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Opposition Unity : पश्चिम बंगाल में कांग्रेस विधायक के पाला पलटने से पटना विपक्षी एकता बैठक को लगा धक्का ? - biren biswas west bengal

12 जून को विपक्षी दलों की बैठक पटना में हो रही है. लेकिन प. बंगाल में टीएमसी के एक कदम से कांग्रेस नाराज हो गई है. इससे विपक्षी एकता पर भी सवाल उठने लगे हैं.

mamata banerjee
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी
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Published : Jun 4, 2023, 2:59 PM IST

कोलकाता : पश्चिम बंगाल में एकमात्र कांग्रेस विधायक बायरन बिस्वास के तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने की हालिया घटना ने एक बार फिर सत्तारूढ़ पार्टी की 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा विरोधी गठबंधन का हिस्सा होने की गंभीरता पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं. मुर्शिदाबाद जिले में अल्पसंख्यक बहुल सागरदिघी विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में बिस्वास को वाम मोर्चा समर्थित कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुने जाने के तीन महीने भी नहीं हुए थे कि उन्होंने सत्ताधारी दल में जाने का फैसला किया. केवल राज्य कांग्रेस इकाई के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी, इस मुद्दे पर तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ मुखर रहे, उन्हें अपनी पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से समर्थन नहीं मिला.

हालांकि बिस्वास के तृणमूल कांग्रेस में जाने के बाद कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने भी इस मुद्दे पर बोलना शुरू कर दिया. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने दूसरे दलों से खरीद-फरोख्त के लिए तृणमूल कांग्रेस नेतृत्व की निंदा करते हुए कड़े शब्दों में ट्विटर मैसेज जारी किया. रमेश ने ट्विटर मैसेज में कहा, ऐतिहासिक जीत में कांग्रेस विधायक के रूप में चुने जाने के तीन महीने बाद बायरन बिस्वास ने टीएमसी में जाने का फैसला किया. यह सागरदिघी विधानसभा क्षेत्र की जनता के जनादेश के साथ पूर्ण रूप से विश्वासघात है. गोवा, मेघालय, त्रिपुरा और अन्य राज्यों में पहले हो चुकी इस तरह की खरीद-फरोख्त विपक्षी एकता को मजबूत करने के लिए नहीं की गई है और यह केवल भाजपा के उद्देश्यों को पूरा करती है.

कुछ घंटों के भीतर, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दावा किया कि त्रिपुरा, गोवा और मेघालय जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव लड़ने के तृणमूल कांग्रेस के फैसले को कांग्रेस अनावश्यक रूप से मुद्दा बना रही है. उन्होंने यह भी दावा किया कि यह सही दृष्टिकोण नहीं है कि केवल भाजपा और कांग्रेस ही देश की राष्ट्रीय पार्टियों के रूप में बनी रहे. राजनीतिक पर्यवेक्षकों की राय है कि 2024 के लोकसभा चुनावों की रणनीति को अंतिम रूप देने के लिए भाजपा विरोधी दलों की पटना बैठक में बायरन प्रकरण को उठाए जाने और माहौल को खराब करने की संभावना बहुत कम है. राजनीतिक पर्यवेक्षक आरएन सिन्हा के मुताबिक, जिस तरह अधीर रंजन चौधरी कांग्रेस में तृणमूल विरोधी लॉबी का नेतृत्व कर रहे हैं, उसी तरह उस पार्टी में काउंटर लॉबी है जो ममता बनर्जी के प्रति नरमी बरतने के पक्ष में है.

सिन्हा ने कहा, मैं मानता हूं कि पिछले साल भारत के उप-राष्ट्रपति चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के मतदान से दूर रहने के बाद ममता बनर्जी पर नरम होने की दूसरी लॉबी की दलीलों को झटका लगा. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह दूसरी लॉबी तृणमूल कांग्रेस के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखने के अपने प्रयासों में पूरी तरह से निष्क्रिय हो गई है. बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि 12 जून को पटना में होने वाली बैठक में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व कौन करेगा. अगर प्रतिनिधि तृणमूल कांग्रेस समर्थक लॉबी नेता करते हैं तो इस बात की गारंटी है कि पटना की बैठक में बायरन प्रकरण को हल्के से भी नहीं छुआ जाएगा.

उन्होंने कहा कि भले ही कांग्रेस का प्रतिनिधि तृणमूल विरोधी लॉबी से हो, उस स्थिति में भी इस मुद्दे को बैठक में उठाए जाने की संभावना कम ही है. उन्होंने कहा, अधिक से अधिक, कांग्रेस प्रतिनिधि बैठक के इतर ममता बनर्जी से बात करने का प्रयास कर सकते हैं और फिर उस मुद्दे को उठा सकते हैं. हालांकि, एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक सब्यसाची बंदोपाध्याय का मानना है कि पटना में 12 जून की बैठक का नतीजा चाहे जो भी हो, पश्चिम बंगाल में इसकी कोई प्रासंगिकता नहीं होगी.

उन्होंने कहा, साधारण अंकगणित कहता है कि कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच सीटों के बंटवारे की कोई भी व्यवस्था अगले लोकसभा चुनाव के लिए कभी कारगर नहीं होगी. तृणमूल कांग्रेस के साथ सौदेबाजी की स्थिति में, कांग्रेस को चुनाव लड़ने के लिए अधिकतम दो सीटें मिलेंगी, जो मौजूदा दो कांग्रेस सांसदों के पास हैं, एक मुर्शिदाबाद जिले में और दूसरी मालदा में. इसके विपरीत, वाम मोर्चे के साथ सौदेबाजी की स्थिति में, कांग्रेस अधिक नहीं तो कम से कम सात सीटों का प्रबंधन करेगी. इसलिए, वाम मोर्चा पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के लिए गठबंधन के लिए स्वाभाविक पसंद है.

उन्होंने कहा कि पार्टी में अधीर रंजन चौधरी की वरिष्ठता और समर्पण को देखते हुए, यहां तक कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी जैसे शीर्ष कांग्रेसी नेता भी ऐसा कुछ भी तय नहीं करेंगे जो चौधरी को नाराज करे. इसके अलावा, माकपा नेतृत्व खासकर पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी के साथ राहुल गांधी के व्यक्तिगत संबंधों को ध्यान में रखते हुए, कम से कम मुझे कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के पश्चिम बंगाल में एक साथ जाने का कोई कारण नहीं दिखता.

ये भी पढ़ें : Opposition Unity : 12 जून ही क्यों? महज संयोग या JP बनने चले हैं नीतीश

(आईएएनएस)

कोलकाता : पश्चिम बंगाल में एकमात्र कांग्रेस विधायक बायरन बिस्वास के तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने की हालिया घटना ने एक बार फिर सत्तारूढ़ पार्टी की 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा विरोधी गठबंधन का हिस्सा होने की गंभीरता पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं. मुर्शिदाबाद जिले में अल्पसंख्यक बहुल सागरदिघी विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में बिस्वास को वाम मोर्चा समर्थित कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुने जाने के तीन महीने भी नहीं हुए थे कि उन्होंने सत्ताधारी दल में जाने का फैसला किया. केवल राज्य कांग्रेस इकाई के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी, इस मुद्दे पर तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ मुखर रहे, उन्हें अपनी पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से समर्थन नहीं मिला.

हालांकि बिस्वास के तृणमूल कांग्रेस में जाने के बाद कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने भी इस मुद्दे पर बोलना शुरू कर दिया. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने दूसरे दलों से खरीद-फरोख्त के लिए तृणमूल कांग्रेस नेतृत्व की निंदा करते हुए कड़े शब्दों में ट्विटर मैसेज जारी किया. रमेश ने ट्विटर मैसेज में कहा, ऐतिहासिक जीत में कांग्रेस विधायक के रूप में चुने जाने के तीन महीने बाद बायरन बिस्वास ने टीएमसी में जाने का फैसला किया. यह सागरदिघी विधानसभा क्षेत्र की जनता के जनादेश के साथ पूर्ण रूप से विश्वासघात है. गोवा, मेघालय, त्रिपुरा और अन्य राज्यों में पहले हो चुकी इस तरह की खरीद-फरोख्त विपक्षी एकता को मजबूत करने के लिए नहीं की गई है और यह केवल भाजपा के उद्देश्यों को पूरा करती है.

कुछ घंटों के भीतर, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दावा किया कि त्रिपुरा, गोवा और मेघालय जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव लड़ने के तृणमूल कांग्रेस के फैसले को कांग्रेस अनावश्यक रूप से मुद्दा बना रही है. उन्होंने यह भी दावा किया कि यह सही दृष्टिकोण नहीं है कि केवल भाजपा और कांग्रेस ही देश की राष्ट्रीय पार्टियों के रूप में बनी रहे. राजनीतिक पर्यवेक्षकों की राय है कि 2024 के लोकसभा चुनावों की रणनीति को अंतिम रूप देने के लिए भाजपा विरोधी दलों की पटना बैठक में बायरन प्रकरण को उठाए जाने और माहौल को खराब करने की संभावना बहुत कम है. राजनीतिक पर्यवेक्षक आरएन सिन्हा के मुताबिक, जिस तरह अधीर रंजन चौधरी कांग्रेस में तृणमूल विरोधी लॉबी का नेतृत्व कर रहे हैं, उसी तरह उस पार्टी में काउंटर लॉबी है जो ममता बनर्जी के प्रति नरमी बरतने के पक्ष में है.

सिन्हा ने कहा, मैं मानता हूं कि पिछले साल भारत के उप-राष्ट्रपति चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के मतदान से दूर रहने के बाद ममता बनर्जी पर नरम होने की दूसरी लॉबी की दलीलों को झटका लगा. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह दूसरी लॉबी तृणमूल कांग्रेस के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखने के अपने प्रयासों में पूरी तरह से निष्क्रिय हो गई है. बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि 12 जून को पटना में होने वाली बैठक में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व कौन करेगा. अगर प्रतिनिधि तृणमूल कांग्रेस समर्थक लॉबी नेता करते हैं तो इस बात की गारंटी है कि पटना की बैठक में बायरन प्रकरण को हल्के से भी नहीं छुआ जाएगा.

उन्होंने कहा कि भले ही कांग्रेस का प्रतिनिधि तृणमूल विरोधी लॉबी से हो, उस स्थिति में भी इस मुद्दे को बैठक में उठाए जाने की संभावना कम ही है. उन्होंने कहा, अधिक से अधिक, कांग्रेस प्रतिनिधि बैठक के इतर ममता बनर्जी से बात करने का प्रयास कर सकते हैं और फिर उस मुद्दे को उठा सकते हैं. हालांकि, एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक सब्यसाची बंदोपाध्याय का मानना है कि पटना में 12 जून की बैठक का नतीजा चाहे जो भी हो, पश्चिम बंगाल में इसकी कोई प्रासंगिकता नहीं होगी.

उन्होंने कहा, साधारण अंकगणित कहता है कि कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच सीटों के बंटवारे की कोई भी व्यवस्था अगले लोकसभा चुनाव के लिए कभी कारगर नहीं होगी. तृणमूल कांग्रेस के साथ सौदेबाजी की स्थिति में, कांग्रेस को चुनाव लड़ने के लिए अधिकतम दो सीटें मिलेंगी, जो मौजूदा दो कांग्रेस सांसदों के पास हैं, एक मुर्शिदाबाद जिले में और दूसरी मालदा में. इसके विपरीत, वाम मोर्चे के साथ सौदेबाजी की स्थिति में, कांग्रेस अधिक नहीं तो कम से कम सात सीटों का प्रबंधन करेगी. इसलिए, वाम मोर्चा पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के लिए गठबंधन के लिए स्वाभाविक पसंद है.

उन्होंने कहा कि पार्टी में अधीर रंजन चौधरी की वरिष्ठता और समर्पण को देखते हुए, यहां तक कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी जैसे शीर्ष कांग्रेसी नेता भी ऐसा कुछ भी तय नहीं करेंगे जो चौधरी को नाराज करे. इसके अलावा, माकपा नेतृत्व खासकर पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी के साथ राहुल गांधी के व्यक्तिगत संबंधों को ध्यान में रखते हुए, कम से कम मुझे कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के पश्चिम बंगाल में एक साथ जाने का कोई कारण नहीं दिखता.

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(आईएएनएस)

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