गोरखपुर : गीता प्रेस को देश के श्रेष्ठ सम्मानों में से एक 'गांधी शांति पुरस्कार' से नवाजा जाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली कमेटी ने इस पर मुहर लगा दी है. इस बीच गीता प्रेस अपनी स्थापना के 100 वर्ष भी पूरे कर चुकी है. धार्मिक पुस्तकों की हाथ से छपाई के साथ गीता प्रेस की शुरुआत 10 रुपए के किराए के भवन में हुई थी. मौजूदा समय में दो लाख वर्ग फीट वाले बड़े परिसर में इसका संचालन हो रहा है. अब करोड़ों की लागत वाली जापानी और जर्मन मशीनों से किताबों की छपाई की जा रही है.
गीता प्रेस के उत्पाद प्रबंधक लाल मणि तिवारी और ट्रस्टी देवी दयाल अग्रवाल बताते हैं कि 93 करोड़ से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन गीता प्रेस की ओर से किया जा चुका है. वह भी बिना किसी विज्ञापन, बिना किसी के आर्थिक सहयोग से. सम्मान भी कई तरह के मिले, लेकिन ट्रस्ट ने उसे स्वीकार नहीं किया. पहली बार गांधी शांति पुरस्कार को स्वीकार करने की ट्रस्ट ने हामी भरी है. हालांकि इस पुरस्कार के तहत मिलने वाली एक करोड़ की धनराशि को स्वीकार नहीं किया जाएगा.
उत्पाद प्रबंधक ने बताया कि वर्ष 1923 में शुरू हुआ यह स्वर्णिम सफर आज भी जारी है. गीता प्रेस का 'गांधी शांति पुरस्कार' के लिए चुना जाना देशवासियों सहित हिंदू जनमानस के लिए के गर्व और सम्मान की बात है. यह बड़े पाठक समूह की वजह से ही सम्भव हो पाया है. गीता प्रेस ने 15 भाषाओं में अब तक धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन किया है. शताब्दी समारोह की शुरुआत पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों हुई थी. समापन प्रधानमंत्री मोदी के हाथों होना था, लेकिन वह 3 मई को आचार संहिता की वजह से नहीं आ सके. अब उनका आना तय है, सिर्फ तिथि तय होनी बाकी है.
इस तरह हुई थी सफर की शुरुआत : ट्रस्टी देवी दयाल अग्रवाल ने बताया कि राजस्थान के चुरू निवासी सेठ जय दयाल गोयंदका व्यापारिक कार्यों से कोलकाता आते-जाते रहते थे. धार्मिक कार्यों में विशेष रुचि रखने वाले सेठ जी के नाम से विख्यात थे. कोलकाता में प्रवास के दौरान सत्संग कीर्तन भी कराते थे. धीरे-धीरे लोगों का समूह बढ़ता गया, इसी बीच सेठ जी ने नोटिस किया कि पाठ का शुद्ध और सही उच्चारण नहीं हो पा रहा है. उनके मन में विचार आया कि शुद्ध और सही उच्चारण के लिए गीता गुटका की कुछ प्रतियां छपवाई जाए. इसके लिए उन्होंने गीता पाठ के लिए कुछ प्रतियां छपवाई, परंतु छपाई से उन्हें संतुष्टि नहीं मिली. इसके बाद उन्होंने खुद का प्रेस लगाने को कहा. इसके बाद 1923 में उन्होंने गोरखपुर में 10 रुपए प्रति माह किराए का कमरा लेकर सहयोगियों के साथ संक्षिप्त गीता टीका की प्रतियां छपवानी शुरू कर दी. धीरे-धीरे कारवां बढ़ता गया और आज गीता प्रेस पूरी दुनिया में विख्यात हो चुकी है.
यह है लोकप्रियता का कारण : उत्पाद प्रबंधक लाल मणि तिवारी ने बताया कि गीता प्रेस की प्रकाशित पुस्तकों में सबसे ज्यादा भागवत गीता, राम चरित मानस की पुस्तकें हैं. हिंदी भाषा के अलावा संस्कृत, उर्दू, तेलुगू ,गुजराती, मराठी, तमिल, बांग्ला, उड़िया, अंग्रेजी और नेपाली भाषा सहित कुल 15 भाषाओं में इन धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन यहां हर रोज होता है. सबसे खास बात यह है कि इन पुस्तकों के प्रकाशन में छपाई और अक्षरों की स्पष्टता के साथ मूल्यों का विशेष ध्यान रखा जाता है. गीता प्रेस की प्रकाशित पुस्तकों का मूल्य छपाई की गुणवत्ता के हिसाब से बेहद कम होता है जो इसकी लोकप्रियता का एक बड़ा कारण है. दुनिया भर में सबसे ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित करने वाले संस्थानों में से गीता प्रेसल एक है.
विदेशों में भी खोले जाएंगे आउटलेट : गोरखपुर के अलावा गीता प्रेस की देश भर में कुल 20 शाखाएं हैं. जहां इन धार्मिक पुस्तकों का विक्रय और प्रकाशन होता है. रोजाना 1850 प्रकार की करीब 70,000 किताबों का प्रकाशन किया जाता है. पुस्तकों की बिक्री के लिए विदेशों में 11 स्थानों पर आउटलेट खोलने की तैयारी में लगा है गीताप्रेस प्रबंधन. वहां पुस्तकों की बिक्री की जा सकेगी. गीता प्रबंधन का कहना है कि प्रकाशन का अधिकार हम अपने पास ही रखना चाहते हैं, ताकि इसकी शुद्धि, त्रुटियों और उच्चारण के साथ कोई भी समझौता न हो सके.
डिजिटल पाठकों का भी रखा जाता है विशेष ध्यान : तकनीकी और आधुनिकता के इस दौर में भी गीता प्रेस ने खुद शामिल कर रखा है, ताकि यहां से प्रकाशित पुस्तकों की पहुंच ग्लोबल स्तर पर भी हो सके. इस कड़ी में डिजिटल के पाठकों तक पहुंचने में भी गीता प्रेस प्रबंधन ने अपनी कोशिशें शुरू कर दी है. 500 से ज्यादा पुस्तकों को वेबसाइट पर अपलोड करने की तैयारी में जुटी गीताप्रेस प्रबंधन द्वारा अब तक कुल 195 धार्मिक पुस्तकों को वेबसाइट पर अपलोड किया जा चुका है. यहां पाठक इन पुस्तकों का लाभ ले सकते हैं.
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