अलवर : मैला ढोने वाली उषा चौमर ने समाज में जागरूकता फैलाई और मैला ढोने वाली सैकड़ों महिलाओं को अन्य कामकाज में लगाया. उनको समाज की मूल धारा से जोड़ने का काम किया. उनके इस प्रयास को खूब सराहा गया. साल 2020 में उनको पद्मश्री देने की घोषणा की गई, लेकिन कोरोना के चलते इस साल उनको पद्मश्री दिया गया है.
अलवर जिला परिषद में गुरुवार को उषा चौमर का सम्मानित किया गया. पद्मश्री मिलने के बाद उषा चौमार एक सेलिब्रिटी बन चुकी हैं. जो लोग उनको अपने पास तक नहीं बैठने देते थे आज वे उनका सम्मान करते हैं. जिला प्रमुख बलवीर छिल्लर के अलावा अलवर नगर परिषद सभापति बीना गुप्ता और कांग्रेस के बड़ी संख्या में नेता जिला परिषद में मौजूद रहे.
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इस अवसर पर उषा चौमर ने कहा कि जब वह मैला ढोती थीं तो कोई उनको अपने पास नहीं बैठाता था. साल 2000 में नई दिशा संस्था से जुड़ने के बाद उन्होंने मैला ढोने का काम छोड़ा. उन्होंने अपने जैसी अन्य महिलाओं को भी इस संस्था से जोड़ा. आज सभी महिलाएं सम्मान से जी रही हैं.
नई दिशा संस्था से जुड़ी महिलाएं आज अचार, पापड़, मंगोड़ी, दीपक, रुई की बत्ती बनाने और ब्यूटी पार्लर का काम करती हैं. उषा चौमर ने कहा कि लोग उनके हाथ का बना सामान नहीं खरीदते थे लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और प्रयास जारी रखा. आज लोग उनके हाथ का बना हुआ सामान खरीदते हैं और घर में काम में लेते हैं.
उषा चौमर ने महिलाओं को संदेश देते हुए कहा कि बेटियों को पढ़ाना जरूर चाहिए, बेटियां अगर पढ़ी-लिखीं हैं तो घर समृद्ध रहता है. उन्होंने कहा कि महिलाओं को घर से बाहर निकलना चाहिए और पुरुषों के बराबर काम करना चाहिए. अगर महिलाएं घर में रहती हैं, तो उनको सम्मान नहीं मिल पाता है. उनको भी काम करना चाहिए. महिलाएं कई घरों को संभालने का काम करती हैं.
इस मौके पर जिला प्रमुख बलवीर छिल्लर ने कहा कि उषा चौमर को पद्मश्री मिलना सिर्फ उनके लिए सम्मान की बात नहीं बल्कि पूरे जिले के लिए सम्मान की बात है. जैसे ही उन्हें पद्मश्री की जानकारी मिली उन्होंने उषा चौमर से संपर्क किया. अलवर के जिला परिषद में कार्यक्रम कर उषा चौमर का सम्मान किया गया. वहीं उषा चौमर ने कहा कि वैसे उनको राष्ट्रपति से पद्मश्री मिला है, लेकिन जो सम्मान उनका अलवर में हो रहा है. इस सम्मान में उनको ज्यादा खुशी मिल रही है.