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आंध्र प्रदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची ओडिशा सरकार, जानें मामला - ओडिशा ने सर्वोच्च न्यायालय में

आंध्र प्रदेश के साथ 21 गांवों के अधिकार क्षेत्र को लेकर यथास्थिति आदेश जारी रखने के पांच दशक से अधिक समय के बाद ओडिशा ने एक बार फिर उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है.

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Published : Feb 11, 2021, 9:50 PM IST

भुवनेश्वर : आंध्र प्रदेश के साथ 21 गांवों के अधिकार क्षेत्र को लेकर यथास्थिति आदेश जारी रखने के पांच दशक से अधिक समय के बाद ओडिशा ने एक बार फिर उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और आंध्र प्रदेश के अधिकारियों के खिलाफ उसके अधिकार क्षेत्र वाले तीन गांवों में पंचायत चुनाव की अधिसूचना जारी करने के लिए अवमानना की कार्रवाई करने का आग्रह किया है.

नवीन पटनायक सरकार ने कहा है कि पंचायत चुनाव की अधिसूचना ओडिशा के क्षेत्र में अतिक्रमण है.

कोटिया ग्राम समूह के नाम से लोकप्रिय 21 गांवों के क्षेत्र पर अधिकार के विवाद का मामला पहली बार 1968 में उच्चतम न्यायालय पहुंचा था, जब ओडिशा ने एक दिसंबर, 1920, आठ अक्टूबर, 1923 और 15 अक्टूबर, 1927 की अधिसूचना के आधार पर दावा किया था कि आंध्र प्रदेश ने उसके क्षेत्र में अतिक्रमण किया है.

यह भी पढ़ें- लोक सभा में बोले राहुल गांधी- हम दो हमारे दो की तर्ज पर चल रही केंद्र सरकार

ओडिशा की तरफ से दायर वाद के लंबित रहने के दौरान शीर्ष अदालत ने दो दिसंबर, 1968 को दोनों राज्यों को मुकदमे के निस्तारण तक यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए थे और कहा था कि दोनों पक्ष में से कोई भी आगे इन विवादित क्षेत्रों पर दखल नहीं करेगा.

ओडिशा द्वारा अनुच्छेद 131 के तहत दायर वाद को उच्चतम न्यायालय ने 30 मार्च, 2006 को तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया था और दोनों राज्यों की सहमति से इसने निर्देश दिया कि विवाद का समाधान होने तक यथास्थिति बनाए रखी जाए.

ओडिशा की सरकार ने अब तीन वरिष्ठ अधिकारियों - मुंडे हरि जवाहरलाल, विजयनगरम जिले के जिलाधिकारी और आंध्र प्रदेश के राज्य चुनाव आयुक्त एन. रमेश कुमार के खिलाफ अवमानना कार्रवाई करने की मांग की है.

इसने कहा कि संभवत: जवाहरलाल ने जिलाधिकारी और चुनाव आयुक्त के साथ मिलकर याचिकाकर्ता राज्य के क्षेत्र में जानबूझकर और इस अदालत की अवहेलना कर अतिक्रमण किया. इसलिए अवहेलना करने वालों से पूछा जाए कि क्यों नहीं उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जाए और उन्हें उचित दंड दिया जाए.

ओडिशा की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील विकास सिंह और वकील शिबू शंकर मिश्रा ने उनके खिलाफ अवमानना कार्रवाई को तुरंत सूचीबद्ध करने की मांग की, जिस पर प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम की पीठ ने मामले पर सुनवाई शुक्रवार के लिए सूचीबद्ध की.

भुवनेश्वर : आंध्र प्रदेश के साथ 21 गांवों के अधिकार क्षेत्र को लेकर यथास्थिति आदेश जारी रखने के पांच दशक से अधिक समय के बाद ओडिशा ने एक बार फिर उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और आंध्र प्रदेश के अधिकारियों के खिलाफ उसके अधिकार क्षेत्र वाले तीन गांवों में पंचायत चुनाव की अधिसूचना जारी करने के लिए अवमानना की कार्रवाई करने का आग्रह किया है.

नवीन पटनायक सरकार ने कहा है कि पंचायत चुनाव की अधिसूचना ओडिशा के क्षेत्र में अतिक्रमण है.

कोटिया ग्राम समूह के नाम से लोकप्रिय 21 गांवों के क्षेत्र पर अधिकार के विवाद का मामला पहली बार 1968 में उच्चतम न्यायालय पहुंचा था, जब ओडिशा ने एक दिसंबर, 1920, आठ अक्टूबर, 1923 और 15 अक्टूबर, 1927 की अधिसूचना के आधार पर दावा किया था कि आंध्र प्रदेश ने उसके क्षेत्र में अतिक्रमण किया है.

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ओडिशा की तरफ से दायर वाद के लंबित रहने के दौरान शीर्ष अदालत ने दो दिसंबर, 1968 को दोनों राज्यों को मुकदमे के निस्तारण तक यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए थे और कहा था कि दोनों पक्ष में से कोई भी आगे इन विवादित क्षेत्रों पर दखल नहीं करेगा.

ओडिशा द्वारा अनुच्छेद 131 के तहत दायर वाद को उच्चतम न्यायालय ने 30 मार्च, 2006 को तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया था और दोनों राज्यों की सहमति से इसने निर्देश दिया कि विवाद का समाधान होने तक यथास्थिति बनाए रखी जाए.

ओडिशा की सरकार ने अब तीन वरिष्ठ अधिकारियों - मुंडे हरि जवाहरलाल, विजयनगरम जिले के जिलाधिकारी और आंध्र प्रदेश के राज्य चुनाव आयुक्त एन. रमेश कुमार के खिलाफ अवमानना कार्रवाई करने की मांग की है.

इसने कहा कि संभवत: जवाहरलाल ने जिलाधिकारी और चुनाव आयुक्त के साथ मिलकर याचिकाकर्ता राज्य के क्षेत्र में जानबूझकर और इस अदालत की अवहेलना कर अतिक्रमण किया. इसलिए अवहेलना करने वालों से पूछा जाए कि क्यों नहीं उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जाए और उन्हें उचित दंड दिया जाए.

ओडिशा की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील विकास सिंह और वकील शिबू शंकर मिश्रा ने उनके खिलाफ अवमानना कार्रवाई को तुरंत सूचीबद्ध करने की मांग की, जिस पर प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम की पीठ ने मामले पर सुनवाई शुक्रवार के लिए सूचीबद्ध की.

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