नई दिल्ली : गृह मामलों की एक संसदीय समिति ने दुष्कर्म के मामलों में सबूतों के गायब होने के मामलों में चिंता जताई है. समिति ने देश के प्रत्येक राज्य की राजधानी में फोरेंसिक लैब स्थापित करने का सुझाव दिया है.
गृह मामलों की संसदीय समिति ने एक रिपोर्ट में जिक्र किया है कि दुष्कर्म के मामलों में मेडिकल जांच और अन्य जांच प्रक्रिया के दौरान पुलिस और डॉक्टरों की असंवेदनशीलता, उदासीनता, परामर्श की कमी आदि कुछ प्रमुख समस्याएं हैं सामने आ रही हैं, जिनका खामियाजा ये होता है कि कई बार अपराधी बच निकलते हैं.
समिति का मानना है कि दुष्कर्म के मामलों में समय पर और उचित चिकित्सा और फोरेंसिक जांच साक्ष्य महत्वपूर्ण हैं.
कांग्रेस सांसद आनंद शर्मा की अध्यक्षता वाली समिति ने का कहना है कि देश में फोरेंसिक प्रयोगशालाओं का नेटवर्क स्थापित करने की आवश्यकता है. समिति ने कहा, 'एमएचए को देश की हर राज्य की राजधानी में कम से कम एक फोरेंसिक प्रयोगशाला स्थापित करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए.'
समिति ने महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध में कम सजा दर पर भी चिंता जताई है. समिति का कहना है कि यौन अपराधों के लिए ऑनलाइन जांच ट्रैकिंग प्रणाली (ITSSO) है. कानून के तहत यौन अपराधों के दो महीने के भीतर पुलिस जांच की निगरानी और ट्रैक करने के लिए इसे प्रदान किया गया है.
समिति ने कहा, 'एमएचए को विश्लेषणात्मक उपकरण ITSSO के कड़े कार्यान्वयन के लिए सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को साथ लेना चाहिए.'
साथ ही समिति ने मीडिया संस्थानों को भी सलाह दी है कि महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध के मामलों की रिपोर्टिंग के दौरान संयम और जिम्मेदार व्यवहार दिखाएं.
सजा के मामले में एनसीआरबी के आंकड़े
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, 2019 में दुष्कर्म के मामलों में 27.8 प्रतिशत सजा की दर दर्ज की गई है. दुष्कर्म और गैंगरेप के साथ हत्या के मामलों में सजा की दर 63.2 प्रतिशत थी.
दहेज हत्या में ये 35.6 प्रतिशत था. एसिड अटैक मामलों में सजा की दर 54.2 प्रतिशत थी. 2019 में पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता से संबंधित मामलों में सजा का प्रतिशत 14.6 था.
समिति की रिपोर्ट में जिक्र किया गया है कि दुष्कर्म, पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता, घरेलू हिंसा अधिनियम से महिलाओं के संरक्षण का उल्लंघन, मानव तस्करी, साइबर अपराधों / सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम का उल्लंघन और यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा जैसे अपराधों के मामलों में सजा दर सबसे कम थी.
कई राज्यों में हैं ऐसी लैब
हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, मिजोरम, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने डीएनए और साइबर फोरेंसिक के लिए आवश्यक उपकरण की खरीद की है.
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यहां डीएनए और साइबर फोरेंसिक जांच पहले के की जा रही है. एमएचए ने बताया कि राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 157.98 करोड़ रुपये की लागत से 16 फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाएं (FSL) स्थापित की गई हैं.