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निर्भया कांड : दोषियों के वकील एपी सिंह ने पूछा- फांसी से क्या बदलाव हुआ

देश में बलात्कार के मामले में सजा को लेकर एक बार फिर से गंभीर बहस शुरू हो चुकी है. निर्भया के दोषियों के वकील रहे एपी सिंह ने कहा कि चार युवकों को सिर्फ इसलिए फांसी पर चढ़ा दिया गया, क्योंकि समाज को एक संदेश देना था, लेकिन क्या इससे कोई बदलाव हुआ, दुष्कर्म या हत्या की घटनाओं में कोई कमी आई.

एपी सिंह
एपी सिंह
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Published : Mar 20, 2021, 3:41 PM IST

नई दिल्ली : निर्भया कांड के चार दोषियों को हुई फांसी की सजा को आज एक साल पूरे हो गए हैं. दोषियों के अधिवक्ता एपी सिंह का कहना है कि इस एक साल में दुष्कर्म या हत्या की घटनाओं में कोई कमी नहीं आई. केवल संदेश देने के लिए चारों को फांसी दी गई, जिसका कोई असर नहीं पड़ा. उन्होंने भारत में फांसी पर रोक लगाने की मांग की है, ताकि जेल सुधार गृह बने, फांसी घर नहीं.

'इन फांसियों से कितना हुआ सुधार'
अधिवक्ता एपी सिंह ने कहा कि कानूनविदों, न्यायपालिका, प्रशासन और सिस्टम से यह जानना चाहिए कि इस फांसी से क्या मिला. चार युवा जिनका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था. उनके परिवार में कोई अपराधी नहीं है. मेहनत मजदूरी करके उनका परिवार चलता था. अक्षय का छोटा बच्चा था. विनय के सिर पर उसकी बहनों की शादी की जिम्मेदारी थी. पवन के माता-पिता बुजुर्ग हैं. मुकेश के पिता का देहांत हो गया था, विधवा मां का वह सहारा था. जिन चारों युवाओं को फांसी दी गई, वह खुद बेसहारा थे. ऐसे में इस फांसी से किसी को क्या मिला.

देश में फांसी की सजा को लेकर एपी सिंह का बयान

पढ़ें- पुलिस को चकमा देकर कैदी फरार, अलकनंदा में लगाई छलांग

दुष्कर्म की घटनाओं में क्या आई कमी: एपी सिंह
अधिवक्ता एपी सिंह का कहना है कि केवल समाज को संदेश देने के मकसद से चारों दोषियों को फांसी दी गई, लेकिन क्या इस एक साल में दुष्कर्म या हत्या की वारदातें रुकी. क्या आज महिलाओं के प्रति अपराध की घटनाएं नहीं हो रही हैं. जेल को सुधार गृह बनाना पड़ेगा, उसे फांसी घर बनाना ठीक नहीं. 100 से अधिक देश में फांसी की सजा खत्म हो चुकी है, इसलिए फांसी की सजा भारत में भी खत्म होनी चाहिए.

पढ़ें- पिता की दूसरी शादी की वैधता को बेटी दे सकती है अदालत में चुनौती : हाईकोर्ट

'दोषी को सुधरने का अवसर मिलना चाहिए'
अधिवक्ता एपी सिंह का कहना है कि बड़े न्यायविदों एवं पूर्व जजों ने भी फांसी को सही नहीं माना है. उनका कहना है कि इससे सुधार का मौका नहीं मिलता. बीते एक साल में किसी प्रकार का सुधार अपराध में नहीं आया है. एनसीआरबी के डाटा से पता चलता है कि अपराध बढ़ रहे हैं. पुरुषों की कोई सुनता नहीं है, इसलिए पुरुष आयोग बनाने की मांग कई संगठन करते हैं. महिलाओं के लिए महिला डेस्क, महिला थाना, महिला आयोग, महिला मंत्रालय, महिला कोर्ट सभी मौजूद हैं, लेकिन पुरुषों की कहीं सुनवाई नहीं होती.

नई दिल्ली : निर्भया कांड के चार दोषियों को हुई फांसी की सजा को आज एक साल पूरे हो गए हैं. दोषियों के अधिवक्ता एपी सिंह का कहना है कि इस एक साल में दुष्कर्म या हत्या की घटनाओं में कोई कमी नहीं आई. केवल संदेश देने के लिए चारों को फांसी दी गई, जिसका कोई असर नहीं पड़ा. उन्होंने भारत में फांसी पर रोक लगाने की मांग की है, ताकि जेल सुधार गृह बने, फांसी घर नहीं.

'इन फांसियों से कितना हुआ सुधार'
अधिवक्ता एपी सिंह ने कहा कि कानूनविदों, न्यायपालिका, प्रशासन और सिस्टम से यह जानना चाहिए कि इस फांसी से क्या मिला. चार युवा जिनका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था. उनके परिवार में कोई अपराधी नहीं है. मेहनत मजदूरी करके उनका परिवार चलता था. अक्षय का छोटा बच्चा था. विनय के सिर पर उसकी बहनों की शादी की जिम्मेदारी थी. पवन के माता-पिता बुजुर्ग हैं. मुकेश के पिता का देहांत हो गया था, विधवा मां का वह सहारा था. जिन चारों युवाओं को फांसी दी गई, वह खुद बेसहारा थे. ऐसे में इस फांसी से किसी को क्या मिला.

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दुष्कर्म की घटनाओं में क्या आई कमी: एपी सिंह
अधिवक्ता एपी सिंह का कहना है कि केवल समाज को संदेश देने के मकसद से चारों दोषियों को फांसी दी गई, लेकिन क्या इस एक साल में दुष्कर्म या हत्या की वारदातें रुकी. क्या आज महिलाओं के प्रति अपराध की घटनाएं नहीं हो रही हैं. जेल को सुधार गृह बनाना पड़ेगा, उसे फांसी घर बनाना ठीक नहीं. 100 से अधिक देश में फांसी की सजा खत्म हो चुकी है, इसलिए फांसी की सजा भारत में भी खत्म होनी चाहिए.

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'दोषी को सुधरने का अवसर मिलना चाहिए'
अधिवक्ता एपी सिंह का कहना है कि बड़े न्यायविदों एवं पूर्व जजों ने भी फांसी को सही नहीं माना है. उनका कहना है कि इससे सुधार का मौका नहीं मिलता. बीते एक साल में किसी प्रकार का सुधार अपराध में नहीं आया है. एनसीआरबी के डाटा से पता चलता है कि अपराध बढ़ रहे हैं. पुरुषों की कोई सुनता नहीं है, इसलिए पुरुष आयोग बनाने की मांग कई संगठन करते हैं. महिलाओं के लिए महिला डेस्क, महिला थाना, महिला आयोग, महिला मंत्रालय, महिला कोर्ट सभी मौजूद हैं, लेकिन पुरुषों की कहीं सुनवाई नहीं होती.

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