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संसदीय समिति ने देश के प्रमुख शहरों में फोरेंसिक प्रयोगशाला स्थापित करने के लिए MHA को दिया सुझाव - फोरेंसिक प्रयोगशाला स्थापित करने

गृह मामलों की एक संसदीय समिति ने केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) को महिलाओं के खिलाफ अपराध पर प्रभावी जांच और साक्ष्य के समय पर उसके संग्रह के लिए सुझाव दिया है. समिति ने कहा है कि दस लाख से अधिक की आबादी वाले हर बड़े शहरों में फोरेंसिक प्रयोगशाला स्थापित की जानी चाहिए. पढ़िए पूरी रिपोर्ट..

संसदीय समिति
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Published : Nov 6, 2021, 8:13 PM IST

नई दिल्ली : गृह मामलों की एक संसदीय समिति ने केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) को महिलाओं के खिलाफ अपराध पर प्रभावी जांच और साक्ष्य के समय पर उसके संग्रह के लिए सुझाव दिया है. समिति ने कहा है कि दस लाख से अधिक की आबादी वाले हर बड़े शहरों में फोरेंसिक प्रयोगशाला स्थापित की जानी चाहिए.

समिति का मानना है कि विशेष रूप से बलात्कार के मामलों में समय पर और उचित चिकित्सा और फोरेंसिक जांच साक्ष्य एकत्र करने, जांच और परीक्षण में महत्वपूर्ण है. साथ ही समिति ने कहा, देश में फोरेंसिक प्रयोगशालाओं का एक नेटवर्क स्थापित करने की सख्त जरूरत है क्योंकि जांच और चार्जशीट के लिए फोरेंसिक साक्ष्य महत्वपूर्ण हैं. इन्हें ही रिपोर्ट में अदालतों के समक्ष अधिक संख्या में मामले पेश किया जाता है. समिति ने अपनी सिफारिश में कहा है कि इसके लिए गृह मंत्रालय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ समन्वय कर सकता है ताकि इन प्रयोगशालाओं में समय पर उन्नयन के साथ-साथ आधुनिकीकरण और अत्याधुनिक तकनीक की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके जो प्रभावी जांच और साक्ष्य के समय पर संग्रह के लिए जरूरी है.

बता दें कि केंद्र ने 32 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में फॉरेंसिक साइंस लैबोरेट्रीज (FSL) की स्थापना की है. वहीं शेष चार केंद्र शासित प्रदेशों चंडीगढ़, दादरा और नगर हवेली एवं दमन और दीव, लक्षद्वीप और लद्दाख में पुलिस अपने पड़ोसी राज्यों या केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं में उपलब्ध फोरेंसिक विज्ञान सुविधाओं का उपयोग करती है.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार 2020 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के अदालती निपटारे पर, बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के साथ हत्या के मामलों में 63.0 फीसदी दोषसिद्धि की दर देखी गई. वहीं दहेज हत्या से संबंधित मामलों में दोषसिद्धि दर 45.9 फीसदी थी. इसके अलावा पति या रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता से संबंधित मामलों में दोषसिद्धि दर केवल 18.1 फीसदी थी, जबकि महिलाओं के अपहरण और अपहरण से संबंधित मामलों में 35.1 फीसदी दोषसिद्धि दर थी.

ये भी पढ़ें - सभी हेल्पलाइन नंबरों को एकीकृत कर काॅमन नंबर जारी करे एमएचए : संसदीय समिति

इसी प्रकार 2020 (समग्र मामलों) में महिलाओं के खिलाफ अपराध के अदालती निपटान पर राज्यवार दोषसिद्धि दर ने आंध्र प्रदेश में 6.4 फीसदी, असम में 3.3 फीसदी, गोवा में 14.7 फीसदी, ओडिशा में 9.2 फीसदी, कर्नाटक में 4.3 फीसदी और पश्चिम बंगाल में 2.0 फीसदी के साथ निराशाजनक आंकड़ा दिखाया गया था. संसदीय समिति ने द्वितीय चरण में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की राजधानियों सहित सभी प्रमुख शहरों में सुरक्षित शहर परियोजना का विस्तार करने की सिफारिश की है.

संसदीय समिति ने अपने सुझाव में कहा है कि राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में एमएचए सीसीटीवी कैमरे लगाने की सलाह दे सकता है. साथ ही एनजीओ, रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (RWA) और निजी व्यक्तियों को सीसीटीवी कैमरे लगाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए राज्यों के साथ मिलकर काम कर सकता है. उल्लेखनीय है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पहले (निर्भया फंड योजना के तहत) सुरक्षित शहर परियोजनाओं के क्रियान्वयन के लिए 748.24 करोड़ रुपये मंजूर किए थे. वर्तमान में सेफ सिटी परियोजना अहमदाबाद, बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता, लखनऊ और मुंबई सहित पूरे भारत के आठ शहरों में लागू है.

नई दिल्ली : गृह मामलों की एक संसदीय समिति ने केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) को महिलाओं के खिलाफ अपराध पर प्रभावी जांच और साक्ष्य के समय पर उसके संग्रह के लिए सुझाव दिया है. समिति ने कहा है कि दस लाख से अधिक की आबादी वाले हर बड़े शहरों में फोरेंसिक प्रयोगशाला स्थापित की जानी चाहिए.

समिति का मानना है कि विशेष रूप से बलात्कार के मामलों में समय पर और उचित चिकित्सा और फोरेंसिक जांच साक्ष्य एकत्र करने, जांच और परीक्षण में महत्वपूर्ण है. साथ ही समिति ने कहा, देश में फोरेंसिक प्रयोगशालाओं का एक नेटवर्क स्थापित करने की सख्त जरूरत है क्योंकि जांच और चार्जशीट के लिए फोरेंसिक साक्ष्य महत्वपूर्ण हैं. इन्हें ही रिपोर्ट में अदालतों के समक्ष अधिक संख्या में मामले पेश किया जाता है. समिति ने अपनी सिफारिश में कहा है कि इसके लिए गृह मंत्रालय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ समन्वय कर सकता है ताकि इन प्रयोगशालाओं में समय पर उन्नयन के साथ-साथ आधुनिकीकरण और अत्याधुनिक तकनीक की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके जो प्रभावी जांच और साक्ष्य के समय पर संग्रह के लिए जरूरी है.

बता दें कि केंद्र ने 32 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में फॉरेंसिक साइंस लैबोरेट्रीज (FSL) की स्थापना की है. वहीं शेष चार केंद्र शासित प्रदेशों चंडीगढ़, दादरा और नगर हवेली एवं दमन और दीव, लक्षद्वीप और लद्दाख में पुलिस अपने पड़ोसी राज्यों या केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं में उपलब्ध फोरेंसिक विज्ञान सुविधाओं का उपयोग करती है.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार 2020 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के अदालती निपटारे पर, बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के साथ हत्या के मामलों में 63.0 फीसदी दोषसिद्धि की दर देखी गई. वहीं दहेज हत्या से संबंधित मामलों में दोषसिद्धि दर 45.9 फीसदी थी. इसके अलावा पति या रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता से संबंधित मामलों में दोषसिद्धि दर केवल 18.1 फीसदी थी, जबकि महिलाओं के अपहरण और अपहरण से संबंधित मामलों में 35.1 फीसदी दोषसिद्धि दर थी.

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इसी प्रकार 2020 (समग्र मामलों) में महिलाओं के खिलाफ अपराध के अदालती निपटान पर राज्यवार दोषसिद्धि दर ने आंध्र प्रदेश में 6.4 फीसदी, असम में 3.3 फीसदी, गोवा में 14.7 फीसदी, ओडिशा में 9.2 फीसदी, कर्नाटक में 4.3 फीसदी और पश्चिम बंगाल में 2.0 फीसदी के साथ निराशाजनक आंकड़ा दिखाया गया था. संसदीय समिति ने द्वितीय चरण में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की राजधानियों सहित सभी प्रमुख शहरों में सुरक्षित शहर परियोजना का विस्तार करने की सिफारिश की है.

संसदीय समिति ने अपने सुझाव में कहा है कि राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में एमएचए सीसीटीवी कैमरे लगाने की सलाह दे सकता है. साथ ही एनजीओ, रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (RWA) और निजी व्यक्तियों को सीसीटीवी कैमरे लगाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए राज्यों के साथ मिलकर काम कर सकता है. उल्लेखनीय है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पहले (निर्भया फंड योजना के तहत) सुरक्षित शहर परियोजनाओं के क्रियान्वयन के लिए 748.24 करोड़ रुपये मंजूर किए थे. वर्तमान में सेफ सिटी परियोजना अहमदाबाद, बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता, लखनऊ और मुंबई सहित पूरे भारत के आठ शहरों में लागू है.

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