाया कि चुनावों की रणनीति के तहत ऐसे विधेयक लाये जा रहे हैं और इनका उद्देश्य तुष्टीकरण है, उत्थान नहीं. तृणमूल कांग्रेस की प्रतिमा मंडल ने कहा कि आजादी के 74 वर्ष बाद भी जनजातीय समुदायों की दशा में खास अंतर नहीं आया है. चर्चा में हिस्सा लेते हुए भाजपा के एसएस आहलूवालिया ने कहा कि देश की सभी जनजातियों की अपनी बोली, मातृभाषा होती है, ऐसे में इनके संरक्षण की दिशा में सरकार को कदम उठाना चाहिए.

नई दिल्ली: संसद ने मंगलवार को एक विधेयक को मंजूरी दे दी जिसमें झारखंड में भोगता समुदाय को अनुसूचित जातियों की सूची से हटाकर (remove Bhogta caste from SC list) अनुसूचित जनजातियों की सूची में डालने तथा कुछ अन्य समुदायों को जनजाति की सूची में शामिल करने के प्रावधान हैं. लोकसभा ने संविधान (अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां) आदेश (संशोधन) विधेयक, 2022 (Constitution (Scheduled Castes and Scheduled Tribes) Order (Amendment) Bill, 2022) को आज चर्चा के बाद ध्वनिमत से पारित कर दिया. राज्यसभा ने गत बुधवार को इस विधेयक को मंजूरी दी थी. निचले सदन में चर्चा का जवाब देते हुए जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जनजातियों के विकास एवं कल्याण का कार्य प्रतिबद्धता के साथ किया जा रहा है. इन्हीं प्रयासों के तहत विसंगतियों को दूर किया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव की मूल अवधारणा यह है कि जनजातियों को लेकर जो चीजें 75 साल में नहीं हो सकीं, वो 100 वर्ष पूरा करने तक हो जाएं और उन्हें मुख्यधारा में लाया जाए. जनजातियों को लेकर राजनीति करने के कांग्रेस के एक सदस्य के आरोप पर मुंडा ने कहा कि आपकी पार्टी ने लंबे समय तक शासन किया तब आपने ऐसा क्यों नहीं किया ? आपने जनजातियों को नजरंदाज किया? उन्होंने कहा कि हमने संविधान के तहत निर्धारित मानदंडों के तहत काम किया. यह ऐतिहासिक कालखंड है जब आदिवासियों के कल्याण की चिंता सरकार कर रही है.

पढ़ें: अनुसूचित जनजाति से जुड़े संवैधानिक आदेश में संशोधन की पहल, लोक सभा से विधेयक पारित

मंत्री के जवाब के बाद लोकसभा ने ‘संविधान (अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां) आदेश (संशोधन) विधेयक, 2022’ को मंजूरी दे दी. इस विधेयक के माध्यम से झारखंड राज्य के संबंध में अनुसूचित जातियों की सूची में से भोगता समुदाय को लोप करने के लिए संविधान अनुसूचित जातियां आदेश 1950 तथा झारखंड राज्य के संबंध में अनुसूचित जनजातियों की सूचियों में कुछ समुदायों को सम्मिलित करने के लिये संविधान अनुसूचित जनजातियां आदेश 1950 का और संशोधन करने का प्रस्ताव किया गया है. विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि, संशोधन के तहत संविधान अनुसूचित जनजातियां आदेश 1950 की अनुसूची के भाग 22 में झारखंड में प्रविष्टि 16 के स्थान पर खरवार, भोगता, देशवारी, गंझू, दौलतबंदी, पटबंदी, राउत, माझिया और खैरी को रखा जाएगा.

वहीं, इसकी प्रविष्टि 24 में ‘पतार’ के बाद ‘तमरिया’ अंत:स्थापित करने तथा प्रविष्टि 32 में पुरान समुदाय को शामिल करने का प्रस्ताव है. विधेयक पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए कांग्रेस के के. सुरेश ने कहा कि पहले त्रिपुरा, फिर उत्तर प्रदेश और अब झारखंड के लिए इस तरह का विधेयक लाया गया है. उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव की दृष्टि से कई समुदायों को अनुसूचित जातियों से अनुसूचित जनजातियों में जोड़ने के लिए ऐसे विधेयक लाये जा रहे हैं. सुरेश ने कहा कि इन समुदायों की वास्तविक समस्याओं पर भी सरकार को ध्यान देना चाहिए.

पढ़ें: केंद्रीय मंत्री ने असम के छह समूहों के अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग पर विस्तृत जानकारी नहीं दी

उद्देश्य तुष्टीकरण है, उत्थान नहीं: उन्होंने यह भी दावा किया कि सरकार वन अधिकार कानून को लागू करने के लिए भी कुछ नहीं कर रही. भाजपा के सुनील कुमार सिंह ने कहा कि इन जातियों को 74 वर्ष बाद न्याय मिल पाया है. उन्होंने कहा कि हम वोट बैंक के लिए ऐसे विधेयक नहीं ला रहे, बल्कि कांग्रेस की गलतियों को सुधार रहे हैं. द्रमुक के वी सेंथिल कुमार ने भी आरोप लगाया कि चुनावों की रणनीति के तहत ऐसे विधेयक लाये जा रहे हैं और इनका उद्देश्य तुष्टीकरण है, उत्थान नहीं. तृणमूल कांग्रेस की प्रतिमा मंडल ने कहा कि आजादी के 74 वर्ष बाद भी जनजातीय समुदायों की दशा में खास अंतर नहीं आया है. चर्चा में हिस्सा लेते हुए भाजपा के एसएस आहलूवालिया ने कहा कि देश की सभी जनजातियों की अपनी बोली, मातृभाषा होती है, ऐसे में इनके संरक्षण की दिशा में सरकार को कदम उठाना चाहिए.

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