हैदराबाद : एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में 450 मिलियन लोग मानसिक रूप से बीमार हैं. इनमें से ज्यादातर लोग सड़कों और चौराहों पर भटकते हुए दिखाई देते हैं. उनमें से ज्यादातर ऐसे लोग ऐसे हैं, जो अपनी याददाश्त खो चुके हैं और अपने घर या रिश्तेदारों का पता बताने में भी असमर्थ हैं. ऐसे लोगों की संख्या भारत में भी लगातार बढ़ती जा रही है. द लैंसेट साइकेट्री में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में भारत में 19 करोड़ से ज्यादा लोग दिमागी रूप से बीमार थे.
विशेषज्ञों का कहना है कि प्रत्येक एक हजार में से 200 लोग ऐसे हैं, जो किसी न किसी तरह के मानसिक दिवालिएपन से पीड़ित हैं, लेकिन अगर उनका इलाज ठीक से किया जाए, तो वे ठीक हो सकते हैं.
भारत में मेंटल डिसआर्डर की बढ़ती तादाद
द लैंसेट साइकेट्री में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में भारत में 197.3 मिलियन भारतीय (प्रत्येक सात में से एक) मानसिक विकारों से पीड़ित थे.
रिपोर्ट के मुताबिक सभी प्रकार के डिसऑर्डर में से आइडियोपैथिक डेवल्पमेंट इंटेलअक्चुअल डिसएबिलिटी 4.5 प्रतिशत के साथ भारतीयों को सबसे अधिक प्रभावित करती है. इसके बाद डिप्रेसिव डिसऑर्डर 3.3 प्रतिशत, एंग्जाइटी डिसऑर्ड 3.3 और 0.8 फीसदी लोग कंडक्ट डिसऑर्डर के शिकार थे.
रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 45.7 मिलियन मामले डिप्रेसिव डिसऑर्डर और 44.9 मामले एंग्जाइटी डिसऑर्डर के थे.
इडियोपैथिक विकासात्मक बौद्धिक विकलांगता सबसे अधिक भारतीयों को प्रभावित करती है. भारत में 4.5 प्रतिशत लोग इससे प्रभावित थे. इसके बाद डिप्रेसिव डिसऑर्डर से लोग सबसे अधिक प्रभावित थे.
डिप्रेसिव डिसऑर्डर के मामले तमिलनाडु में सबसे अधिक थे. यहां हर लाख की जनसंख्या पर 4,796 लोग इस बीमारी से जूझ रहे थे . इसके बाद आंध्र प्रदेश का नबंर आता है, जहां यह संख्या 4,563 थे. इसके बाद तेलंगाना में 4,356 , ओडिशा में 4,159 और केरल में 3,897 लोग डिप्रेसिव डिसऑर्डर के शिकार थे.
वहीं अगर बात की जाए एंग्जाइटी डिसऑर्डर, तो केरल में 4,035 लोग एंग्जाइटी डिसऑर्डर का सामना कर रहे थे. इसके बाद मणिपुर में 3,760, पश्चिम बंगाल में 3,480, हिमाचल प्रदेश में 3,471 और आंध्र प्रदेश में 3,462 लोग एंग्जाइटी डिसऑर्डर से ग्रस्त थे.
बिहार और झारखंड के लोग सबसे अधिक कंडक्ट डिसऑर्डर का सामना कर रहे थे. यहां प्रत्येक एक लाख की आबादी पर क्रमश: 983 और 974 लोग इस बीमारी से ग्रस्त थे.
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ऐसे लोगों के इलाज के लिए अररिया में कोई अस्पताल या डॉक्टर नहीं है. परिणामस्वरूप यहां ऐसे लोगों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. हैरान करने वाली बात यह है कि इस बारे में ईटीवी भारत से संबंधित अधिकारी से बात करने की कोशिश की और जानना चाहा कि ऐसे कितने लोग अररिया में मौजूद हैं, तो उनके पास इन लोगों का आंकड़ा नहीं था.
हालांकि, भारत के संविधान में ऐसे लोगों की देखरेख कि लिए प्रावधान मौजूद हैं. इसके तहत पुलिस प्रशासन को ऐसे व्यक्तियों देखभाल सुनिश्चित कर सकती है.ताकि वह अन्य लोगों को नुकसान न पहुंचा सके.
सवाल यह है कि समाज के इस असहाय वर्ग की देखभाल करने के लिए कौन जिम्मेदार है? यदि सरकारी विभाग और गैर-सरकारी संगठन इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाते हैं, तो स्थिति और बिगड़ती जाएगी.