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'महिलाओं-बच्चों को सड़क पर घसीटते देखना सुखद नहीं', बुलडोजर एक्शन पर 'सुप्रीम ब्रेक', गाइडलाइंस जारी

सुप्रीम कोर्ट ने 'बुलडोजर एक्शन ' को लेकर प्रतिक्रिया दी है और इस संबंध में गाइडलाइंस की सूची भी जारी की है.

सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट (ANI)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : 23 hours ago

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को 'बुलडोजर एक्शन ' के ट्रेंड पर कड़ी प्रतिक्रिया दी. अदालत ने कहा कि अधिकारी किसी व्यक्ति के घर को सिर्फ इस आधार पर नहीं गिराया जा सकता कि उस पर किसी अपराध का आरोप है. सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि इस तरह से संपत्ति को ध्वस्त करने वाले सरकारी अधिकारियों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए.

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा, "कार्यपालिका किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहरा सकती, लेकिन सिर्फ आरोप के आधार पर अगर कार्यपालिका किसी व्यक्ति की संपत्ति को ध्वस्त करती है, तो यह 'कानून के शासन' के सिद्धांत पर प्रहार होगा. कार्यपालिका जज बनकर आरोपी व्यक्तियों की संपत्ति को भी नहीं गिरा सकती."

कोर्ट ने आगे कहा कि कानून का शासन यह सुनिश्चित करता है कि लोगों को पता हो कि उनकी संपत्ति मनमाने ढंग से नहीं छीनी जा सकती. कोर्ट ने आगे कहा कि ऐसे मामलों में जहां लोग डिमोलिशनऑर्डर का विरोध नहीं करना चाहते हैं, उन्हें जगह खाली करने और खुद को व्यवस्थित करने के लिए पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए.

लोगों को सड़क पर घसीटते हुए देखना सुखद नहीं
पीठ ने कहा, "महिलाओं, बच्चों और बीमार लोगों को रातों-रात सड़कों पर घसीटते हुए देखना सुखद नहीं है. अगर अधिकारी कुछ समय के लिए उनका हाथ थाम लें तो उन पर कोई विपत्ति नहीं आएगी." पीठ ने कार्यपालिका के लिए संपत्ति को ध्वस्त करने से पहले कुछ दिशा-निर्देश फॉलो करने को कहा. साथ ही इस संबंध में गाइडलाइंस की सूची भी जारी की है.

बुलडोजर कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संपत्ति को ध्वस्त करने से पहले घर के लोगों को पर्याप्त नोटिस दिया जाना चाहिए, ताकि वे या तो निर्णय को चुनौती दे सकें या परिसर खाली कर सकें. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर संपत्ति किसी सड़क, जलमार्ग या रेलवे लाइन को बाधित कर रही है तो इस दिशा-निर्देश का पालन करने की आवश्यकता नहीं है.

15 दिन का समय
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि बिना कारण बताओ नोटिस के कोई भी तोड़फोड़ नहीं की जानी चाहिए. नोटिस संपत्ति के मालिक को दिया जाएगा और संपत्ति के बाहर चिपका दिया जाएगा. नोटिस मिलने के बाद मालिक को खाली करने या निर्णय को चुनौती देने के लिए 15 दिन का समय दिया जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पूर्व-तिथि के किसी भी आरोप को रोकने के लिए, अदालत ने निर्देश दिया कि जैसे ही नोटिस की तामील हो जाए, इसकी सूचना कलेक्टर/जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय को डिजिटल रूप से ईमेल से भेजी जानी चाहिए और कलेक्टर/डीएम के कार्यालय को मेल मिलने की पुष्टि करनी होगी और इसका जवाब भी दिया जाए.

संपत्ति मालिकों को सुनवाई का मौका
नोटिस जारी करने वाला प्राधिकरण संपत्ति मालिकों/कब्जाधारियों को व्यक्तिगत सुनवाई का मौका देगा. अदालत ने कहा कि इस बैठक के मिनट रिकॉर्ड किए जाएंगे. सुनवाई के बाद अंतिम आदेश जारी किया जाएगा, जिसमें यह स्पष्ट किया जाएगा कि मामले में डिमोलिशन की आवश्यकता क्यों है.

संपत्ति के ध्वस्तीकरण से पहले संपत्ति के मालिक को अनधिकृत बिल्डिंग को हटाने का अवसर दिया जाना चाहिए और 15 दिनों से पहले इसे ध्वस्त नहीं किया जाना चाहिए.

संपत्ति के केवल उस हिस्से को ध्वस्त किया जा सकता है, जिसमें अनधिकृत निर्माण है. विध्वंस से पहले अधिकारी एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करे और विध्वंस की कार्यवाही की वीडियोग्राफी और दस्तावेजीकरण करे.

अगर विध्वंस प्रक्रिया कोर्ट द्वारा जारी गाइडलाइंस का उल्लंघन करती पाई जाती है, तो इसके लिए अधिकारी जिम्मेदार होगा और उसे व्यक्तिगत खर्चे इसका हर्जाना भरना होगी.

यह भी पढ़ें- बुलडोजर एक्शन पर 'सुप्रीम' फैसला- आरोपी का घर गिराना गलत, ऐसा जस्टिस स्वीकार्य नहीं

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को 'बुलडोजर एक्शन ' के ट्रेंड पर कड़ी प्रतिक्रिया दी. अदालत ने कहा कि अधिकारी किसी व्यक्ति के घर को सिर्फ इस आधार पर नहीं गिराया जा सकता कि उस पर किसी अपराध का आरोप है. सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि इस तरह से संपत्ति को ध्वस्त करने वाले सरकारी अधिकारियों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए.

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा, "कार्यपालिका किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहरा सकती, लेकिन सिर्फ आरोप के आधार पर अगर कार्यपालिका किसी व्यक्ति की संपत्ति को ध्वस्त करती है, तो यह 'कानून के शासन' के सिद्धांत पर प्रहार होगा. कार्यपालिका जज बनकर आरोपी व्यक्तियों की संपत्ति को भी नहीं गिरा सकती."

कोर्ट ने आगे कहा कि कानून का शासन यह सुनिश्चित करता है कि लोगों को पता हो कि उनकी संपत्ति मनमाने ढंग से नहीं छीनी जा सकती. कोर्ट ने आगे कहा कि ऐसे मामलों में जहां लोग डिमोलिशनऑर्डर का विरोध नहीं करना चाहते हैं, उन्हें जगह खाली करने और खुद को व्यवस्थित करने के लिए पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए.

लोगों को सड़क पर घसीटते हुए देखना सुखद नहीं
पीठ ने कहा, "महिलाओं, बच्चों और बीमार लोगों को रातों-रात सड़कों पर घसीटते हुए देखना सुखद नहीं है. अगर अधिकारी कुछ समय के लिए उनका हाथ थाम लें तो उन पर कोई विपत्ति नहीं आएगी." पीठ ने कार्यपालिका के लिए संपत्ति को ध्वस्त करने से पहले कुछ दिशा-निर्देश फॉलो करने को कहा. साथ ही इस संबंध में गाइडलाइंस की सूची भी जारी की है.

बुलडोजर कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संपत्ति को ध्वस्त करने से पहले घर के लोगों को पर्याप्त नोटिस दिया जाना चाहिए, ताकि वे या तो निर्णय को चुनौती दे सकें या परिसर खाली कर सकें. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर संपत्ति किसी सड़क, जलमार्ग या रेलवे लाइन को बाधित कर रही है तो इस दिशा-निर्देश का पालन करने की आवश्यकता नहीं है.

15 दिन का समय
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि बिना कारण बताओ नोटिस के कोई भी तोड़फोड़ नहीं की जानी चाहिए. नोटिस संपत्ति के मालिक को दिया जाएगा और संपत्ति के बाहर चिपका दिया जाएगा. नोटिस मिलने के बाद मालिक को खाली करने या निर्णय को चुनौती देने के लिए 15 दिन का समय दिया जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पूर्व-तिथि के किसी भी आरोप को रोकने के लिए, अदालत ने निर्देश दिया कि जैसे ही नोटिस की तामील हो जाए, इसकी सूचना कलेक्टर/जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय को डिजिटल रूप से ईमेल से भेजी जानी चाहिए और कलेक्टर/डीएम के कार्यालय को मेल मिलने की पुष्टि करनी होगी और इसका जवाब भी दिया जाए.

संपत्ति मालिकों को सुनवाई का मौका
नोटिस जारी करने वाला प्राधिकरण संपत्ति मालिकों/कब्जाधारियों को व्यक्तिगत सुनवाई का मौका देगा. अदालत ने कहा कि इस बैठक के मिनट रिकॉर्ड किए जाएंगे. सुनवाई के बाद अंतिम आदेश जारी किया जाएगा, जिसमें यह स्पष्ट किया जाएगा कि मामले में डिमोलिशन की आवश्यकता क्यों है.

संपत्ति के ध्वस्तीकरण से पहले संपत्ति के मालिक को अनधिकृत बिल्डिंग को हटाने का अवसर दिया जाना चाहिए और 15 दिनों से पहले इसे ध्वस्त नहीं किया जाना चाहिए.

संपत्ति के केवल उस हिस्से को ध्वस्त किया जा सकता है, जिसमें अनधिकृत निर्माण है. विध्वंस से पहले अधिकारी एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करे और विध्वंस की कार्यवाही की वीडियोग्राफी और दस्तावेजीकरण करे.

अगर विध्वंस प्रक्रिया कोर्ट द्वारा जारी गाइडलाइंस का उल्लंघन करती पाई जाती है, तो इसके लिए अधिकारी जिम्मेदार होगा और उसे व्यक्तिगत खर्चे इसका हर्जाना भरना होगी.

यह भी पढ़ें- बुलडोजर एक्शन पर 'सुप्रीम' फैसला- आरोपी का घर गिराना गलत, ऐसा जस्टिस स्वीकार्य नहीं

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