नई दिल्ली : ब्रिटिश सेना और रॉयल एयर फोर्स (आरएएफ) के सिख अधिकारियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने 28 जून को 'ननकाना साहिब' तीर्थ यात्रा के लिए पाकिस्तान का दौरा किया (British Sikh military officials visited Pakistan). इस दौरान सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा से मुलाकात भी की. भारत के सुरक्षा प्रतिष्ठान के एक शीर्ष सूत्र ने नाम न छापने की शर्त पर 'ईटीवी भारत' को बताया कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर बाजवा ने प्रतिनिधिमंडल के साथ बातचीत की और कथित तौर पर आश्वासन दिया कि पाकिस्तान में सभी धर्मों का सम्मान है.
पड़ोसी मुल्क अपने देश में हिंदुओं, सिखों और ईसाइयों जैसे धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा की व्यापक घटनाओं के मुद्दे पर यूं तो चुप्पी साधे रखता है, लेकिन भारत में अलगाववादी विचारधारा को बढ़ावा देने का बराबर प्रयास करता रहा है. चाहे वह कश्मीर हो या पंजाब, वह लगातार इसकी कोशिश करता रहा है.
1897 में एक युद्ध के दौरान ब्रिटिश भारतीय सेना के 21 सिख सैनिकों की बहादुरी की स्मृति में सारागढ़ी स्मारक पर माल्यार्पण करने के अलावा प्रतिनिधिमंडल ने भारत-पाक सीमा के पास कई स्थानों और ऐतिहासिक स्थलों का दौरा किया. प्रतिनिधिमंडल ने करतारपुर कॉरिडोर, लाहौर किला, अल्लामा इकबाल समाधि, बादशाही मस्जिद, गुरुद्वारा दरबार साहिब और खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के ओरकजई जिला का भी दौरा किया.
ब्रिटिश सेना में कम से कम 150 सिख सेवा करते हैं. ब्रिटिश-सिख प्रतिनिधिमंडल 'डिफेंस सिख नेटवर्क' (DSN) नामक संगठन से संबंधित है, जो ब्रिटिश सेना में सिखों की सेवा के लिए एक केंद्र बिंदु के रूप में कार्य करता है. सोशल मीडिया पर डीएसएन की 6 जून की एक पोस्ट 'ऑपरेशन ब्लू-स्टार' का स्पष्ट संदर्भ देती है. इसके मुताबिक 'जून का महीना दुनिया भर के सिखों के लिए कई दर्दनाक यादों वाला है. 1984 की घटनाओं को याद करते हैं, जब कई गुरुद्वारों, कम से कम हरमंदिर साहिब और अकाल तख्त की पवित्रता से समझौता किया गया था.' 'डीएसएन जीवन के अनगिनत नुकसान को याद करने में सिख समुदाय के साथ खड़ा है. वह इस दौरान सिख समुदाय और उसके बाहर कई लोगों के लिए चल रहे आघात को पहचानता है.'
जरनैल सिंह भिंडरावाले के नेतृत्व वाले अलगाववादी खालिस्तान आंदोलन के समर्थकों को बाहर निकालने के लिए अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में 1 से 10 जून, 1984 को किए गए भारतीय सैन्य अभियान का कोडनेम 'ऑपरेशन ब्लू-स्टार' था. ब्रिटेन उन देशों में शामिल है जहां भारत विरोधी अलगाववादियों की बड़ी मौजूदगी है. एक अलगाववादी संगठन 'सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे)' ने अगस्त 2018 में लंदन में विवादास्पद 'जनमत संग्रह 2020' योजना भी शुरू की थी.
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'रेफरेंडम 2020' के लिए पंजीकरण पहली बार 14 अप्रैल, 2019 को गुरुद्वारा पंजा साहिब (पाकिस्तान) से किया गया था. इसके बाद उसी दिन अमेरिका के स्टॉकटन, कैलिफोर्निया और फिर सरे में इसी तरह का प्रयास किया गया था. कनाडा में ब्रिटिश कोलंबिया में 20 अप्रैल फिर हांगकांग, न्यूयॉर्क और न्यू जर्सी जैसे स्थानों में ऑनलाइन पंजीकरण का प्रयास जारी रहा. एसएफजे 'खालिस्तान' आंदोलन से जुड़ा है. SFJ पर भारत सरकार ने 10 जुलाई 2019 को प्रतिबंध लगा दिया था.