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टोकरी में सफर! विकास को आईना दिखाता झारखंड का ये गांव, दशकों बाद भी सड़क से महरूम लोग

झारखंड के लातेहार जिले में सड़क नहीं होने के कारण एक वृद्ध महिला को उसके पति और बेटे टोकरी में बिठाकर पेंशन के पैसे लेने प्रखंड मुख्यालय पहुंचे. गांव में ना तो सड़क है और ना ही असमर्थ लोगों के लिए पेंशन की राशि घर पहुंचाने की कोई व्यवस्था. ऐसे में सरकार और प्रशासन के विकास के दावों पर यह बड़ा सवाल खड़ा करता है.

old woman in basket
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Published : May 24, 2023, 8:57 PM IST

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लातेहार: झारखंड के लातेहार जिले में एक ऐसा दृश्य दिखा, जिसने सरकार के विकास के दावे की पोल खोल कर रख दी. जिले के महुआडांड़ प्रखंड मुख्यालय में आदिम जनजाति परिवार की एक वृद्ध महिला अपना पेंशन लेने टोकरी में बैठकर आई. महिला का पति और उसका बेटा उसे टोकरी में बैठा कर कंधे पर ढोकर लाए थे. कारण था, गांव में सड़क का निर्माण ना होना. इस दृश्य ने सरकार के विकास योजनाओं की पोल खोल दी.

यह भी पढ़ें: झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने ज्यूडिशियल सर्विस में होने वाली नियुक्तियों में की आरक्षण की मांग, आदिवासी समाज के लिए प्रावधान में संशोधन का किया आग्रह

दरअसल, सरकार एक तरफ तो गांव गांव तक पक्की सड़क निर्माण के दावे करती है, लेकिन दूसरी ओर लातेहार जिले के महुआडांड़ प्रखंड में अभी भी कई ऐसे गांव हैं, जहां पक्की सड़क की तो बात ही दूर है, वहां साधारण कच्ची सड़क तक नहीं बन पाई है. ऐसा ही गांव में एक है ग्वालखांड. इस गांव में आज तक सड़क का निर्माण नहीं होने के कारण ग्रामीण आज भी पैदल ही गांव में आने जाने को विवश हैं. विकास के नाम पर चलने वाली गाड़ियां आज भी इस गांव से कोसो दूर है. प्रखंड मुख्यालय से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस गांव में साइकिल से भी जाना मुश्किल होता है. इसी कारण वृद्ध महिला को टोकरी में बिठा कर लाना पड़ा.

चलने में असमर्थ होने के कारण महिला को लाया गया टोकरी में: बुधवार को आदिम जनजाति की महिला लालो कोरबा को पेंशन के पैसे निकालने के लिए उसके पति देवा कोरबा और बेटा सुंदरलाल कोरबा ने टोकरी में बैठाकर महुआडांड़ लाया था. हालांकि, बैंक का लिंक फेल होने के कारण महिला को पेंशन भी नहीं मिल पाया. जिस कारण उन्हें बैरंग वापस घर लौटना पड़ा. महिला के पति देवा कोरबा ने बताया कि गांव तक आने जाने का कोई रास्ता नहीं है. लोग पैदल ही गांव तक आते जाते हैं. उसकी पत्नी चलने फिरने में असमर्थ हो गई है. इस कारण पेंशन के पैसे निकालने के लिए उसे टोकरी में बैठा कर कंधे पर ढोकर लाना पड़ता है. उन्होंने बताया कि तीन चार महीने में एक बार पेंशन का पैसा निकालने इसी प्रकार महुआडांड़ अपनी पत्नी को लाते हैं. हालांकि, इस बार पैसे नहीं मिलने के कारण उन्हें थोड़ी निराशा भी हुई. क्योंकि एक बार महुआडांड़ आने पर पूरा दिन निकल जाता है. ऊपर से चिलचिलाती गर्मी के कारण और अधिक परेशानी होती है.

प्रशासनिक व्यवस्था पर भी उठा सवाल: लातेहार जिले के पूर्व उपायुक्त ने पेंशन को लेकर जिले में एक व्यवस्था लागू की थी. जिसके तहत चलने में असमर्थ पेंशनधारियों को उनके घर तक पेंशन की राशि पहुंचाने की व्यवस्था की गई थी. जिससे लाचार पेंशनधारियों को भी सुविधा मिलती थी. लेकिन, धीरे-धीरे यह व्यवस्था खत्म हो गई. इस कारण लाचार पेंशनधारियों को भी पेंशन के पैसे निकालने के लिए बैंक या प्रज्ञा केंद्र के चक्कर लगाना पड़ता है. शहरी क्षेत्र या वाहन से आने जाने की व्यवस्था वाले गांव में रहने वाले लाभुकों को तो ज्यादा परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता, लेकिन सुदूरवर्ती इलाकों में रहने वाले गरीब ग्रामीणों को पेंशन के पैसे लेना किसी बड़े टेंशन के समान हो जाता है.

यह भी पढ़ें:Palamau News: आर्केस्ट्रा में स्टेज टूटने से उपमुखिया हुए आगबबूला, भाजपा नेता समेत चार को दांत से काटा

हालांकि इस मामले पर महुआडांड़ के प्रखंड विकास पदाधिकारी ने कहा कि सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में रहने वाले असमर्थ लोगों के पेंशन की राशि उनके घर तक पहुंचे, इसके लिए वे जल्द ही प्रज्ञा केंद्रों को दिशा निर्देश जारी करेंगे. लालो कोरबा तो एकमात्र उदाहरण है, जिले में कई और ऐसे ग्रामीण हैं. जिन्हें पेंशन के लिए इसी प्रकार आना पड़ता है.

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लातेहार: झारखंड के लातेहार जिले में एक ऐसा दृश्य दिखा, जिसने सरकार के विकास के दावे की पोल खोल कर रख दी. जिले के महुआडांड़ प्रखंड मुख्यालय में आदिम जनजाति परिवार की एक वृद्ध महिला अपना पेंशन लेने टोकरी में बैठकर आई. महिला का पति और उसका बेटा उसे टोकरी में बैठा कर कंधे पर ढोकर लाए थे. कारण था, गांव में सड़क का निर्माण ना होना. इस दृश्य ने सरकार के विकास योजनाओं की पोल खोल दी.

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दरअसल, सरकार एक तरफ तो गांव गांव तक पक्की सड़क निर्माण के दावे करती है, लेकिन दूसरी ओर लातेहार जिले के महुआडांड़ प्रखंड में अभी भी कई ऐसे गांव हैं, जहां पक्की सड़क की तो बात ही दूर है, वहां साधारण कच्ची सड़क तक नहीं बन पाई है. ऐसा ही गांव में एक है ग्वालखांड. इस गांव में आज तक सड़क का निर्माण नहीं होने के कारण ग्रामीण आज भी पैदल ही गांव में आने जाने को विवश हैं. विकास के नाम पर चलने वाली गाड़ियां आज भी इस गांव से कोसो दूर है. प्रखंड मुख्यालय से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस गांव में साइकिल से भी जाना मुश्किल होता है. इसी कारण वृद्ध महिला को टोकरी में बिठा कर लाना पड़ा.

चलने में असमर्थ होने के कारण महिला को लाया गया टोकरी में: बुधवार को आदिम जनजाति की महिला लालो कोरबा को पेंशन के पैसे निकालने के लिए उसके पति देवा कोरबा और बेटा सुंदरलाल कोरबा ने टोकरी में बैठाकर महुआडांड़ लाया था. हालांकि, बैंक का लिंक फेल होने के कारण महिला को पेंशन भी नहीं मिल पाया. जिस कारण उन्हें बैरंग वापस घर लौटना पड़ा. महिला के पति देवा कोरबा ने बताया कि गांव तक आने जाने का कोई रास्ता नहीं है. लोग पैदल ही गांव तक आते जाते हैं. उसकी पत्नी चलने फिरने में असमर्थ हो गई है. इस कारण पेंशन के पैसे निकालने के लिए उसे टोकरी में बैठा कर कंधे पर ढोकर लाना पड़ता है. उन्होंने बताया कि तीन चार महीने में एक बार पेंशन का पैसा निकालने इसी प्रकार महुआडांड़ अपनी पत्नी को लाते हैं. हालांकि, इस बार पैसे नहीं मिलने के कारण उन्हें थोड़ी निराशा भी हुई. क्योंकि एक बार महुआडांड़ आने पर पूरा दिन निकल जाता है. ऊपर से चिलचिलाती गर्मी के कारण और अधिक परेशानी होती है.

प्रशासनिक व्यवस्था पर भी उठा सवाल: लातेहार जिले के पूर्व उपायुक्त ने पेंशन को लेकर जिले में एक व्यवस्था लागू की थी. जिसके तहत चलने में असमर्थ पेंशनधारियों को उनके घर तक पेंशन की राशि पहुंचाने की व्यवस्था की गई थी. जिससे लाचार पेंशनधारियों को भी सुविधा मिलती थी. लेकिन, धीरे-धीरे यह व्यवस्था खत्म हो गई. इस कारण लाचार पेंशनधारियों को भी पेंशन के पैसे निकालने के लिए बैंक या प्रज्ञा केंद्र के चक्कर लगाना पड़ता है. शहरी क्षेत्र या वाहन से आने जाने की व्यवस्था वाले गांव में रहने वाले लाभुकों को तो ज्यादा परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता, लेकिन सुदूरवर्ती इलाकों में रहने वाले गरीब ग्रामीणों को पेंशन के पैसे लेना किसी बड़े टेंशन के समान हो जाता है.

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हालांकि इस मामले पर महुआडांड़ के प्रखंड विकास पदाधिकारी ने कहा कि सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में रहने वाले असमर्थ लोगों के पेंशन की राशि उनके घर तक पहुंचे, इसके लिए वे जल्द ही प्रज्ञा केंद्रों को दिशा निर्देश जारी करेंगे. लालो कोरबा तो एकमात्र उदाहरण है, जिले में कई और ऐसे ग्रामीण हैं. जिन्हें पेंशन के लिए इसी प्रकार आना पड़ता है.

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